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गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

सन्दीप तोमर (लेखक एवं समीक्षक) द्वारा फेसबुक पर की गयी एक पोस्ट

संदीप तोमर एक अच्छे लेखक ही नहीं बल्कि बढ़िया समीक्षक भी हैं।  आप द्वारा समय-समय पर  लघुकथाकारों को  टिप्स भी दी जाती है। उनकी एक पोस्ट, जो उन्होंने फेसबुक पर शेयर की थी, लघुकथा विधा में अच्छे लेखन का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। पोस्ट निम्न है:-

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

लघुकथा कलश द्वितीय महाविशेषांक की डॉ. पुरुषोत्तम दुबे जी द्वारा समीक्षा

लघुकथा कलश द्वितीय महाविशेषांक :

सौ में से सौ प्राप्तांक ।

' लघुकथा कलश 'द्वितीय महाविशेषांक (जुलाई-दिसंबर 2018 )हिंदी लघुकथा संसार में लघुकथाओं की अनोखी , अछूती और बेमिसाल उपलब्धि की एक अकूत धरोहर लेकर सामने आया है। प्रस्तुत अंक की बेहतरी
लघुकथा के क्षेत्र में अद्यतन उपलब्ध उन तमाम अंकों से शर्त्तिया शर्त्त जितने वाले दावों की मानिंद है जिनका लघुकथाओं के स्थापन्न में महती योगदान गिनाया जाता रहा है।

प्रस्तुत अंक के संपादक योगराज प्रभाकर इस कारण से एक अलहदा किस्म के संपादक करार दिए जा सकते हैं गो कि एक संपादक के नाते उनकी निश्चयात्मक शक्ति न तो किसी असमंजस से बाधित है और न ही उदारता का कोई चोला पहिन कर रचना के मापदंड को दरकिनार कर समझौतापरस्त होकर मूल्यहीन रचनाओं को प्रकाशित करने में उतावलापन दिखाती है।
निष्कर्ष रूप में यह बात फ़क़त 'विशेषांक' के मय कव्हर 364 पेजों पर हाथ फेर कर कोरी हवाईतौर पर नहीं कही गई हैं, प्रत्युत इस बात को शिद्दत के साथ कहने में विशेषांक में समाहित सम्पूर्ण सामग्री से आँखें चार कर के कही गई है। मौजूदा विशेषांक पर ताबड़तोड़ अर्थ में कुछ कहना होता , तो यक़ीनन कब का कह चुका होता। क्योंकि मुझको अंक मिले काफी अरसा बीत चुका है। अंक प्राप्ति के पहले दिन से लेकर अभी-अभी यानी समझिए कल ही अंक को पढ़कर पूर्ण किया है और आज अंक पर लिखने को हुआ हूँ। इसलिए अंक को पचाकर , अंक पर अपनी कैफ़ियत उगल रहा हूँ।

वैसे तो कई-एक लघुकथाकार , जिनको यह अंक प्राप्त हुआ है या जिनकी लघुकथा इस अंक में छपी है , अंक पर उनके त्वरित विचार गाहेबगाहे पढ़ने को मिले भी हैं , लेकिन अपनी बात लिखने में इस बात को लेकर चौकस हूँ कि जो भी अंक पर कहने जा रहा हूँ, वह अंक पर पढ़ी अन्यान्यों की टिप्पणी से सर्वदा अलहदा ही होगी। प्रस्तुत अंक पर किसी के लिखे आयातीत विचारों का लबादा ओढ़कर यहाँ अपनी बात रखना कतई नहीं चाहूँगा, चाहे फिर अंक पर अपना विचार-मत संक्षिप्त ही क्यों न रखूँ ?

श्री योगराज प्रभाकर एक अच्छे ग़ज़लगो हैं और अपनी इसी प्रवृत्ति का दोहन वे प्रस्तुत अंक के संपादकीय की शुरुआत 'अर्ज़ किया है ' के अंदाज़ में मशहूर शायर जनाब जिगर मुरादाबादी के कहे ' शेर ' से करते हैं ; " ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे। एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।" वाक़ई योगराज sir आप इस अंक को सजाने,संवारने, निखारने और हमारे बीच लाने में बड़े जटिल पथों से गुजरे हैं, इसकी गवाही खुद आपके संपादकत्व में निकला यह अंक भी दे रहा है और हम भी । यह अंक नहीं था आसां तैयार करने में। कर दिया आपने हम गवाह बने हैं। अपने संपादकीय में अंक के संवर्द्धन में एक बड़ी बेलाग बात संपादक योगराज जी ने कही है , " बिना किसी भेदभाव के सबको साथ लेकर चलने की पूर्व घोषित नीति का अक्षरशः पालन करने का प्रयास इस अंक में भी किया गया है। यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि ' सबको साथ लेकर ' चलने की अवधारणा तब पराभूत हो जाती है जब अगड़े -पिछडे तर्ज़ पर रचनाकारों का वर्गीकरण कर दिया जाता है। अतः लघुकथा कलश के प्रवेशांक से ही हमने ऐसी रूढ़ियाँऔर वर्जनाएँ तोडना प्रारम्भ कर दिया था । " यह वक्तव्य सूचित करता है कि संपादक लघुकथा के प्रति आग्रही तो है मगर लघुकथा की शर्तों पर लिखी लघुकथाओं के प्रति।

प्रस्तुत अंक में पठनीय संपादकीय के बावजूद सामयिक लघुकथाकारों की लघुकथाओं पर दृष्टिसम्पन्न आलोचकों के गंभीर विचारों के अलावा लघुकथा के तमामं आयामों,उसका वुजूद,उसका सफरनामा,उसकी बनावट-बुनावट पर लघुकथा के विशिष्ट जानकारों के आलेखों का प्रकाशन , अंक को पायदार बनाने में महत्वपूर्ण है। प्रो बी एल आच्छा, डॉ उमेश मनदोषी, रवि प्रभाकर द्वारा लघुकथाओं की सटीक आलोचना के बरअक्स

डॉ अशोक भाटिया,भगीरथ परिहार,माधव नागदा,मधुदीप,डॉ मिथिलेश दीक्षित, रामेश्वर काम्बोज, डॉ रामकुमार घोटड, डॉ सतीशराज पुष्करणा,पुष्पा जमुआर, डॉ शकुन्तला किरण, डॉ शिखा कौशिक नूतन और अंत में प्रस्तुत अंक पर अंक की परिचयात्मक टिप्पणी के प्रस्तोता नाचीज़ डॉ पुरुषोत्तम दुबे के आलेखों का प्रकाशन हिंदी लघुकथा की समीचीनता के पक्ष में उपयोगी हैं।

लघुकथा पर मुकेश शर्मा द्वारा डॉ इन्दु बाली से तथा डॉ लता अग्रवाल द्वारा शमीम शर्मा से लिये गए साक्षात्कार लघुकथा की दशा,दिशा और संभावनाओं पर केंद्रित होकर लघुकथा में शैली और शिल्प पर भी प्रकाश डालता है। 

इस अंक की खास-उल-खास विशेषता यह है कि अंक में 'शृद्धाञ्जली 'शीर्षक के अधीन उन सभी स्वर्गीय नामचीन लघुकथाकारों की लघुकथाओं का प्रकाशन भी किया गया मिलता है ; जो अपने समय में लघुकथा-जगत में सृजनकर्मी होकर लघुकथा के क्षेत्र के चिरपुरोधा बने हुए हैं। 

अंक में आगे हिन्दी में लघुकथा लिखने वाले 245 लघुकथाकारों का जमावड़ा और आगे के क्रम में बांग्ला, मराठी,निमाड़ी,पंजाबी तथा उर्दू के लघुकथाकारों की लघुकथाएं अपने अलग जज़्बे के साथ पठनीय हैं । 

फिर सामने आता है लघुकथा केंद्रित पुस्तकों की समीक्षा का दौर , तदुपरांत देश के विभिन्न प्रान्तों में आयोजित हुई लघुकथा पर गतिविधियों की रिपोर्ट का प्रकाशन , जो अंक को सम्पूर्ण बनाने में अतिरेक रूप में ज़रूरी -सा दृष्टिगोचर होता है|

