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रविवार, 9 फ़रवरी 2020

फेसबुक समूह साहित्य संवेद लघुकथा प्रतियोगिता फरवरी 2020

फेसबुक समूह साहित्य संवेद की एडमिन "दिव्या राकेश शर्मा" जी की फेसबुक पोस्ट 

नमस्कार साथियों,

आपका अपना समूह #साहित्य_संवेद साहित्यिक आयोजन के प्रति सतत कटिबद्ध है। इसी कड़ी को आगे बढाते हुए एक लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन सुनिश्चित हुआ है जो कि आम लघुकथा प्रतियोगिताओं से भिन्न है । इसमें प्रतिभागियों को अपनी रचना न भेजकर किसी अन्य लेखक की लघुकथा विस्तृत टिप्पणी के साथ साझा करनी है। प्रतियोगिता को सुचारू बनाने हेतु कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। सभी सदस्यों से अनुरोध है कि प्रतियोगिता को सफल बनाने के लिए दिये गए नियमों का पालन करें।

प्रतियोगिता के नियम इस प्रकार हैं:
1. लघुकथा किसी भी अन्य लघुकथाकार की हो सकती है। ऐसी लघुकथा का चयन हो जो सामान्य से भिन्न हो। कथानक, कथ्य, शिल्प के स्तर पर भीड़ से अलग नज़र आती हो। चयन को प्रतिभागी के अध्ययन और समझ का प्रतिरूप समझा जा सकता है।
2. एक प्रतिभागी अधिकतम दो(एक/दो) प्रविष्टि प्रतियोगिता में भेज सकते हैं।
3.लघुकथा पर अपनी टिप्पणी न्यूनतम 200(अधिकतम की कोई सीमा नहीं है) शब्दों में दें।
कथा के सकारात्मक पक्षों के अतिरिक्त त्रुटियों और आलोचनात्मक पक्षों पर भी प्रतिभागियों की नज़र जाय, यह अपेक्षा जरूर है। केवल प्रशंसा हेतु यह प्रतियोगिता कतई नहीं है। केवल कथा की कमियों और त्रुटियों पर भी केंद्रित रहना उचित नहीं है।
4. भाषायी शुद्धता का ध्यान रखें। रचना भेजने से पहले अशुद्धियों को ठीक कर लें। पोस्ट करने के बाद संपादित (एडिट) करना अमान्य होगा।
5. कृपया रचना के शीर्ष में #साहित्य_संवेद_लघुकथा_प्रतियोगिता_फरवरी_2020 अवश्य अंकित करें।
6. रचनाएं भेजने का समय 27 फरवरी 2020 सुबह 7 बजे से 28 फरवरी रात 11 बजे तक रहेगा।
प्रथम तीन प्रविष्टियों को पुरस्कार स्वरूप पुस्तक प्रदान की जाएगी।
* प्रथम पुरस्कार - मुट्ठी भर अक्षर (नीलिमा शर्मा नीविया और विवेक कुमार संपादित साझा संकलन )
*द्वितीय पुरस्कार - अनुत्तरित प्रश्न ( नीरज सरस जैन, रूपल उपाध्याय)
*तृतीय पुरस्कार - कही-अनकही लघुकथाएं (संजय पठाड़े 'शेष')
आप सबसे विनम्र निवेदन है कि अपने साथियों की प्रविष्टियों पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी भी जरूर दें। एडमिनगण इस प्रतियोगिता से दूर रहेंगे।
■यह प्रतियोगिता सामान्य से अलग है तो वरिष्ठजनों से भी भागीदारी की स्वाभविक अपेक्षा रहेगी।
■■अगर कोई लेखक चाहते हैं कि उनकी रचनाओं पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी न दें तो कमेंट बॉक्स में अथवा इनबॉक्स में सूचित कर सकते हैं।

साहित्य संवेद

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Source:
https://www.facebook.com/sharma.divya.332/posts/953652135031238

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार | रीड - आमजन की व्यथा का सशक्त जरिया बनी लघुकथा

'पुस्तक चर्चा' कार्यक्रम में वरिष्ठ लेखक चैतन्य त्रिवेदी ने साझा किए दिलचस्प किस्से

इंदौर (नईदुनिया रिपोर्टर)। दशकों पहले जब मैंने लघुकथा लिखनी शुरू कीं, उस वक्त लघुकथा को लेकर इतना उत्साहजनक माहौल नहीं था। ऐसे में उस दौर के लघुकथाकारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस विधा को स्थापित करने की थी। मगर करीब 18 साल पहले जब मेरी लघुकथाओं की किताब 'उल्लास' आई तो जबरदस्त प्रतिसाद मिला। यहां तक कि उस दौर के बड़े कलमकारों में शुमार बलरामजी ने एक प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका में उस पर कई पेज की समीक्षा भी लिखी। कुछ लोगों ने उनकी इस कोशिश को बहुत सकारात्मकता से लिया तो कुछ ने ये कहकर ऐतराज भी जताया कि इतनी लंबी समीक्षा तो लंबी कहानियों वाली किताबों को भी नहीं मिलती है। लेकिन इसका सबसे सकारात्मक पक्ष ये रहा कि लघुकथा पर गहन विचार-विमर्श शुरू हो गया और ये देखकर सुकून मिलता है कि अब इस विधा का शुमार सबसे ज्यादा लोकप्रिय साहित्यिक विधाओं में होने लगा है

ये बात गुरुवार जनवरी 30, 2020 को शहर के वरिष्ठ लेखक चैतन्य त्रिवेदी ने एबी रोड स्थित एक होटल में आयोजित पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में कही। अपनी नई किताब 'हवा की अफवाह' का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसके आने के पहले ही जिस तरह से इसके बारे में पूछ-परख शुरू हो गई थी उससे मुझे यकीन हो गया है कि आने वाला दौर लघुकथा का ही है। दरअसल भीषण व्यस्तता के इस दौर में जब आम से लेकर खास आदमी तक वक्त की बेहद कमी हो चली है। ऐसे में अधिकांश लोग लंबी-लंबी कहानियों और उपन्यासों को पढ़ने के लिए पर्याप्त वक्त नहीं निकाल पाते हैं। इन लोगों के लिए लघुकथा सर्वश्रेष्ठ विकल्प बनकर सामने आ रही है। ये आमजन की व्यथा व्यक्त करने का सशक्त जरिया बन गई है। इसीलिए सोशल मीडिया और इंटरनेट के दौर में भी लघुकथाएं बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

नारी सशक्तिकरण का माध्यम

पिछले कुछ सालों में लेखन के क्षेत्र में महिला कलमकारों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। उसकी भी एक बड़ी वजह लघुकथा है। क्योंकि इस क्षेत्र में आने वाली नई लेखिकाओं में से अधिकांश ने या तो लघुकथा विधा से अपनी साहित्यिक पारी की शुरुआत की है या फिर आगे चलकर इसे समग्रता से अपनाया है। इस लिहाज से लघुकथा नारी सशक्तिकरण का माध्यम भी बन गई है। मुझे लगता है कि फिलहाल लघुकथा की टक्कर में केवल काव्य विधा है, जिसे लघुकथा की ही तरह महिला और पुरुष कलमकारों ने समान रूप से अपनाया है।


Source:
https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-indore-city-5306233

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार | लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा इंदौर : पद्मश्री मालती जोशी

लघुकथा संग्रह प्रवाह का विमोचन समारोह
शाश्वत सृजन समाचार

जानी-मानी लेखिका पद्मश्री मालती जोशी ने कहा है कि जो इंदौर कभी अपने नमकीन के लिये देश भर में जाना जाता था वह स्वच्छता के मामले में नंबर वन बना। वहीं इंदौर अब साहित्य और लघुकथा के लिए प्रसिद्ध होने जा रहा है। भविष्य में इंदौर लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा।

मालतीजी मंगलवार को यहां 21 लघुकथाकारों की लघुकथाओं के संग्रह प्रवाह के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहीं थीं। विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर के बैनर तले मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के शिवाजी सभागार में यह समारोह आयोजित किया गया था। 

समारोह की अध्यक्षता भोज शोध संस्थान, धार के निदेशक डाॅ दीपेंद्र शर्मा ने की। विशेष अतिथि और चर्चाकार के रूप में जानी-मानी लघुकथाकार श्रीमती मीरा जैन (उज्जैन) मौजूद रहीं।



पद्मश्री जोशी ने कहा कि लघुकथा का मुख्य लक्षण अपनी बात को छोटे रूप में लोगों तक पहुंचाना है । तीक्ष्णता से अपनी बात सबके समक्ष प्रस्तुत करना । जैसे आजकल ट्वेंटी-ट्वेंटी का ज़माना है वैसे ही लघुकथा भी अब ऐसे ही हो गयी है और अति लघुता की ओर जा रही है ।

डॉ. दीपेन्द्र शर्मा ने कहा कि लेखकों का संग्रह व्यक्तिगत चेतना को सामूहिक चेतना में बदल देता है। एक लेखक को विवादास्पद या प्रसिद्ध होने के स्थान पर ऐसा लिखना चाहिए कि उनके विचार और लेखन सदैव याद किए जाएं। सूर और तुलसी इसी श्रेणी के सृजनकर्ता रहे इसीलिए वे अमर रचनाकार बन गए।

श्रीमती मीरा जैन ने  कहा कि लघुकथा साहित्य उपवन में खिला एक खूबसूरत पुष्प है जिसके प्रति साहित्य प्रेमियों के आकर्षण में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है । लघुकथा की लघुता ही इसकी प्रमुख विशिष्टता है । लघुकथा का ताना बाना कसा हुआ हो तो ही पाठको के ह्रदय तक पहुंचेगा । लघुकथा का अपना एक नैसर्गिक सौंदर्य होता है । उन्होंने  21 लघुकथाकारो के लघुकथा संकलन प्रवाह  में से अनेक लघुकथाओं की सटीक समीक्षा भी की। उपरोक्त लघुकथा संग्रह का संपादन श्रीमती सुषमा दुबे ने किया है। सह संपादक श्री देवेन्द्र सिंह सिसौदिया एवं मुकेश तिवारी हैं।




समारोह में स्वागत भाषण विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा दुबे ने दिया। सचिव डाॅ दीपा मनीष व्यास ने विचार प्रवाह के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सरस्वती वंदना डाॅ पूजा मिश्रा ने की। अतिथियों का स्वागत उपाध्यक्ष विजय सिंह चौहान, संध्या राय चौधरी, अर्चना मंडलोई, मनीष व्यास आदि ने किया। संचालन मुकेश तिवारी ने किया। आभार महासचिव देवेन्द्र सिंह सिसौदिया ने माना।

इस मौके पर सभी 21 लघुकथाकारों  को सम्मानित भी किया गया। मंच के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य सर्वश्री हरेराम वाजपेयी, नरेन्द्र मांडलिक, प्रदीप नवीन, संतोष मोहंती, श्रीमती पदमा राजेंद्र का भी इस मौके पर अभिनंदन किया गया। प्रवाह संग्रह का मुखपृष्ठ सजाने वाली तृप्ति त्रिवेदी और प्रतीक चिन्ह सज्जा करने वाली देव्यानी व्यास का भी सम्मान हुआ। प्रवाह संग्रह में श्रीमती माया बदेका, कुमुद दुबे, अंजू निगम, मीना गौड़, कुमुद मारू, सुषमा व्यास, देवेंद्रसिंह सिसौदिया, अर्चना मंडलोई, वंदना पुणतांबेकर,  मित्रा शर्मा, सुषमा दुबे, विजयसिंह चौहान, डाॅ. ज्योति सिंह, रश्मि चौधरी, मुकेश तिवारी, डाॅ दीपा मनीष व्यास, आरती चित्तौड़ा, डाॅ पूजा मिश्रा, माधुरी शुक्ला, अदिति सिंह भदौरिया और अविनाश अग्निहोत्री आदि की लघुकथाएं शामिल हैं।


Source:
https://shashwatsrijan.page/article/laghukatha-ke-gadh-ke-roop-mein-jaana-jaega-indaur/FJewfh.html

सोमवार, 27 जनवरी 2020

लघुकथा संग्रह ‘चेकबुक’ के लिए वासदेव मोही को 29वां सरस्वती सम्मान


वर्ष 2019 के सरस्वती सम्मान प्रख्यात सिंधी लेखक वासदेव मोही को दिए जाने की घोषणा की गयी है. उन्हें 29वां सरस्वती सम्मान दिया जायेगा. वासदेव मोही को यह सम्मान उनके 2012 में प्रकाशित लघुकथा संग्रह चेकबुकके लिए दिया गया है. इस लघुकथा संग्रह में समाज के हाशिए के तबकों और पीड़ाओं के बारे उन्होंने कविता, कहानी और अनुवाद की 25 किताबें लिखी हैं. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

सरस्वती सम्मान: एक दृष्टि

·         सरस्वती सम्मान केके बिड़ला फ़ाउंडेशन द्वारा साहित्य के लिए दिया जाने वाला पुरस्कार है. इसकी शुरूआत 1991 में हुई थी.
·         यह सम्मान प्रतिवर्ष संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषाओं की में प्रकाशित उत्कृष्ट साहित्यिक कृति को दिया जाता है.
·         यह सम्मान दस साल की अवधि में प्रकाशित किसी श्रेष्ठ कृति को दिया जाता है.
·         इस सम्मान के तहत उन्हें को 15 लाख रुपए, प्रतीक चिन्ह और प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया जाता है.
·         27वां सरस्वती सम्मान (वर्ष 2017 के लिए) सितांशु यशचन्द्र को मिला था.
·         पहला सरस्वती सम्मान डा. हरिवंश राय बच्चन को उनकी चार खंडों की आत्मकथा के लिए मिला था.
·         अब तक यह सम्मान विजय तेंदुलकर,पद्मा सचदेव, गोविन्द मिश्र, सुरजीत पातर, शंख घोष, डा. इंदिरा पार्थसारथी, सुनील गंगोपाध्याय और मनोज दास जैसे लेखकों को मिल चुका है.
·         वर्ष 2018 का सरस्वती सम्मान तेलुगू के प्रख्यात कवि डा. के शिवा रेड्डी को दिया गया था

Source:

मंगलवार, 21 जनवरी 2020

लेख: लघुकथा लेखन के लिए – माइक्रोस्कोपिक दृष्टि की आवश्यकता | योगराज प्रभाकर


लघुकथा शब्द का निर्माण लघु और कथा से मिलकर हुआ है। अर्थात लघुकथा गद्य की एक ऐसी विधा है जो आकार में लघु है और उसमे कथा तत्व विद्यमान है। अर्थात लघुता ही इसकी मुख्य पहचान है। जिस प्रकार उपन्यास खुली आंखों से देखी गयी घटनाओं का, परिस्थितियों का संग्रह होता है, उसी प्रकार कहानी दूरबीनी दृष्टि से देखी गयी किसी घटना या कई घटनाओं का वर्णन होती है।

इसके विपरीत लघुकथा के लिए माइक्रोस्कोपिक दृष्टि की आवश्यकता पड़ती है। इस क्रम में किसी घटना या किसी परिस्थिति के एक विशेष और महीन से विलक्षण पल को शिल्प तथा कथ्य के लेंसों से कई गुना बड़ा कर एक उभार दिया जाता है। किसी बहुत बड़े घटनाक्रम में से किसी विशेष क्षण को चुनकर उसे हाइलाइट करने का नाम ही लघुकथा है। इसे और आसानी से समझने के लिए शादी के एल्बम का उदाहरण लेना समीचीन होगा।

शादी के एल्बम में उपन्यास की तरह ही कई अध्याय होते है, तिलक का, मेहंदी का, हल्दी का, शगुन, बरात का, फेरे-विदाई एवं रिसेप्शन आदि का। ये सभी अध्याय स्वयं में अलग-अलग कहानियों की तरह स्वतंत्र इकाइयां होते हैं। लेकिन इसी एल्बम के किसी अध्याय में कई लघुकथाएं विद्यमान हो सकती हैं। कई क्षण ऐसे हो सकते हैं जो लघुकथा की मूल भावना के अनुसार होते हैं।

उदहारण के तौर पर खाना खाते हुए किसी व्यक्ति का हास्यास्पद चेहरा, किसी धीर-गंभीर समझे जाने वाले व्यक्ति के ठुमके, किसी नन्हें बच्चे की सुन्दर पोशाक, किसी की निश्छल हंसी, शराब के नशे से मस्त किसी का चेहरा, किसी की उदास भाव-भंगिमा या विदाई के समय दूल्हा पक्ष के किसी व्यक्ति के आंसू। यही वे क्षण हैं जो लघुकथा हैं। लघुकथा उड़ती हुई तितली के परों के रंग देख-गिन लेने की कला का नाम है। स्थूल में सूक्ष्म ढूंढ लेने की कला ही लघुकथा है। भीड़ के शोर-शराबे में भी किसी नन्हें बच्चे की खनखनाती हुई हंसी को साफ साफ सुन लेना लघुकथा है। भूसे के ढेर में से सुई ढूंढ लेने की कला का नाम लघुकथा है।

लघुकथा विसंगतियों की कोख से उत्पन्न होती है। हर घटना या हर समाचार लघुकथा का रूप धारण नहीं कर सकता। किसी विशेष परिस्थिति या घटना को जब लेखक अपनी रचनाशीलता और कल्पना का पुट देकर कलमबंद करता है तब एक लघुकथा का खाका तैयार होता है। लघुकथा एक बेहद नाजुक सी विधा है। एक भी अतिरिक्त वाक्य या शब्द इसकी सुंदरता पर कुठाराघात कर सकता है। उसी तरह ही किसी एक किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण शब्द की कमी इसे विकलांग भी बना सकती है। अत: लघुकथा में केवल वही कहा जाता है, जितने की आवश्यक होती है।

दरअसल लघुकथा किसी बहुत बड़े परिदृश्य में से एक विशेष क्षण को चुरा लेने का नाम है। लघुकथा को अक्सर एक आसान विधा मान लेने की गलती कर ली जाती है, जबकि वास्तविकता बिलकुल इसके विपरीत है। लघुकथा लिखना गद्य साहित्य की किसी भी विधा में लिखने से थोड़ा मुश्किल ही होता है, क्योंकि रचनाकार के पास बहुत ज्यादा शब्द खर्च करने की स्वतंत्रता बिलकुल नहीं होती। शब्द कम होते हैं, लेकिन बात भी पूरी कहनी होती है। और सन्देश भी शीशे की तरह साफ देना होता है। इसलिए एक लघुकथाकार को बेहद सावधान और सजग रहना पड़ता है।

लघुकथाकार अपने आस-पास घटित चीजों को एक माइक्रोस्कोपिक दृष्टि से देखता है और ऐसी चीज उभार कर सामने ले आता है जिसे नंगी आंखों से देखना असंभव होता है। दुर्भाग्य से आजकल लघुकथा के नाम पर समाचार, बतकही, किस्सागोई यहां तक कि चुटकुले भी परोसे जा रहे हैं।


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लघुकथा लेखन के लिए – माइक्रोस्कोपिक दृष्टि की आवश्यकता

सोमवार, 20 जनवरी 2020

श्रेष्ठ लघुकथाओं में से एक - 2

सम्माननीय मित्रों,
सादर नमस्कार।

"श्रेष्ठ लघुकथाओं में से एक" नामक श्रृंखला के क्रम को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ लघुकथाकारा सुश्री विभा रश्मि जी की लघुकथा वर्चस्व पर चर्चा करते हैं। हालाँकि मुख्य पोस्ट पर मेरे विचार ही हैं, सभी वरिष्ठजन और मित्र कमेंट में अपने विचार को प्रकट करने हेतु पूर्ण स्वतंत्र हैं।  पहले इस रचना को पढ़ते हैं:


वर्चस्व / विभा रश्मि

पुरुष स्वर—संसार को मैं चलाने वाला…। 
गर्वीली मुस्कान!
हुम्म… लापरवाही का स्त्री स्वर उभरा। 
पुरुष­­—मंगल पर फ़तह की तैयारी, अब आगे-आगे देखती चलो ।
स्वर दर्प से लबरेज़ था।
हो…गा। मुझे क्या?  स्वर में लापरवाही।
मैं श्रेष्ठ हूँ। तुम तो सदियों से मेरे इशारों पर नाचती एक बाँदी…।
स्वर में सामंती शासकों जैसी तर्ज़ सुनाई दी।
परछाई फिर बोली—मेरे बस्स, दो हाथ एक मन, एक मुस्कान…एक कोख।
मेरी शक्ति…तुम्हारी धरा पर चौखट तक।
भारी स्वर के साथ  पुरुषत्व फैल गया, बस्स…इस पर इतना गुमान।
मेरे अविष्कारों-खोजों का तो तुम्हें गुमान ही नहीं…।
वो बोलता रहा तब तक, जब तक थक ना गया।
और स्त्री चिरमयी मुस्कान के साथ नन्ही पुरुष आकृति को स्तनपान करा जीवनदान देती रही।

-0-
इस लघुकथा पर मैं अपने अनुसार कुछ बातें कहना चाहूंगा।  कोई भी सुधिजन अपनी राय कमेंट में दे सकते हैं।


लघुकथा का उद्देश्य: मेरे अनुसार नारी के मूलभूत गुणों को बढ़ावा देना ही सही मायनों में नारी सशक्तिकरण है। स्त्री के प्रकृति प्रदत्त मूलभूत गुणों में से जनन, पालन और ममता को यहाँ दर्शाया गया है। उचित नारी शक्ति और प्रकृति ने स्त्री को पुरुष से कहीं काम नहीं बनाया, इसे भी उचित तरीके से दर्शाना, इस लघुकथा का उद्देश्य है। 

विसंगति: लैंगिक असमानता एक ऐसा दंश  है, जिसे हटा दिया जाए तो हमारे देश का काफी बेहतर विकास हो सकता है। हालाँकि यह समझते-बूझते भी कि पुरुष अपनी शारीरिक क्षमता का मूल, अपनी जीवन-शक्ति, माँ का दूध, स्वयं उत्पन्न नहीं कर सकता,  अपनी सामजिक, वैज्ञानिक, शारीरिक और मानसिक श्रेष्ठता साबित करने का असफल प्रयास कर रहा है। अपने अंत तक पहुँचते-पहुँचते यह रचना समझा देती है कि जनन की क्षमता के साथ पालन की क्षमता स्त्री में ही है। इसके अतिरिक्त अंत में 'चिरमयी मुस्कान' शब्दों का जो प्रयोग किया है वह स्त्री के अंतर्मन में स्थायी रूप से रहती हुई शांति का प्रतीक है, जो ममतामयी मुस्कराहट बनी है। 

लाघवता: 119 शब्दों की इस रचना में मुझे कहीं शब्दों को घटाने की ज़रूरत नहीं दिखाई दी। इसके अतिरिक्त यह रचना इतनी स्पष्ट है कि इसके कथानक के बारे में कुछ अधिक समझाने की ज़रूरत ही महसूस नहीं हो रही। 
  
कथानक: लघुकथा में पुरुष और स्त्री दोनों अपनी बात रख रहे हैं। पुरुष स्वर और भाव जहाँ दर्प और गर्व से लबरेज हैं, वहीँ स्त्री लापरवाह है और चिरमयी मुस्कान लिए नन्ही पुरुष आकृति को स्तनपान करा जीवनदान दे रही है। लघुकथा का यह कथानक ना सिर्फ आज के समाज का यथार्थ है वरन हमारा दायित्व क्या हो, यह भी सोचने के लिए मजबूर करता है। 

शिल्प: मेरे अनुसार उत्तम शिल्प से सजी यह लघुकथा, संवाद शैली के साथ अपनी बात कहने में पूरी तरह सक्षम है। //'संसार को मैं चलाने वाला' पुरुष स्वर// से  प्रारम्भ हो रचना के अंत में शिशु बन अपने जीवन को सुदृढ़ बनाने के लिए मुस्कुराती स्त्री की गोद में दुग्धपान कर रहा है। लघुकथा को अंत तक लाकर पाठकों को प्रभावित कर देना अच्छे शिल्प की निशानी है। 

शैली: संवादों से अपनी बात कहती यह लघुकथा, अंत में एक पंक्ति के विवरण से अपने उद्देश्य की पूर्ती कर रही है। मिश्रित शैली की इस रचना में विवरण और संवाद दोनों को चुस्त रखा गया है।

भाषा एवं संप्रेषण: रचना की भाषा आज के समाज की आम भाषा है जिससे लघुकथा आसानी से समझ में आती है। सम्प्रेषण भी कथानक को चुस्त-दुरुस्त रख रहा है। शब्दावली सटीक है, संवादों के शब्द पात्रों के अनुसार अनुकूल हैं और कम से कम शब्दों का प्रयोग कर स्पष्ट बात कही गयी है। प्रयुक्त  भाषा ने रचना की स्वाभाविकता को बनाये रखा है। यही स्वाभाविकता ही इस रचना की भाषायी गुण भी है। 


शीर्षक: 'वर्चस्व' शीर्षक इस रचना के कथानक के मर्म 'लैंगिक असमानता' को तो नहीं दर्शा रहा, लेकिन पुरुष का अपने वर्चस्व का मिथक विचार और स्त्री का अपने स्त्रीत्व गुणों पर वर्चस्व को तो कह ही रहा है। 

पात्र और चरित्र-चित्रण: लघुकथा में दो पात्र हैं - पुरुष और स्त्री। किसी पात्र का नामकरण नहीं है। पात्रों का सामान्यीकरण किया गया है। मेरा मानना है कि केवल नामकरण नहीं है, इसलिए पात्रों को अस्वीकार करना ठीक भी नहीं। यहाँ स्त्री स्वयं ही पात्र है, जो दुनिया की लगभग सभी (अपवादों को छोड़कर) स्त्रियों का प्रतिनिधित्व कर रहे है। 

कालखंड: यह लघुकथा एक ही कालखंड में सृजित की गयी है। रचना एक से अधिक कालखंडों में बँटी हुई नहीं है।

संदेश / सामाजिक महत्व: लघुकथा का मूल उद्देश्य,  उचित नारी सशक्तिकरण, अर्थात नारी के प्रकृति प्रदत्त जो गुण हैं,  पुरुष उनकी बराबरी नहीं कर सकता, यह दर्शाना है। पुरुष अपने गुणों के साथ है और स्त्री अपने गुणों के साथ। दोनों को बराबरी का सन्देश देती यह रचना अपने उद्देश्य में सफल है। 

अनकहा : इस लघुकथा का अंत //और स्त्री चिरमयी मुस्कान के साथ नन्ही पुरुष आकृति को स्तनपान करा जीवनदान देती रही।// एक ही पंक्ति में बिना अधिक कहे बहुत कुछ समझा रहा है। लघुकथा का उद्देश्य, सन्देश एवं सार्थकता भी इस पंक्ति में निहित हैं।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

पठन योग्य: