हिंदी साहित्य में महिलाओं के जीवन के विभिन्न पहलुओं को अभिव्यक्त करने की परंपरा रही है, लेकिन मासिक धर्म जैसे विषय पर साहित्यिक दृष्टिकोण अपेक्षाकृत कम दिखाई देता है। मासिक धर्म महिलाओं के जीवन का एक प्राकृतिक भाग है, जो लंबे समय से सामाजिक वर्जनाओं, मिथकों और चुप्पी के घेरे में रहा है। यह न केवल महिलाओं की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक अधिकारों से भी गहराई से संबंधित है।
कुछ लेखिकाओं ने इस विषय पर साहसिक लेखन किए हैं। महादेवी वर्मा, मृदुला गर्ग, और इस्मत चुगताई जैसी लेखिकाओं ने महिलाओं की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर आधारित कथाएँ और कविताएँ लिखी हैं। हाल के समय में रचनाकार इस विषय को खुलकर अपनी रचनाओं में स्थान दे रहे हैं, जो समाज में जागरूकता लाने का महत्वपूर्ण कार्य है।
इस विषय पर लेखन समाज में व्याप्त वर्जनाओं और मिथकों को तोड़ने में मदद करता है। साहित्यिक कृतियाँ पाठकों को यह समझने में सक्षम बनाती हैं कि मासिक धर्म कोई अपवित्रता नहीं, बल्कि एक जैविक प्रक्रिया है। इस विषय पर साहित्यिक चर्चा लड़कियों और महिलाओं को उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक करती है। यह उन्हें आत्मविश्वास के साथ समाज में अपनी भूमिका निभाने की प्रेरणा देता है। इनके अलावा इससे जुड़े विषयों पर चर्चा महिलाओं की गरिमा और सामाजिक समानता को स्थापित करने में मदद करती है। यह महिलाओं के प्रति भेदभाव को समाप्त करने का माध्यम बन सकता है।
कई विधाओं में उत्तम रचनाएं देने वाले रचनाकार सुरेश सौरभ इस विषय पर अपना योगदान निम्न लघुकथा से दे रहे हैं:
जूस/ लघुकथा
"क्या बात मैडम जी! आज लेट कर दिया?"-क्लर्क
"जरा तबीयत न ठीक थी"-मैडम
"अरे! क्या हुआ आपको ?"- क्लर्क
".......... "
"ओह! अब आईं, क्या हुआ मैडम जी?-साहब
"सर! तबीयत न ठीक थी, इसलिए आज लेट हो गई। "
"क्या हुआ ? "-साहब
मैडम खामोशी से अपनी सीट की ओर बढ़ गईं।
"रामू ऽऽ" मैडम ने चपरासी रामू को आवाज दी।
"जी जी ! मैम" रामू आ गया।
"जरा एक गिलास अनार का जूस ले आओ, कुछ तबीयत ठीक नहीं, वहीं से लाना जहाँ से लाते हो?"
क्लर्क की डेस्कटॉप से आंखें हटीं, कीपैड पर नाचती उंगलियाँ ठहरीं।अब उसकी निगाह रामू पर थीं। रामू उन्हें देख मुस्कुराया, तब हल्की हंसी में क्लर्क बोला-"जाओ यार! ले आओ जल्दी! "
" अभी जाता हूँ सर।"- मैम से पैसे लेकर रामू शरारती मुस्कान लिए आगे बढ़ गया। मैडम ने कनखियों से उसे देखा, फिर दुरदुराते हुए उनकी उंगलियाँ कीपैड पर तेज से, तेजतर हो गईं। डेस्कटॉप थरथराने लगा।
-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश पिन कोड 26 2701 मोबाइल नंबर 7860600355
हिंदी साहित्य में मासिक धर्म पर इस तरह की लघुकथाएं समाज में एक नई दिशा देने का कार्य कर सकती हैं। ऐसा रचनाकर्म महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील बनाता है और समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने का माध्यम बनता है। साहित्य के माध्यम से इस विषय पर चर्चा करना समय की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ी मासिक धर्म को एक प्राकृतिक और सामान्य प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करे।
- चंद्रेश कुमार छ्तलानी
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