श्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित-
"इस दुनिया में तीसरी दुनिया"
संपादक- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर', सुरेश सौरभ
(किन्नर विमर्श की लघुकथाओं का संकलन)
संपादकीय से-
■ डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
प्रस्तुत लघुकथा-संकलन "इस दुनिया में तीसरी दुनिया" हमारे अपने समाज की ही एक उपेक्षित गाथा है। सदियों के दंश झेल कर यह गाथा चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है कि मेरा दोष क्या? और हम जब दोष और दोषी की खोज में निकलते हैं तो हमें अपने मध्य के लोग ही मिलते हैं। किन्नर विमर्श पर केन्द्रित इस लघुकथा-संकलन के माध्यम से हमारा प्रयास समस्याओं को इंगित करना और उनके प्रभावी निराकरण पर रहा है। समय में परिवर्तन आया तो पुरानी मान्यताएँ धराशायी होने लगीं। जिन विषयों को उपेक्षित समझा जाता था या जिन विषयों पर चर्चा करने से लोग मुँह चुराते थे, अब उन विषयों पर मुखर संवाद होने लगा है। यही कारण है कि "इस दुनिया में तीसरी दुनिया" के माध्यम से किन्नर विमर्श कर पाना सहज हो सका। क्या आप सोच सकते हैं कि जिस घर में आप पैदा हुए हैं, उस घर से आप को धक्का मार कर निकाल दिया जाये, उस घर की सम्पत्ति में आपकी हिस्सेदारी न हो। जिस समाज में आप पले-बढ़े हैं, वह समाज आपको अनेक तीखे संबोधनों के साथ आपका तिरस्कार करे। आप अपने माँ-बाप और परिवार से मिलने की मिन्नतें करें और आपको सिर्फ़ दुत्कार ही मिले। प्रतिभा और अनेक योग्यताओं के बावजूद अकारण आपको धरती पर बोझ बता कर किसी अन्य दुनिया में फेंक दिया जाये, जहाँ सिर्फ़ दंश और दंश ही हो, तो कैसे जी पायेंगे आप? बस कुछ पलों के लिए सोच कर देखिए। नर-नारी के साथ किन्नर भी इसी दुनिया का हिस्सा हैं। उनकी दुनिया हमारी दुनिया से पृथक नहीं।
■ सुरेश सौरभ
सुखद यह है कि कुछ किन्नर अपनी पहचान बनाये रखते हुए, कार्यपालिका, विधायिका में अपनी उपस्थिति मज़बूती से दर्ज़ करा रहे हैं। रूढ़िवादी कुप्रथाएँ कम हो रहीं हैं। जन्म से ही उन्हें त्यागने एवं भेदभाव करने के मामले कम हो रहे हैं। सच्चाई यह भी है कि समाज का नज़रिया भी उनके प्रति बदल रहा है। साहित्य में वे विमर्श का हिस्सा बन चुके हैं, उनका विमर्श उन तक पहुँचाना, उनमें परिवर्तन लाने का सुफल करना, यह सिर्फ़ हमारी ही ज़िम्मेदारी नहीं, उनके लिए संघर्ष करने वाले कुछ संघटनों की भी ज़िम्मेदारी है। नया सवेरा उन्हें बाँहें पसारे बुला रहा है, अपने आलिंगन में अकोरना चाह रहा है, जहाँ प्रेम के, घनीभूत घन उन पर घनघोर घरघरा कर बरसने को अधीर हैं।
■ सम्मिलित सम्मानित लघुकथाकार-
अंजू खरबंदा
अंजू निगम
अनिता रश्मि
अभय कुमार भारती
डॉ. इन्दु गुप्ता
ऋता शेखर ‘मधु’
कल्पना भट्ट
डॉ. कुसुम जोशी
गरिमा सक्सेना
गीता शुक्ला ‘गीत’
गुलज़ार हुसैन
गोविन्द शर्मा
डॉ. क्षमा सिसोदिया
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
चित्रगुप्त
डॉ. जया आनंद
जिज्ञासा सिंह
ज्योति जैन
ज्योति शंकर पण्डा ‘हयात’
दुर्गा वनवासी
निशा भास्कर
डॉ. नीना छिब्बर
नीना मंदिलवार
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’
पवन मित्तल
प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’
प्रेरणा गुप्ता
डॉ. पुष्प कुमार राय
डॉ. पूनम आनंद
भगवती प्रसाद द्विवेदी
भारती नरेश पाराशर
डॉ. भावना तिवारी
मंजुला एम. दूसी
डॉ. मंजु गुप्ता
मंजू सक्सेना
मधु जैन
माधवी चौधरी
मिन्नी मिश्रा
मीरा जैन
मुकेश कुमार मृदुल
यशोधरा भटनागर
योगराज प्रभाकर
डॉ. रंजना शर्मा
डॉ. रंजना जायसवाल
डॉ. रघुनन्दन प्रसाद दीक्षित ‘प्रखर’
रतन चंद ‘रत्नेश’
रमेश चंद्र शर्मा
रश्मि अग्रवाल
राजेन्द्र पुरोहित
राजेन्द्र वर्मा
डॉ. राम गरीब पाण्डेय ‘विकल’
राम मूरत ‘राही’
राहुल शिवाय
रेखा शाह आरबी
डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’
डॉ. लवलेश दत्त
वंदनागोपाल शर्मा ‘शैली’
डॉ. वर्षा चौबे
विजयानंद विजय
विभा रानी श्रीवास्तव
विनोद सागर
विरेंदर ‘वीर’ मेहता
शांता अशोक गीते
शुचि ‘भवि’
डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’
शोभना श्याम
संतोष श्रीवास्तव
सन्तोष सुपेकर
सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
सरोज बाला सोनी
सारिका भूषण
सावित्री शर्मा ‘सवि’
सीमा वर्मा
सुधा आदेश
सुधा दुबे
सुनीता मिश्रा
सुरेश सौरभ
हरभगवान चावला
बदलाव की उम्मीद जगाती पुस्तक
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई और सम्पादक-प्रकाशक को साधुवाद