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शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं | भाग 12 | सड़क सुरक्षा

सम्मानीय रचनाकारों,

फिलवक्त इतना तो है ही कि बहुत सारे लघुकथाकारों को अपने लेखन के लिए अपने विचारों के कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आने की ज़रूरत है। यदि लेखन वैश्विक मुद्दों पर होगा, तभी ही आपकी रचनाएं विदेशों में उनकी अपनी भाषाओं में अनुवाद होंगी और दुनिया भर के लोग पढ़ पाएंगे। यह एक सच है कि लोग वही पढ़ते हैं, जिसमें उनकी रूची होती है। यह श्रृंखला भी इसीलिए है कि हम सभी का अध्ययन विस्तृत हो और वैश्विक हो। किसी भी विषय पर सब कुछ बताना एक लेख में संभव नहीं होता। अतः इस श्रृंखला के लेखों को केवल जागरूकता के अनुसार ही मानिए, इनके आधार पर कोई रचना सूझती है तो यह मेरा भी सौभाग्य होगा, लेकिन यदि नहीं सूझती है और विषय आपको रुचिकर लगता है तो अध्ययन के लिए पूरा जहान है, जिसमें किताबें, इन्टरनेट, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस जैसे टूल्स उपलब्ध हैं। चलिए इस लेख के विषय ‘सड़क सुरक्षा’ पर बात करते हैं। इस विषय के बारे में बताऊँ तो लगभग डेढ़ वर्ष पहले इस विषय पर लिखी लघुकथाओं पर मैंने अध्ययन प्रारम्भ किया था, इस ध्येय के साथ कि इस पर एक शोध पत्र लिखा जाए, हालाँकि पर्याप्त संख्या में रचनाएं नहीं मिलने के कारण वह शोध नहीं हो पाया। जो रचनाएं मुझे मिलीं, उनमें से कुछ को इस लेख में बताया है। 

सड़क सुरक्षा

सड़क सुरक्षा सबसे बड़ी वैश्विक चिंताओं में से एक है, जो हर साल लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, सड़क यातायात दुर्घटनाएँ 5-29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों की मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। 2023 में, वार्षिक वैश्विक सड़क दुर्घटनाएँ 1.3 मिलियन से अधिक हो गई हैं, जिसमें लाखों लोग चोटों से पीड़ित हैं और उनमें से कई लोग आजीवन विकलांगता का शिकार हो गए हैं।

इन मौतों का लगभग 93% भाग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में है, हालाँकि उनके पास दुनिया के केवल 60% वाहन हैं। यह दुखद असमानता भी सड़क सुरक्षा को बढ़ाने के लिए व्यापक वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है। किसी शायर ने इन्हें ‘उम्र से लम्बी सड़कें’ कहा था लेकिन ये किसी मासूम की उम्र को क्यों कम कर देती हैं? गलती किसी की भी हो व्यक्ति की जान की कीमत किसी गलती के सुधर जाने से नहीं मिल सकती।

सड़क दुर्घटनाओं के कारण

सड़क दुर्घटनाओं के कारणों पर विचार करें तो, कई तरह की बातें दिमाग में आती हैं, जैसे यातायात संकेतों और सड़क चिह्नों को नहीं समझना और उनका पालन नहीं करना; 

सुरक्षित तरीके से प्रतिक्रिया न करना: अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं का सम्मान न करना, रास्ता नहीं देना और आक्रामक ड्राइविंग में शामिल होना; सीट बेल्ट, हेलमेट और अन्य सुरक्षात्मक गियर का उपयोग नहीं करना; विभिन्न सड़कों और स्थितियों के लिए निर्धारित गति सीमा के भीतर ड्राइविंग नहीं करना; वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग करना; अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं को स्पष्ट रूप से मुड़ने/रुकने आदि के संकेत नहीं देना आदि-आदि। इनमें से कुछ पर चर्चा करते हैं,

