यह ब्लॉग खोजें

लघुकथा संग्रह लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
लघुकथा संग्रह लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

पुस्तक समीक्षा | आस-पास से गुजरते हुए | खेमकरण 'सोमन'


Image may contain: text
लघुकथा-संकलन: आस-पास से गुजरते हुए:
संपादक: सुश्री ज्योत्स्ना 'कपिल' एवं डॉ. उपमा शर्मा
समीक्षक: खेमकरण 'सोमन'

सहजता  एवं गंभीरतापूर्वक कुछ सोचना और उसे जमीनी आकार देना, निस्संदेह बहुत कठिन कार्य है।
यही अनुभूति व्यक्ति को पुनः सहज, गम्भीर और कर्तव्यनिष्ठ बनाती है।

चूंकि विमर्श मुझे साहित्य पर करना है, और साहित्य में भी विशेषकर लघुकथा विधा पर! अतः लघुकथा के संदर्भ में विमर्श को आगे बढ़ाऊँ तो... यही सहजता, गंभीरता और पारखी दृष्टि मुझे सुकेश साहनी, मधुदीप, बलराम, बलराम अग्रवाल, डॉ. सतीश दुबे, भगीरथ, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, डॉ.अशोक भाटिया, डॉ. सतीशराज पुष्करणा, कमलेश भारतीय, डॉ. उमेश महादोषी और कमल चोपड़ा इत्यादि मुख्यधारा के अन्य लघुकथा लेखकों में दिखती हैं।

इनके अतिरिक्त लघुकथा-वृत पर सैकड़ों लघुकथा लेखिकाओं का उभार भी गौरवान्वित प्रदान करता हैं! यह सुखद प्रतीति है कि वर्तमान में एक साथ सैकड़ों लेखिकाएँ लघुकथा लिख रही हैं। और...अपनी आलोचना से बेपरवाह, बेफिक्र और निश्चिंत होकर लिख रही हैं। यद्यपि कुछ, विशेषकर नए लघुकथा लेखक-लेखिकाएँ तो अपनी आलोचना से भयभीत व चिंतित भी हो उठते हैं तथापि वे लिख रहे हैं। उन्हें यह मिथक तोड़ना ही होगा कि आलोचना उनके लिए घातक है अथवा उनकी शत्रु है।

बहरहाल लघुकथा लेखन में स्त्री दृष्टि की निरंतर सक्रियता अत्यधिक सुखद है। वे लघुकथा लेखन के साथ कुशलतापूर्वक संपादन-कार्य भी कर रही हैं।कांता राय इसी प्रकार की डायनेमिक लघुकथा लेखिका हैं और संपादक भी। लघुकथा के उन्नयन हेतु उनमें सहजता, शालीनता, गंभीरता और उन्मुक्त उड़ान आदि सब कुछ का समावेश हैं।

उपरोक्त यही सब कुछ मुझे युवा लघुकथा लेखिका ज्योत्स्ना 'कपिल' और डॉ. उपमा शर्मा के लिए लगा, जब उनके संपादन में लघुकथा-संकलन 'आसपास से गुजरते हुए' मेरे हाथों में आया।

लघुकथा-संकलन को पढ़ते हुए लगा कि जब एक सौ चौबीस लेखक एक साथ आस-पास से गुजरेंगे तो 'आसपास से गुजरते हुए' वे बहुत कुछ ऐसा अवश्य ही रेखांकित करेंगे, जिसे सामान्यजन जीवनपर्यंत भी रेखांकित नहीं कर पाते।

इस संदर्भ में लघुकथा लेखकों ने निस्संदेह बड़ी सीमा तक सफलता भी प्राप्त की हैं। लघुकथाओं से गुजरते हुए विभिन्न आस्वाद की इन लघुकथाओं ने मेरा मनोरंजन ही नहीं किया अपितु मुझ अबोध को बहुत गहरे तक बोधित भी किया। तो साहित्य का यह कार्य भी है कि वह मनोरंजन के साथ-साथ पाठकों को बोधित भी करता है।

बोधित होने के पश्चात मैंने सोचा कि समय बदलने के साथ मध्यम वर्ग के लिए अब बासी खाने की महत्ता भी बदल गई है, लेकिन यह वर्ग भलीभांति जानता है कि निम्न वर्ग के लिए बासी खाने की महत्ता अभी भी वही है। इसके उदाहरण के रूप में अंजलि गुप्ता की लघुकथा 'उत्तर' प्रस्तुत है। उत्तर जैसा सामान्य शीर्षक छोड़ दिया जाए तो अंजलि गुप्ता अपने दोनों बाल पात्रों स्वीटी, मोहन और डिश कस्टर्ड (दूध,अंडा और चीनी मिलाकर बनी मीठी पीली खीर) के माध्यम से अपनी प्रस्तुति देने में पूर्णतः सफल हुई हैं।

लघुकथा-संकलन को पढ़ते हुए मुझे अमरीकी मनोवैज्ञानिक और शिक्षक स्टैनली हॉल की भी याद आई। उन्होंने किशोरों के विषय में कहा है कि किशोरावस्था बहुत द्वंदयुक्त, तनावयुक्त और संघर्षयुक्त होता है। ऐसे समय में घर में यदि किशोर है तो उसका विशेष ध्यान रखा जाए। दीपक मशाल की लघुकथा 'सयाना होने के दौरान' इसी द्वंद को बहुत व्यावहारिक रूप प्रदान करती है।

जब दीपक मशाल की चर्चा आ गई है तो यह चर्चा भी कर दी जाए कि वे भी बहुत सहजता और गंभीरता से लिखने वाले सदाबहार लघुकथाकार हैं। मुझे इसलिए भी मशाल की लघुकथाएँ बहुत पसंद हैं।

लघुकथा-संकलन 'आसपास से गुजरते हुए' की भूमिका 'संरचना' के सम्पादक डॉ. कमल चोपड़ा ने और लिखी है और फ्लैप रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने। दोनों के संदर्भ में मुझे यही कहना है कि दोनों लघुकथाकार, समकालीन लघुकथा के परिदृश्य पर निरंतर सक्रिय हैं; और दोनों ने हिंदी लघुकथा को बेहतरीन लघुकथाएँ भी दी हैं।

ऐसे में नवोदित लघुकथा लेखकों की 124 लघुकथाओं की पोटली इनके पास ले जाने का व्यावहारिक प्रयास और साहस, संपादक द्वय ज्योत्स्ना 'कपिल' और डॉ. उपमा शर्मा को बधाई और शुभकामनाएँ देने के लिए बाध्य करते हैं। दोनों लघुकथाकारों ने भूमिका और फ्लैप पर जो भी लिखा, उनसे भी सहमत हुआ जा सकता है।

इसलिए भी वरिष्ठ लघुकथा लेखकों का हाथ और साथ गरिमापूर्ण स्थिति के निर्वहन तक नवोदितों के लिए बहुत आवश्यक है। ऐसा कहने के पीछे लघुकथा संबंधी मेरे कई आयाम हैं। तभी स्तरीय लघुकथा प्रकाशित होंगी और आलोचना पक्ष भी अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा। नए लेखक क्या-क्या लिख रहे हैं या पहल कर रहे हैं... ये सब पुराने लेखकों को भी ज्ञात-व्यात होता रहेगा।

फिलवक्त वैश्वीकरण के कारण साँस्कृतिक आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी बहुत तीव्र हुई है। बहुत सारे क्षेत्रीय तीज-त्योहारों ने ध्यान आकर्षित किया है। संभवतः इसलिए भी ये सब लघुकथा की विषयवस्तु बन रहे हैं। इस क्रम में विरेंदर 'वीर' मेहता की लघुकथा 'मोह-जाल' लोक आस्था का महापर्व छठ पर केंद्रित है। यह बहुत अच्छी लघुकथा है। काश...वे इसके शीर्षक और पात्रों के नाम पर कुछ और चिंतन-मनन कर पाते! क्योंकि लघुकथा में जब तक बिप्ति, बन्नू, पन्नू, चुन्नू और मुन्नू आदि नाम के पात्र परिदृश्य पर रहेंगे, लघुकथा जगत को कालजयी पात्र मिलने से रहे। लघुकथा लेखक यदि गंभीरता से सोचें तो वे पाएँगे कि लघुकथा की प्रवृत्ति स्वयं ही बता देती है कि उसे किस-किस प्रकार के पात्र चाहिए।

फिर दूसरा यह कि या तो लघुकथा लेखक अपना प्रस्तुतीकरण ऐसा दें कि उपरोक्त पात्रगत संबंधी विचार मुझ सहित किसी अन्य के मन में कदापि उत्पन्न न हों।

इस लघुकथा-संकलन की अधिकांश सम्भावनाएँ मुझे यदा-कदा कई लघुकथा संकलन या विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में दिखती रही हैं। इनमें विभा रश्मि, नीलिमा शर्मा, कुणाल शर्मा, मार्टिन जॉन, रवि प्रभाकर, डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, शोभा रस्तोगी,अर्चना तिवारी, डॉ. संध्या तिवारी, मुन्नूलाल और त्रिलोक सिंह ठकुरेला, दीपक मशाल, मुन्नूलाल, डॉ. लवकेश दत्त और कांता राय को तो निरंतर पढ़ता रहा हूँ।

इनके अतिरिक्त दूसरे कई नए लघुकथा लेखकों को पढ़कर भी मैं बहुत-बहुत अनुभूत हुआ कि इन्होंने भी लघुकथा की नसें लगभग पकड़ ही ली हैं।
इनमें नयना आरती कानिटकर की लघुकथा 'उमड़ते आँसू',
नरेंद्र सिंह 'आरव' की लघुकथा 'फ़र्ज',
डॉ. विनीता राहुरिकर की 'दोषी',
रश्मि तरीका की खूबसूरत प्रस्तुति 'घाव',
सुषमा गुप्ता की लघुकथा 'वर्तमान का दंश',
किरण पांचाल की लघुकथा 'हिस्सा',
कमल नारायण मेहरोत्रा की लघुकथा 'दृढ़ निश्चय',
संजीव आहूजा की लघुकथा 'झूठी खुशियाँ',
शब्द मसीहा की लघुकथा 'इंसानी बीमारी',
रेखा मोहन की लघुकथा 'कसूरवार' उल्लेखनीय हैं।

विदित हो कि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में आतंकी हमले से सेना के 45 से अधिक जवान शहीद हो गए। इस प्रकार यह क्षण तब से ही सम्पूर्ण देश के लिए बहुत दुखदायी है। शहीद सैनिकों के परिवार पर क्या बीत रही होगी? सोचता हूँ तो आंतरिक बेचैनी से भर उठता हूँ। इस संदर्भ में भारती सिंह की लघुकथा 'तीज' बहुत प्रासंगिक और विचारणीय है। लघुकथा का शिल्प भी प्रशंसनीय है।

इस संकलन में 'लघुकथा कलश' के सम्पादक योगराज प्रभाकर की लघुकथा भी है। यकीनन... वे लघुकथा की सम्पूर्ण और बहुत भारी-भरकम पत्रिका निकालकर कमाल किए जा रहे हैं। परंतु नवोदितों के बीच में उन्हें देखकर कुछ-कुछ विस्मय से भर उठा मैं, बहरहाल... उनकी लघुकथा 'पेट' गरीबी, विद्रूपता और इससे उपजी समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं। पेट और सम्मान की चिंता सबको है। अच्छा होता समग्र आधुनिक मानव समाज इस मनोवैज्ञानिक को समझ पाता।

संपादक द्वय में एक डॉ. उपमा शर्मा प्रमुखतः दंत चिकित्सक है, परंतु दंत चिकित्सक होने के उपरांत भी यह प्रीतिकर है कि वे निरंतर लिख रही हैं।
इस लघुकथा-संकलन का हिस्सा बनी उनकी लघुकथा 'हिजड़ा' मुख्यतः थर्ड जेंडर/ ट्रांसजेंडर पर आधारित नहीं है। अपितु जब व्यक्ति सक्षम होकर भी अपनी अक्षमता का परिचय दे तो बहुधा वही कहा जाता है जो उपमा शर्मा की लघुकथा का शीर्षक है।
भारतीय समाज में यह शब्द गाली के रूप में भी बहुधा उपयोग किया जाता रहा है। आत्मकथा शैली में लिखी गई डॉ. उपमा की यह लघुकथा काम-पिपासुओं द्वारा एक पागल लड़की के शिकार बनाने की पृष्ठभूमि पर आधारित है, और नायक 'मैं' उसे न बचा पाने के अपराधबोध और द्वंद्व में स्वयं को धिक्कारता पाता है। लघुकथा का शीर्षक सांकेतिक हैं।

समाज में कामगार स्त्रियों की स्थिति सदैव चिंतनीय रही है। यद्यपि इसमें कोई संशय नहीं कि मुक्त अर्थव्यवस्था के फलस्वरूप सामाजिक-साँस्कृतिक परिवर्तन की गति तीव्र हुई है और स्त्रियों की आजादी में विस्तार भी, परंतु स्त्रियाँ घर, परिवार अथवा कार्यस्थल जहाँ भी हैं, वहाँ अभी भी सुरक्षित नहीं।
ज्योत्स्ना 'कपिल' की 'कब तक' इसी विमर्श को ऊँचाई प्रदान करती बहुत कसी हुई स्तरीय लघुकथा है।
यह लघुकथा पाठकों, सहृदयों और लेखकों, लघुकथाकारों और निष्ठुर समाज से यह अपेक्षा रखती है कि स्त्री को शारीरिक/मांसल/ देह की अपेक्षा उन्हें जीवविज्ञान एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए। उन्हें इनसानी जीव माना जाए।
परंतु ऐसा न होने के कारण लघुकथा नायिका आशिमा, जो कि नर्स है, जिला अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा फ्लर्ट, डबल मीनिंग वाले मजाक से इसलिए भी चिंतित रहती है। लघुकथा में भाषाई ताजगी और संवेदना, दोनों निहित हैं।

इस प्रकार ज्योत्स्ना 'कपिल' की लघुकथा यथार्थ की कई परतों को उघाड़ती है। लघुकथा का शिल्प, पूर्णतः लघुकथा का है, लेकिन मुझे प्रतीत होता रहा कि लघुकथा का परंपरागत शीर्षक लघुकथा के साथ अन्याय कर रहा है।

इस तरह 'आसपास से गुजरते हुए' अच्छा लघुकथा- संकलन बन पड़ा है। इसमें ऐसे कई लघुकथा लेखक और लघुकथाएँ हैं जिनका उल्लेख मैं चाहकर भी नहीं कर पाया। इसका कारण यह है कि एक तो संकलन में लघुकथाएँ अत्यधिक हैं, दूसरा यह कि मुझमें वह आलोचना कौशल नहीं, अतः सबको एकसूत्र में पिरोना अभी सीख नहीं पाया हूँ।

और अंत में यह कि लघुकथा-संकलन के फ्लैप पर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' के लिखे शब्दों में कहूँ तो "ज्योत्स्ना 'कपिल' और डॉ. उपमा शर्मा ने संपादन का यह श्रमसाध्य कार्य ईमानदारी से पूरा किया है।" अयन प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित इस संकलन के लिए संपादक द्वय को पुनः बधाई।

(स्त्री विमर्शकार, आलोचक, कवयित्री, कथाकार और 'कथादेश' की परम सहयोगी अर्चना वर्मा जी अब हमारे बीच नहीं हैं। हिंदी समाज-साहित्य की यह बहुत बड़ी क्षति है। उन्हें नमन।)

संपर्क:-
द्वारा श्री बुलकी साहनी, प्रथम कुंज, अम्बिका विहार, ग्राम व पोस्ट-भूरारानी, रुद्रपुर, जिला- उधम सिंह नगर, उत्तराखंड-263153

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

लघुकथा संग्रह "सहोदरी लघुकथा 2" की समीक्षा अंकु श्री जी द्वारा

मोटे-मोटे उपन्यास और लंबी-लंबी कहानियां पढ़ने के लिये समय निकाल पाना सबके लिये संभव नहीं है। बेषक इसमें समय अधिक लगता है। कुछ ऐसे ही दौर से गुजरते हुए पाठकों के लिये लघुकथा विधा का विकास और विस्तार हुआ। वस्तुतः लघुकथा-लेखन कोई सोची-समझी व्यवस्था नहीं, एक स्वतःस्फूर्त प्रक्रिया थी। वैसे तो यह बहुत पुरानी विधा है, मगर उन्नीस सौ अस्सी के दषक में लघुकथा-लेखन में बहुत तेजी आयी। इस विधा की दर्जनों स्वतंत्र पत्रिकाओं का प्रकाषन शुरू हुआ. लघुकथा के सैकड़ों संकलन छप चुके हैं। यही नहीं, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी लघुकथा को स्थान मिलने लगा और आज भी मिल रहा है। वर्ष 2018 में एक बहुंत ही उम्दा लघुंकथा संकलन हाथ में आया है, जिसका नाम है ‘सहोदरी लघुकथा-2’।
‘भाषा सहोदरी-हिंदी’ द्वारा प्रकाषित इस पुस्तक में उन्हत्तर लघुकथाकारों की करीब तीन सौ लघुकथाएं संकलित हैं, जो विभिन्न विषयों को समेटे हुए हैं। प्रायः ऐसा देखने में आता है कि लघुकथा संकलनों में कई-कई आलेख छपे होते हैं। मगर प्रस्तुत संकलन में सिर्फ लघुकथाएं छपी हैं, जो इसकी विषिष्टता लगी, क्योंकि आलेखों से संकलन भर जाने के कारण अच्छे लघुकथाकारों को भी समेटना कठिन हो जाता है। 304 पृष्ठों के इस संकलन का गेटअप बहुत आकर्षक और बाइन्डिंग काफी मजबूत है।
उन्हत्तर लघुकथाकारों की करीब तीन सौ लघुंकथाओं को एक साथ पढ़ना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इसमें लघुकथाकारों ने अनेक विषयों पर अपनी कलम चलायी है। लघुकथा की विषेषता है कम शब्दों में किसी बात को रोचकपूर्वक कह देना। यह सभी जानते हैं कि अपने ही हाथ की पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होतीं। संकलन की तीन सौ लघुकथाओं में भिन्नता तो रहेंगी ही। इनमें से कुछ लघुकथाएं जुबान पर चढ़ कर बोलती-सी लगती हैं।
‘भाषा सहोदरी-हिंदी’ का छठा अंतर्राष्ट्रीय महाधिवेषन के यादगार अवसर पर 24 और 25 अक्तूबर, 2018 को ‘हंसराज काॅलेज’, दिल्ली में पधारे सैकड़ों साहित्यकार और साहित्य-प्रेमी इस संकलन के लोकार्पण समारोह के साक्षी बने।
प्रस्तुत संकलन की अनेक लघुकथाएं बहुत अच्छी हैं, जबकि कुछ बेशक नव-लेखन के प्रमाण हैं। इस संकलन को पढ़ने से एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात स्पष्ट होती है कि पुराने लेखकों की भी सभी रचनाएं अच्छी नहीं होतीं। एक-दो लघुकथाएं ऐसी भी हैं, जिनके लेखक को विष्वास नहीं है कि पाठक उसे समझ पायेंगे और इसलिये उन्होंने लघुकथा के अंत में ‘नोट’ लिख दिया है। एक लेखिका द्वारा अपनी लघुकथाओं के अंत में ‘सीख’ दी गयी है, जैसे वह पुरानी बालकथा लिख रही हों। कुछ लेखकों द्वारा अपनी लघुकथा के शीर्षक इन्भर्टेड काॅमा में दिये गये हैं और कुछ ने शीर्षक के बाद - - (डैश-डैश) लगा दिया है। एक लेखक ने अपनी हर लघुकथा के अंत में - - (डैश-डैश) लगा दिया है, जिससे लगता है कि लेखक और कुछ कहना चाहता है और कह नहीं पाया है, जिसे पाठक स्वयं संमझ ले। आमूद-पठन में थोड़ी कमी झलकती है। ऐसा लगता है कि इन बातों की ओर संपादकीय दृष्टि नहीं पड़ पायी है। बेषक संकलन की लघुकथाएं हर साहित्यकार का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। संकलन की कुछ अच्छी लघुकथाओं और उसके लेखक का वर्णन आवष्यक लगता है, जो निम्नवत है,
‘अपना-अपना हिन्दुस्तान’ और ‘गांव की धूल’ (अंकुश्री), ‘आहट’ (अनु पाण्डेय), शेरनी (अपर्णा गुप्ता), ‘स्त्रीत्व’ और ‘बदलते दृष्टिकोण’ (डा0 उपमा शर्मा), ‘श्रेय’ (ऋचा वर्मा), ‘खामोषी बोलती है’ (कामिनी गोलवलकर), ‘आग’ (गुंजन खण्डेलवाल), ‘बरसात’ और ‘षिकायत का स्पर्ष’ (पंकज जोषी), ‘छोटू’ (पम्पी सडाना), ‘फैसला’ (पूनम आनंद), ‘जुर्माना’ (मनमोहन भाटिया), ‘जिन्दगी’ और ‘एक संघर्ष नया’ (मनीषा जोबन देसाई), ‘निर्णय’, ‘इंसानियत’ और ‘पावन बंधन’ (मणिबेन द्विवेदी), ‘चिट्ठी-पत्तरी’, ‘पत्थर पर दूब’ और ‘होड़’ (मिनी मिश्रा), ‘टंगटुट्टा’ और ‘हेल्मेट’ (मृणाल आषुतोष), ‘अहसास’, ‘पहचान’, ‘बहराना साहिब‘, ‘आवष्यकता’ और ‘मोतियाबिन्द’ (लीला कृपलानी), ‘श्रवण कुमार’ (डा0 लीला मोरे), ‘भरोसा’ (वन्दना पुणतांबेकर), ‘दोहरा मापदंड’ (संजय कुमार ‘संज’), ‘आश्रम’ और ‘बस’ (सौरभ वाचस्पति ‘रेणु’), ‘बदलती नजरें’, ‘अच्छा हुआ’ और ‘स्पष्टीकरण’ (संतोष सुपेकर), ‘रिमोट वाली गुड़िया’, ‘डिलीट एकाउन्ट्स’ और ‘अनोखी चमक’ (सुरेष बाबू मिश्रा), ‘जख्म’ (सतीेष खनगवाल), ‘निपुणता’, ‘योग्यता’, ‘तीर्थाटन’ और ‘अस्थि के फूल’ (संजय पठाडे ‘षेष’), ‘वृद्धा आश्रम’ और ‘विदुषी’ (सुधा मोदी), ‘भलाई का जमाना’, ‘चोरी’ और ‘एहसास’ (सदानंद कविष्वर), ‘परीक्षा की चिंता’ और ‘हिम्मत’ (सीमा भाटिया), ‘पापा’ और ‘उत्साहवर्द्धन’ (संजीव आहूजा), ‘मुस्कान’ और ‘अनदेखा’ (सागरिका राय), ‘जाल’ और ‘नुस्खा’ (सविता इन्द्र गुप्ता)। यह एक संक्षिप्त सूची है, जिसे अंतिम नहीं माना जा सकता।
लेखक को आसपास की घटनाओं, अध्ययन और विचारों से बहुत सारे कथ्य मिल जाते हैं। उसके आधार पर कथानक का ताना-बाना बुन कर लेखक द्वारा कथा या लघुकथा लिखी जाती है। कथानक और षिल्प के अनुसार कथा अच्छी या साधारण बन जाती है। कुछ रचनाएं साधारण से भी निम्न बन कर रह जाती हैं। इस संकलन में भी कुछ लघुकथाओं के कथ्य अच्छा होते हुए भी कमजोर कथानक और षिल्प के कारण वे अच्छे ढ़ंग से पल्लवित-पुष्पित नहीं हो पायी हैं। शब्दों की मितव्ययिता लघुकथा की महत्वपूर्ण शर्त है। संकलन से गुजरते हुए कहीं-कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि मन में आने वाले हर शब्द को कागज पर उतारने के लिये कलम को स्वतंत्र छोड़ देने से लघुकथा खराब हो जाती है।
कुछ लघुकथाओं में भूमिका देकर उसे समझाने का प्रयास किया गया है। कुछ लघुकथाओं के अंत में उपसंहार के तौर पर लेखक द्वारा अपना मत अंकित कर दिया गया है, जो उपदेषात्मक लग रहा है। कहीं-कहीं चलती हुई लघुकथा के बीच में अचानक लेखक ‘‘मैं’’ के रूप में प्रकट हो गया है। कुछ लघुकथाएं घटना प्रधान होती हैं, जिनमें कथात्मकता के अभाव के कारण वे साहित्य नहीं रह कर समाचार लगने लगती हैं। लघुकथाओं के ऐसे उदाहरण भी इस संकलन में हैं। इस संकलन की मुख्य विषेषता इसकी विविधता है।
कथाकार जब सीधी नज़र से देखता है तो उसे गहरी और विस्तृत बातें दिखाई देती हैं, जिससे कहानी का सृजन होता है। मगर उसी बात को तिरछी नज़र से देखने पर उसमें गहराई तो रहती है लेकिन विस्तार का अभाव हो जाता है, जिससे लघुकथा का सृजन होता है। किसी कृति के वास्तविक समीक्षक पाठक होते हैं। इसलिये संकलन मंगा कर पढ़ने पर ही इसमें प्रकाषित तीन सौ लघुकथाओं का एक साथ मजा मिल पायेगा और आज लिखी जा रही लघुकथाओं की भी सही जानकारी मिल सकेगी।
- अंकु श्री

प्रेस काॅलोनी, सिदरौल
नामकुम,रांची-834010
मो0 8809972549

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

लघुकथा संग्रह - तैरती है पत्तियाँ - डॉ॰ बलराम अग्रवाल


लघुकथा साहित्य फेसबुक समूह में डॉ॰ बलराम अग्रवाल की पोस्ट से:

तैरती हैं पत्तियां: त्वरित पाठकीय टिप्पणी
वरिष्ठ साहित्यकार ओमप्रकाश कश्यप की कलम से

बलराम अग्रवाल के ‘तैरती हैं पत्तियां’ शीर्षक से आए लघुकथा संग्रह का पीला मुखपृष्ठ देखकर लगा कि कवर बनाने में चूक हुई है. पत्तियों का जिक्र है तो कवर को हरियाला होना चाहिए था. लेकिन पहली कहानी पढ़ते ही संशय दूर हो गया. जिन पत्तियों को मनस् में रखकर शीर्षक का गठन किया गया है, वे हरी न होकर अपना जीवन पूरा कर पीली हो, पेड़ से स्वतः छिटक गई पत्तियां हैं. छोटी-सी भूमिका में लेखक ने स्वयं कवित्वमय भाषा में इसका उल्लेख किया है. लेकिन भूमिका से गुजरकर पाठक जैसे ही पहली लघुकथा तक पहुंचता तो उसका रहा-सहा संशय भी गायब हो जाता है. संग्रह की पहली ही लघुकथा ‘समंदर: एक प्रेमकथा’ अद्भुत है. इस लघुकथा में भरपूर जीवन जी चुकी एक दादी है. साथ में है उसकी पोती. दोनों के बीच संवाद है. भरपूर जीवन अनेक लोगों के लिए पहेलीनुमा हो सकता है, लेकिन इस लघुकथा को पढ़ेंगे तो इस पहेली का अर्थ भी समझ में आएगा और पीली हो चुकी पत्तियों के प्लावन का रहस्य भी. यह वह अवस्था है जब आदमी उम्रदराज होकर भी बूढ़ा नहीं होता, पत्तियां पीली होने, डाल से छूट जाने के बाद भी मिट्टी में नहीं मिलतीं, उनमें उल्लास बना रहता है. इस कारण वे जलप्रवाह में प्लावन करती नजर आती हैं. प्लेटो ने इसे जीवन की दार्शनिक अवस्था कहा है. अध्यात्मवादी इसके दूसरे अर्थ भी निकाल सकते हैं, लेकिन मैं बस इतना कहूंगा ‘समंदर: एक प्रेमकथा’ अनुभवसिद्ध कथा है.

अभी संग्रह को पूरा नहीं पढ़ा है. शुरुआत से मात्र पंद्रह-सोलह लघुकथाएं ही पढ़ी हैं. इतनी कहानियों में ‘अपने-अपने आग्रह’, ‘अजंता में एक दिन’, ‘उजालों का मालिक’, ‘इमरान’, ‘अपने-अपने मुहाने’, ‘अपूर्णता का त्रास’ अविस्मरणीय लघुकथाएं हैं. इतनी प्रभावी कि इनका असर कम न हो, इसलिए बाकी को छोड़ देना पड़ा. ‘अपने-अपने मुहाने’, ‘अपूर्णता का त्रास’, ‘उजालों का मालिक’ में कहानीपन के साथ-साथ प्रतीकात्मक भी है, वही इन्हें बेजोड़ बनाती है. प्रतीकात्मकता के बल पर ही किसी एक पात्र का सच पूरे समाज का सच नजर आने लगा है. प्रतीकात्मकता की जरूरत व्यंग्य में भी पड़ती है. मगर इन दिनों वह प्रतीकात्मकता से कटा है. इसलिए वह अवसान की ओर अग्रसर भी है.

Image may contain: Balram Agarwal, outdoor
बलराम अग्रवाल वरिष्ठ लघुकथाकार हैं. लघुकथा को समर्पित. यूं तो बच्चों के नाटक और बड़ों के लिए कहानियां भी लिखी हैं, लेकिन इन दिनों वे लघुकथा-एक्टीविस्ट की तरह काम कर रहे हैं. अपनी विधा के प्रति ऐसा समर्पण विरलों में ही देखा जाता है....जैसा कि ऊपर बताया गया है, पुस्तक की अभी कुछ ही लघुकथाएं पढ़ी हैं, जैसे-जैसे पुस्तक आगे पढ़ी जाएगी, यह टिप्पणी भी विस्तार लेती जाएगी.

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

लघुकथा संग्रह "श्रंखला" की समीक्षा - ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

मारक क्षमता से युक्त लघुकथाओं का  गुल्दस्ता

पुस्तक- श्रंखला (लघुकथा संग्रह)
कथाकार- तेजवीर सिंह 'तेज'

समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
पृष्ठसंख्या-176
मूल्य -रुपये 300/-
प्रकाशक- देवशीला पब्लिकेशन 
पटियाला (पंजाब) 98769 30229

समीक्षा 

मारक क्षमता लघुकथा की पहचान है । यह जितनी छोटी हो कर अपना तीक्ष्ण भाव छोड़ती है उतनी उम्दा होती है। ततैया के डंकसी चुभने वाली लघुकथाएं स्मृति में गहरे उतर जाती है । ऐसी लघु कथाएं की कालजई होती है।

लघुकथा की लघुता इसकी दूसरी विशेषता है। यह कम समय में पढ़ी जाती है। मगर लिखने में चिंतन-मनन और अधिक समय लेती है । भागम-भाग भरी जिंदगी में सभी के पास समय की कमी है इसलिए हर कोई कहानी-उपन्यास को पढ़ना छोड़ कर लघुकथा की ओर आकर्षित हो रहा है। इसी वजह से आधुनिक समय में इस का बोलबाला हैं ।

इसी से आकर्षित होकर के कई नए-पुराने कथाकारों ने लघुकथा को अपने लेखन में सहज रुप से अपनाया है। इन्हीं नए कथाकारों में से तेजवीर सिंह 'तेज' एक नए कथाकार है जो इसकी मारक क्षमता के कारण इस ओर आकर्षित हुए । इन्होंने लघुकथा-लेखन को जुनून की तरह अपने जीवन में अपनाया है । इसी एकमात्र विधा में अपना लेखन करने लगे हैं। इसी साधना के फल स्वरुप इन का प्रथम लघुकथा संग्रह शृंखला आपके सम्मुख प्रस्तुत है।

शृंखला बिटिया की स्मृति को समर्पित इस संग्रह की अधिकांश कथाएं जीवन में घटित-घटना, उसमें घुली पीड़ा, संवेदना, विसंगतियों और विद्रूपताओं को अपने लेखन का विषय बनाया है । इनकी अधिकांश लघुकथाएं संवाद शैली में लिखी गई है जो बहुत ही सरल सहज और मारक क्षमता युक्त हैं।

संग्रहित श्रंखला लघुकथा की अधिकांश लघुकथाएं की भाषा सरल और सहज है । आम बोलचाल की भाषा में अभिव्यक्त लघुकथाएं अंत में मारक बन पड़ी है ।वाक्य छोटे हैं । भाषा-प्रवाहमय है । अंत में उद्देश्य और समाहित होता चला गया है।

संवाद शैली में लिखी गई लघुकथाएं बहुत ही शानदार बनी है । इन में कथाओं का सहज प्रवेश हुआ है । संवाद से लघुकथाओं में की मारक क्षमता पैदा हुई है ।

इस संग्रह में 140 लघुकथाएं संग्रहित की गई है । इनमें से मन की बात , सबसे बड़ा दुख, ईद का तोहफा, एमबीए बहू, दर्द की गठरी, दरारे, गुदगुदी, लालकिला, अंगारे, गॉडफादर, इंसानी फितरत, बोझ, बस्ता, भयंकर भूल, नासूर, वापसी, हिंदी के अखबार, पलायन, खुशियों की चाबी, वेलेंटाइन डे, आदि लघुकथाएं बहुत उम्दा बनी है।

सबसे बड़ा दुख -लघुकथा की नायिका को अपना वैधव्य से अपने ससुर का पुत्र-शोक कहीं बड़ा दृष्टिगोचर होता है। इस अन्तर्द्वन्द्व को वह गहरे तक महसूस करती है । वही दर्द की गठरी -एक छोटी व मारक क्षमता युक्त लघुकथा है। यह एक वृद्धा की वेदना को बखूबी उजागर करती है।

मन की बात- की नायिका पलायनवादी वृति को छोड़कर त्याग की और अग्रसर होती है, नायिका की कथा है । यह इसे मार्मिक ढंग से व्यक्त करने में सक्षम है ।अंगारे- लघुकथा धार्मिक उन्माद का विरोध को मार्मिक ढंग से उजागर करने में सफल रही है।

खुशियों की चाबी- में टूटते परिवार को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया गया है । वहीं भयंकर भूल- में नायिका के हृदय की पीड़ा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है ।
कुल मिलाकर अधिकांश मार्मिक, हृदयग्राही और संवेदना से युक्त बढ़िया बन पड़ी है। कुछ लघुकथाएं कहानी के अधिक समीप प्रतीत होती है । मगर उनमें कथातत्व विद्यमान है।
संग्रह साफ-सुथरे ढंग से अच्छे कागज और साजसज्जा से युक्त प्रकाशित हुआ है। 176 पृष्ठ का मूल्य ₹ 300 है। जो वाजिब हैं ।
लघुकथा के क्षेत्र में इस संग्रह का दिल खोल कर स्वागत किया जाएगा ऐसी आशा की जा सकती है।

-
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' ,
पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़
जिला -नीमच (मध्यप्रदेश)
पिनकोड- 458226
9424079675

बुधवार, 2 जनवरी 2019

लघुकथा समाचार: मुकेश तिवारी जी के लघुकथा संग्रह "प्रथम पुष्प' का लोकार्पण



मुकेश तिवारी जी के लघुकथा संग्रह "प्रथम पुष्प' का लोकार्पण 

Indore News - five litterateur of the city honoredसाहित्यकार डॉ एस.एन. तिवारी की स्मृति में श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में इंदौर के पांच साहित्यकारों का सम्मान किया गया। इसमें पदमा राजेंद्र, सुषमा दुबे, देवेंद्रसिंह सिसौदिया, डॉ. दीपा व्यास और विजयसिंह चौहान शामिल हैं। दैनिक भास्कर के पत्रकार विकास सिंह राठौर का भी सम्मान किया गया। लेखक मुकेश तिवारी के लघुकथा संग्रह "प्रथम पुष्प' का लोकार्पण भी किया गया। अध्यक्षता साहित्यकार डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल ने की। मुख्य अतिथि प्रो. कमल दीक्षित और विशेष अतिथि डॉ. वंदना अग्निहोत्री थे। डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल ने कहा कि वर्तमान युग तकनीकी का है और इस युग में लोगों को लंबे-लंबे ग्रंथ पढ़ने का समय नहीं है, ऐसे में लघुकथाएं गागर में सागर का काम करती हैं। एक अच्छी लघुकथा पाठक के दिमाग पर प्रहार करती हैं और कहानी पढ़ने के बाद घंटों सोचने पर मजबूर कर देती है। संचालन नियोति दुबे ने किया। 

कार्यक्रम में पदमा राजेंद्र, सुषमा दुबे, देवेंद्रसिंह सिसौदिया, डॉ. दीपा व्यास और विजयसिंह चौहान को सम्मानित किया गया। 

News Source:

https://www.bhaskar.com/mp/indore/news/five-litterateur-of-the-city-honored-033117-3554250.html

रविवार, 16 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

देवी नागरानी के दो जुड़ाव संग्रहों का विमोचन
“गंगा बहती रही” (लघुकथा संग्रह)

दिनांक १५ दिसम्बर २०१८, हैदराबाद में कवियित्री विनीता शर्मा जी के निवास स्थान पर देवी नागरानी के दो जुड़ाव संग्रहों का विमोचन डॉक्टर देवेंद्र शर्मा जी के हाथों सम्पन्न हुआ. डॉक्टर शर्मा ख़ुद एक दस्तावेज़ी साहित्यकार हैं, जिनका एक अंग्रेज़ी संग्रह (philosophy & theology-an intellectual odyssey) मुझे हासिल हुई है. इस संग्रह में अनेक धर्मों के बारे में विशेष ज्ञान पूरक तत्वों का ख़ुलासा हुआ है.

डॉक्टर देवेंद्र शर्मा जी के हाथों “माँ ने कहा था” “(काव्य) एवं “गंगा बहती रही” (लघुकथा संग्रह) का विमोचन हुआ. मौक़े पर हाज़िर साहित्यकार रहे श्रीमती विनीता शर्मा, जो ख़ुद एक बेहतरीन रचनाकार है, देवी नागरानी, मीरा बालानी, मोना हैदराबादी, सुनिता लूल्ला, ज्योति कनेटकर और पद्मज आयंगर . पद्मजा जी एक चर्चित साहित्यकार व Amraavati Poetic Prism 2018 की संपादिका है , व मोना जी एक जानी मानी ग़ज़लकारा. सुनिता जी भी ग़ज़ल की परिधि में आगे बढ़ रही हैं.

News Source:
https://ajmernama.com/national/306115/

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

परमिन्दर शाह के लघुकथा संग्रह "अर्श" और गिरीश चावला के लघुकथा संग्रह "शमा" का लोकार्पण



आठ दिसम्बर 2018 को नई दिल्ली के हिंदी भवन में के.बी.एस. प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लेखक श्री परमिन्दर शाह के लघुकथा संग्रह "अर्श" और लेखक श्री गिरीश चावला के लघुकथा संग्रह "शमा" के लोकार्पण, परिचर्चा, सम्मान समारोह एवं ग़ज़ल गायन का आयोजन अनेक सुधि साहित्यकारों, पत्रकारों और कलाकर्मियों की उपस्थिति में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री धीरेन्द शुक्ल  ने की, मुख्य अतिथि डॉ कमल किशोर गोयनका रहे और विशिष्ट अतिथि श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी,  श्री सुभाष चंदर , श्री आर.सी. वर्मा 'साहिल', श्री अमित टंडन , डॉक्टर आशीष कंधवे  श्री राजेश बब्बर  रहे।

कार्यक्रम का शुभारम्भ गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ व सरस्वती वंदना कुमारी नीतिका सिसोदिया ने मधुर वाणी में प्रस्तुत किया। इसके पश्चात केबीएस प्रकाशन परिवार की ओर से सभी अतिथियों का स्वागत किया गया, साथ ही इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ग्लोबल बुक ऑफ रिकॉर्ड से सम्मानित ट्रू मीडिया का के.बी.एस. प्रकाशन द्वारा सम्मान किया गया । इसके पश्चात श्री परमिन्दर शाह  एवं श्री गिरीश चावला  के लघुकथा–संग्रह "अर्श" व "शमा" का लोकार्पण, समारोह के अतिथियों के करकमलों से संपन्न हुआ। लोकार्पण के उपरांत के.बी.एस. प्रकाशन ने दोनों लेखकों का सम्मान किया।

समारोह के दौरान पुस्तक पर चर्चा में भाग लेते हुए सभी अतिथियों ने उपर्युक्त संग्रहों की खूबियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये दोनों संग्रह बहुत ही महत्वपूर्ण रूप से सामाजिक जीवन का लेखा जोखा प्रस्तुत करते है। उन्होंने लघुकथा के महत्त्व को बताते हुए संग्रहों के हर पक्ष को उजागर किया। साथ ही लेखकों को साहित्य जगत में पदार्पण के लिए बधाई दी और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया। लेखक श्री परमिन्दर शाह  एवं श्री गिरीश चावला  ने अपनी पुस्तक के कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर अपने अनुभव सबसे साझा किये और अपनी रचना यात्रा के सूत्र खोले।

के.बी.एस. प्रकाशन के प्रकाशक श्री संजय शाफ़ी  ने लेखक को बधाई दी और प्रकाशन की ओर से निःस्वार्थ भाव से सामाजिक कार्य कर रहे देश के अलग-अलग राज्य से आये विभूतियों को सम्मानित किया गया।

सभी अतिथियों के आशीर्वाद के पश्चात समारोह अध्यक्ष श्री धीरेन्द शुक्ल  ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आयोजन की सराहना करते हुए सभी सम्मानित साहित्यकारों और कलाकर्मियों को अपनी शुभकामनायें दीं और लेखकों का साहित्य जगत में स्वागत किया साथ ही लेखकों को निरंतर साहित्य साधना में रत रहते हुए देश और समाज के हित में रचना कर्म करते रहने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि इन संग्रहों की सभी लघुकथायें जीवंत हैं। उन्होंने सभी साहित्य प्रेमी, श्रोताओं को भी आयोजन का हिस्सा बनकर उसे सफल बनाने के लिए बधाई दी।  श्रीमती भावना शर्मा  ने कार्यक्रम का सुगठित एवं बेहतरीन संचालन कर समा बांधा । लेखक श्री परमिन्दर शाह  की ग़ज़लों का गायन मशहूर ग़ज़लकार जनाब रमेश चंद निश्चल ने किया।

Source:
https://www.youtube.com/watch?v=XF3J1vYe2WI

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

मासिक काव्य गोष्ठी में मधु गोयल के लघुकथा संग्रह थरथराती बूंद का विमोचन 
Dainik Jagaran |  10 Dec 2018 

कैथल/10 Dec 2018: साहित्य सभा की मासिक काव्य गोष्ठी साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी की अध्यक्षता में आरकेएसडी कॉलेज में हुई। संचालन रिसाल जांगड़ा ने किया। गोष्ठी शुरू करने से पहले साहित्यकार डॉ. ते¨जद्र के शोध प्रबंध ¨हदी गजल एवं अन्य काव्य विधाएं, प्रो. अमृत लाल मदान के उपन्यास एक और त्रासदी व मधु गोयल के लघुकथा संग्रह थरथराती बूंद का विमोचन किया गया। इसके साथ-साथ महेंद्र पाल सारस्वत की भजनोपदेश माला, सदाबहार श्रीमद भागवत गीता व हरीश झंडई के काव्य संग्रह ढलते सूरज की किरणें का भी विमोचन किया गया। इसके बाद गोष्ठी शुरू करते हुए र¨वद्र रवि ने कहा कि फैंक दो दरिया के बीचों बीच मुझको, मैं अपने बाजू आजमाना चाहता हूं। सतपाल शर्मा शास्त्री ने कहा कि आप्पे जे ना सुधरैगा तू, जीवन व्यर्थ गुजारैगा तू। रामफल गौड़ ने कहा कि के औकात बता माणस की, पत्थर न भी होसै घिसणा। इसके अलावा कमलेश शर्मा, डॉ. प्रद्युम्न भल्ला, रिसाल जांगड़ा, शमशेर ¨सह कैंदल, सतबीर जागलान, उषा गर्ग व चंद्रकांता ने विचार प्रस्तुत किए।

News Source:
https://www.jagran.com/haryana/kaithal-release-of-literary-works-done-at-monthly-poetry-symposium-18732724.html

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

लघुकथा सँग्रह - '.....एक लोहार की ' की समीक्षा कांति शुक्ला 'उर्मि ' द्वारा

लघुकथा सँग्रह - '.....एक लोहार की '
लेखक - घनश्याम मैथिली 'अमृत'
मूल्य - 300 /-रुपये
पृष्ठ - 102
प्रकाशक - अपना प्रकाशन, भोपाल 462023 (मध्यप्रदेश )
समीक्षक - कांति शुक्ला 'उर्मि ' 
एम.आई.जी .35 बी -सेक्टर अयोध्या नगर भोपाल 462041 मोबाइल 99930 40726

संक्षिप्त परिदृश्य में सार्थक संदेश देती लघुकथाएं 

साहित्य में मानव जीवन के समस्त पहलुओं की विवृत्ति होती है और यही संबंध
सूत्र परिस्थितियों को जोड़ कर रखता है | साहित्य किसी भी विधा के रूप में हो हमारे जीवन की आलोचना करता है हमारा जीवन स्वाभाविक एवं स्वतंत्र होकर इसी के माध्यम से संस्कार ग्रहण करता हुआ अपनी मूकता को भाषा प्राप्त करता है भावनिष्ठ वस्तुनिष्ठ व्यक्तिक भावनाओं को नैतिक रूप देकर अंतर के अनुभूत सत्य को सूक्ष्म पर्यवेक्षण द्वारा प्रकट कर स्थायित्व प्रदान करता है।

साहित्य में गद्य की अन्य विधाओं यथा कहानी उपन्यास , लेख ,आदि के अतिरिक्त लघुकथा लेखन भी एक सशक्त विधा के रूप में भली-भांति स्थापित हो चुकी है और आज लघुकथाओं की लोकप्रियता शिखर पर है समय अभाव के चलते कम समय में सार्थक संदेश देती लघुकथाओं के असंख्य पाठकों की गहन रुचि के कारण लघुकथा की विधा साहित्य में आज अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज किए हैं लघुकथा से आशय मात्र इसके लघु कलेवर से नहीं वरन लघु में विराट के यथार्थ और कल्पना बोध को आत्मसात कर क्षण विशेष की सशक्त अभिव्यक्ति का प्रभावोत्पादक प्रखर प्रस्तुतीकरण है,जिसमें शिल्पगत वैविध्य है,प्रयोगधर्मी स्वरूप है, कथ्य और प्रसंगों की उत्कटता का सहज और प्रभावी संप्रेषण है विषय वस्तु का विस्तार ना करते हुए संक्षिप्त परिदृश्य में सार्थक संदेश व्याख्यायित करने का कठिन दायित्व है ।

आज आवश्यकता और अस्तित्व से जुड़ी इन लोकप्रिय लघुकथाओं के मनीषी कथाकार अपनी संपूर्ण प्रतिभा से आलोक विकिरण करते हुए सक्रिय हैं।

इन विद्वान लघुकथाकारों ने अमिधा की शक्ति को पहचाना है । व्यंजना और लक्षणा से नवीन आख्यान निर्मित किये हैं और लिखी जा रही लघुकथाएं जनसम्बद्धता ,प्रतिबद्धता, और पक्षधरता की कसौटी पर खरी उतर रही हैं ।अपने प्रभावी गतिशील कथ्य और सौंदर्य बोध द्वारा विशेष सराही जा रही हैं जिनके लेखकों की अपनी- अपनी शैलीगत विशेषताएं हैं इसी कड़ी में बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कवि समीक्षक, कथाकार श्री घनश्याम मैथिल 'अमृत 'का लघु कथा संग्रह'.... एक लोहार की 'का प्रकाशन हर्ष का विषय है उक्त कथा संग्रह में विविध वर्णी लघुकथाएं संग्रहीत हैं यह लघुकथाएं समाज की बिडंवनाओं का दर्पण है ।कथ्य ,भाव बोध ,विचार और दृष्टि मनुष्य और उसकी व्यवस्था की सार्वभौमिक सच्चाई को प्रकट करती उसकी हर योजना भाव संवेदना आचरण ,व्यवहार ,चरित्र भ्रष्टाचार, संवेदनहीनता और सामाजिक यथार्थ की पृष्ठभूमि में मानव प्रकृति आर्थिक उपलब्धि अभाव विचलन और विस्मय के बहुमुखी यथार्थ को अनेक स्तर पर व्यक्त कर रही हैं ।इन लघुकथाओं के आइडियाज आसपास के परिवेश अनुसार लिए गए हैं जिनमें सामाजिक संवेदना चेतना और जागरूकता है लघुकथा कागजी घोड़े सरकारी विभागों की तथाकथित सच्चाई बयान करती है तो जिंदगी की शुरुआत पुलिस की हठधर्मी और संवेदनहीनता को व्यक्त करती है ।अपना और पराया दर्द में मनुष्य की कथनी और करनी का अंतर स्पष्टतया परिलक्षित होता है तो विकलांग कौन अदम्य साहस और जिजीविषा की सशक्त कथा है ।संग्रह की अधिकांश कथाएं भ्रष्टाचार स्वार्थपरता ,सामाजिक पारिवारिक विसंगतियों और विकृतियों को केंद्र में लेकर रची गई हैं ।क्योंकि कथाकार देश और समाज के प्रति प्रतिबद्ध है पक्षधर है सहज और अवसरानुकूल कथा के पात्रों द्वारा कहे संवाद शीघ्र विस्मृत नहीं होते ,अर्थपूर्ण कथाओं में अनुभव और यथार्थ की अभिव्यक्ति के विशेष क्षण पाठकों को बांधने की क्षमता रखते हैं कथाओं के निर्दोष ब्योरे सरलता और सहजता से सामने आते हैं और सोचने को बाध्य करते हैं ,यह बहुआयामी विमर्श के परिदृश्य अपने मन्तव्य को रोचक और प्रभावी ढंग से स्पष्ट कर देते हैं । सँग्रह की सभी कथाएं प्रवाहमान और संप्रेषनीय हैं ,जिनकी अंतर्वस्तु और संरचना में कुछ अनछुए प्रसंग है कथाओं में व्यंजित कलापूर्ण लेखन कौशल में यथार्थ और समय की अनुगूंज है जो लघुकथा के कथ्य, शिल्पगत सौंदर्य -बोध को जीवंत करने में समर्थ हैं ।

समग्रतः भाव, विचार ,सार्थक वस्तुस्थिति और तत्क्षण बोधगम्यता से प्रभासित ये लघुकथाएं पाठकों को निश्चित रूप से प्रभावित करेंगी और सुधी पाठकों को मानवीय मूल्यवत्ता की प्रवाहिनी बनकर, इस स्वार्थ संकुल और स्व केंद्रित हो रहे संसार में मानवीय विस्तार करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। इसी गहन आश्वस्ति के साथ मैँ अपने हृदय की समस्त मंगलकामनाएं अर्पित करते हुए श्री घनश्याम मैथिल "अमृत" के सुखी स्वस्थ और यशस्वी जीवन की कामना करती हूं । 
इति शुभम


सोमवार, 26 नवंबर 2018

लघुकथा समाचार

झुंझुनूं में हुए साहित्य सागर में देशभर से तीन सौ रचनाकार जुटे, 21 पुस्तकों का विमोचन
Dainik Bhaskar | Nov 26, 2018 | झुंझुनूं 

सेठ-साहूकारों की धरा पर रविवार को साहित्य का एक अनूठा कार्यक्रम हुआ। ‘साहित्य सागर’ के नाम से आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर से करीब तीन सौ नवोदित और स्थापित रचनाकारों ने भाग लिया। अपनी रचनाएं एक-दूसरे से साझा की। कार्यक्रम की खास बात यह रही कि इसमें कविता, ग़ज़ल, कहानी, लघुकथा और संस्मरणों के 15 साझा काव्य संग्रहों का विमोचन हुआ तो कहानी, उपन्यास, कविता की छह एकल पुस्तकों का भी लोकार्पण किया गया। लगभग 22 रचनाकारों ने अपनी रचनाएं सुना कर कार्यक्रम को ऊंचाइयां दीं।

साहित्य सागर में काव्य संग्रह मेरे ख्वाबों का आसमां, उम्मीद की किरण, सूफियाना इश्क मेरा, मेरी इबादत, अधूरी ख्वाहिश, उपन्यास सफर मेरी रूह का तथा कहानी संग्रह मैं अनबूझ पहेली के साथ ही साझा रूप से प्रकाशित लघुकथाओं की शब्दों का आसमां, कविताओं की स्त्री एक सोच, नारी एक आवाज, शब्द-शब्द कस्तूरी, धूप के गीत, रोशनी की कतारें, मुझे छूना है आसमां, ख्वाब के शज़र, शब्दों की सरगम, ग़ज़ल संग्रह कागज की कश्ती, महफिले ग़ज़ल व संस्मरण से संबंधित अनुभव जिंदगी का आदि पुस्तकों का विमोचन अतिथियों ने किया।

News Source:
https://www.bhaskar.com/rajasthan/jhunjhunu/news/three-hundred-composers-from-all-over-the-country-21-books-released-in-literature-in-jhunjhunun-sagar-035514-3277138.html

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

लघुकथा संग्रह 'चयन' - लेखिका डॉ. मजु लता तिवारी

आज इंटरनेट पर सर्फ करते हुए डॉ. मजु लता तिवारी जी का संस्कृती निलयम, लखनऊ द्वारा प्रकाशित लघुकथा संग्रह 'चयन' (संस्करण 2001) प्राप्त हुआ।
संग्रह में कुछ स्थानों पर लघुकथा की बजाय लघु कहानियां, लघु कथा जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। 'कलियुग का कृष्ण', 'पशु','चयन', 'दाग' सहित कई रचनाएँ पठनीय हैं। लेखकीय वक्तव्य में उस समय का लघुकथा परिदृश्य भी बखूबी दर्शाया गया है। वेबसाइट पर कॉपीराइट जानकारी तो प्राप्त नहीं हुई, लेकिन संग्रह की पीडीऍफ़ फाइल निम्न लिंक पर उपलब्ध है:

(उपरोक्त केवल जानकारी हेतु,कॉपीराइट की जिम्मेदारी इस ब्लॉग की नहीं)

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

लघुकथा समाचार

दिल की गहराइयों को छू जाती है सिमर सदोष की लघु कथाएं: जेबी गोयल
साहित्यकार सिमर सदोष की लघुकथा संग्रह एक मुट्ठी आसमां का पंजाबी अनुवाद ‘आटे दा दीवा’ का विमोचन
Amar Ujala | Jalandhar  | 06 Oct 2018


साहित्यकार सिमर सदोष की लघुकथाएं दिल को छू जाती हैं। उनकी हर कथा में सामाजिक कुरीति पर जबरदस्त प्रहार किया गया हैं, जो उनकी कल्पना शक्ति की ताकत बयान करता है। यह कहना था लेखक और जालंधर के पूर्व कमिश्नर जंग बहादुर गोयल का। गोयल वरिष्ठ साहित्यकार सिमर सदोष के लघु कथा संग्रह ‘एक मुट्ठी आसमां’ के पंजाबी अनुवाद ‘आटे दा दीवा’ का लोकार्पण कर रहे थे।

साहित्यकार सिमर सदोष के लघु कथा संग्रह एक मुट्ठी आसमां को युवा पत्रकार और लेखक दीपक शर्मा चनारथल ने पंजाबी में अनुवाद किया हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाब कला परिषद के महासचिव डॉ. लखविंदर सिंह सोहल ने की। पुस्तक रिलीज के दौरान लेखक दीपक चनारथल ने कहा कि सिमर सदोष की लघु कथाएं अपने आप में संपूर्ण है। पत्रकारिता के क्षेत्र में सिमर ने जितना अहम योगदान दिया है, उतना ही योगदान साहित्य में भी है।

मुख्य मेहमान जंग बहादुर गोयल व डॉ. लखविंदर जोहल ने कहा कि लघु कहानियां साहित्य की सबसे सुंदर विधा है। उन्होंने हिंदी कहानियों को पंजाब के लोगों तक पंजाबी में पहुंचाने का आभार प्रकट किया। साहित्यकार सिमर सदोष ने दीपक चनारथल का आभार प्रकट करते हुए कहा कि उनके लघु कथा संग्रह को पंजाबी में अनुवाद कर उन्होंने पंजाब के लोगों को तोहफा दिया हैं। कार्यक्रम का संचालन भूपेंद्र मालिक ने किया और सभा के प्रधान बलकार सिद्धू ने मेहमानों का आभार प्रकट किया। इस मौके पर मोहन सपरा, अजय शर्मा, प्रेम विज, मनजीत कौर मीत, राकेश शर्मा पाल अजनबी, डॉ. अवतार सिंह, संजीव शारदा, अशोक सिंह मौजूद थे।

News Source:
https://www.amarujala.com/punjab/jalandhar/121538843995-jalandhar-news