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बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

लघुकथा समाचार: सुक्ष्म, तीक्ष्ण व संवेदनशील विधा है लघुकथा : अवधेश प्रीत

दर्पण समाचार 


मधुदीप द्वारा संपादित ” विश्व हिंदी लघुकथाकार निर्देशिका ” का हुआ लोकार्पण

 लघुकथा पाठ से गुंजायमान हुआ मंगल तालाब पन्नालाल मुक्ताकाश मंच


सुप्रसिद्ध कथाका अवधेश प्रीत ने कहा है कि लघु कथा एक ऐसी सुक्ष्म, तीक्ष्ण, मारक और संवेदनशील विधा है जिसका प्रभाव श्रोताओं के दिल दिमाग को वर्षों उद्वेलित करता है बशर्ते लघुकथाकार ने उसे संवेदना और अनुभव के बेहतर तालमेल के साथ लिखा हो।
वे रविवार को पटना सिटी मंगल तालाब स्थित पन्नालाल मुक्ताकाश प्रेक्षागृह में ”  विश्व हिंदी लघुकथाकार निर्देशिका ”  के लोकार्पण के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच और स्वरांजलि के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लघुकथा मंच के महासचिव  डॉ ध्रुव कुमार ने कहा कि विश्व हिंदी लघुकथाकार निर्देशिका के प्रकाशन से देशभर के लघुकथाकारों से संपर्क करना अब बहुत आसान हो गया है। उन्होंने इस सराहनीय कार्य के लिए इसके संपादक मधुदीप को बधाई दी।

 इस अवसर पर प्रसिद्ध कथाकार- उपन्यासकार डॉ संतोष दीक्षित ने कहा कि वस्तुतः साहित्य समाज का सापेक्ष है और लघुकथाएं प्रभावगामी होती हैं। ” सिकुड़े तो आशिक – फैले तो जमाना ”  लघुकथा पर बहुत ही सटीक है।
इस मौके पर डेढ़ दर्जन लघुकथाकारों ने अपनी – अपनी लघुकथाओं का पाठ किया।
इन लघुकथाओं की समीक्षा करते हुए जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा की प्रोफेसर  समोलचक डॉ अनीता राकेश ने कहा कि सभी रचनाएं समाज की विसंगतियों से हर रोज जूझते लोगों की मनोदशा व उनके मानसिक संघर्ष और द्वंद्ध को दर्शाती हैं। उन्होंने विशेष तौर पर प्रभात धवन, आलोक चोपड़ा, पंकज प्रियम, दयाशंकर प्रसाद,  शंकर शरण आर्य, संजू शरण, रिचा वर्मा, डॉ  मीना कुमारी परिहार, सूरज देव सिंह और गौरीशंकर राजहंस की लघु कथाओं का उल्लेख किया।
वरिष्ठ लेखक डॉ राधाकृष्ण सिंह ने लघुकथा मंच के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि लघुकथा का रूप भले छोटा हो लेकिन उसकी पहुंच बहुत दूर तक है। लघुकथा के बारे में ” देखन में छोटन लगे – घाव करे गंभीर”  पूर्णता सत्य है।
कार्यक्रम का संचालन स्वरांजलि के संयोजक अनिल रश्मि ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन ए आर हाशमी ने किया।
जिन लघुकथाकारों ने अपनी रचनाएं पढ़ी , उनमें प्रभात कुमार धवन, संजू शरण,  आलोक चोपड़ा, ए आर हाशमी, पंकज प्रियम, गौरीशंकर राजहंस, सूरज देव सिंह, शंकर शरण आर्य, दया शंकर प्रसाद, प्रो अनीता राकेश, अनिल रश्मि, डा ध्रुव कुमार, रिचा वर्मा और डॉ मीना कुमारी परिहार शामिल थीं।

Source:
http://www.darpansamachar.com/?p=23513&fbclid=IwAR0QJI-ICY0AdrhW9AnYpmFbj7BV5TCMFsjPs-KampmczAZeUbzVnZtVw5o


मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

लघुकथा: मेच फिक्सिंग | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

नीदरलैंड और भारत की पत्रिका अम्स्टेल गंगा (ISSN: 2213-7351) के  जनवरी – मार्च २०२० (अंक २८, वर्ष ९) मेरी एक लघुकथा

लघुकथा 'मेच फिक्सिंग'

“सबूतों और गवाहों के बयानों से यह सिद्ध हो चुका है कि वादी द्वारा की गयी ‘मेच फिक्सिंग’ की शिकायत सत्य है, फिर भी यदि प्रतिवादी अपने पक्ष में कुछ कहना चाहता है तो न्यायालय उसे अपनी बात रखने का अधिकार देता है।” न्यायाधीश ने अंतिम पंक्ति को जोर देते हुए कहा।

“मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ।” प्रतिवादी ने कहा

“क्या?”

उसने कुछ चित्र और एक समाचार पत्र न्यायाधीश के सम्मुख रख दिये।
पहला चित्र एक छोटे बच्चे का था, जो अपने माता-पिता के साथ हँस रहा था।

दूसरे चित्र में वो छोटा बच्चा थोड़ा बड़ा हो गया था, और एक विशेष खेल को खेल रहा था।


तीसरे चित्र में वो राष्ट्र के लिए खेल रहा था, और सबसे आगे था।

चौथे चित्र में वो देश के प्रधानमंत्री से सम्मानित हो रहा था।

पांचवे चित्र में उसी के कारण उसके खेल को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जा रहा था।

और अंतिम चित्र में वो बहुत बीमार था, उसके आसपास कोई दवाई नहीं थी केवल कई पदक थे।

इसके बाद उसने देश के सबसे बड़े समाचार पत्र का बहुत पुराना अंक प्रस्तुत किया, जिसका मुख्य समाचार था, “दवाइयां न खरीद पाने के कारण हॉकी का जादूगर नहीं रहा।”



न्यायाधीश के हृदय में करुणा जागी लेकिन जैसे ही उसने कानून की देवी की मूर्ती की तरफ देखा, स्वयं की आँखें भी बंद कर ली।
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Source:
अम्स्टेल गंगा

सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

लेख : हिंदी लघुकथा-समीक्षा : दशा और दिशा | डॉ. सत्यवीर मानव

समकालीन लघुकथा की शुरुआत १९७० के आसपास से मानी जाये, तब भी एक विधा के रूप में यह जीवन का अर्धशतक पूरा कर चुकी है। इस दौरान इसने अपने रूप सौन्दर्य में काफी परिवर्तन- परिमार्जन किया है। संवेदना और शिल्प के स्तर पर नये-नये प्रयोग किये गये हैं और किये जा रहे हैं। हजारों रचनाएँ लिखी गई हैं, सैकड़ों संग्रह और संकलन प्रकाशित हुये हैं, अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने लघुकथा-विशेषांक निकाले हैं; तो लघुकथा गोष्ठियों, प्रदर्शनियों आदि के माध्यम से भी इस पर खूब चर्चा-परिचर्चाएं हुईं हैं। बावजूद इसके हिंदी के आलोचकों-समालोचकों ने गंभीरता से लघुकथा पर लिखना उचित नहीं समझा है। अब आप इसे उनकी उदासीनता कह सकते हैं अथवा उपेक्षा; परन्तु वजह यही है कि हिंदी लघुकथा की आलोचनात्मक पुस्तकों का अभाव बना हुआ है।
ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में बिल्कुल ही काम नहीं हुआ हो। नामवर विद्वानों के उपेक्षापूर्ण रवैए को देखते हुए स्वयं लघुकथाकार इस कार्य के लिए आगे आए हैं। लेकिन जो भी कार्य हुआ है, वह मजबूरी का ज्यादा प्रतीत होता है, क्योंकि अधिकांश आलोचनात्मक आलेख/ लेख पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांकों, सांझा संकलनों अथवा संग्रहों की भूमिका या समीक्षा के लिए लिखे/ लिखवाये गए हैं। आलोचना के लिए आलोचना के रूप में बहुत कम कार्य हुआ है। यही कारण है कि आज तक भी तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकें ऐसी नहीं हैं, जिन्हें आलोचना के लिए लिखा गया हो और इनमें से भी अधिकतर ऐसी हैं, जिनमें विभिन्न अवसरों पर लिखे या लिखवाये गए लेखों को संकलित कर प्रकाशित किया गया है।
लघुकथा समीक्षा की दशा और दिशा पर विचार करते हैं, तो सबसे पहले रामेश्वरनाथ तिवारी की लघुकथा पुस्तक 'रेल की पटरियां' (१९५४) की आचार्य जगदीश पांडेय द्वारा लिखी गई भूमिका 'लघुकथा: स्वरूप निर्माता' पर दृष्टि जाती है। आचार्य पांडेय ने पहली बार इन लघुआकारीय रचनाओं को 'लघुकथा' नाम देकर उसे परिभाषित किया है और उसके कला- रूपों की चर्चा की है; जो शुद्ध रूप से लघुकथा-समीक्षा की शास्त्रीय आधार-भूमि मानी जा सकता है।
इस आलेख में आचार्य जी ने लघुकथा के विचारणीय पक्षों को सात उपशीर्षकों में बांटकर लघुकथा विधा की शास्त्रीय समीक्षा प्रस्तुत की है-(१) शीर्षक (२) पात्र और विधान की प्राख्योन्मुखता (३) कथनोपकथन (४) ज्वार- प्रतिज्वार की त्वरा (५) स्थापत्य की गहराई (६) नियताप्ति और उपराम में व्यंग्य की स्थिति और (७) शैली।[1]
उसके बाद आठवें दशक के पूर्वार्द्ध तक समीक्षा के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय पहल नहीं हुई। आठवें दशक में डा० शंकर पुणतांबेकर, कृष्ण कमलेश, जगदीश कश्यप, डॉ० स्वर्ण किरण, डॉ० रामनिवास मानव आदि ने समीक्षात्मक लेख लिखे। १९७७ में प्रकाशित लघुकथा संकलन 'समांतर लघुकथाएं' में बलराम का आलेख 'हिंदी लघुकथा का विकास', १९७८ में प्रकाशित 'छोटी-बडी़ बातें' में महावीर प्रसाद जैन और जगदीश कश्यप के आलेख और १९७९ में आये 'नवतारा' के लघुकथा-विशेषांक में अनिल जनविजय, जगदीश कश्यप, बालेंदु शेखर तिवारी, भूपाल उपाध्याय, राधेलाल बिजघावने और रामनारायण बेचैन के आलेख विशेष उल्लेखनीय हैं।
नौवां दशक हिंदी लघुकथा के लिए सबसे महत्वपूर्ण रहा। इसकी शुरुआत में ही १९८१ में ‘नवतारा’ का प्रतिक्रिया अंक आया। उसमें प्रकाशित आलेखों में मोहन राजेश का ‘हवा में तने मुक्के’ विशेष महत्वपूर्ण है। १९८१ में ही कृष्ण कमलेश के संपादन में ‘लघुकथा : दशा और दिशा’ आया। १९८२ में डॉ रामनिवास मानव और दर्शन दीप का सांझा लघुकथा संग्रह ‘ताकि सनद रहे’ प्रकाशित हुआ। इसमें डॉ. मानव के छः आलेख भी संग्रहित हैं। इन आलेखों में डॉ मानव ने लघुकथा की ऐतिहासिक परंपरा, उसके स्वरूप, सीमाओं तथा विकास की संभावनाओं पर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए हैं। १९८२ में ही 'लघुकथा : सृजना और मूल्यांकन' आया। इसमें विक्रम सोनी, डॉ चंद्रेश्वर कर्ण, डॉ जगदीश्वर प्रसाद और डॉ बृजकिशोर पाठक के महत्वपूर्ण आलेखों द्वारा लघुकथा के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। १९८३ में डॉ सतीशराज पुष्करणा के संपादन में 'लघुकथा : बहस के चौराहे पर' डॉ स्वर्ण किरण, सतीशराज पुष्करणा, महावीर प्रसाद जैन, भगीरथ और जगदीश कश्यप के समीक्षात्मक आलेखों को लेकर आया। १९८६ मेंं 'तत्पश्चात्' ( सतीशराज पुष्करणा) और 'दिशा-४' ( सं० पुष्करणा) में निशांतर के महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुए। १९८७ में मुकेश शर्मा ने 'लघुकथा समीक्षा' लघु पुस्तिका के माध्यम से लघुकथा-समीक्षा का प्रयास किया। १९८८ में 'कथा- निकष-१' पूर्ण रूप से लघुकथा-समीक्षा को समर्पित पत्रिका निकली। इसके प्रवेशांक में ही डा० शंकर पुणतांबेकर, डॉ स्वर्ण किरण, भगीरथ, सतीशराज पुष्करणा और जगदीश कश्यप के महत्वपूर्ण आलेख हैं, जो लघुकथा की सृजन-प्रक्रिया, शिल्प-शैली और संरचना एवं मूल्यांकन पर प्रकाश डालते हैं। १९८८ में अमरनाथ चौधरी अब्ज की लघु-पुस्तिका 'लघुकथा: चिंतन और प्रक्रिया' आई, जिसमें मात्र एक आलेख ही समीक्षात्मक है। १९९० में डॉ सतीशराज पुष्करणा के संपादन में 'कथादेश' और 'लघुकथा: सर्जना एवं समीक्षा' आयीं। 'लघुकथा: सर्जना और समीक्षा' में बारह आलेखों के माध्यम से लघुकथा की परंपरा, समीक्षा की समस्याओं, विधागत शास्त्रीयता, रचना प्रक्रिया, शिल्प और शैली, समीक्षा के मानक तत्व आदि पर विचार किया गया है। इसे लघुकथा समीक्षा का पहला गंभीर प्रयास कहा जा सकता है।
१९९१ में 'लघुकथा : संरचना और शिल्प' ( सं० सुरेशचंद्र गुप्त) और मुकेश शर्मा की 'लघुकथा : रचना और समीक्षा', दो महत्वपूर्ण पुस्तकें आईं अमरनाथ चौधरी अब्ज की ‘बूंद-बूंद' १९९३ में ‘चमत्कारवाद’ की घोषणा के साथ आई। लेकिन इसके आलेख 'चमत्कारवाद' के सैद्धांतिक पक्ष को स्पष्ट नहीं कर पाये हैं। परंतु अंत के कुछ आलेख महत्वपूर्ण बन पड़े हैं। १९९४ में कमलेश भट्ट कमल की 'साक्षात्' आई, जिसमें डॉ कमल किशोर गोयनका से लघुकथा पर बातचीत प्रकाशित की गई है। १९९७ में कृष्णानंद कृष्ण की 'हिंदी लघुकथा : स्वरुप और दिशा' प्रकाशित हुई। इसमें लघुकथा के क्रियात्मक पक्ष के साथ-साथ सैद्धांतिक पक्ष पर भी महत्वपूर्ण आलेख हैं। २००२ में प्रकाशित 'हिन्दी-लघुकथा: उलझते-सुलझते प्रश्र' में डॉ रूप देवगुण ने लघुकथा विषयक कुछ प्रश्नों को उठाने का सार्थक प्रयास किया है। डॉ सतीशराज पुष्करणा, कृष्णानंद कृष्ण, नरेंद्र प्रसाद नवीन और डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्र के संयुक्त संपादन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक ‘लघुकथा का सौंदर्यशास्त्र’ २००३ में आई। इसमें १० आलेखों के माध्यम से लघुकथा के विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से विचार किया गया है। इसे हिंदी लघुकथा की दूसरी महत्वपूर्ण संकलित समीक्षा पुस्तक कहा जा सकता है। २००३ में ही डॉक्टर सी० रा० प्रसाद का शोधप्रबंध 'हिन्दी लघुकथाओं का शैक्षिक विश्लेषण' प्रकाशित हुआ है, "जो न मात्र उपयोगी है, अपितु शोधार्थियों, शिक्षकों, विद्यार्थियों और नई पीढ़ी के लघुकथा- लेखकों एवं आलोचकों हेतु यह दिशा निर्देश भी करता है।"[2]
पाँच वर्षों के अंतराल के बाद २००८ में बलराम अग्रवाल की 'समकालीन लघुकथा और प्रेमचंद' तथा डॉ शकुंतला किरण की 'हिंदी लघुकथा' पुस्तकें आईं। 'हिंदी लघुकथा' किसी एक लेखक का पहला ऐसा शोधग्रंथ है, जो ‘लघुकथा के सही स्वरूप को जानने-समझने की जिज्ञासा रखने वालों को को संतुष्ट करने की विश्वस्नीय क्षमता रखता है।’[3] ‘यह कृति लघुकथा की विधागत अंतरकथाओं एवं आलोचना-दृष्टि के संदर्भ में रामायण- महाभारत के प्रसंगों की तरह कालातीत साबित होगी।’[4]
डॉ रामकुमार घोटड़ की दो महत्वपूर्ण पुस्तकें, २००८ में 'लघुकथा विमर्श' और २०१२ में 'भारत का लघुकथा-संसार' आईं। इनमें डॉ घोटड़ ने लघुकथा विषयक अनेक बिंदुओं को स्पष्ट करने और अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराने का सफल प्रयास किया है। २०१२ में ही डा० शकुंतला किरण की 'हिंदी लघुकथा' के बाद दूसरा महत्वपूर्ण शोधप्रबंध डॉ सत्यवीर मानव का 'हिंदी लघुकथा: संवेदना और शिल्प' आया है। इसमें डॉ मानव ने हिंदी लघुकथा की परिभाषा, स्वरूप, उद्भव और विकास, हिंदी लघुकथा में संवेदना, हिंदी लघुकथा के शिल्प आदि का विस्तार से विष्लेषण करने के साथ-साथ २२ मानक और विशिष्ट लघुकथाकारों के लेखन के विशेष संदर्भ में हिंदी लघुकथा में संवेदना और उसके शिल्प पर भी विचार किया है। २०१४ में अशोक भाटिया की 'समकालीन हिंदी लघुकथा' और २०१५ में मुकेश शर्मा की 'लघुकथा के आयाम', दो उल्लेखनीय पुस्तकें आईं हैं। २०१५ में ही डा० पुष्पा जमुआर का 'हिंदी लघुकथा: समीक्षात्मक अध्ययन' लघुकथा विषयक समीक्षात्मक लेखों का संग्रह आया है। २००२ में डॉ कमल किशोर गोयनका की पुस्तक 'लघुकथा का व्याकरण' आई थी,इसे २०१६ में पुनः 'लघुकथा का समय' के टाइटल से प्रकाशित किया गया है। इसमें डॉ गोयनका ने लघुकथा की प्रासंगिकता, आंदोलन, सृजन-प्रक्रिया आदि पर अपने लगभग तीन दशकों के विचारों को संकलित किया है। २०१७ में दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां—डॉ बलराम अग्रवाल की 'हिंदी लघुकथा का मनोविज्ञान' और डॉ रूप देवगुण की 'आधुनिक हिंदी लघुकथा : आधार और विष्लेषण' का प्रकाशन रहीं। 'हिंदी लघुकथा का मनोविज्ञान'समकालीन हिंदी लघुकथा के विकास को रेखांकित करने, उसका मनोवैज्ञानिक एवं मनोविश्लेषणात्मक विवेचन प्रस्तुत करने की दृष्टि से निश्चित रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण कृति है; तो 'आधुनिक हिंदी लघुकथा: आधार और विष्लेषण' में ६१ लघुकथाकारों के पत्र-साक्षात्कारों के आधार पर लघुकथा के परिदृश्य का विष्लेषण किया गया है। २०१८ में डॉ अशोक भाटिया की 'परिंदे पूछते हैं (लघुकथा विमर्श)' और भगीरथ परिहार की 'हिंदी लघुकथा के सिद्धांत' पुस्तकें आईं हैं। 'परिंदे पूछते हैं' में डॉ भाटिया ने लघुकथा विषयक करीब अस्सी ज़रूरी सवालों के जवाब विस्तारपूर्वक सहज- सरल भाषा में दिये हैं। लघुकथा की सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष को समझने के इसी क्रम में बलराम अग्रवाल की ‘परिंदों के दरमियां’ महत्वपूर्ण है तो 'हिंदी लघुकथा के सिद्धांत' में भगीरथ परिहार ने लघुकथा विधा के समक्ष समय-समय पर आई चुनौतियों को लक्ष्य कर पिछले चालीस वर्षों में लिखे गए उनके लेखों को संकलित किया है। २०१८ में ही एक और श्रेष्ठ कृति डॉ जितेन्द्र जीतू की ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशास्त्र और समाजशास्त्रीय सौंदर्यबोध’ प्रकाशित हुई है।
२०१९ लघुकथा-समीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष रहा। इस वर्ष योगराज प्रभाकर द्वारा संपादित ‘लघुकथा : रचना-प्रक्रिया’ पुस्तक आई, जो लघुकथा की सृजन-प्रक्रिया से जुड़े योगराज प्रभाकर के विभिन्न प्रश्नों के लघुकथाकारों द्वारा दिये गये जवाबों का पुस्तक रूप है। अशोक भाटिया की ‘लघुकथा : आकार और प्रकार’, बलराम अग्रवाल की ‘लघुकथा का प्रबल-पक्ष’ एवं डॉ सत्यवीर मानव की ‘हिंदी लघुकथा : संवेदना और शिल्प’ का द्वितीय संस्करण भी आया है। रामेश्वर कांबोज हिमांशु की ‘लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य’ तथा सुकेश साहनी की ‘लघुकथा : सृजन और रचना-कौशल’ लघुकथा के विविध पक्षों का विशिष्ट विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयास करती हैं। इसी वर्ष लघुकथा केन्द्रित साक्षात्कारों की दो महत्वपूर्ण पुस्तकें भी आईं। इनमें एक है—कल्पना भट्ट द्वारा संपादित ‘लघुकथा संवाद’ तथा दूसरी है—डॉ॰ लता अग्रवाल द्वारा संपादित ‘अनुगूँज’। ये सभी पुस्तकें लघुकथा विधा को सांगोपांग समझने का सुअवसर प्रदान करती है ‌।
२०२० की शुरुआत भी अच्छी रही है। डॉ बलराम अग्रवाल की 'लघुकथा : चिंतन-अनुचिंतन' और डॉ सतीशराज पुस्करणा की ‘हिन्दी लघुकथा की प्रविधि’ प्रकाशित हो चुकी हैं।
उपर्युक्त पुस्तकों के अतिरिक्त ‘बीसवीं सदी की लघुकथाएँ’ ( सं० बलराम) और मधुदीप द्वारा प्रस्तुत 'पड़ाव और पड़ताल' जैसी पुस्तक-श्रृंखलाओं में भी महत्वपूर्ण समीक्षात्मक आलेख उपलब्ध हैं। डॉ रामनिवास मानव, डॉ सतीशराज पुष्करणा, डॉ रामकुमार घोटड़, सुकेश साहनी आदि के लघुकथा-साहित्य पर स्वतंत्र रूप से भी समीक्षात्मक पुस्तकें आ चुकी हैं। परंतु लघुकथा के विशाल साहित्य-भंडार को देखते हुए अभी बहुत अधिक कार्य किया जाना शेष है।

-  डॉ. सत्यवीर मानव
   मोबाइल : 9416238131

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१- हिंदी लघुकथा: स्वरूप और दिशा, कृष्णानंद कृष्ण, पृष्ठ-१२४
२- डॉ. सतीशराज पुष्करणा, हिंदी लघुकथाओं का शैक्षिक विश्लेषण के फ्लेप पर टिप्पणी.
३- डॉ. बलराम अग्रवाल, 'हिंदी लघुकथा' का अग्रलेख, पृष्ठ-२.
४- डॉ. सतीश दूबे, 'हिंदी लघुकथा' की भूमिका, पृष्ठ-२

रविवार, 9 फ़रवरी 2020

फेसबुक समूह साहित्य संवेद लघुकथा प्रतियोगिता फरवरी 2020

फेसबुक समूह साहित्य संवेद की एडमिन "दिव्या राकेश शर्मा" जी की फेसबुक पोस्ट 

नमस्कार साथियों,

आपका अपना समूह #साहित्य_संवेद साहित्यिक आयोजन के प्रति सतत कटिबद्ध है। इसी कड़ी को आगे बढाते हुए एक लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन सुनिश्चित हुआ है जो कि आम लघुकथा प्रतियोगिताओं से भिन्न है । इसमें प्रतिभागियों को अपनी रचना न भेजकर किसी अन्य लेखक की लघुकथा विस्तृत टिप्पणी के साथ साझा करनी है। प्रतियोगिता को सुचारू बनाने हेतु कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। सभी सदस्यों से अनुरोध है कि प्रतियोगिता को सफल बनाने के लिए दिये गए नियमों का पालन करें।

प्रतियोगिता के नियम इस प्रकार हैं:
1. लघुकथा किसी भी अन्य लघुकथाकार की हो सकती है। ऐसी लघुकथा का चयन हो जो सामान्य से भिन्न हो। कथानक, कथ्य, शिल्प के स्तर पर भीड़ से अलग नज़र आती हो। चयन को प्रतिभागी के अध्ययन और समझ का प्रतिरूप समझा जा सकता है।
2. एक प्रतिभागी अधिकतम दो(एक/दो) प्रविष्टि प्रतियोगिता में भेज सकते हैं।
3.लघुकथा पर अपनी टिप्पणी न्यूनतम 200(अधिकतम की कोई सीमा नहीं है) शब्दों में दें।
कथा के सकारात्मक पक्षों के अतिरिक्त त्रुटियों और आलोचनात्मक पक्षों पर भी प्रतिभागियों की नज़र जाय, यह अपेक्षा जरूर है। केवल प्रशंसा हेतु यह प्रतियोगिता कतई नहीं है। केवल कथा की कमियों और त्रुटियों पर भी केंद्रित रहना उचित नहीं है।
4. भाषायी शुद्धता का ध्यान रखें। रचना भेजने से पहले अशुद्धियों को ठीक कर लें। पोस्ट करने के बाद संपादित (एडिट) करना अमान्य होगा।
5. कृपया रचना के शीर्ष में #साहित्य_संवेद_लघुकथा_प्रतियोगिता_फरवरी_2020 अवश्य अंकित करें।
6. रचनाएं भेजने का समय 27 फरवरी 2020 सुबह 7 बजे से 28 फरवरी रात 11 बजे तक रहेगा।
प्रथम तीन प्रविष्टियों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक प्रदान की जाएगी।
* प्रथम पुरस्कार - मुट्ठी भर अक्षर (नीलिमा शर्मा नीविया और विवेक कुमार संपादित साझा संकलन )
*द्वितीय पुरस्कार - अनुत्तरित प्रश्न ( नीरज सरस जैन, रूपल उपाध्याय)
*तृतीय पुरस्कार - कही-अनकही लघुकथाएं (संजय पठाड़े 'शेष')
आप सबसे विनम्र निवेदन है कि अपने साथियों की प्रविष्टियों पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी भी जरूर दें। एडमिनगण इस प्रतियोगिता से दूर रहेंगे।
■यह प्रतियोगिता सामान्य से अलग है तो वरिष्ठजनों से भी भागीदारी की स्वाभविक अपेक्षा रहेगी।
■■अगर कोई लेखक चाहते हैं कि उनकी रचनाओं पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी न दें तो कमेंट बॉक्स में अथवा इनबॉक्स में सूचित कर सकते हैं।

साहित्य संवेद

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शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार | रीड - आमजन की व्यथा का सशक्त जरिया बनी लघुकथा

'पुस्तक चर्चा' कार्यक्रम में वरिष्ठ लेखक चैतन्य त्रिवेदी ने साझा किए दिलचस्प किस्से

इंदौर (नईदुनिया रिपोर्टर)। दशकों पहले जब मैंने लघुकथा लिखनी शुरू कीं, उस वक्त लघुकथा को लेकर इतना उत्साहजनक माहौल नहीं था। ऐसे में उस दौर के लघुकथाकारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस विधा को स्थापित करने की थी। मगर करीब 18 साल पहले जब मेरी लघुकथाओं की किताब 'उल्लास' आई तो जबरदस्त प्रतिसाद मिला। यहां तक कि उस दौर के बड़े कलमकारों में शुमार बलरामजी ने एक प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका में उस पर कई पेज की समीक्षा भी लिखी। कुछ लोगों ने उनकी इस कोशिश को बहुत सकारात्मकता से लिया तो कुछ ने ये कहकर ऐतराज भी जताया कि इतनी लंबी समीक्षा तो लंबी कहानियों वाली किताबों को भी नहीं मिलती है। लेकिन इसका सबसे सकारात्मक पक्ष ये रहा कि लघुकथा पर गहन विचार-विमर्श शुरू हो गया और ये देखकर सुकून मिलता है कि अब इस विधा का शुमार सबसे ज्यादा लोकप्रिय साहित्यिक विधाओं में होने लगा है

ये बात गुरुवार जनवरी 30, 2020 को शहर के वरिष्ठ लेखक चैतन्य त्रिवेदी ने एबी रोड स्थित एक होटल में आयोजित पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में कही। अपनी नई किताब 'हवा की अफवाह' का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसके आने के पहले ही जिस तरह से इसके बारे में पूछ-परख शुरू हो गई थी उससे मुझे यकीन हो गया है कि आने वाला दौर लघुकथा का ही है। दरअसल भीषण व्यस्तता के इस दौर में जब आम से लेकर खास आदमी तक वक्त की बेहद कमी हो चली है। ऐसे में अधिकांश लोग लंबी-लंबी कहानियों और उपन्यासों को पढ़ने के लिए पर्याप्त वक्त नहीं निकाल पाते हैं। इन लोगों के लिए लघुकथा सर्वश्रेष्ठ विकल्प बनकर सामने आ रही है। ये आमजन की व्यथा व्यक्त करने का सशक्त जरिया बन गई है। इसीलिए सोशल मीडिया और इंटरनेट के दौर में भी लघुकथाएं बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

नारी सशक्तिकरण का माध्यम

पिछले कुछ सालों में लेखन के क्षेत्र में महिला कलमकारों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। उसकी भी एक बड़ी वजह लघुकथा है। क्योंकि इस क्षेत्र में आने वाली नई लेखिकाओं में से अधिकांश ने या तो लघुकथा विधा से अपनी साहित्यिक पारी की शुरुआत की है या फिर आगे चलकर इसे समग्रता से अपनाया है। इस लिहाज से लघुकथा नारी सशक्तिकरण का माध्यम भी बन गई है। मुझे लगता है कि फिलहाल लघुकथा की टक्कर में केवल काव्य विधा है, जिसे लघुकथा की ही तरह महिला और पुरुष कलमकारों ने समान रूप से अपनाया है।


Source:
https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-indore-city-5306233

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार | लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा इंदौर : पद्मश्री मालती जोशी

लघुकथा संग्रह प्रवाह का विमोचन समारोह
शाश्वत सृजन समाचार

जानी-मानी लेखिका पद्मश्री मालती जोशी ने कहा है कि जो इंदौर कभी अपने नमकीन के लिये देश भर में जाना जाता था वह स्वच्छता के मामले में नंबर वन बना। वहीं इंदौर अब साहित्य और लघुकथा के लिए प्रसिद्ध होने जा रहा है। भविष्य में इंदौर लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा।

मालतीजी मंगलवार को यहां 21 लघुकथाकारों की लघुकथाओं के संग्रह प्रवाह के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहीं थीं। विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर के बैनर तले मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के शिवाजी सभागार में यह समारोह आयोजित किया गया था। 

समारोह की अध्यक्षता भोज शोध संस्थान, धार के निदेशक डाॅ दीपेंद्र शर्मा ने की। विशेष अतिथि और चर्चाकार के रूप में जानी-मानी लघुकथाकार श्रीमती मीरा जैन (उज्जैन) मौजूद रहीं।



पद्मश्री जोशी ने कहा कि लघुकथा का मुख्य लक्षण अपनी बात को छोटे रूप में लोगों तक पहुंचाना है । तीक्ष्णता से अपनी बात सबके समक्ष प्रस्तुत करना । जैसे आजकल ट्वेंटी-ट्वेंटी का ज़माना है वैसे ही लघुकथा भी अब ऐसे ही हो गयी है और अति लघुता की ओर जा रही है ।

डॉ. दीपेन्द्र शर्मा ने कहा कि लेखकों का संग्रह व्यक्तिगत चेतना को सामूहिक चेतना में बदल देता है। एक लेखक को विवादास्पद या प्रसिद्ध होने के स्थान पर ऐसा लिखना चाहिए कि उनके विचार और लेखन सदैव याद किए जाएं। सूर और तुलसी इसी श्रेणी के सृजनकर्ता रहे इसीलिए वे अमर रचनाकार बन गए।

श्रीमती मीरा जैन ने  कहा कि लघुकथा साहित्य उपवन में खिला एक खूबसूरत पुष्प है जिसके प्रति साहित्य प्रेमियों के आकर्षण में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है । लघुकथा की लघुता ही इसकी प्रमुख विशिष्टता है । लघुकथा का ताना बाना कसा हुआ हो तो ही पाठको के ह्रदय तक पहुंचेगा । लघुकथा का अपना एक नैसर्गिक सौंदर्य होता है । उन्होंने  21 लघुकथाकारो के लघुकथा संकलन प्रवाह  में से अनेक लघुकथाओं की सटीक समीक्षा भी की। उपरोक्त लघुकथा संग्रह का संपादन श्रीमती सुषमा दुबे ने किया है। सह संपादक श्री देवेन्द्र सिंह सिसौदिया एवं मुकेश तिवारी हैं।




समारोह में स्वागत भाषण विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा दुबे ने दिया। सचिव डाॅ दीपा मनीष व्यास ने विचार प्रवाह के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सरस्वती वंदना डाॅ पूजा मिश्रा ने की। अतिथियों का स्वागत उपाध्यक्ष विजय सिंह चौहान, संध्या राय चौधरी, अर्चना मंडलोई, मनीष व्यास आदि ने किया। संचालन मुकेश तिवारी ने किया। आभार महासचिव देवेन्द्र सिंह सिसौदिया ने माना।

इस मौके पर सभी 21 लघुकथाकारों  को सम्मानित भी किया गया। मंच के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य सर्वश्री हरेराम वाजपेयी, नरेन्द्र मांडलिक, प्रदीप नवीन, संतोष मोहंती, श्रीमती पदमा राजेंद्र का भी इस मौके पर अभिनंदन किया गया। प्रवाह संग्रह का मुखपृष्ठ सजाने वाली तृप्ति त्रिवेदी और प्रतीक चिन्ह सज्जा करने वाली देव्यानी व्यास का भी सम्मान हुआ। प्रवाह संग्रह में श्रीमती माया बदेका, कुमुद दुबे, अंजू निगम, मीना गौड़, कुमुद मारू, सुषमा व्यास, देवेंद्रसिंह सिसौदिया, अर्चना मंडलोई, वंदना पुणतांबेकर,  मित्रा शर्मा, सुषमा दुबे, विजयसिंह चौहान, डाॅ. ज्योति सिंह, रश्मि चौधरी, मुकेश तिवारी, डाॅ दीपा मनीष व्यास, आरती चित्तौड़ा, डाॅ पूजा मिश्रा, माधुरी शुक्ला, अदिति सिंह भदौरिया और अविनाश अग्निहोत्री आदि की लघुकथाएं शामिल हैं।


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