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बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

लघुकथा: बहादुरी | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी




विद्यालय में प्रार्थना के बाद पहला कालांश प्रारंभ होने ही वाला था कि वह इधर-उधर देखता हुआ शौचालय में गया। अंदर जाकर कर भी उसने चारों तरफ नज़र घुमाई, किसी को न पा कर, अपनी जेब में हाथ डाला और अस्थमा का पम्प निकाल कर वो पफ लेने ही वाला था कि बाहर आहट हुई, उसने जल्दी से पम्प फिर से जेब में डाल दिया।

शौचालय में उसी की कक्षा का एक विद्यार्थी रोहन आ रहा था, कई दिनों बाद रोहन को देख वह एकदम पहचान नहीं पाया, उसने ध्यान से देखा, रोहन के पीले पड़े चेहरे पर कई सारे दाग भी हो गये थे और काफी बाल भी झड़ गये थे। उसने चिंतित स्वर में पूछा, "यह क्या हुआ तुझे?"
"बहुत बीमार हो गया था।"
"ओह, लेकिन इस तरह स्कूल में आया है? कम से कम कैप तो लगा लेता।"
"क्यों? जैसा मैं हूँ वैसा दिखने में शर्म कैसी?"
यह शब्द सुनते ही कुछ क्षण वह हतप्रभ सा रह गया, और फिर लगभग भागता हुआ शौचालय से बाहर मैदान में गया, अस्थमा का पम्प जेब से निकाल कर पहली बार सबके सामने पफ लिया और खुली हवा में ज़ोर की सांस ली।
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