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गुरुवार, 30 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार | लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा इंदौर : पद्मश्री मालती जोशी

लघुकथा संग्रह प्रवाह का विमोचन समारोह
शाश्वत सृजन समाचार

जानी-मानी लेखिका पद्मश्री मालती जोशी ने कहा है कि जो इंदौर कभी अपने नमकीन के लिये देश भर में जाना जाता था वह स्वच्छता के मामले में नंबर वन बना। वहीं इंदौर अब साहित्य और लघुकथा के लिए प्रसिद्ध होने जा रहा है। भविष्य में इंदौर लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा।

मालतीजी मंगलवार को यहां 21 लघुकथाकारों की लघुकथाओं के संग्रह प्रवाह के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहीं थीं। विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर के बैनर तले मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के शिवाजी सभागार में यह समारोह आयोजित किया गया था। 

समारोह की अध्यक्षता भोज शोध संस्थान, धार के निदेशक डाॅ दीपेंद्र शर्मा ने की। विशेष अतिथि और चर्चाकार के रूप में जानी-मानी लघुकथाकार श्रीमती मीरा जैन (उज्जैन) मौजूद रहीं।



पद्मश्री जोशी ने कहा कि लघुकथा का मुख्य लक्षण अपनी बात को छोटे रूप में लोगों तक पहुंचाना है । तीक्ष्णता से अपनी बात सबके समक्ष प्रस्तुत करना । जैसे आजकल ट्वेंटी-ट्वेंटी का ज़माना है वैसे ही लघुकथा भी अब ऐसे ही हो गयी है और अति लघुता की ओर जा रही है ।

डॉ. दीपेन्द्र शर्मा ने कहा कि लेखकों का संग्रह व्यक्तिगत चेतना को सामूहिक चेतना में बदल देता है। एक लेखक को विवादास्पद या प्रसिद्ध होने के स्थान पर ऐसा लिखना चाहिए कि उनके विचार और लेखन सदैव याद किए जाएं। सूर और तुलसी इसी श्रेणी के सृजनकर्ता रहे इसीलिए वे अमर रचनाकार बन गए।

श्रीमती मीरा जैन ने  कहा कि लघुकथा साहित्य उपवन में खिला एक खूबसूरत पुष्प है जिसके प्रति साहित्य प्रेमियों के आकर्षण में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है । लघुकथा की लघुता ही इसकी प्रमुख विशिष्टता है । लघुकथा का ताना बाना कसा हुआ हो तो ही पाठको के ह्रदय तक पहुंचेगा । लघुकथा का अपना एक नैसर्गिक सौंदर्य होता है । उन्होंने  21 लघुकथाकारो के लघुकथा संकलन प्रवाह  में से अनेक लघुकथाओं की सटीक समीक्षा भी की। उपरोक्त लघुकथा संग्रह का संपादन श्रीमती सुषमा दुबे ने किया है। सह संपादक श्री देवेन्द्र सिंह सिसौदिया एवं मुकेश तिवारी हैं।




समारोह में स्वागत भाषण विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा दुबे ने दिया। सचिव डाॅ दीपा मनीष व्यास ने विचार प्रवाह के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सरस्वती वंदना डाॅ पूजा मिश्रा ने की। अतिथियों का स्वागत उपाध्यक्ष विजय सिंह चौहान, संध्या राय चौधरी, अर्चना मंडलोई, मनीष व्यास आदि ने किया। संचालन मुकेश तिवारी ने किया। आभार महासचिव देवेन्द्र सिंह सिसौदिया ने माना।

इस मौके पर सभी 21 लघुकथाकारों  को सम्मानित भी किया गया। मंच के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य सर्वश्री हरेराम वाजपेयी, नरेन्द्र मांडलिक, प्रदीप नवीन, संतोष मोहंती, श्रीमती पदमा राजेंद्र का भी इस मौके पर अभिनंदन किया गया। प्रवाह संग्रह का मुखपृष्ठ सजाने वाली तृप्ति त्रिवेदी और प्रतीक चिन्ह सज्जा करने वाली देव्यानी व्यास का भी सम्मान हुआ। प्रवाह संग्रह में श्रीमती माया बदेका, कुमुद दुबे, अंजू निगम, मीना गौड़, कुमुद मारू, सुषमा व्यास, देवेंद्रसिंह सिसौदिया, अर्चना मंडलोई, वंदना पुणतांबेकर,  मित्रा शर्मा, सुषमा दुबे, विजयसिंह चौहान, डाॅ. ज्योति सिंह, रश्मि चौधरी, मुकेश तिवारी, डाॅ दीपा मनीष व्यास, आरती चित्तौड़ा, डाॅ पूजा मिश्रा, माधुरी शुक्ला, अदिति सिंह भदौरिया और अविनाश अग्निहोत्री आदि की लघुकथाएं शामिल हैं।


Source:
https://shashwatsrijan.page/article/laghukatha-ke-gadh-ke-roop-mein-jaana-jaega-indaur/FJewfh.html

रविवार, 29 दिसंबर 2019

लघुकथा समाचार: शब्द-शब्द अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूलमंत्र

December 29, 2019

हिंदी भवन, भोपाल में लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आचार्य ओम नीरव के सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह 'स्वरा' के विमर्श व सम्मान समारोह

जहां व्यथा है, वहां कथा है, शब्द-शब्द रचना और अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूल मंत्र है, जिससे ये पूर्ण होता है।

लेखक विस्थापितों, शरणार्थियों की व्यथा से जुड़े यह उद्गार थे वरिष्ठ साहित्यकार व पूर्व निदेशक साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. देवेंद्र दीपक के। वह हिंदी भवन में लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आचार्य ओम नीरव के सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह स्वरा के विमर्श व सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कांति शुक्ला उर्मि ने पद्य-काव्य के बाद लघुकथा के क्षेत्र में नीरव के आगमन को सुखद अनुभव बताया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार मुकेश वर्मा ने कहा कि लघुकथा, कथा परिवार की छोटी सदस्य भले हो परंतु प्रभाव में किसी बड़ी कथा या उपन्यास से कम नहीं।

संस्कृति को साथ लेकर चलता है साहित्य

लघु कथाकार और कृति के लेखक ओम नीरव ने कहा कि जो बात हम छंद विधा के माध्यम से नहीं कह पाते, उसे हम पूरे प्रभाव और प्रखरता के साथ एक छोटी सी लघुकथा के माध्यम से कह सकते हैं। इस मौके पर ओम नीरव को साहित्य साधना सम्मान से विभूषित किया गया। साहित्यकार गोकुल सोनी ने कहा कि साहित्य संस्कृति को साथ लेकर चलता है। जीवन मूल्यों का स्पंदन साहित्य का प्राण होता है। ओम नीरव की लघुकथाओं में सत्य और कल्पना का अद्भुत सम्मिश्रण है। उनमें गहरे अन्वेषण का मनोविज्ञान भी परिलक्षित होता है, अत: वे समाजोपयोगी हैं। वरिष्ठ साहित्यकार युगेश शर्मा ने कहा कि संग्रह की लघुकथाओं में आज की समाज व्यवस्था को गहराई से रखा गया है और लेखक ने भविष्य के समाज की रचना के लिए दिशाएं बताई हैं।

Source:
https://www.patrika.com/bhopal-news/literature-1-5568524/

ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह 'निन्यानवे के फेर में' का विमोचन


December 29, 2019

किसी भी रचनाकार के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण होता है कि उसकी सारी रचनाएं हर अर्थ में भिन्न हों। इस दृष्टि से शहर की ख्यातनाम लेखिका ज्योति जैन की रचनाएं आकर्षित करती हैं। वे हमारे ही आसपास के परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। भाषा,शैली और शिल्प का रचाव और कसाव ही उनकी लघुकथाओं का सम्मोहन है। उक्त विचार जाने माने उपन्यासकार और शिवना प्रकाशन के श्री पंकज सुबीर ने व्यक्त किए।

वे लेखिका ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह निन्यानवे के फेर में के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। मुख्य अतिथि का दायित्व निभाते हुए पंकज सुबीर ने कहा कि लेखिका ज्योति जैन ने साहित्य की लगभग हर विधा में स्वयं को सुव्यक्त किया है जबकि लेखन और समाज की तमाम जिम्मेदारियों के बीच एक साथ सभी विधाओं को साधना मुश्किल होता है। लेखिका ने यह साधना बड़ी खूबी से की है।


उन्होंने लेखिका की खूबसूरत कथाओं का वाचन भी किया। पुस्तक पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ लघुकथाकार सतीश राठी ने कहा कि निन्न्यानवे का फेर में शामिल लघुकथाएं सुंदर जीवन जीने की दिशा को इंगित करती है।उनकी जीवन दृष्टि उच्च मानवीय मूल्यों को स्थापित करने की है। उनकी लघुकथा में पात्रों का प्रवेश बड़ी ही सरलता से होता है जितनी कि वे स्वयं सरल और सहज हैं। उनमें रचना के भीतर की संवेदना को पाठकों तक उसी रूप में पहुंचाने का कौशल है जिस रूप में वे स्वयं अनुभव करती हैं।

लेखिका ज्योति जैन ने अपनी लघुकथा और सृजनप्रक्रिया पर कहा कि मेरा छोटा सा लेखन संसार अपनी अनुभूतियों,परिवेश,संबंधों और समाज के आसपास आकार लेता है।मेरी लघुकथाओं ने मुझसे बहुत मेहनत करवाई है। कुछ कथानक और पात्र फोन सुनते सुनते या आटा सानते मानस में उभरते हैं और सारा काम परे रख कागज पर उतरने को बेताब हो जाते हैं और कुछ बरसों अवचेतन में सुप्तावस्था में होते हैं और सुदीर्घ प्रतीक्षा के उपरांत उचित समय पर यकायक लघुकथा के रूप में प्रकट हो जाते हैं।

पाठक के रूप में संगीतकार सलिल दाते ने भी अपने विचार रखे। वामा साहित्य मंच के बैनर तले सम्पन्न इस आयोजन के आरंभ में संगीता परमार ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

अतिथि द्वय का स्वागत वामा साहित्य मंच की भावी अध्यक्ष अमर चड्ढा, और भावी सचिव इंदु पराशर ने किया। स्वागत उद्बोधन वर्तमान अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र ने किया। अतिथियों को पौधे बड़जात्या परिवार के आत्मीय सदस्यों द्वारा प्रदान किए गए। कार्यक्रम का संचालन गरिमा संजय दुबे ने किया व अंत में आभार श्री शरद जैन ने माना।

Source:
https://hindi.webdunia.com/hindi-literature-articles/jyoti-jain-book-inauguration-119122900016_1.html

बुधवार, 25 दिसंबर 2019

सुकेश साहनी की लघुकथाएँ नहीं पढ़नी चाहिए... | रवि प्रभाकर

सुकेश साहनी जी का लघुकथा संग्रह ‘साइबरमैन‘ और भगीरथ परिहार जी रचित ‘कथाशिल्पी सुकेश साहनी की सृजन-संचेतना‘ का परिचय रवि प्रभाकर जी ने अलग ही अंदाज में दिया है। रवि जी अपनी विस्तृत समीक्षा के लिए जाने जाते हैं, अपने अनूठे अंदाज से उन्होंने इन पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया है। आइये पढ़ते हैं:

सुकेश साहनी की लघुकथाएँ नहीं पढ़नी चाहिए... | रवि प्रभाकर 

दिनांक 6 दिसंबर को आदरणीय सुकेश साहनी जी द्वारा भेजी पुस्तकें ‘साइबरमैन‘ और भगीरथ परिहार रचित ‘कथाशिल्पी सुकेश साहनी की सृजन-संचेतना‘ प्राप्त हुईं। अपरिहार्य कारणों के चलते घर से बाहर जाना पड़ा और 4-5 दिन पुस्तक पढ़ने का सौभाग्य नहीं मिला। मुझे याद है जब सातवीं या आठवीं कक्षा में था तब पिताजी ने नया लाल रंग का ‘जैंकी‘ साइकिल दिलवाया था। रात आठ बजे साइकल मिला था, सुबह तक इंतज़ार करना भारी हो गया था कि कब सुबह हो और कब साईकल   चलाऊं। लगभग साढ़े तीन दशक बाद वही बेचैनी और रोमांच महसूस हुआ जब ‘साइबरमैन‘ घर थी और मैं उसे पढ़ नहीं पा रहा था। ख़ुदा ख़ुदा करके दिन निकले और मैं घर वापिस आया। ‘अथ उलूक कथा‘ (प्रकाशन मार्च 1987) से लेकर ‘चिड़िया‘ (साहनी जी की नवीनतम कृति) तक सभी लघुकथाएँ और प्रो. बी.एल. आच्छा द्वारा लिखित ‘लघुकथा के धरातल और शिल्प की नवोन्मेषी ललक‘ पढ़ते-पढ़ते एक सप्ताह कैसे निकला पता ही नहीं चला। इन लघुकथाओं का ख़ुमार अभी तक है। ‘साइबरमैन‘ पढ़ने के बाद जो विचार सबसे पहले मन में आया वो है ‘सुकेश साहनी की लघुकथाएँ नहीं पढ़नी चाहिए।‘ क्योंकि साहनी जी को पढ़ने के बाद कोई सतही लघुकथाएँ पचा नहीं सकता। इन लघुकथाओं को पढ़ते-पढ़ते आप मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। भाषायी आडम्बर से कोसों दूर, शिल्प के प्रति कोई विशेष आग्रह नहीं और सबसे बड़ी बात- इन लघुकथाओं के शीर्षक, कमाल! कमाल! कमाल! पृष्ठ 90 पर प्रकाशित ‘मरुस्थल‘ पढ़ने के बाद दिल से एक आह निकलने के साथ-साथ निकला ‘सुकेश साहनी जिन्दाबाद‘। 21 वर्ष पूर्व प्रकाशित लघुकथा ‘राजपथ‘ (प्रकाशन ‘हंस‘ अक्तूबर 98) पढ़कर कोई नहीं कह सकता कि ये आज के हालात पर लिखी नवीनतम लघुकथा है। यानी आज भी प्रासंगिक है। पृष्ठ 20 पर अंकित ‘ओएसिस‘ को पढ़कर समझ में आ जाता है कि लघुकथा सरीखी विधा में शीर्षक का क्या महत्त्व है। इस संकलन में 50 लघुकथाएँ शामिल है, जिन्हें पढ़ना अपने आपमें एक सीख है। सुकेश साहनी लघुकथा का ‘स्कूल‘ नहीं अपितु विश्वविद्यालय हैं। भगवान आपको दीर्घायु और आपकी कलम को बल बख़्शे।

हिन्दी साहित्य निकेतन, 16, साहित्य विहार, बिजनौर (उ.प्र.) द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य मात्र 250 रुपये है। हर लघुकथा अनुरागी के पास यह पुस्तक होनी ही चाहिए।

प्रस्तुत हैं इस संकलन में प्रकाशित दो लघुकथाएँ:

राजपथ
प्रजा बेहाल थी। दैवीय आपदाओं के साथ साथ अत्याचार, कुव्यवस्था एवं भूख से सैकड़ों लोग रोज़ मर रहे थे, पर राजा के कान पर तक नहीं रेंग रही थी। अंततः जनता राजा के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आई। राजा और उसके मंत्रियों के पुतले फूंकती, 'मुर्दाबाद! मुर्दाबाद!!' के नारे लगाती उग्र भीड़ राजमहल की ओर बढ़ रही थी। राजमार्ग को रौंदते क़दमों की धमक से राजमहल की दीवारें सूखे पत्ते-सी काँप रही थीं। ऐसा लग रहा था कि भीड़ आज राजमहल की ईंट से ईंट बजा देगी।
तभी अप्रत्याशित बात हुई। गगनभेदी विस्फोट से एकबारगी भीड़ के कान बहरे हो गए, आँखें चौंधिया गईं। कई विमान आकाश को चीरते चले गए, ख़तरे का सायरन बजने लगा। राजा के सिपहसालार पड़ोसी देश द्वारा एकाएक आक्रमण कर दिए जाने की घोषणा के साथ लोगों को सुरक्षित स्थानों में छिप जाने के निर्देश देने लगे।
भीड़ में भगदड़ मच गई। राजमार्ग के आसपास खुदी खाइयों में शरण लेते हुए लोग हैरान थे कि अचानक इतनी खाइयाँ कहाँ से प्रकट हो गईं।
सामान्य स्थिति की घोषणा होते ही लोग खाइयों से बाहर आ गए। उनके चेहरे देशभक्ति की भावना से दमक रहे थे, बाँहें फड़क रही थीं। अब वे सब देश के लिए मर-मिटने को तैयार थे। राष्ट्रहित में उन्होंने राजा के ख़िलाफ़ अभियान स्थगित कर दिया था। देशप्रेम के नारे लगाते वे सब घरों को लौटने लगे थे।
राजमहल की दीवारें पहले की तरह स्थिर हो गई थीं। रातोंरात राजमार्ग के इर्द-गिर्द खाइयाँ खोदनेवालों को राजा द्वारा पुरस्कृत किया जा रहा था।
(हंस, अक्टूबर 98)

मरुस्थल
'जमना, तू क्या कहना चाह रही है?' 'मौसी, जे जो गिराहक आया है, इसे किसी और के संग मत भेजियो।'
'जमना, जे तू के रई हय? इत्ती पुरानी होके। हमारे लिए किसी एक गिराक से आशनाई ठीक नई।'
'अरे मौसी, तू मुझे गलत समझ रई है। मैं कोई बच्ची तो नहीं, तू किसी बात की चिंता कर। पर इसे मैं ही बिठाऊँगी।'
'वजह भी तो जानूँ?'
'वो बात जे है कि...कि...' एकाएक जमना का पीला चेहरा और फीका हो गया, आँखें झुक गईं, 'इसकी शक्ल मेरे सुरगवाली मरद से बहुत मिलती है। जब इसे बिठाती हूँ, तो थोड़ी देर के वास्ते ऐसा लगे है, जैसे मैं धंधे में नहीं अपने मरद के साथ घर में हूँ।'
'पर...पर...आज तो वह तेरे साथ बैठनाई नहीं चाह रिया, उसे तो बारह-चौदह साल की चइए।' 
(कथादेश, जनवरी 2019)




गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

'उंगलियों पर ज़िंदा मछली' लघुकथा संग्रह | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी


मेरा एक एकल लघुकथा संग्रह 'उंगलियों पर ज़िंदा मछली' शीर्षक से अमेज़न किंडल पर प्रकाशित हुआ है।  इस पुस्तक में मेरी ऐसी लघुकथाएं शामिल करने का प्रयास किया हैं, जो पाठक के दिमाग में वैसा ही विचलन कर पाएं, जैसे किसी ज़िंदा मछली को उँगलियों पर रखने पर होता है। 

यह निम्न लिंक पर उपलब्ध है:

Amazon ASIN: B082LNDM3D

किंडल अनलिमिटेड पर फ्री 
अन्य हेतु कीमत: रुपये 49/- मात्र 


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डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

'मेरी चुनिंदा लघुकथाएं' का ब्रजभाषा में अनुवाद | लेखक: मधुदीप गुप्ता | अनुवादक: रजनीश दीक्षित

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री मधुदीप गुप्ता  के लघुकथा संग्रह मेरी चुनिंदा लघुकथाएं का श्री रजनीश दीक्षित द्वारा ब्रजभाषा में अनुवाद किया गया है। इस महत्वपूर्ण कार्य का दस्तावेज निम्न है :

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शुक्रवार, 3 मई 2019

कुछ लघुकथाएं | संग्रह: दो सौ ग्यारह लघु कथाएं | लेखिका उषा जैन शीरीं

लघुकथा संग्रह: दो सौ ग्यारह लघुकथाएं
प्रकाशित वर्ष : 2007
प्रकाशक : लिट्रेसी हाऊस
आईएसबीएन :81-88435-20-1


मुखौटे

‘‘पापाऽऽ पापाऽऽ वो देखिए कितने फनीमास्क हैं। पपा हम मास्क लेंगे, प्लीज ले दीजिए ना पापा !’’ नन्हें शोमू ने दशहरे पर बिक रहे राम और रावण के मुखौटों को देखकर जिद की।
‘‘भैया कैसे दिये ये मुखौटे ?’’
‘‘कौन सा चाहिए साहब, राम का या रावण का ?’’
‘‘शोमू कौन-सा लोगे बेटे ?’’
‘‘वो डरावना वाला। उसे पहनकर मैं दोस्तों को डराऊँगा।’’
‘‘बेटे रामजीवाला मास्क ले लो। देखो तो कितना सुंदर है !’’ मम्मी ने शोमू को समझाया।
‘‘नहीं ! हमतो डरावना वाला ही लेंगे।’’ शोमू अपनी बात मनवाने पर अड़ा था।
पापा ने उदारता बरतते हुए कहा, अच्छा दोनों ही ले लो।
भैया दोनों कितने-कितने के है ?
‘‘एक ही दाम है दोनों का दस-दस रुपैया साहब।’’
‘‘दोनों का एक ही दाम ?’’ मम्मी के प्रश्न में आश्चर्य था।’’
‘‘भला इसमें आश्चर्य की क्या बात है !’’ पापा का व्यावहारिकता पूर्ण जवाब था।
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ट्रेजेडी

माँ की मृत्यु के बाद पिताजी बिल्कुल अकेले पड़ गए। अपना आक्रोश निकालने का जरिया न रहने के कारण वे बेहद घुटन महसूस करते। दिन भर कमरे से उस कमरे में बेचैनी से पिंजरे में बंद शेर की तरह चक्कर काटते रहते।
खाने के वे बेहद शौकीन थे। माँ कितनी भी तब़ीयत खराब होती तब भी उनके लिए कचौरी, समोसे दही बड़े बनाती रहती थी। अब ये सब खाने की तीव्र इच्छा होने पर वे होठों पर जीभ फेर रह जाते। बहू की दी हुई ब्रेड और दूध दलिया से उन्हें अक्सर उबकाई आती। किंतु उससे कुछ भी कहने की उनकी हिम्मत नहीं होती।
पिताजी घोर नास्तिक थे। मंदिर पूजा-पाठ के नाम से ही उन्हें सख्त चिढ़ थी। समय बिताने का यह जरिया भी उनके हाथ में न था। उनके हम उम्र लोग सभी ईश्वर देवी-देवता को मानने वाले थे। इसलिए विचारों के मेल न खाने से उनकी उनके साथ भी न पटती। वे हमेशा जवान लोगों में उठना बैठना चाहते लेकिन जवान लोग उन्हें तनिक भी लिफ्ट ही न देते।
बुढ़ापे ने उन्हें गले लगा लिया किंतु वे बुढ़ापे को स्वीकार नहीं कर पाए।
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औकात

औरत पिटती हुई तड़प रही थी। उसे देखकर पड़ोसी को दया आ गई। उसने उस औरत के पति से कहा, ‘‘क्यों भई क्यों एक अबला पर जुल्म ढा रहे हो ! देखो बेचारी किस कदर जख्मी हो गई।’’
पति बोला, ‘‘श्रीमान् पहली बात तो अब यह अबला नहीं मुझसे ज्यादा कमाती है। इसमें इस बात की फूँक न भर जाए इसीलिए कभी-कभी दो चार हाथ जमाने पड़ जाते हैं ताकि, यह अपनी औकात में रहे। लेकिन आप यहाँ क्यों अपनी करुणा जाया कर रहे हैं जाइए महाशय उसे अपनी बहन-बेटियों के लिए बचा रखिए।
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माँ के गाल

‘‘पापा माँ के गालों पर लाल गुलाब खिलते हैं न ?’’
‘‘कौन कहता है’’ पापा शक से चौकन्ने हुए आँखों में हरापन और गहरा गया।
माँ के गालों के लाल गुलाब पीले गुलाबों में परिवर्तित होने लगे। मगर मुन्नी इससे बेखबर चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम डिसूजा और कौन !’’ पापा की आँखों का भूरापन लौट आया और पीले गुलाब फिर लाल हो गए।
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सुरक्षा

‘‘शादी से पहले मैं कितनी आजाद थी। कॉलेज जाकर मैं क्या करती थी। यह कोई नहीं पूछता था। लेकिन अब केवल घर के पिंजरे में कैद होकर रह गई हूँ।’’
पड़ोसी राकेश नीना की फरियाद सुनकर कुछ कहता इससे पहले ही पिंजरे में बंद पक्षी पुकार उठा-‘‘हाय हलो..हाय...हलो।’’
‘‘अरे महेश, ये पक्षी कब ले आये ? अभी कल ही तो..।।
भई पता नहीं क्यों आजाद रहने वाले पक्षियों को पिंजरे में बंद देखकर मुझे बड़ा दु:ख होता है।
इसमें दु:ख की क्या बात है। महेश ने पत्नी नीना की ओर देखते हुए कहा। ‘‘कुछ जानवरों का जन्म कैद में रहने के लिए ही होता है क्योंकि वे वहीं ज्यादा सुरक्षित रहते हैं।’’
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बेवजह

रात के बारह बज रहे हैं। शैफाली आज फिर सफेद रंग की मारुति में आई है। सरल ने देखा उसके बॉस पी.के. उसे सहारा देकर सीढ़ियों तक पहुँचा गए हैं।
पत्नी के कमरे में घुसते ही वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘क्या तुमने मुझे भड़ुवा समझ रखा है जो मैं यह सब खामोशी से बर्दाश्त करता रहूँगा। नहीं करवानी मुझे तुमसे नौकरी। कल से घर बैठो।’’
‘‘नौकरी तो मैं छोड़ने से रही।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘मतलब साफ है उसके लिए मैं तुम्हें छोड़ सकती हूँ।’’
‘‘अब नौबत यहाँ तक आ पहुँची है ?’’
‘‘ये तो तुम्हें पहले ही सोच लेना था जब तुमने प्रमोशन के लिए मुझे इस्तेमाल किया था। अब सिर्फ मैं अपने लिए अपने को इस्तेमाल कर रही हूँ। तुम्हारा गुस्सा बेवजह है।’’ शैफाली ने ठंडे लहजे में कहा और सिंक में चेहरा धोने लगी।
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झाड़फानूस

घर पर ऊब रही कुछ अमीर औरतों ने ‘हम सक्रिय हैं’ संस्था का गठन किया। अपनी संस्था का पहला समारोह उन्होंने दिल्ली के एक वातानुकूलित सभाग्रह में मनाया। विषय था-झुग्गी झोपड़ियाँ और आन्तरिक सज्जा।
भाषण के बाद अध्यक्ष महोदया ने नीलामी से खरीदे गए एक झाड़फानूस का जिक्र करते हुए कहा, चूँकि ये हमारी पुरानी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है उन्हें हर झोंपड़ी में होना ही चाहिए।
तभी दो बच्चे जिनके शरीर पर फटे कपड़े थे और भुखमरी के कारण जिनके बदन में शायद पूरी जान भी न थी, उस फानूस को स्टेज पर प्रदर्शन के लिए रखने आये। एकाएक फानूस उनके हाथ से गिरा और न जाने कितने बच्चों की शक्ल में बिखर गया।
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गैरज़रूरी

‘‘क्यों सता रखा है उसे तुमने ?’’ बेटे ने माँ से नई-नवेली पत्नी के विषय में आक्रोश से भरकर कहा।
अत्यंत संवेदनशील वह नारी जो चींटी भी नहीं मार सकती थी किसी का दिल दुखाने सताने की तो दूर की बात। हैरत से पहले तो बेटे को देखती रही। फिर कुछ न बोल अपने भीतर उतरती चली गई।
बहू कुछ रोज के लिए मायके गई थी। अब घर में सिर्फ माँ और बेटा ही थे। जो माँ बेटे की पीड़ा की कल्पना मात्र से काँपने लगती। हर समय अपनी ममता का सागर उस पर लुटाती। न जाने किस सूत्र से बेटे के अंदर का सब कुछ जान लेने वाली माँ अब जैसे राख हो गई थी। बेटे के एक वाक्य ने उस पर कहर ढा दिया था। अब बेटे की उपस्थिति को नकारती-छुपाती..अपने ऊपर विश्वास मानो खो चुकी थी। उसके भीतर जैसे सब चूक गया था। वह बीमार रहने लगी।
जिसकी किसी को ज़रूरत नहीं उसका मर जाना ही अच्छा माँ के हृदय से आवाज आती रही और एक दिन वह सचमुच मर गई।
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डिप्लोमेसी

अरिंजय वैसे तो माँ को काफी फरमाबरदार बेटा लगता लेकिन, बीवी के सामने आते ही वह रंग बदल लेता। अकारण ही वह माँ से झगड़ा कर उसके काम में नुक्स निकालता, बदतमीज़ी से बोलते हुए बीवी के चेहरे पर आयी खुशी की लाली में संतुष्टि खोजता।
बीवी की अनुपस्थिति में जब माँ आँखों में आंसू लिये शिकवा करती तो वो लाड में माँ की गोद में सर रख कर कहता, ‘‘ममा प्लीज, मेरी खुशी के लिए इतना-सा सहन कर लिया करें। मेरे आपसे इस टोन में बात करने से जरा रैना खुश हो जाती है बस ! आपको तो पता ही है वह कैसी बिगड़ैल घोड़ी है। जरा उसे साध लूँ फिर, आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।’’
बेटा बीवी से ज्यादा मुझे अपना समझता है माँ के झिलमिलाते आँसुओं के पीछे इंद्र धनुष लहरा उठता।
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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

लघुकथा समाचार: लघुकथा संग्रह 'शब्द इतिहास लिखेंगे' का लोकार्पण

नवभारत टाइम्स | Apr 22, 2019


मुंबई: साहित्यिक संस्था 'खारघर चौपाल' और 'साहित्य सफर' के तत्वावधान में आरके पब्लिकेशंस से प्रकाशित व सेवा सदन प्रसाद एवं डिंपल गौड़ 'अनन्या' के साझा लघुकथा संग्रह 'शब्द इतिहास लिखेंगे' का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम डॉ. सतीश शुक्ला की अध्यक्षता तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. पुरुषोत्तम दुबे (इंदौर) व लेखक रमेश यादव के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुआ। संचालन व्यंग्यकार डॉ. अनंत श्रीमाली ने किया। इस मौके पर मनोहर अभय, अरविंद राही, राम कुमार, गंगा शरण, नगरसेविका हर्षदा उपाध्याय, राजेश श्रीवास्तव, अलका पांडे, अमर उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।

Source:
https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/other-news/todays-city-brief/articleshow/68980909.cms

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

बारिश तथा अन्य लघुकथाएं (लघुकथा संग्रह) | सुभाष नीरव

● बारिश तथा अन्य लघुकथाएं 
(लघुकथा संग्रह) 
लेखक : सुभाष नीरव
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मूल्य : Rs. 195/- (पेपरबैक संस्करण)

ISBN : 978-93-88348-49-2

प्रकाशक : किताबगंज प्रकाशन
ICS (रेमंड शोरूम), नजदीक SBI बैंक
राधाकृष्ण मार्केट, गंगापुर सिटी-322201
जिला- सवाई माधोपुर (राजस्थान)
Phone : 8750660105
Email : kitabganj@gmail.com

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● इस नवीनतम मौलिक लघुकथा संग्रह "बारिश तथा अन्य लघुकथाएं" में सुप्रसिद्ध लघुकथाकार एवं पंजाबी साहित्य अनुवादक सुभाष नीरव जी ने मानव जीवन के रिश्ते और समाज को अपनी लघुकथाओं की मुख्य विषयवस्तु बनाया है । पंजाबी साहित्य के हिन्दी अनुवाद करने की अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद भी सिर्फ किताबगंज प्रकाशन के लिए उन्होंने विशेष रूप से यह मौलिक लघुकथा संग्रह तैयार किया है । लघुकथा के सुधी पाठकों के लिए यह एक जरूरी पुस्तक है। यह पुस्तक अब ऑनलाइन शापिंग प्लेटफॉर्म amazon.in पर बिक्री के लिए उपलब्ध है। जो भी पाठक इस किताब की डायरेक्ट बुकिंग कराना चाहते हैं वे हमें हमारे व्हाट्सअप नंबर # 8750660105 पर इनबॉक्स में संपर्क कर सकते हैं ●

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रविवार, 31 मार्च 2019

लघुकथा समाचार: लेखिका डॉ. चंद्रा सायता के लघुकथा संग्रह \'माटी कहे कुम्हार से\' पर चर्चा संगोष्ठी

Indore News - दैनिक भास्कर।

लेखिका डॉ. चंद्रा सायता के लघुकथा संग्रह 'माटी कहे कुम्हार से' पर चर्चा संगोष्ठी देवी अहिल्या केंद्रीय लाइब्रेरी में 31 मार्च को दोपहर 3.30 बजे से होगी। क्षितिज की इस संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार सूर्यकांत नागर करेंगे। नंदकिशोर बर्वे, सतीश राठी, अंतरा करवड़े इस पुस्तक पर चर्चा करेंगे। संचालन गरिमा दुबे करेंगी। इस अवसर पर क्षितिज में नए सदस्यों के रूप में जुड़े कुछ सदस्य भी अपनी रचना पाठ करेंगे। कार्यक्रम में समस्त साहित्य प्रेमी सादर साग्रह आमंत्रित हैं।


source:
https://www.bhaskar.com/mp/indore/news/mp-news-today-seminar-on-quotmoti-khey-kumhar-sequot-025135-4233847.html

रविवार, 24 मार्च 2019

लघुकथा समाचार: साझा लघुकथा संग्रह 'कथांजलि' का विमोचन

नवभारत टाइम्स | Updated:Mar 23, 2019, 06:30AM IST

एनबीटी, लखनऊ : काव्या साहित्यिक संस्था की ओर से साझा काव्य संग्रह 'काव्या' और साझा लघु कथा संग्रह 'कथांजलि' का शुक्रवार को विमोचन हुआ। निशातगंज स्थित कैफी आजमी अकादमी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान काव्य गोष्ठी भी हुई। निवेदिता श्रीवास्तव और विजय राज श्रीवास्तव के संयोजन में हुए आयोजन की अध्यक्षता मिथिलेश दीक्षित ने की। इस मौके पर कोलकाता से आई निशा कोठारी, अलका प्रमोद, मंजुल मंजर, दीप्ति भारती, मीतू मिश्रा, कविता गुप्ता, भूपेन्द्र दीक्षित, मुकेश कुमार मिश्र ने अपनी रचनाएं सुनाईं। इस मौके पर मुख्य अतिथि अमिता दुबे और विशिष्ट अतिथि ओम नीरव, चंद्रशेखर वर्मा, शिव मंगल सिंह, विजयराज श्रीवास्तव मौजूद रहे।



Source:
https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/other-news/released-kaavi-and-kathanjali/articleshow/68528478.cms

सोमवार, 11 मार्च 2019

लघुकथा समाचार: सुमन चौधरी के लघुकथा संग्रह का विमोचन

अमर उजाला | मेरठ ब्यूरो | 10 Mar 2019


बिजनौर। समकालीन महिला साहित्य मंच मेरठ की ओर से चैंबर ऑफ कॉमर्स में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बिजनौर की साहित्यकार सुमन चौधरी सुमन को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए प्रतीक चिन्ह और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उनकी नवीनतम लघुकथा संग्रह ‘वह मेरी कोई नहीं थी’ का विमोचन किया गया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में जिले की प्रसिद्ध साहित्यकार सुमन चौधरी सुमन को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध साहित्यकार ममता नागरैया, डा. स्वर्णलता कदम, रश्मि अग्रवाल, सुरेंद्र, मुकेश नादान ने संयुक्त रूप से किताब का विमोचन किया। इससे पूर्व भी सुमन चौधरी सुमन को अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।


Source:
https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/bijnor/161552242144-bijnor-news