यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

अनिल शूर आज़ाद की एक लघुकथा 'विद्रोही'

वरिष्ठ लघुकथाकार अनिल शूर आज़ाद जी की लघुकथा 'विद्रोही' की अंतिम पंक्ति मेरे अनुसार गूढ़ अर्थ रखती है। आइये पहले पढ़ते हैं यह रचना:

विद्रोही / अनिल शूर आज़ाद

पार्क की बेंच पर बैठे एक सेठ, अपने पालतू 'टॉमी' को ब्रेड खिला रहे थे। पास ही गली का एक आवारा कुत्ता खड़ा दुम हिला रहा था।

वह खड़ा दुम हिलाता रहा, हिलाता रहा। पर..लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी जब, कुछ मिलने की संभावना नहीं दिखी तो..एकाएक झपट्टा मारकर वह ब्रेड ले उड़ा। कयांउ-पयांउ करता टॉमी अपने मालिक के पीछे जा छिपा। सेठ अपनी उंगली थामे चिल्लाने लगा।

थोड़ी दूरी पर बैठे उसे, बहुत अच्छा लगा था यह सब देखना!
-0- 

- अनिल शूर आज़ाद
एजी-1/33-बी, विकासपुरी
नई दिल्ली -110018
दूरभाष - 9871357136


इस लघुकथा पर मेरे विचार / चन्द्रेश कुमार छतलानी 

इस लघुकथा की अंतिम पंक्ति में "उसे" का अर्थ मैंने एक गरीब / सड़क पर रहने वाले बच्चे से लगाया। "अच्छा लगा" अर्थात उसके दिमाग में बात रह गई कि छीन कर खाया जा सकता है। 

यह लघुकथा स्पष्ट तरीके से यह बता रही है कि एक विद्रोही को देखकर दूसरा विद्रोही कैसे बनता है। रचना यह संकेत दे रही है कि अमीर व्यक्ति यदि अपने 'पालतू' के अतिरिक्त अन्य गरीबों की क्षुधा  भी किसी तरह शांत करने का यत्न करें तो विद्रोह की प्रवृत्ति शायद उभरे ही नहीं। 


2 टिप्‍पणियां: