हाशिये पर जी रहे लोगों का सजीव चित्रण करती लघुकथाएं
'घरों को ढोते लोग' विख्यात लेखक एवं संपादक सुरेश सौरभ के संपादन में संग्रहित 71 लघुकथाओं का अप्रितम संकलन है। ये लघुकथाएं हर वर्ग तथा प्रत्येक क्षेत्र में शोषित वंचित लोगों की बात को,उनके दर्द को एक शिद्दत से बयां करती हैं। सुरेश सौरभ कुशल संपादक के साथ-साथ एक श्रेष्ठ लेखक भी हैं, यह गुण उनके हर संग्रह में दिखाई देता है। संग्रह की अंतिम दो लघुकथाएं 'कैमरे' और 'हींगवटी' सुरेश सौरभ द्वारा लिखी गई हैं, जो बालश्रम पर करारा प्रहार करतीं हुई दिखाई पड़ती हैं। चुनाव हो या शादी बारात इन जगहों पर काम करने वाले बच्चों के साथ अनहोनी घटनाएं घट जाए, तो इसकी परवाह कोई नहीं करता।
योगराज प्रभाकर की लघुकथा 'अपनी-अपनी भूख' में जहां गरीबों के बच्चों को भरपेट भोजन नहीं मिलता वहीं अमीरों के बच्चों की भूख खोलने के लिए इलाज किया जाता हैं। मनोरमा पंत की लघुकथा 'बदलते रिश्ते' करुणा भरी, गहन वात्सल्य से ओतप्रोत कथा है। प्रत्येक लघुकथा का नायक चाहे, वह रिक्शा वाला हो या ड्राइवर हो या अन्य, सभी अपने कंधों पर घर की जिम्मेदारियों का बोझ ढोए हुए दौड़ लगा रहे हैं। मार्टिन जॉन की शीर्षक लघुकथा 'घरों को ढोते लोग' में कोई पेट की आग बुझाने के लिए घर ढो रहा है तो कोई सुख सुविधा बढ़ाने के लिए जुटा है। समाज के कटु सत्य को परोसती लघुकथा कबाड़ में रश्मि चौधरी की नायिका गृहणी, घर का कबाड़ बिना पैसे लिए कबाड़ी को दे देती है जबकि कबाडी पैसे देने के लिए लगातार बोलता रहता है।
भीषण गर्मी के बाद बरसात का मौसम जहां साधन संपन्न लोगों के लिए खुशनुमा पल होते हैं, वहीं यशोधरा भटनागर की लघुकथा 'कम्मो' में, कम्मो जब अपने घर पहुंचती है तो टपकती छत से भीग चुकी गीली लकड़ियों से पेट की आग बुझाना मुश्किल हो जाता है। इसी प्रकार डॉ.मिथिलेश दीक्षित की लघुकथा 'सलोनी' में कामवाली बाई का मार्मिक चित्रण है। अरविंद असर, अविनाश अग्निहोत्री, रश्मि लहर, सेवा सदन प्रसाद, गुलजार हुसैन, हर भगवान चावला, सुकेश साहनी बलराम अग्रवाल, डॉ.चंद्रेश कुमार छतलानी, मीरा जैन, विजयानंद जैसे सभी प्रतिष्ठित लघुकथाकारों की कथाएं संग्रह को बहुत ही मार्मिक और हार्दिक बनातीं हैं, पुस्तक की सभी लघुकथाएं सटीक और अर्थपूर्ण हैं। सार्थक एवं स्तरीय लघुकथाओं के लिए सभी रचनाकार बधाई के पात्र हैं। भूमिका प्रसिद्ध कथाकार सुधा जुगरान ने लिखी है, जिससे संग्रह और भी पठनीय बन पड़ा है। संपादक सुरेश सौरभ लघुकथा जगत में विशिष्ट स्थान बनाएं इन्हीं शुभकामनाओं के साथ हार्दिक बधाई।
पुस्तक-घरों को ढोते लोग (साझा लघुकथा संग्रह)
संपादक-सुरेश सौरभ
प्रकाशन वर्ष-2024
मूल्य- 245₹
प्रकाशन- समृद्धि पब्लिकेशन नई दिल्ली।
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समीक्षक-
सत्य प्रकाश शिक्षक
लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश
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