बधाई , योगराज प्रभाकर जी ,देश भर के विभिन्न भाषा-भाषी लघुकथाकारों की लघुकथाओं को एक जिल्द में समेटने के सन्दर्भ में। इस बात से सबसे ज़्यादा भला उन लघुकथाकारों को होगा , जो अपनी लघुकथाओं की पृष्ठभूमि में अन्यान्य प्रान्तों के कथानकों को तरज़ीह देना चाहते हैं ,ऐसे लघुकथाकार इस अंक के माध्यम से मराठी, बांग्ला, उर्दू , पंजाबी, निमाड़ी आदि की लघुकथाओं के ' लेखन-प्रचलन ' को नज़दीक से समझकर अपनी लघुकथाओं के कथानकों सृजन में भिन्न-भिन्न भाषाओं की शब्द-सम्पदा गृहीत कर सकते हैं और जिसकी वजह से वे अपनी लघुकथाओं के कथानक की प्रस्तुति मेंअपने वर्णित कथानक को भाषा और विचार की दृष्टि से भारतीय राष्ट्रीयता का रंग दे सकते हैं।

- डॉ. पुरुषोत्तम दुबे
सम्पर्क : 93295 81414
94071 86940

रचनाकार.ऑर्ग लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन वर्ष 2019

रचनाकार.ऑर्ग लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन वर्ष 2019 की घोषणा की  गयी है। 
अंतिम तिथि - 31 जनवरी 2019

इस आयोजन का उद्देश्य नव-सृजन को पुष्पित-पल्लवित करना मात्र है.

संपादक / निर्णायक मण्डल द्वारा चयनित रचनाओं के लिये कुल रु. 21 हजार के निम्न कुल 10 (दस) पुरस्कार निर्धारित किए गए हैं, जो कुछ विशेष परिस्थितियों में बदले जा सकते हैं।

· प्रथम पुरस्कार (एक): 1x5000 रुपए (पांच हजार रुपए)
· द्वितीय पुरस्कार (दो): 2x3000 रुपए (तीन हजार रूपए प्रत्येक)
· तृतीय पुरस्कार(तीन): 3x2000 रुपए  (दो हजार रूपए प्रत्येक)
. विशेष पुरस्कार (चार): 4x1000 रुपए (एक हजार रुपए प्रत्येक)
कुल 21,000 (इक्कीस हजार) रुपए नकद तथा साथ में विविधपुस्तकें पुरस्कार स्वरूप  प्रदान किए जाएंगे. पुरस्कारों में वृद्धि संभावित है, चूंकि इस आयोजन हेतु चहुँ ओर से प्रायोजन आमंत्रित हैं.

इस आयोजन में भाग लेने के लिए रचनाकार में रचनाएँ भेजने के नियम (कृपया इस लिंक को देखें व सूक्ष्मता से अध्ययन करें - http://www.rachanakar.org/2005/09/blog-post_28.html ) यथावत लागू होंगे, इसके अतिरिक्त, ये नियम भी लागू होंगे –

1- इस आयोजन के लिए भेजी जाने वाली लघुकथाएँ पूर्णतः मौलिक, सर्वथा अप्रकाशित तथा अप्रसारित होनी चाहिए।  रचना कहीं भी, प्रिंट माध्यम हो या ऑनलाइन, पूर्व प्रकाशित न हो।  ब्लॉग, फ़ेसबुक या वाट्सएप्प या अन्यत्र, कहीं भी, डिजिटल-प्रिंट माध्यम में पूर्व-प्रकाशित न हो।  बेहतर हो कि इस आयोजन के लिए आप कुछ नया, नायाब सा लिखें।  आयोजन का उद्देश्य ही है नव-सृजन को प्रोत्साहित करना।  रचनाकार.ऑर्ग में प्रकाशित होने के उपरांत रचनाओं को रचनाकार का लिंक देते हुए अन्यत्र प्रकाशित/साझा किया जा सकता है। प्रत्येक रचना के साथ नीचे दिया गया रचना की मौलिकता व अप्रकाशित अप्रसारित होने का प्रमाणपत्र साथ लगाना आवश्यक है.

2 - इस आयोजन में भाग लेने के लिए रचनाएँ भेजने के साथ ही आप रचनाकार लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 के नियमों से स्वयंमेव आबद्ध हो जाते हैं। 

3 - निर्णायकों का निर्णय अंतिम व सभी पार्टियों के लिए मान्य व बाध्यकारी होगा।

4 – रचना किसी भी फ़ॉन्ट में, टैक्स्ट, वर्ड या पेजमेकर आदि फ़ाइल के रूप में भेजी जा सकेंगी, परंतु चित्र/पीडीएफ फ़ाइल के रूप में प्राप्त, अन्य स्वरूपों में लिखी, स्क्रीनशॉट, ऑडियो, लिंक, आदि के रूप में भेजी गई रचनाओं पर विचार नहीं किया जाएगा व ऐसी प्रविष्टियाँ स्वतः अयोग्य मानी जावेंगी।

5 – रचनाकार में इस आयोजन के लिए एक लेखक के द्वारा, एकाधिक बार में, एक से अधिक, परंतु अधिकतम 5 लघुकथाएँ प्रकाशनार्थ भेजी जा सकती हैं, परंतु शब्द सीमा का ध्यान रखें, और लघुकथाएँ 500 शब्दों से अधिक नहीं हों तो बेहतर।  परंतु एक लेखक को सिर्फ एक ही पुरस्कार प्रदान किया जाएगा. किसी भी रचना को बिना कोई कारण बताए स्वीकृत-अस्वीकृत करने का सर्वाधिकार निर्णायक मंडल व संपादक मंडल के पास होगा व सभी पक्षों को मान्य व बाध्यकारी होगा. एक पुरस्कृत लघुकथा में किन तत्वों का समावेश होता है यह जानने के लिए लघुकथा.कॉम पर प्रकाशित इन आलेखों [ 1 रचनात्मकता की उष्मा से अनुस्यूत पुरस्कृत लघुकथाएँ , 2 लघुकथा की विधागत शास्त्रीयता और पुरस्कृत लघुकथाएँ, 3 लघुकथा में शिल्प की भूमिका ] का अध्ययन मनन करें व तदनुसार ही अपनी लघुकथाओं का सृजन करें व प्रतियोगिता हेतु प्रेषित करें. वर्तनी की जांच कर वर्तनी त्रुटि रहित रचनाएँ ही भेजें, अत्यधिक वर्तनी त्रुटि युक्त रचनाएँ स्वतः अयोग्य मानी जावेंगी.

6 – रचनाएँ भारतीय समयानुसार अंतिम तिथि - 31 जनवरी 2019 तक प्रेषित की जा सकती हैं. रचनाएँ प्राप्त होने के उपरांत उन्हें समय समय पर, यथासंभव शीघ्रातिशीघ्र रचनाकार.ऑर्ग पर प्रकाशित किया जाता रहेगा. अंतिम तिथि के बाद मिली प्रविष्टियाँ स्वतः अयोग्य मानी जायेंगी।

7 – परिणामों की घोषणा मार्च 2019 के प्रथम सप्ताह में की जाएगी. अपरिहार्य कारणों से परिणाम घोषणा की तिथि में बदलाव संभव है।

8 – समय समय पर इन नियमों में परिवर्तन किए जा सकते हैं जो कि सभी पक्षों के लिए मान्य व बाध्यकारी होंगे. अद्यतन नियमों, नई सूचनाओं या अपडेट के लिए रचनाकार के पृष्ठ (http://www.rachanakar.org/2018/10/2019.html) को नियमित अंतराल पर देखते रहें।

9 - इस आयोजन हेतु प्राप्त रचनाओं के प्रकाशन के एवज में किसी तरह का पारिश्रमिक देय नहीं है।  कुछ पुरस्कृत, विशिष्ट व चुनिंदा रचनाओं को अन्यत्र प्रिंट की पत्रिकाओं में भी प्रकाशित किया जा सकेगा, जिसके एवज में किसी भी तरह के पारिश्रमिक भुगतान का प्रावधान नहीं है।  ध्येय है नव सृजन व पठन-पाठन को प्रोत्साहित करना।


रचनाकार में समय समय पर अन्य तमाम लेखकों की लघुकथाएँ पूर्व की तरह प्रकाशित होती रहेंगी, मगर पुरस्कार चयन में सिर्फ वही लघुकथाएँ शामिल मानी जाएंगी जिन्हें विशेष रूप से इस आयोजन के लिए स्पष्टतः भेजा जाएगा और उसमें नीचे दिया गया घोषणा पत्र आवश्यक रूप से शामिल किया गया होगा -

प्रमाणपत्र
प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न लघुकथा जिसका शीर्षक ....... है, मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित है, तथा इसे रचनाकार.ऑर्ग ( http://rachanakar.org ) में लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 में सम्मिलित करने हेतु प्रेषित किया जा रहा है. मुझे रचनाकार.ऑर्ग की तमाम शर्तें, उनके निर्णय समेत, मान्य होंगी.

ऊपर अंकित प्रमाण पत्र को रचना भेजते समय रचना में अथवा ईमेल में शामिल करना आवश्यक है.

रविवार, 2 दिसंबर 2018

लघुकथा प्रतियोगिता - हिन्दी चेतना

हिन्दी चेतना द्वारा लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है।  इसमें अप्रकाशित और अप्रसारित (ब्लॉग/ वेब/ वाट्स एप / फेसबुक आदि पर भी प्रसारित न हों) अधिकतम दो लघुकथाएँ (एक ही फाइल में)
10 दिसम्बर 2018 तक आमंत्रित हैं।


  • रचनाएँ  इस मेल पर भेजी जाएँ- shiamtripathi@gmail.com
  • ई मेल के विषय कॉलम में ‘लघुकथा- प्रतियोगिता’ लिखा होना चाहिए। 
  • दोनों लघुकथाएँ यूनिकोड (मंगल) या कृतिदेव में होनी चाहियें। 
  • लघुकथा में सबसे ऊपर अप्रकाशित और अप्रसारित की घोषणा के साथ पूरा नाम,डाक का पिनकोड सहित पूरा पता और ई मेल लिखा होना चाहिए।  परिचय या फोटो न भेजा जाए। 
  • भाषा की अशुद्धियों वाली रचना पर विचार नहीं किया जाएगा .पीडीफ या फोटो के रूप में कोई रचना स्वीकार नहीं की जाएगी. 

प्रथम पुरस्कार( कैनेडा की मुद्रा में ) 100 डॉलर , द्वितीय 50 डॉलर और तृतीय पुरस्कार 25 डॉलर होगा.

6.पुरस्कृत रचनाओं को हिन्दी चेतना के किसी  अंक में प्रकाशित किया जाएगा, जिसका कोई मानदेय नहीं दिया जाएगा .

श्याम त्रिपाठी-संरक्षक और मुख्य सम्पादक हिन्दी चेतना
http://hindichetna.com/
एवं सम्पादक मंडल 

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-44 (विषय: परिणाम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन (openbooksonline.com) द्वारा हर माह के अंत में एक दो दिवसीय ऑनलाइन  लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। श्री योगराज प्रभाकर जी के सञ्चालन में देश में लघुकथा की यह प्रथम ऑनलाइन गोष्ठी ,पारस्परिक वार्तालाप से लघुकथा विधा को उन्नत बनाने का उत्तम प्रयास करते हुए, एक वर्कशॉप की तरह हो जाती है, जिसमें केवल विधा ही नहीं बल्कि पोस्ट की गयी लघुकथा के गुणों पर भी चर्चा की जाती है। 

43 सफल गोष्ठियों के पश्चात् पिछले माह नवम्बर 2018 की गोष्ठी को निम्न लिंक पर देखा जा सकता है:


(पूर्व की 43  ऑनलाइन गोष्ठियां भी http://openbooksonline.com पर उपलब्ध हैं)

अविराम साहित्यिकी का तीसरा लघुकथा विशेषांक : स्केन प्रति

श्री उमेश मदहोशी  ने डॉ. बलराम अग्रवाल जी के अतिथि संपादन में आये अविराम साहित्यिकी के तीसरे लघुकथा विशेषांक के सम्पूर्ण अंक को स्कैन कर प्रति फेसबुक पर शेयर की है।

इसे निम्न links पर पढ़ा जा सकता है:

