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रविवार, 12 सितंबर 2021
शनिवार, 30 सितंबर 2017
परिधान (खलील जिब्रान) - लघुकथा
अनुवादक: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
एक दिन खूबसूरती और बदसूरती एक समुद्र के किनारे पर मिलीं और उन्होंने एक दूसरे से कहा, "आओ, हम समुद्र में नहाते हैं|"
तब उन्होंने अपनी-अपनी पोशाक उतारी और पानी में तैरने लगी| और कुछ समय पश्चात् बदसूरती तट पर पुनः आई और खूबसूरती के परिधान पहन कर दूर चली गयी|
और खूबसूरती भी समुद्र से बाहर आई, उसे अपनी पोशाक नहीं मिली| उसे अपनी नग्नता पर बहुत शर्म आ रही थी, अतः उसने बदसूरती की पोशाक पहन ली और अपने रास्ते पर चल दी|
और उस दिन से आदमी और औरतें एक को दूसरा जानने की भूल करते हैं|
फिर भी अभी तक कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिन्होंने खूबसूरती का चेहरा देखा है और वे उसे उसके परिधानों के बावजूद भी जानते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो बदसूरती का चेहरा जानते हैं और उसके परिधान उनकी आँखों के आगे नहीं छाते|
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