आजकल महज वार्तालाप , सपाट घटना वर्णन, चुटकुलेनुमा गद्याअंश जिससे कथातत्व सिरे से नदारत हो, को लघुकथा के शीर्षक तले लिखा और छापा जा रहा है। मैं यहां असहमत हूं। (इसी पोस्ट से )
- कृष्ण मनु
लघुकथा बनाम कहानी
वस्तुतः लघुकथा और कहानी कथाविधा की दो सगी बहनें हैं -एक का विस्तार फलक काफी बड़ा है, दूसरी का बिल्कुल छोटा। एक अपने पात्र के पूरे जीवनचक्र घटनाओं प्रति घटनाओं की शृंखला के माध्यम से व्यक्त करती है तो दूसरी अपने पात्र के साथ घटित एकमात्र हादसे (घटना) को इतने प्रभाव पूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती है कि पाठक मन झंकृत हो उठता है।
एक कहानी में कई लघुकथाएं शामिल हो सकती हैं जब कि एक लघुकथा का विस्तार कर कहानी का रूप नहीं दिया जा सकता है।
कथा तत्व दोनो विधाओं में एक जैसा हैं। हां, प्रस्तुति/ट्रीटमेंट में भिन्नता हो सकती है। यह रचनाकार पर निर्भर है। कथाकार जहां कहानी की शुरुआत भूमिका सहित करते हुए धीरे-धीरे कथा विस्तार करता जाता है, वहीं एक लघुकथा लेखक एक-ब-एक मूल बिंदु पर पहुंच जाता है।
अनावश्यक चित्रण, वर्णन, भूमिका की गुंजाइश उसके (लघुकथा लेखक के) पास नहीं होती। शब्द जाल मेंं पाठकों को उलझाना एक लघुकथा शिल्पी की प्रकृति में नहीं जबकि कहानीकार को खुली छूट है।
जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूं कि 'कथा' का लघुकथा और कहानी दोनो मेें समावेश है,अतएव मेरा व्यक्तिगत मानना है, लघुकथा में कथातत्व/कथानक अवश्य हो, जबकि आजकल महज वार्तालाप , सपाट घटना वर्णन, चुटकुलेनुमा गद्याअंश जिससे कथातत्व सिरे से नदारत हो, को लघुकथा के शीर्षक तले लिखा और छापा जा रहा है। मैं यहां असहमत हूं।
जहां तक लघुकथा मेें शब्द सीमा निर्धारण का प्रश्न है, मैं इसके खिलाफ हूं। चूंकि लघुकथा का सृजन मात्र एक घटना-बिंदु के इर्दगिर्द बुने शब्दों से होता है, अतएव वह आवश्यक शब्द स्वतः निर्धारित कर लेता है। लेखक की अभिव्यक्ति पूर्ण हो जाती है। शब्द सीमा का निर्धारण सीधे-सीधे अभिव्यक्ति का गला घोंटना हुआ।
मान लीजिए आप एक बिंदु और एक शून्य की आकृति दे रहे हैं तो बिंदु स्वतः खुद जितना चाहिए जगह ले लेगी और शून्य को जितनी जगह चाहिए वह स्वयं ग्रहण कर लेगा। हम आप जगह का निर्धारण करने वाले कौन होते हैं कि शून्य को इतनी जगह देनी है और बिंदु को इतनी।
- कृष्ण मनु
Source:
https://www.facebook.com/100004390897888/posts/1507622059394143/
- कृष्ण मनु
लघुकथा बनाम कहानी
वस्तुतः लघुकथा और कहानी कथाविधा की दो सगी बहनें हैं -एक का विस्तार फलक काफी बड़ा है, दूसरी का बिल्कुल छोटा। एक अपने पात्र के पूरे जीवनचक्र घटनाओं प्रति घटनाओं की शृंखला के माध्यम से व्यक्त करती है तो दूसरी अपने पात्र के साथ घटित एकमात्र हादसे (घटना) को इतने प्रभाव पूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती है कि पाठक मन झंकृत हो उठता है।
एक कहानी में कई लघुकथाएं शामिल हो सकती हैं जब कि एक लघुकथा का विस्तार कर कहानी का रूप नहीं दिया जा सकता है।
कथा तत्व दोनो विधाओं में एक जैसा हैं। हां, प्रस्तुति/ट्रीटमेंट में भिन्नता हो सकती है। यह रचनाकार पर निर्भर है। कथाकार जहां कहानी की शुरुआत भूमिका सहित करते हुए धीरे-धीरे कथा विस्तार करता जाता है, वहीं एक लघुकथा लेखक एक-ब-एक मूल बिंदु पर पहुंच जाता है।
अनावश्यक चित्रण, वर्णन, भूमिका की गुंजाइश उसके (लघुकथा लेखक के) पास नहीं होती। शब्द जाल मेंं पाठकों को उलझाना एक लघुकथा शिल्पी की प्रकृति में नहीं जबकि कहानीकार को खुली छूट है।
जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूं कि 'कथा' का लघुकथा और कहानी दोनो मेें समावेश है,अतएव मेरा व्यक्तिगत मानना है, लघुकथा में कथातत्व/कथानक अवश्य हो, जबकि आजकल महज वार्तालाप , सपाट घटना वर्णन, चुटकुलेनुमा गद्याअंश जिससे कथातत्व सिरे से नदारत हो, को लघुकथा के शीर्षक तले लिखा और छापा जा रहा है। मैं यहां असहमत हूं।
जहां तक लघुकथा मेें शब्द सीमा निर्धारण का प्रश्न है, मैं इसके खिलाफ हूं। चूंकि लघुकथा का सृजन मात्र एक घटना-बिंदु के इर्दगिर्द बुने शब्दों से होता है, अतएव वह आवश्यक शब्द स्वतः निर्धारित कर लेता है। लेखक की अभिव्यक्ति पूर्ण हो जाती है। शब्द सीमा का निर्धारण सीधे-सीधे अभिव्यक्ति का गला घोंटना हुआ।
मान लीजिए आप एक बिंदु और एक शून्य की आकृति दे रहे हैं तो बिंदु स्वतः खुद जितना चाहिए जगह ले लेगी और शून्य को जितनी जगह चाहिए वह स्वयं ग्रहण कर लेगा। हम आप जगह का निर्धारण करने वाले कौन होते हैं कि शून्य को इतनी जगह देनी है और बिंदु को इतनी।
- कृष्ण मनु
Source:
https://www.facebook.com/100004390897888/posts/1507622059394143/
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