तेज़ गति: अत्यधिक गति सड़क दुर्घटनाओं में सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है, जो दुर्घटनाओं की गंभीरता को बढ़ाती है। तेज़ गति से चलने वालों को उनके आगे यदि गति सीमा के भीतर कोई गाड़ी चला रहा हो तो वे लोग भी पसंद नहीं आते हैं, ओवरटेक करने के लिए हॉर्न बजा कर और यहाँ तक कि उनके ऊपर चिल्ला कर तेज़ गति से वाहन चलाने वाले न केवल आगे चलने वालों को परेशान करते हैं, बल्कि उनका यह गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार, जिसे मैं मानसिक रोग की संज्ञा देना चाहूँगा, कई दुर्घटनाओं का भी कारण बन जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि गति में हर 1% की वृद्धि के लिए, दुर्घटना का जोखिम लगभग 4-5% बढ़ जाता है। कई बार मैनें देखा है कि कोई-कोई दो पहिया वाहन ऐसे चलाते हैं जैसे किसी सर्कस के मौत के कुँए में हों या फिर कोई नागिन अपने नाग की हत्या का बदला लेने जा रही हो, अर्थात लहराते हुए। जीवन इतना भी सस्ता नहीं कि बाइक को नागिन में तब्दील कर दिया जाये।

शराब और मादक पदार्थों का सेवन: नशे में गाड़ी चलाना दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण है। जन जागरूकता अभियानों के बावजूद, WHO की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि वैश्विक सड़क यातायात मौतों में से लगभग 27% शराब से संबंधित हैं।

ध्यान कहीं और होना: ड्राइविंग के समय मोबाइल उपकरणों के उपयोग ने दुर्घटनाओं को बढ़ा दिया है। टेक्स्टिंग, बात करना सड़क से ध्यान भटकाता है, जिससे अचानक आने वाली बाधाओं को संबोधित करना मुश्किल हो जाता है।

असुरक्षित सड़कें व अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर: अपर्याप्त या असुरक्षित सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर, विशेष रूप से विकासशील देशों में, सड़क दुर्घटनाओं में महत्वपूर्ण रूप से वृद्धि कर देता है। पैदल यात्री मार्गों की कमी, अपर्याप्त ट्रैफ़िक सिग्नल और खराब सड़क सभी सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए जोखिम बढ़ाती है।

सुरक्षा उपकरणों का उपयोग न करना: सीटबेल्ट या हेलमेट ना पहनने के परिणामस्वरूप अधिक दुर्घटनाएं होती हैं। उचित सुरक्षा उपकरण गंभीर चोटों और मौतों को कम करते हैं, फिर भी कई ड्राइवर और यात्री इन सावधानियों की उपेक्षा करते हैं। इसी प्रकार मैनें यह भी नोट किया है कि चाहे दो पहिया वाहन हों या चार पहिया, इंडिकेटर देने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। 

वाहन सुरक्षा मानक: कई कारों में एयरबैग, एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक स्थिरता कण्ट्रोल जैसी ज़रूरी सुरक्षा सुविधाएँ नहीं होती हैं, जो दुर्घटना की गंभीरता को कम कर सकती हैं।

गलत तरीकों से मुड़ना व लेन बदलना: एक अन्य प्रवृत्ति देखी है जो बहुत ज़्यादा नुकसानदायक है, वो है - ओवरटेक करने के लिए अपनी लेन  से बिना पीछे देखे और बिना इंडिकेटर दिए दूसरी लेन में चले जाना या फिर आगे चल रहे वाहन को बार-बार हॉर्न देकर लेन से हटने को मजबूर करना, चाहे वह दूसरी लेन में जाने सक्षम हो अथवा नहीं। मित्रों, यदि आगे जाना ज़रूरी है फिर भी थोड़ा इंतज़ार ज़रूर करें, आपसे आगे चलने वालों की जिंदगी भी कीमती है। लेन छोड़ने से या अपने आगे वालों को ट्रैक छोड़ने पर मजबूर करने पर ईश्वर न करे, लेकिन नुकसान हो सकता है, धैर्य रखें।

सड़क क्रॉस करने में ट्रैफिक जाम कर देना: कितनी ही बार जब सड़क क्रॉस करनी हो तो वाहन चालक सीधे आने वाले वाहनों के कम होने का इंतज़ार किये बिना अपने वाहनों को धीरे-धीरे कर सड़क के बीच में ले आते हैं, ट्रैफिक को रोकते हैं और फिर आगे निकलने की कोशिश करते हैं। ट्रैफिक जाम होने के कई बड़े कारणों में से यह भी एक कारण है। सड़क क्रॉस करने में कितनी ही बार कई वाहन चालक, जल्दी के चक्कर में, बाएं की बजाय दायें से क्रॉस कर लेते हैं, जबकि सामने से दूसरा वाहन आ रहा होता है।

यू टर्न की बजाय वी टर्न: कुछ व्यक्ति होते हैं, जो यू टर्न की बजाय वी टर्न करते हैं, उन्हीं में कुछ ऐसे भी हैं जो वी टर्न करें न करें लेकिन वी एंट्री तो करते ही हैं। किसी घर से, दूकान से या कार्यालय आदि से निकल कर चलती हुई सड़क में घुस कर वे सीधे की बजाय तिरछे चलने लगते हैं। इन्हें लक्ष्यभेदी इसलिए कहा क्योंकि उन्हें सड़क के दूसरे कोने में जाना होता है, लेकिन सीधे की बजाय तिरछे क्रॉस करते हुए। शतरंज के खेल में हाथी यदि तिरछा चलने लग जाये तो क्या वह ऊंट बन जायगा? मित्रों, वह चाल ही गलत होती है और तब खिलाड़ी, खिलाड़ी नहीं अनाड़ी कहलाता है। खेलों में चाल गलत हो तो वो गलती स्वीकारणीय है, लेकिन सड़क पर चाल गलत हो तो वह एक बड़ी दुर्घटना में भी बदल सकती है।

प्रदूषण: कुछ संगीत प्रेमी महाशय तेज़ कर्कश ध्वनी के हॉर्न बार-बार बजा कर ध्वनी प्रदूषण इतना करते हैं जैसे वे सड़क पर नहीं बल्कि किसी डीजे पर अपनी ओर्केस्ट्रा की परफॉरमेंस दे रहे हों, तो कुछ वाहन, ख़ास तौर पर ऑटो और सिटी बस, इतना अधिक धुआँ छोड़ते हैं जिससे सड़क पर चलने वाले दूसरे यात्री इस धीमे ज़हर को सांसों के जरिये अपने शरीर में लेकर स्वयं को कई बीमारियों से ग्रसित कर देते हैं।

सड़क सुरक्षा में सुधार चर्चा

मेरे अनुसार सबसे ज़्यादा दो बातें ज़रूरी हैं,

पहली यह कि सड़क से संबंधित सभी नियमों का ईमानदारी से पालन किया जाए।

और

दूसरी यह कि सड़कों की टूट फूट की तुरंत मरम्मत करवाई जाये और जहाँ सड़कें नहीं हों वहां सड़कें बनाई जाएँ, सभी चौराहे केमरों की शिनाख्त में हों और सभी राज्यों में वाहनों गति सीमा तय की जाए। एक सच यह भी है कि आप और मैं सहित बहुत सारे लोग चंद अतिरिक्त रूपये देकर अपने ड्राइविंग लाइसेंस बड़े आराम से ‘खरीद’ सकते हैं। गाड़ी चलाने हेतु कई नियम नयी-पुरानी सरकारों ने तय किये हैं उनका पालन कीजिये, आपको बहुत लाभ होगा। कुछ अन्य बातों पर ध्यान देते हैं:

गति सीमा पर ध्यान देना: कम गति सीमा को लागू करना, विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में, दुर्घटना दर को काफी कम कर सकता है। कुछ देश गति को कम रखने के लिए स्पीड कैमरे और जुर्माने का उपयोग कर रहे हैं, जबकि अन्य "सुरक्षित प्रणाली" दृष्टिकोण अपना रहे हैं जो स्वाभाविक रूप से वाहनों की गति को कम करने के लिए सड़कों को पुनः डिज़ाइन करते हैं।

शिक्षा और जागरूकता अभियान: ड्राइवरों, विशेष रूप से युवा लोगों को सुरक्षित ड्राइविंग सिस्टम्स और खराब ड्राइविंग के खतरों के बारे में शिक्षित करना जोखिम को कम कर सकता है। WHO और स्थानीय सरकारों द्वारा चलाए जाने वाले जन जागरूकता अभियान सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर: विशेष रूप से विकासशील देशों में सुरक्षित सड़कें बनाने से दुर्घटना दर कम हो सकती है। इसमें पैदल यात्री मार्ग डिजाइन करना, बाइक लेन जोड़ना, बेहतर रोशनी लगाना और सड़क की गुणवत्ता बनाए रखना शामिल है। इंफ्रास्ट्रक्चर को उन्नत करना उन देशों में प्रभावी साबित हुआ है जिन्होंने ऐसे उपाय अपनाए हैं।

सुरक्षा उपकरण कानूनों में सख्ती: सीटबेल्ट और हेलमेट के उपयोग को अनिवार्य करने वाले कानून, मृत्यु दर को काफी कम कर सकते हैं। इन कानूनों को लागू करने वाले देशों में, दुर्घटनाओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है। इसकी अनुपालना नहीं करने के दंड में वृद्धि, साथ ही जागरूकता अभियान, इसे सुनिश्चित करने में सहायक हो सकते हैं।

उन्नत वाहन सुरक्षा तकनीक: स्वचालित आपातकालीन ब्रेकिंग, लेन बदलने की चेतावनी और पैदल यात्री पहचान प्रणाली जैसी तकनीक को अपनाने से दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है। कार निर्माताओं को इन सुविधाओं को वैकल्पिक के बजाय आवश्यक रूप से शामिल किया जाना चाहिए।

मुड़ने के तरीके का पालन करना: मुड़िए अवश्य लेकिन 100-50 मीटर पहले गाड़ी धीमी कर, आगे-पीछे-दायें-बाएं देखते हुए, इंडिकेटर या हाथ देकर और फिर उस साइड में जाकर। चौराहे पर ही नहीं वरन् जहाँ भी कोई मोड़ आता है गाड़ी धीमी करें और ज़रूरी हो तो रुक भी जाएँ, सड़क खाली मिले तब ही मोड़ें।


सड़क सुरक्षा पर साहित्य

कई लेखकों ने कथा और कथेतर दोनों ही प्रकार के साहित्य के माध्यम से सड़क सुरक्षा पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि का योगदान दिया है। इनमें से एक उल्लेखनीय कार्य है टॉम वेंडरबिल्ट द्वारा द्वारा सृजित "ट्रैफ़िक: व्हाई वी ड्राइव द वे वी डू (और व्हाट इट सेज़ अबाउट अस)", जो 2008 में प्रकाशित हुआ था। वेंडरबिल्ट की यह पुस्तक ड्राइविंग के मनोविज्ञान पर गहराई से नज़र डालती है, इस बात की पड़ताल करती है कि लोग सड़क पर कुछ विशेष किन परिस्थितयों में और क्यों लेते हैं और उनके विचार-व्यवहार दुर्घटनाओं की संख्या और गंभीरता में कैसे योगदान करते हैं। 

एक और प्रभावशाली कृति है डोनाल्ड शूप द्वारा "द हाई कॉस्ट ऑफ़ फ्री पार्किंग", जो शहरी नियोजन और पार्किंग पर केंद्रित है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा करती है कि सड़क का इंफ्रास्ट्रक्चर, ट्रैफ़िक प्रवाह और सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है। शूप के काम ने दुनिया भर में शहर नियोजन नीतियों में बदलाव किए हैं ताकि सुरक्षित, अधिक कुशल सड़कों को बढ़ावा दिया जा सके। इस तरह के सृजन सड़क सुरक्षा पर नवीन दृष्टिकोण देते हैं, पाठकों को अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक अनुप्रयोग दोनों प्रदान करते हैं।


सड़क सुरक्षा पर लघुकथाएं


सरकारी सिस्टम / मुकेश शर्मा

‘‘सरपंच साब! आज सुबह गांव की मेन रोड पर लगते चौंक पर हुई सड़क दुर्घटना में फिर दो लोग मारे गए । इस चौंक पर रोजाना एक्सीडेंट होते हैं, रोज लोग मरते हैं । सरकार कुछ करती क्यों नहीं?’’ रामदीन रिरियाया।


‘‘अबे मादर ......, कौन कहता है सरकार कुछ नहीं कर रही?’’ सरपंच ने आँखें तरेरी- ‘‘सुन! उस सड़क को चौड़ा करने के लिए हमारी ग्राम पंचायत ने प्रपोजल दिया था बी.डी.पी.ओ. को । बी.डी.पी.ओ. ने उसे भेज दिया डी.डी.पी.ओ. को । डी.डी.पी.ओ. ने उसे भेज दिया एस.डी. एम. को । एस.डी.एम. ने प्रपोजल भेज दिया डी.सी को । डी.सी. ने प्रपोजल भेज दिया मुख्यालय के विभाग डायरैक्टर को ।’’


‘‘फिर?’’ रामदीन चक्कर में पड़ गया।


‘‘फिर ........ डायरैक्टर ने लिख दिया कि सड़क का जो भाग चौड़ा करना है, उस भूमि का खसरा नम्बर तो प्रपोजल में लिखा ही नहीं है ।’’ सरपंच ने समझाया।


‘‘लेकिन सरपंच साब! जब तक ये फाइल मुख्यालय पहुंची होगी, तब तक तो पाँच,छह लोग रोड-एक्सीडेंट में मर लिये होंगे?’’


‘‘अबे फुद्दू, पाँच,छह नहीं, बल्कि इससे कही ज्यादा...’’


‘‘फिर?’’


‘फिर डायरैक्टर ने फाइल भेजी डी.सी. को, डी.सी. ने एस.डी.एम. को, एस.डी.एम ने डी.डी.पी.ओ को, डी.डी.पी.ओ. ने बी.डी.पी.ओ को ......’’


‘‘तो इसमें तो बीस-पच्चीस दिन लग गए होंगें?’’


‘‘अबे फद्दड़, इसमें बीस-पच्चीस दिन नहीं, चार महीने लगे हैं!’’


सरपंच ने बीड़ी सुलगा ली ।

‘‘फिर ..... ’’ सरपंच ने बीड़ी का सुट्टा लगाया- ‘‘बी.डी.पी.ओ ने लिख दिया कि पेज नंबर फलां पर जमीन का खसरा नंबर लिखा था, जनाब देख नहीं पाये होंगे, इसलिए पेज नं. एक पर दोबारा खसरा नंबर लिखकर भेजा जा रहा है ।’’


‘‘फिर ......... ।’’


‘‘फिर बी.डी.पी.ओ. ने फाइल भेजी डी.डी.पी.ओ. को, डी. डी.पी.ओ ने एस.डी.एम को, एस.डी.एम ने डी.सी को, डी.सी ने डायरैक्टर को .....’’


‘‘तो फिर चार महीने इसमें लग गए होंगे?’’


‘‘अबे बावली बूच, चार नहीं,छह महीने लग गए।’’


‘‘लेकिन शुक्र है, फाइल तो निकली....’’


‘‘फाइल नहीं निकली.....’’ सरपंच नाक साफ करने लगा-‘‘ उस पर डायरैक्टर ने लिख दिया कि जिस सड़क को चौड़ा किया जाना है, उससे सम्बन्धित जमीन के बाज़ार भाव से अवगत करवाया जाए..’’


‘‘लेकिन तब तक तो मौतों की संख्या .....’’


‘‘ फिर फाइल आई डी.सी. को, डी.सी. से एस.डी.एम. को, एस.डी.एम से डी.डी.पी.ओ को, डी.डी.पी.ओ. से बी.डी.पी.ओ को ......’’


‘‘लेकिन काम ......’’


‘‘अबे आडू! ये मत कह कि काम नहीं हो रहा । काम तो हो ही रहा है ना? फिर ...?’’


‘‘हां, काम तो हो ही रहा है!’’ रामदीन चकरा गया।


‘‘अबे भांड! यही तो समझा रहा हूँ तुझे । फिर बी.डी.पी.ओ. ने जवाब लिखा... फिर फाइल भेजी डी.डी.पी.ओ. को, डी.डी.पी.ओ ने फाइल भेजी ........’’ सरपंच ने दूसरी बीड़ी सुलगा ली और रामदीन को समझाने लगा ।

-0-

- मुकेश शर्मा


2)

तमाशबीन / रोहिताश्व शर्मा

तेज ब्रेक लगने से गाडी के टायरों की रगड़ की तीखी आवाज करती हुई कार ने मोटर साइकिल को टक्कर मार दी। मोटर साइकिल सवार नौजवान गिर गया था। कुछ लोग अपने वाहन रोक कर एक्सीडेंट के स्थान की ओर दौड़ पड़े। कुछ ने बाहें चढ़ा ली और कार का दरवाजा खुलवाने के लिए कार पर मारने लगे। कार ड्राईवर अंदर से हाथ जोड़ रहा था। मोटर साइकिल से गिरा युवक धीरे से अपने आप खड़ा हुआ। हल्का लंगड़ाता हुआ वह कार के पास पहुँचा। कार ड्राईवर हाथ जोड़कर बोला

"भाईसाहब गलती हो गई माफ़ कर दीजिये।"

बाँह चढ़ाये युवकों ने मोटर साइकिल सवार को जोश दिलाते हुए कहा 

"बातों में आने की जरूरत नहीं है। खबर लीजिये इस कार वाले की। हम आपके साथ हैं। सड़क चलता आदमी इनको दिखाई नहीं देता।"

उनको रोकते हुए युवक बोला "भाई साहब रुकिए। गलती मेरी है मैं बिना इंडिकेटर दिए एकदम से मुड़ गया। इन भाईसाहब ने तो प्रयास कर गाडी पर पूरे ब्रेक लगाये नहीं तो बड़ी दुर्घटना हो सकती थी।" 

नौजवान की बात सुन बाँहे चढ़ाये लोग उस पर नाराज़ होते हुए अपने वाहनों की तरफ वापस मुड़ गए। कुछ लोग अब भी दुर्घटना स्थल की ओर आ रहे थे। उन्हें रोकते हुए उन्होंने कहा

"अरे कहाँ भागे जा रहे हो? कोई फायदा नहीं है वहाँ जाने का। समझदार लोगों का एक्सीडेंट है, एकदम नीरस'

-0-

- रोहिताश्व शर्मा

3)

आखिर सिर है आपका / डॉ कुमारसम्भव जोशी

रतनलाल का बेटा हॉस्पिटल में भर्ती था। पड़ोसी होने के नाते महेश मिलने पहुँचा।

“यह सब कैसे हो गया?” आईसीयू के बाहर बैठे रतनलाल से उसने पूछा।

“ये सरकार निकम्मी है। टैक्स तो हलक में हाथ डालकर खींच लेती है, मगर मूलभूत सुविधाएं भी सही नहीं देती।“ पास बैठे मंगल ने जवाब दिया।

“मैं तो कहता हूँ एक बार बच्चा सकुशल घर आ जाए, फिर कलेक्ट्रेट के सामने धरना देते हैं। सरकार को मुआवजा देना ही पड़ेगा।“ किसी तीसरे ने कहा।

“मगर हुआ क्या था? एक्सीडेंट हुआ कैसे?” महेश ने पुनः पूछा।

“वो चारभुजा वाली रोड है ना, पिछले साल ही बनी थी और इसी बारिश में उसमें गड्ढे पड़ गए।“ रतनलाल ने बताना शुरू किया।

“हम्म...” महेश ने सिर हिलाया।

“अपना पिन्टू बाईक से जा रहा था। अचानक एक गड्ढे में पहिया गया और बाइक स्लिप हो गई। गिरने से सिर में चोट आई है।“ उसने बताया।

“पिन्टू ने हेलमेट नहीं पहना था क्या?” महेश के मुँह से निकला।

“कमाल करते हो भाई! हेलमेट पहने होने से सड़क के गड्ढे भर जाते या बाइक टूटी सड़क पर भी स्लिप नहीं होती?” मंगल ने उपेक्षा और हिकारत भरी निगाह से महेश को देखा।

“ऐसा तो नहीं होता, मगर हेलमेट पहने होने से शायद सिर पर चोट न लगती।“ महेश बोला।

“मैं मानता हूँ कि सुरक्षित सड़क देना सरकार की जिम्मेदारी थी। पूरा मटेरियल डालकर अच्छी सड़क बनाना ठेकेदार की जिम्मेदारी थी। लेकिन हेलमेट पहनकर सड़क सुरक्षा नियमों का पालन हमारी भी तो जिम्मेदारी थी। हम केवल सरकारों को दोष दे रहे हैं। निस्संदेह सरकार की ग़लती है लेकिन अफसोस है कि हमने भी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई।“ महेश सकुचाते हुए बोला।

एक पल के लिए वहाँ खामोशी छा गई।

“हालांकि यह वक्त सही नहीं था कहने का, मगर महेश भाई ने बात तो सही की है।“ मंगल ने उस खामोशी को तोड़ते हुए कहा।

सभी के चेहरे पर सहमति के रूप में मौन पसर चुका था।

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- डॉ कुमारसम्भव जोशी


एक अन्य बेहतरीन रचना पढ़िए, अंतिम एक पंक्ति में कितना कुछ कह दिया गया है,


दो चार किलोमीटर / संतोष सूपेकर 

“राजीव बेटा जा रहे हो तो हेलमेट लगाकर जाओ। “ 


“क्या चाचीजी ,आप भी बिल्कुल मम्मी जैसा बोलती हैं!!”

हड़बड़ी में बाइक की किक मारता राजीव कुछ रोष से बोला, “अभी आता हूँ। यहीं पास में तो जा रहा हूँ दो- ढाई किलोमीटर !!”


“बेटा,” कोई अनहोनी याद कर चाचीजी का स्वर धीमा और उदास हो गया,

“भगवान सब अच्छा करे। लेकिन हेलमेट न लगा कर जाने वाले भी ऐसे ही दो- चार किलोमीटर दूर गए होते हैं और फिर अक्सर बहुत दूर चले जाते हैं।“

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- संतोष सूपेकर


संतोष सूपेकर जी ही की इस विषय पर कुछ अन्य रचनाएं पढ़िए,






निष्कर्ष:

कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि, जैसे-जैसे वैश्विक सड़क यातायात बढ़ता जा रहा है, सड़क सुरक्षा एक महत्वपूर्ण चिंता बनी हुई है जिसके लिए तत्काल, समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है। सड़क दुर्घटनाओं के मूल कारणों को समझकर और प्रभावी समाधान लागू करके, जैसे कि बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, कानूनों का बेहतर तरीके से इम्प्लीमेंटेशन, और शैक्षिक अभियान द्वारा मृत्यु और चोटों को कम किया जा सकता है। सड़क सुरक्षा केवल एक सरकारी जिम्मेदारी नहीं है; यह एक सामूहिक सामाजिक और व्यक्तिगत कर्तव्य है। हम सभी को सुरक्षित ड्राइविंग तरीकों को बढ़ावा देने और हर सड़क उपयोगकर्ता की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भूमिका निभानी है। निरंतर जागरूकता, नवाचार और उत्तरदायित्व के माध्यम से, हम एक ऐसे भविष्य की कल्पना कर सकते हैं जहाँ सड़क यातायात की मौतें और चोटें काफी हद तक कम हो जाएँगी।

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- चंद्रेश कुमार छ्तलानी 


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