सम्मानीय विद्वतजन,
इन दिनों सोशल मीडिया की कई पोस्ट्स पर नुक्कड़ में लोगों को बुद्ध मिल रहे हैं। भारतीय योग दर्शन में पंतजलि के अष्टांग योग के प्रथम अंग ‘यम’ के प्रथम यम ‘अहिंसा’ के अग्रदूत रहे हैं – बुद्ध। हालाँकि इस पोस्ट में हम इसके बिलकुल विपरीत ‘विध्वंस के अग्रदूत’ – परमाणु हथियारों की बात कर रहे हैं। यह एक सत्य है कि पारंपरिक दर्शन से दूर जाकर विज्ञान अनियंत्रित हो विध्वंसक बन सकता है। इस आलेख में भी उन हथियारों की बात की गई है, जिनकी शक्ति से संपन्न हो कई राष्ट्र इठला रहे हैं। जी हाँ! आज सभी राष्ट्र यह चाहते हैं कि वे न्यूक्लियर शक्ति से संपन्न रहें। लेकिन यह यदि अनियंत्रित हो गया तो क्या होगा? इस पर विचार अति आवश्यक है।
परमाणु हथियार मानव जाति द्वारा विकसित की गई सबसे विनाशकारी तकनीकों में से एक हैं। उनके निर्माण ने वैश्विक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया है, जिसके भू-राजनीति, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और धरती के अस्तित्व हेतु भी दूरगामी परिणाम चिन्हित हो गए हैं। यह आलेख परमाणु हथियारों के विकास, उनकी विनाशकारी क्षमता, उनके दुरुपयोग और विश्व स्तरीय साहित्य में उनके चित्रण पर चर्चा करता है।
परमाणु हथियारों का विकास / दुरुपयोग
परमाणु हथियारों का विकास 20वीं सदी की शुरुआत में शुरू हुआ, जो परमाणु भौतिकी में प्रगति से प्रेरित था। 1938 में, जर्मन वैज्ञानिक ओटो हैन और फ्रिट्ज़ स्ट्रैसमैन ने परमाणु विखंडन की खोज की, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा एक परमाणु को विभाजित करने से भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। इस सफलता ने परमाणु हथियार विकास की नींव रखी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इस शक्ति का दुरुपयोग करने की दौड़ मैनहट्टन परियोजना से शुरू हुई, जो अमेरिकी सरकार की गुप्त परियोजना थी जिसमें जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर, एनरिको फर्मी और नील्स बोहर जैसे प्रमुख वैज्ञानिक शामिल थे। इस परियोजना में सबसे पहले परमाणु बमों के निर्माण और बाद में जुलाई 1945 में परीक्षण किया गया। इसके तुरंत बाद, जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बमों को छोड़ा गया, जिससे अभूतपूर्व तबाही हुई।
अगस्त 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम विस्फोट युद्ध में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का एकमात्र उदाहरण है। 6 अगस्त, 1945 के दिन जापान के हिरोशिमा नगर पर ‘लिटिल बॉय’ नामक यूरेनियम बम (60 किलोग्राम यूरेनियम-235) गिराया था। इस बम के प्रभाव से 13 वर्ग कि.मी. में तबाही मच गयी थी। हिरोशिमा की 3.5 लाख की आबादी में से एक लाख चालीस हज़ार लोग एक झटके में ही मारे गए। इसके बाद 9 अगस्त को ‘फ़ैट मैन’ नामक प्लूटोनियम बम (6.4 किलो प्लूटोनियम-239 वाला) नागासाकी पर गिराया गया, जिसमें अनुमानित 74 हज़ार लोग विस्फोट व गर्मी के कारण मारे गए। इन दोनों हमलों में 2,00,000 से अधिक लोग मारे गए, और इसके बाद भी अनेक वर्षों तक अनगिनत लोग विकिरण के प्रभाव से मरते रहे।
और भी हमलों की योजना बन चुकी थी, लेकिन जापान ने 14 अगस्त को समर्पण कर दिया। युद्ध के बाद, परमाणु हथियार शीत युद्ध के दौरान शक्ति प्रदर्शन के उपकरण बन गए। संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हथियारों की दौड़ में हजारों वारहेड का भंडार देखा गया, जिससे वैश्विक विनाश का खतरा बढ़ गया। युद्ध से परे, जमीन के ऊपर, पानी के नीचे और भूमिगत किए गए परमाणु परीक्षणों ने स्थानीय आबादी में महत्वपूर्ण पर्यावरणीय क्षति और स्वास्थ्य संकट पैदा किया।
भगवद गीता को उद्धृत करते हुए. जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने कहा था, "अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, दुनिया का विनाश करने वाला।"
विनाशकारी क्षमता
अगर हम कभी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करते हैं, तो कम से कम हमें ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं होगी, क्योंकि परमाणु हथियार अतुलनीय रूप से विनाशकारी हैं। एक आधुनिक थर्मोन्यूक्लियर बम एक पूरे शहर को नष्ट कर सकता है, एक विशाल शॉकवेव इमारतों और बुनियादी ढांचे को नष्ट कर देता है, थर्मल विकिरण तीव्र गर्मी व्यापक आग और गंभीर जलन का कारण बनती है, रेडिएशन फॉलआउट के कारण रेडियोधर्मी कण पर्यावरण को दूषित करते हैं, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव होते हैं।
उदाहरण के लिए, 1961 में सोवियत संघ द्वारा परीक्षण किया गया ज़ार बॉम्बा अब तक का सबसे शक्तिशाली परमाणु हथियार बना हुआ है। 50 मेगाटन की क्षमता के साथ, यह हिरोशिमा बम से 3,000 गुना अधिक शक्तिशाली था। यदि किसी बड़े शहर के ऊपर इसका विस्फोट किया जाए तो इससे लाखों लोगों की तत्काल मृत्यु हो सकती है, तथा इसके बाद और भी अधिक दर्दनाक प्रभाव होगा।
परमाणु परीक्षणों से मरने वालों के अतिरिक्त अन्य आंकड़े भी हैं, जिन पर चर्चा करना ठीक है,
सबसे पहला आंकड़ा है खौफ का - क्या इसका आकलन किया जा सकता है? आप कहेंगे नहीं, मैं भी आपसे सहमत हूँ। लेकिन फिर भी एक बात बताता हूँ। सुना है द्वितीय विश्वयुद्ध में परमाणु हथियारों के प्रयोग के कारण हिरोशिमा और नागासाकी में आज भी कई बच्चे विकलांग पैदा होते हैं लेकिन मेरा मानना है कि सिर्फ वहीँ नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बच्चे आज भी परमाणु बमों के खौफ के साथ पैदा होते हैं और अगले न जाने कितने वर्षों तक यह खौफ नवजात बच्चों में कायम रहेगा। यह है आंकड़ा।
दूसरा आंकड़ा है प्रकृति के दोहन का - ऊर्जा का एक उपयोग है राकेट-कृत्रिम उपग्रह आदि का प्रक्षेपण। तीव्र वेग के कारण राकेट आदि पृथ्वी के वायुमंडल को भेदते हुए अन्तरिक्ष में जाने को समर्थ हैं, वही ऊर्जा यदि पृथ्वी पर विस्फोट करे तो वायुमंडल का कितना भेदन होगा? यह आंकड़ा क्या सोचने योग्य नहीं है?
तीसरा आंकड़ा है मानवीयता के हनन का - मन और मस्तिष्क दो अलग-अलग अस्तित्व हैं। मस्तिष्क भौतिक है और मन अभौतिक। मानवीयता का सम्बन्ध मन से है। मन बड़ा होना चाहिये लेकिन कठोर नहीं, कठोर मन में नकारात्मकता बड़े आराम से स्थान बना सकती है। बहुत अधिक मृत्यु आधारित हाहाकार देख-सुनकर मन की कठोरता बढ़ेगी ही बढ़ेगी, जिसके दुष्परिणाम मानवीयता का हनन करेंगे या नहीं, यह आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं।
परमाणु युद्ध " nuclear winter" का कारण बन सकता है, जहाँ कालिख और मलबा सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध कर विश्व भर में कृषि को बाधित कर सकता है। परमाणु शक्ति है और इस शक्ति के दुरुपयोग परमाणु बमों से संपन्न हम स्वयं को शक्तिशाली तो मान रहे हैं लेकिन यदि पडौसी देश पाकिस्तान और हमारे बीच कभी परमाणु युद्ध हो जाये तो उसकी भयावहता के बारे में भी थोड़ा विचार कर लें। सच तो यह है कि यदि 65 किलोटन एक परमाणु बम फैंका जाये तो कम से कम मरने वाले लोगों की संख्या 6,50,000 और घायलों की संख्या 15,00,000 से भी अधिक होगी। भारत और पकिस्तान के कितने शहर एक परमाणु बम से ही तबाह हो सकते हैं और उसी एक परमाणु बम से कितने ही पर्वत, पेड़ आदि सभी खत्म हो जायेंगे, कितने ही वर्षों तक बच्चे विकलांग पैदा होंगे, महामारियों की चपेट में रहेंगे। कल्पना कीजिए अगर 100-100 परमाणु बम दोनों देश चला दें तो?
हम में से कई लोग चर्चा करते हैं कि सबसे बड़ा परमाणु बटन किसके पास है। लेकिन क्या हम इस बात पर सहमत हो सकते हैं कि यह ऐसा बटन है जिसे किसी को भी दबाना नहीं चाहिए?
परमाणु हथियारों का इतिहास पर प्रभाव
परमाणु हथियारों के कारण इतिहास में कई बातें लिखी गईं हैं, इनमें से कुछ निम्न हैं:
1. शीत युद्ध की राजनीति: हथियारों की दौड़ को बढ़ावा देना और पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश (MAD) के सिद्धांत की स्थापना।
2. निरस्त्रीकरण आंदोलन: परमाणु हथियारों के अप्रसार पर संधि (NPT) और व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT) जैसे प्रयासों ने इन हथियारों के प्रसार और परीक्षण को सीमित करने की कोशिश की।
3. पर्यावरण और मानवीय लागत: परमाणु परीक्षण व्यापक पारिस्थितिक क्षति का कारण बना और अनगिनत स्वदेशी समुदायों को विस्थापित किया।
यदि भारत में परमाणु बमों के इतिहास के बारे में विचार करें। महाभारत, रामायण और अन्य शास्त्रों में वर्णित ब्रह्मास्त्र भी आधुनिक परमाणु बम की तरह ही थे। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि परमाणु बम सदियों पहले भी अस्तित्व रहे होंगे। लेकिन दुःख इस बात का भी है कि हम भूल गए श्रीकृष्ण का दिया वह ज्ञान, जब महाभारत में अर्जुन और अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चलाया था तो उन्होंने रोक दिया था।
इसी प्रकार रामायण में भी राम-रावण युद्ध के दौरान भी मेघनाद को मारने के लिए लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र के प्रयोग की श्रीराम से अनुमति मांगी थी और राम ने मना कर दिया था, उस समय राम ने कहा कि ब्रह्मास्त्र के प्रयोग से लंका के न केवल कई निर्दोष व्यक्ति-पशु मारे जायेंगे बल्कि प्रकृति को भी बहुत क्षति होगी।
महाभारत के अनुसार यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा जाते हैं तो प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे पूरी पृथ्वी के समाप्त होने का डर भी रहता है। महाभारत में वर्णित एक श्लोक है
तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।
सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम।
चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।।
ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के पश्चात् भयंकर तूफ़ान आया था। आसमान से हज़ारों उल्काएं गिरने लगीं। सभी को महाभय होने लगा। बहुत बड़े धमाके साथ आकाश जलने लगा। पहाड़, जंगल, पेड़ों के साथ धरती हिल गई और यही सब कुछ तो हिरोशिमा और नागासाकी में हुआ था - तेज़ चमक-धमाका-तूफ़ान और फिर आग ही आग।
मोहनजोदड़ो की खुदाई के अवशेषों के परिक्षण के बाद यह प्राप्त हुआ कि कई अस्थिपंजर जिन्होंने एक-दूसरे के हाथ ऐसे पकड़े हुए थे जैसे किसी विपत्ति के कारण वे मारे जा रहे हों, उन पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी पायी गयी जैसी रेडियो एक्टिविटी हिरोशिमा और नागासाकी के नरकंकालों पर एटम बम के पश्चात थी।
श्रीराम और श्रीकृष्ण की तरह ही चाहे परमाणु शक्ति संपन्न देश हो या परमाणु शक्तिहीन देश हो, परमाणु परीक्षणों और परमाणु बमों के निर्माण का समर्थन नहीं करता। 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद भारत को कई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था लेकिन हमने अपनी छवि को बेहतर करते हुए दुनिया स्वयं को एक जिम्मेदार देश दर्शाने में सफल हुए हैं। लेकिन चूँकि हमें खतरा है परमाणु शक्ति सम्पन्न पडौसी देशों से, इसलिए 1998 में किया गया परमाणु परिक्षण केवल परमाणु परिक्षण न मानकर शक्ति प्रदर्शन भी माना जा सकता है।
समाधान
इस खेल को जीतने का एकमात्र तरीका यह है कि इसे न खेला जाए। परमाणु हथियारों से उत्पन्न खतरों का समाधान वैश्विक सहयोग है। परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों को सशक्त करना और निरस्त्रीकरण समझौतों पर सही दिशा में कार्य वैश्विक शस्त्रागार को कम कर सकता है। सभी राष्ट्रों को इन हथियारों को इस्तेमाल न करने की नीति अपनानी चाहिए। परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्रों का विस्तार करना, शांतिपूर्ण परमाणु तकनीक को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा देना परमाणु क्षमताओं पर निर्भरता को कम कर सकता है। सार्वजनिक शिक्षा और अन्य अभियानों को परमाणु युद्ध के भयावह परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए। कूटनीति, संघर्ष और आर्थिक विकास जैसे तनाव के मूल कारणों को इस प्रकार संबोधित करना चाहिए, जिससे परमाणु हथियारों पर निर्भरता के बिना एक अधिक स्थिर, शांतिपूर्ण संसार सुनिश्चित हो सके।
परमाणु हथियारों पर साहित्य
परमाणु हथियारों से उत्पन्न अस्तित्वगत खतरे ने इस तरह के साहित्य सृजन को प्रेरित किया है, जो विनाश, नैतिकता और मानवीय मूर्खता के विषयों को संबोधित करते हैं। इनमें से कुछ निम्न हैं:
जॉन हर्सी द्वारा पत्रकारिता का एक अभूतपूर्व कार्य, "हिरोशिमा" (1946), परमाणु बमबारी के छह बचे लोगों के जीवन का वृत्तांत है। हर्सी की जीवंत और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत कथा परमाणु युद्ध और उसके बाद की भयावहता को जीवंत तरीके से दर्शाती है।
नेविल शूट द्वारा "ऑन द बीच" (1957) उपन्यास परमाणु युद्ध के बाद अंतिम बचे लोगों को रेडियोधर्मी गिरावट की प्रतीक्षा करते हुए दर्शाता है। शूट का यह सृजन युद्ध की निरर्थकता और मानव अस्तित्व पर एक मार्मिक चिंतन है।
यूजीन बर्डिक और हार्वे व्हीलर द्वारा "फेल-सेफ" (1962) राजनीतिक थ्रिलर आकस्मिक परमाणु युद्ध की भयावह संभावना पर विचार को प्रेरित करता है। यह उपन्यास सावधानीपूर्वक कूटनीति के महत्व और तकनीकी त्रुटियों के भयानक परिणामों पर भी जोर देता है।
नोबेल पुरस्कार विजेता केनज़ाबुरो ओए का " The Atomic Bomb and the End of the World" में निबंधों और कहानियों की एक श्रृंखला के माध्यम से परमाणु विनाश से जूझते हुए जापान की सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतिक्रिया की पड़ताल की है।
पीटर जॉर्ज का व्यंग्यात्मक उपन्यास " Dr. Strangelove or: How I Learned to Stop Worrying and Love the Bomb" (1963), जिस पर बाद में एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माण भी हुआ, शीत युद्ध के व्यामोह और परमाणु हथियारों के प्रसार सरीखी मूर्खता की तीखी आलोचना करता है।
इस प्रकार स्टीफ़न वॉकर की “Shockwave: Countdown to Hiroshima” नामक पुस्तक, जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने से जुड़ी है। इस किताब में लेखक ने विस्फोट से पहले और उसके बाद के कुछ अहम हफ़्तों में लोगों की कहानियां बताई हैं।
2023 में प्रदर्शित ओपेनहाइमर नामक चर्चित फिल्म, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहले परमाणु हथियार विकसित करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जीवन पर थी। यह फिल्म भी काई बर्ड और मार्टिन जे शेरविन द्वारा सर्जित अमेरिकन प्रोमेथियस पर आधारित थी।
इस विषय पर कुछ लघुकथाएं निम्न हैं:
अवधि कितनी होगी? / डॉ. सन्ध्या तिवारी
अश्वत्थामा वीहड जंगल में निरुद्देश्य भटक रहे थे ।तभी सम्मुख खडे विशाल पीपल के पेड पर उनकी दृष्टि ठहर गई।
"कौन है वहां ?" उन्होने हुंकारते हुये पूछा,
पेड की शाखा से उतर कर एक अशरीरी प्रेतात्मा विनयावत् उनके सम्मुख थी।
कौन हो तुम ? यहां कैसे और इस योनि में भटकने का कारण ? अश्वत्थामा ने कुछ रूखे स्वर में पूछा?
प्रेत पहले तो कुछ बोला नहीं ।
परन्तु अश्वत्थामा के बार बार आग्रह करने पर बोला ; "महाराज जैसे आप प्रायश्चित कर रहे है , " वैसे मैं भी पश्चाताप की अग्नि में झुलस कर इस योनि को प्राप्त हुआ हूं।"
" मैनें तो द्रौपदी के सोये हुये पाँच पुत्रों का वध नियम निषेध करके किया । इस कारण मैं युगों युगों से श्रापित इस पृथिवी पर भटक रहा हूं।", अश्वत्थामा ने कहा:
" परन्तु तुमने ऐसा क्या जघन्य अपराध किया प्रेतराज , जो तुम्हें यूं भटकना पड़ रहा है ? "
" महाराज , मैंने हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु बम बरसाये थे।
उसके बाद मैं कई रातों सो न सका और जब वह वीभत्स दृश्य सहन नहीं हुआ तो मैनें आत्महत्या कर ली।
तब से पश्चाताप की अग्नि में जलता हुआ इसी वीहड जंगल का वाशिन्दा बना हुआ हूं। "
कहकर प्रेत मौन हो गया।
थोडी देर बाद उसने प्रश्न किया ।
"क्या महाराज सबको पश्चाताप होता है?
"नहीं सबको नहीं।", अश्वत्थामा ने उत्तर दिया।
प्रेत ने फिर पूछा "क्या प्रायशचित सबको करना पडता है ?"
" हां यही विधि का विधान है । पाप का निदान ही प्रायश्चित है।और यह शाश्वत है ।"अश्वत्थामा ने कहा
"क्या महाराज इसकी कोई अवधि निश्चित नही? जैसे आप द्वापर से लेकर कलियुग में भी भटक रहे हैं। और मुझे भी भटकते हुये सदियां बीत गई। लेकिन प्रायश्चित पूर्ण नही हुआ।"
प्रेत की जिज्ञासा और प्रश्न दोनो ज़ायज थे।
अश्वत्थामा के पास सटीक उत्तर न था।
प्रेत फिर बोला ; "तो महाराज आने वाले समय में नर संहार, मानव तस्करी, पशुसंहार, मादा भ्रूण हत्या आदि नृशंस कार्यों मे लिप्त इन्सानों का क्या होगा? इनकी प्रायश्चित अवधि कितनी होगी?”
अश्वथामा और प्रेत के बीच गहरा सन्नाटा खिंच गया।
-0-
- डॉ. सन्ध्या तिवारी
तस्वीर / लीला तिवानी
''मैं उपयोगी बम हूं, मुझे अपना बना लो, बंजर मिट्टी में प्यार के फूल खिला दूंगा.'' चौंकाने वाली यह आवाज सुनकर प्रिया ने इधर-उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया.
''शायद आपको विश्वास नहीं हुआ. होगा भी कैसे! बम का नाम लेते ही हिरोशिमा पर गिरकर तबाही मचाने वाले परमाणु बम 'लिटिल बॉय' की याद आती है न!''
''आप सही कह रहे हैं बम महाशय जी, हिरोशिमा पर हुए परमाणु हमले में 140,000 लोग मारे गए थे और बड़े पैमाने पर क्षति हुई थी. 4.4 टन के परमाणु बम से हमले के बाद पूरा शहर ही मलबे में ढेर हो गया था.'' प्रिया की चिंता जायज थी.
''यह भी तो सोचो न, कि अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु हमले के साथ ही जापान ने समर्पण कर दिया और एक तरह से यह दूसरे विश्व युद्ध की निर्णायक समाप्ति का ऐलान था.'' बम का कथन जारी था.
''तो क्या फिर किसी युद्ध की निर्णायक समाप्ति का ऐलान करने वाले हो!''
''मेरा इरादा तो यही है. तभी तो मैंने खुद को उपयोगी और बंजर मिट्टी में प्यार के फूल खिलाने वाला कहा है.'' बम की आवाज कुछ और विनम्र-सी हो चली थी.
''चलो, फिर अपना पूरा परिचय दो.'' प्रिया भी कुछ सहज हो गई थी.
''मुझे सीड बम कहते हैं. मैं मौत नहीं जिंदगी बांटता हूं, जहां खाली जगह मिले वहीं मुझे गिरा दें.....''
''तुम तो किसी युद्ध की निर्णायक समाप्ति वाली बात कह रहे थे, उसका क्या हुआ!'' उत्सुकतावश प्रिया ने शायद बीच में ही टोक दिया था.
''बताता हूं, तनिक सांस लेने दो और मेरी पूरी बात सुनो. यह जो प्रदूषण, स्मॉग और ग्लोबल वार्मिंग का भयंकर प्रकोप हो रहा है न, उसका समापन मेरे उपयोग से संभव हो सकता है.'' बम की आवाज विश्वसनीय हो चली थी.
''हिरोशिमा पर गिरकर तबाही मचाने वाले परमाणु बम का नाम तो 'लिटिल बॉय' था, आगे बढ़ने से पहले अपना नाम तो बताते चलिए!'' प्रिया की जिज्ञासा तनिक बढ़ गई थी.
''मुझे 'सीड बम' या 'बीज बम' के नाम से जाना जाता है. मेरा जन्म भी अन्य अनेक तकनीकों की तरह जापान में ही हुआ है.''
''वाह! आपका काम क्या और कैसे होगा?'' प्रिया की जिज्ञासा उत्कर्ष पर थी.
''पहले मेरी संरचना की जानकारी लो. बीज बम मिट्टी का गोला होता है. इसमें दो तिहाई मिट्टी और एक तिहाई जैविक खाद होती है. इसमें दो बीज अंदर धंसा दिए जाते हैं. इसे छह घंटे धूप में रखा जाता है. इसके बाद नमी रहने तक छांव में खुले में रख दिया जाता है. ठोस रूप लेते ही बीज बम तैयार हो जाता है. बारिश में मुझे जमीन पर डालने से बीज जमीन पकड़ लेता है. पोषण के लिए मुझमें पहले ही जैविक खाद रहती है.''
''वाह, बहुत बढ़िया.''
''बहुत सारे क्षेत्र ऐसे हैं जहां पौधारोपण करना मुश्किल है, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में, वहां 'सीड बम' फेंकिए और निश्चिंत हो जाइए, पौधारोपण हो जाएगा और पौधारोपण का सीधा मतलब है- प्रदूषण से मुक्ति की ओर एक कदम.''
''तब तो तुम सचमुच ही उपयोगी और बंजर मिट्टी में खुशियों के सुमन खिलाने वाले हो. जरा अपनी शक्ल-सूरत तो दिखाओ न!''
अब वहां न तो बम था, न ही बम की कोई आवाज थी, बस 'सीड बम' की एक तस्वीर जरूर पड़ी थी, जिसे देखकर प्रिया मन-ही-मन दूसरे विश्व युद्ध की परछाइयों से लेकर सुखद भावी कल की तस्वीर बना गई थी.
-0-
- लीला तिवानी
आग / ज्योत्स्ना सिंह
मीता हैरान परेशान सी खड़ी देख रही थी बादलों का रंग सफ़ेद से नारंगी होते हुए काला पड़ गया था
सामने धुंए का ग़ुबार उठ रहा था,पेड़ धू धू कर के जल रहे थे ,आकाश में चीलें चिल्ला रही थीउनकी ऊँचाई बढ़ गई थी, सब जानवर इधर उधर भाग रहे थे। उसका दम घुटने लगा था वो भाग कर अपने घर की ओर गई उसके बग़ीचे के फूल कुम्हला रहे थे तितलियाँ भी झुलस रही थीं । खाँस खाँस कर उसका बुरा हाल था और आँखों से पानी बह रहा था। फ़ायर ब्रिगेड और हैलीकॉप्टर आग बुझाने वाले रसायनों की बौछार कर रहे थे लेकिन आग बुझने में ही नहीं आ रही थी। कैसी आग थी ये ?किस कारण लगी ? बढ़ती जन संख्या? उनके लिये अधिक जगह ,अधिक ईंधन का इस्तेमाल? हथियारों का अधिक परीक्षण एक पर और प्रयोग?, परमाणु विस्फोट?,मंगल चाँद पर जाने के लिये देशों में रॉकेट लॉन्चिग की होड़ ? मीता ने देखा उसके माता पिता उसका ही इन्तज़ार कर रहे थे शहर छोड़ कर जाने के लिये लेकिन कहाँ?
मीता सोच रही थी कि सूरज अधिक गर्म हो गया था या मनुष्य के भीतर की आग इस आग में घी डाल रही थी।
-0-
- ज्योत्स्ना सिंह
-----
सारांश में, यह कह सकते हैं कि, परमाणु हथियार मानव समझ और विनाश दोनों प्रकार की क्षमताओं का प्रतीक हैं। उनका अस्तित्व मानवता के अस्तित्व को खतरे में डालता है। यद्यपि साहित्य ने इनके दुरुपयोग के भयावह परिणामों को याद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, तथापि लघुकथाओं में इस विषय पर बहुत कार्य करने की आवश्यकता है ही।
हमारे समक्ष चुनौती निरस्त्रीकरण प्रयासों को वैश्विक सुरक्षा आवश्यकताओं के साथ संतुलित करने की है, चुनौती यह सुनिश्चित करने की भी है कि अतीत की गलतियाँ दोहराई न जाएँ। चुनौती यह भी है कि परमाणु हथियारों के बिना एक दुनिया केवल एक सपना नहीं बने, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के अस्तित्व के लिए एक आवश्यक हो।
मित्रों, मेरा मानना है कि सभी परमाणु बमों और हाइड्रोजन बमों को कहीं अन्तरिक्ष में ले जाकर शून्य में फैंक देना चाहिये, ताकि उल्का पिंडों, धूमकेतुओं आदि से टकरा कर वे वहीँ नष्ट हो जाएँ। धरती पर मानव हैं-पशु हैं-पेड़-पौधे आदि प्रकृति प्रदत्त जीव हैं, इनको बचाने के लिए इन बमों को समूल नष्ट करना बहुत आवश्यक है और आवश्यक है इनको समूल नष्ट करने के लिए आवाज़ बुलंद करने की। बमों की बजाय परमाणु उर्जा को हम विकास कार्यों में उपयोग कर परमाणु शक्ति संपन्न हों तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता?
धन्यवाद।
-0-
- चंद्रेश कुमार छतलानी