पहली पोस्ट (आवरण 01 से पृष्ठ संख्या 45 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025767640796039

दूसरी पोस्ट (पृष्ठ संख्या 46 से पृष्ठ संख्या 79 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025780210794782


तीसरी पोस्ट (पृष्ठ संख्या 80 से 112 एवं आवरण 03 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025791147460355

तीसरी पोस्ट का टेक्स्ट निम्नानुसार है:-

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Umesh Mahadoshi

आद. मित्रो,
अग्रज डॉ. बलराम अग्रवाल के अतिथि संपादन में आये अविराम साहित्यिकी के तीसरे लघुकथा विशेषांक में आपमें से अनेक मित्रों ने सहभागिता की, इसके लिए आप सबका धन्यवाद। सुधी पाठक के रूप में भी आप सबने उत्साह दिखाया, हमारा मनोबल बढ़ाया, यह हमारा सौभाग्य है। लेकिन आपमें से अनेक मित्रों की शिकायत है कि उक्त अंक आपको प्राप्त नहीं हुआ है, मैं सभी शिकायतकर्ता मित्रों से निवेदन करता चला गया कि 02-03 दिसम्बर तक प्रतीक्षा कर लीजिए, न मिलने पर पुनः प्रति भेज दी जायेगी। इस निवेदन और वादा करने की प्रक्रिया में सूची लगातार लम्बी होती जा रही है। मेरे पास पुनःप्रेषण के लिए बामुश्किल 20-22 प्रतियाँ बची हैं। धर्मसंकट यह है कि कितने मित्रों से किए वादे पूरे किए जायें! दूसरी बात- दुबारा भेजने पर भी प्रति नहीं मिली तो...?
समाधान यह निकाला है कि पूरे अंक की स्केन प्रति फेसबुक पर डाल दी जाये। जिन मित्रों की लघुकथाएँ इस अंक में शामिल हैं, वे अपनी भी पढ़ सकते हैं और दूसरों की भी। सूची में संबन्धित रचनाकार की पृष्ठ संख्या देखकर उस पृष्ठ को डाउनलोड करके पड़ा जा सकता है। पोस्ट में अंक के पृष्ठों को अपलोड करने की सीमाओं को ध्यान मे रखते हुए आवरण-01 व 04 तथा पृष्ठ संख्या 01 से पृष्ठ संख्या 45 तक को पहली पोस्ट में, पृष्ठ संख्या 46 से 79 तक दूसरी पोस्ट में तथा पृष्ठ संख्या 80 से आवरण-03 तक को तीसरी पोस्ट में अपलोड किया जा रहा है। 
इस व्यवस्था के साथ बची हुई मुद्रित प्रतियाँ उन रचनाकार मित्रों के लिए सुरक्षित रखी जा रही हैं, जो फेसबुक/इण्टरनेट से नहीं जुड़े हैं। हमारी विवशता को समझते हुए आप सब इस व्यवस्था को स्वीकार करें और जिन मित्रों को मुद्रित प्रति नहीं मिल पाये, हमें क्षमा करें।
-उमेश महादोषी//


शनिवार, 1 दिसंबर 2018

झूठे मुखौटे (लघुकथा)

साथ-साथ खड़े दो लोगों ने आसपास किसी को न पाकर सालों बाद अपने मुखौटे उतारे। दोनों एक-दूसरे के 'दोस्त' थे। उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया और सुख दुःख की बातें की।

फिर एक ने पूछा, "तुम्हारे मुखौटे का क्या हाल है?"

दूसरे ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, "उसका तो मुझे नहीं पता, लेकिन तुम्हारे मुखौटे की हर रग और हर रंग को मैं बखूबी जानता हूँ।"

पहले ने चकित होते हुए कहा,"अच्छा! मैं भी खुदके मुखौटे से ज़्यादा तुम्हारे मुखौटे के हावभावों को अच्छी तरह समझता हूँ।"

दोनों हाथ मिला कर हंसने लगे।

इतने में उन्होंने देखा कि दूर से भीड़ आ रही है, दोनों ने अपने-अपने मुखौटे पहन लिये।

अब दोनों एक दूसरे के प्रबल विरोधी और शत्रु थे, अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी