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मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

लघुकथा समाचार: नए लेखकों के लिए सरल काव्यांजलि द्वारा लघुकथा कार्यशाला आयोजित

 लघुकथा पिरामिड की तरह शिखर बनाती है - प्रो. शर्मा

आजकल लिखा बहुत जा रहा है, पर वह कितना सार्थक और कालजयी रहेगा, यह एक बड़ी चुनौती है। उपन्यास लेखन में कई शिखर बन सकते हैं, लेकिन लघुकथा पिरामिड की तरह होती है।लघुकथा में तलवार का काम सुई से लेना होता है। ध्यान रहे कि आपके लेखन से   विशेष प्रकार के भाव और सन्देश पैदा हों। अपने  अनुभव को पकड़ें, मौलिकता का ध्यान रखते हुए द्वंदात्मकता उत्पन्न करें।यह आवश्यक नही कि द्वंद रचना के मध्य में आए, पर द्वंद को उभारें, तनाव को उभारें और उसका पर्यवसान इस बिंदु पर करें कि पाठक चकित रह जाए। एक लघुकथाकार से अपेक्षा होती है कि वह सभी प्रतिमानों पर खरा उतरे। ये उदगार ख्यात समीक्षक, सम्पादक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने व्यक्त किये। वे सुदामा नगर में संस्था सरल काव्यांजलि  द्वारा शहर के नए लघुकथाकारों के लिए आयोजित महत्त्वपूर्ण लघुकथा कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। 

इस अवसर पर डॉक्टर शर्मा ने नए रचनाकारों को डॉ. कमल चोपडा, सतीशराज पुष्करणा, डॉ.बलराम अग्रवाल द्वारा हिन्दी मे अनूदित तेलुगु रचना, चित्रा मुद्गल, महेश दर्पण, सन्तोष सुपेकर आदि की लघुकथाओं के उदाहरण देकर लघुकथा के प्रतिमानों को स्पष्ट किया। 

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सन्तोष सुपेकर ने कहा कि लघुकथा महज संक्षिप्तता का संयोजन नही है, यह अथक परिश्रम से तैयार एक शिल्प और  उसमें  समाहित भावों की सशक्त अभिव्यक्ति है। उन्होंने नए लघुकथाकारों से लघुकथा में भाषा, शिल्प, बिम्ब , प्रतीक, संवाद के स्तर पर अत्यधिक श्रम करने का आह्वान किया। उनके अनुसार प्रभावी शीर्षक देकर और  विषयों में विविधता लाकर लघुकथा के भविष्य को स्वर्णिम बनाया जा सकता है।

यह जानकारी देते हुए संस्था के प्रचार सचिव श्री विजयसिंह गेहलोत 'साकित उज्जैनी' ने बताया कि इस अवसर पर नए रचनाकारों सर्वश्री हेमन्त भोपाले ने 'बेटे से पहचान', रूबी कुरैशी ने 'ढाल', प्रतिभा शर्मा ने 'सौदा' , इंदर सिंह चौधरी ने 'माफी', रामचन्द्र धर्मदासानी ने 'क्रिसमस गिफ्ट', और के.एन शर्मा 'अकेला' ने 'सहजता और असहजता' शीर्षक लघुकथाओं का पाठ किया। 

अपने अध्यक्षीय उदबोधन में वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ प्रभाकर शर्मा ने रचनाकारों से खूब पढ़ने और फिर कुछ रचने का आव्हान किया। नए कलमकारों ने लघुकथा सम्बन्धी अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी वरिष्ठजनों से करवाया।  संस्था द्वारा नवोदितों को देश के  महत्वपूर्ण लघुकथा संकलन भी भेंट किये गए।

 इस अवसर पर  सभी उपस्थित जनों ने उज्जैन- झालावाड़ रेल लाईन को लेकर संस्था द्वारा चलाए जा रहे  'रेल मंत्री को पत्र लिखो' अभियान के तहत  रेल मंत्री को पोस्ट कार्ड लिखे। प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत संस्था सचिव डॉक्टर संजय नागर , सौरभ मेहता , मोहन तोमर ने किया और अंत में आभार संस्था महासचिव श्री  राजेन्द्र देवधरे 'दर्पण' ने माना। 

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Source:

https://www.bkknews.page/2021/12/blog-post_85.html

शनिवार, 27 नवंबर 2021

लघुकथा समाचार | साहित्यकारों ने शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में लघुकथा की अनदेखी करने को लेकर उठाए सवाल | magbook.in

पटना में कुछ साहित्यकारों ने लघुकथा की उपेक्षा को लेकर एक अहम सवाला उठाया है. उनका कहना है कि " समकालीन साहित्य की सर्वाधिक पठनीय और संप्रेषणीय विधा  लघुकथा है, तो फिर वह आज बच्चों और युवाओं के लिए  शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से अपेक्षित संख्या में उनके पाठ्यक्रमों में क्यों नहीं शामिल की जा रही है ? इसी के साथ यह सवाल भी प्रासंगिक है कि" शिक्षक संस्थानों से लघुकथा बेदखल क्यों?"

 भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में  फेसबुक के  "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका "  पेज पर ऑनलाइन आयोजित " हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन " का विषय प्रवर्तन करते हुए सम्मेलन के संयोजक  एवं संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये !

 लघुकथा की शैक्षणिक प्रासंगिकता" विषय पर  विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि -" हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य है कि किसी भी विधा की किसी भी रचना के चयन में हमेशा साहित्य की राजनीति चलती रही है। ऐसी स्थिति में  निष्पक्षता पूर्वक हमें निर्णय लेना  होगा और लघुकथा की  शैक्षणिक पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी l हां, इतना जरूर है कि पाठ्यक्रमों में लघुकथाओं का हस्तक्षेप हो गया है l यह बात  संतोषजनक और सुखद तो है ही l  अब  जरूरत   है कि  व्यापक स्तर पर देश-विदेश के लघुकथाकारों द्वारा लिखी गई या लिखी  जा रही श्रेष्ठ, सामाजिक, उद्देश्यपूर्ण,  नैतिकपूर्ण और बच्चों तथा युवाओं के सर्वांगीण विकास वाली  लघुकथाओं को  अधिक से अधिक उनके पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए और  ऐसी लघुकथाएं और लघुकथाकार ही  शोध का विषय बनें ! "

लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध लेखिका पूनम कतरियार  ने कहा कि  सबसे अच्छी बात यह है कि  संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर जी जिस मुद्दे को लेकर गोष्ठी आयोजित करते रहे हैं,  वह साहित्यिक विधाओं को व्यापक स्वरूप देने में पूर्ण सक्षम  साबित होती रही है l लघुकथा प्रेमियों के मन में बहुधा यह बात घुमड़ती रही है कि "लघुकथा की क्या है शैक्षणिक प्रासंगिकता ? " लघुकथा अपने दम पर अपना एक मुकाम बना चुकी है। लघुकथा के समीक्षक एवं पुरोधा इसके मापदंड निर्धारित  कर इसे इसके अनुरूप कलेवर दे रहे हैं l  लघुकथा का उच्च स्तर के पाठ्यक्रमों में नहीं होना निराश जरूर  करता है।जब उपन्यास, कहानी, संस्मरण, नाटक,यात्रा-वृतान्त, और रिपोर्ताज़  स्कूल और कॉलेजों में पढ़ाए जाते हैं,  तब फिर  सर्वाधिक चर्चित विधा लघुकथा क्यों नहीं ? मेरे विचार से लघुकथा को भी एक स्वतंत्र विधा के रूप में पाठ्यपुस्तकों में शामिल करना उचित होगा। यह समय की माँग और साहित्य के प्रति हमारी जवाबदेही है कि हम लघुकथा का  संवर्द्धन,संरक्षण  एवं संचयन कर इसे पाठ्यपुस्तकों से लेकर आम-पाठक तक वह गौरवपूर्ण जगह दिलायें जिसकी यह हकदार है।"

लघुकथा सम्मेलन के मुख्य अतिथि विजयानंद  विजय ने कहा कि - " इंटरनेट, सोशल मीडिया समूहों और नयी तकनीकी सुविधाओं ने उस विरासत को खंगालना और उनमें से अनमोल मोतियों को तलाशना हमारे लिए और सुगम कर दिया है।जरूरी है कि इस खजाने से बेहतरीन से बेहतरीन लघुकथाएँ चुनकर पाठ्यक्रमों में शामिल की जाएँ, ताकि नयी पीढ़ी भी इनसे वाकिफ हो सके और इन लघुकथाओं में निहित संदेशों और संकेतों को समझ सके और एक सुदृढ़ समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके।"

विशिष्ट अतिथि डॉ शरद  नारायण खरे ( म.पप्र. ) ने कहा कि-" लघुकथाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना इसलिए उचित होगा,क्योंकि लघुकथाएँ जीवन के आसपास होने के कारण हमें जीने की कला सिखाती हैं,तथा हमारे व्यक्तितत्व का विकास करती हैं।लघुकथाओं की विषयवस्तु चूंकि हमारे ही आसपास से ली गई होती है,इसलिए लघुकथाएँ हमारे चिंतन को सकारात्मक दिशा देती हैं।वास्तव में,लघुकथाओं को पाठ्यक्रमों में शामिल करके उनका नैतिक शिक्षा के रूप में प्रयोग किया जाना पूर्णत: विवेकपूर्ण होगा।लघुकथाएँ लघु होते हुए भी बहुत कुछ कह जाती हैं,इसलिए उनको विद्यार्थियों के शिक्षण से जोड़ना पूर्णत: समीचीन होगा।

विषय से संदर्भित चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपूर्व  कुमार (वैशाली ) ने कहा कि-लघुकथा साहित्य की वह विधा है, जो जिस सुगमता से विद्यालयों के पाठ्यक्रम में स्थान पा लेने की क्षमता रखती है, उसी सुगमता से विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी। लघुकथा साहित्य की बगिया का गुलाब है। सीबीएसई के कक्षा नवम्  के हिंदी भाषा के  नवीनतम पाठ्यक्रम में लघुकथा लेखन को भी सम्मिलित कर लिया गया है। हिंदी अकादमी, दिल्ली एवं साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा लघुकथा को एक साहित्यिक विधा के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद मैंगलोर विश्वविद्यालय ने लघुकथा की एक पुस्तक ही पाठ्यक्रम में लगा दी है। ऐसा पहली बार हुआ है।कुछ विश्वविद्यालयों में लघुकथा संकलन भी पढ़ाये जा रहे हैं। निकट भविष्य में अन्य विश्वविद्यालय भी इसका अनुसरण करेंगे ही। जरूरत है निष्पक्षतापूर्वक अधिक से अधिक  श्रेष्ठ लघुकथाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने की l "

नरेंद्र कौर छाबड़ा ने अपने वक्तव्य में कहा "बदलते समय के दौर को देखते हुए लघु कथाओं को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। इससे बच्चों में लघु कथा के प्रति रुचि जागेगी तथा एक महत्वपूर्ण बात को किस तरह कम शब्दों में कहा जा सकता है यह तरीका भी बच्चे सीखेंगे।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए राज प्रिया रानी ने कहा कि -" पाठ्यक्रम में लघुकथा कि प्रासंगिकता आज एक ज्वलंत मुद्दा बनता जा रहा है । पाठ्यक्रमों में लघुकथाओं को शामिल किया जाना चुनौतीपूर्ण एवं एक महत्वपूर्ण कदम है जो निरंतर छात्रों के साथ साथ सर्व शैक्षणिक विकास के लिए एक  सार्थक और सकारात्मक प्रयास होगा  !"

इंदौर के डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ल ने अपनी एक लघुकथा का हवाला देते हुए कहा कि सिद्धेश्वर जी, मैं आपकी पीड़ा समझता हूं। आजकल  पाठ्यक्रमों में रचनाओं का चयन करने के लिए भी जोड़-तोड़ चल रही है l पाठ्यक्रम की इस नयी किताब में तुलसी ,सूर, मीरा ,माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंह दिनकर जैसे महान साहित्यकार अपने साथ जोड़ तोड़ से हो रहे हैन। अंशु कुमार, मोनिका सिंह, लवलीन आदि जैसे रचनाकारों की रचनाओं को देखकर, पाठक  और छात्रवृंद आंसू ही तो बहाएँगे ?"

डॉ. पुष्पा जमुआर ने कहा कि - " वस्तुतः लघुकथा फिर से पाठ्यक्रम में शामिल होने हेतु संघर्षरत होने लगी है।आप लोगों का यह सार्थक प्रयास है और इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है  कि वर्तमान शैक्षणिक संस्थान में पाठ्यपुस्तक में शामिल हो ।"  इसके अतिरिक्त  दुर्गेश मोहन,  संतोष मालवीय, निवेदिता, सरकार, सुनील कुमार उपाध्याय, रज्जू सिन्हा, कनक, बिहारी,  राम नारायण यादव आर्य ने भी अपने संक्षिप्त विचार व्यक्त किए l

चर्चा परिचर्चा के बीच एक  दर्जन से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी ताजातरीन लघुकथाओं का पाठ किया l डॉ. शरद नारायण खरे (म.प्र. ) ने " सरहद पर उजाला "/ डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल (इंदौर) ने  " रोती हुई किताब "/जवाहरलाल सिंह  (जमशेदपुर) ने  "श्राद्ध कर्म "/डॉ. पुष्पा जमुआर ने " आत्महत्या" / ऋचा वर्मा ने "हिसाब "/मीना कुमारी परिहार ने   /पूनम कतरियार ने (इलाज )/ मधुरेश नारायण ने "काम और आराम "/ राजा रानी ने " गुनाह "/पुष्प रंजन ने -" पापी "/संतोष सुपेकर(उज्जैन ) ने "कैसे कहूं ?"/  शराफत अली खान( बरेली ) ने-" विद्रोह "/ रशीद गौरी (राज ) ने-" समय "/ गजानन पांडे(हैदराबाद) ने "विधि का विधान"/ विजयानन्द विजय ने " ग़ली ", सिद्धेश्वर ने "मान सम्मान"  के अतिरिक्त नरेंद्र कौर छाबड़ा ( महाराष्ट्र) / डॉ. मीना कुमारी परिहार आदि ने भी लघुकथाओं का पाठ किया,  जिसे देश भर के 300 से अधिक लोगों ने स्वागत किया l  लघुकथा के विकास की दिशा में यह एक अभिनव और  ऐतिहासिक प्रयास रहा,  जो लघुकथा को शिक्षण संस्थान  से जोड़ने में  सकारात्मक भूमिका का निर्वाह कर सकेगा !

 प्रस्तुति :ऋचा वर्मा  और सिद्धेश्वर

Source:

साहित्यकारों ने शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में लघुकथा की अनदेखी करने को लेकर उठाए सवाल

URL:

https://www.magbook.in/ArticleView.aspx?ArtID=191514&ART_TITLE=%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%8F-%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2

शनिवार, 4 सितंबर 2021

लघुकथा समाचार: अदारा 'मिनी' की भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री जगदीश राय कुलरियन की फेसबुक पोस्ट से

अदारा 'मिनी' की भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा

ट्राइमेस्टर के संपादक ' मिनी ' परिवार की संक्षिप्त बैठक रविवार 29.8.2021 को बरनाला में की गई, जिसमें डॉ श्याम सुंदर दीप्ति, श्रीमती उषा जी दीपाती, हरभजन सिंह खेमकर्णी, जगदीश राय कुलरियन, भूपेंद्र सिंह मान, एडवोकेट गुरसेवक सिंह रोड़की, बीर इंदर सिंह बनभोरी और कुलविंदर कौशल शामिल हुए । इस बैठक के दौरान निम्न मुद्दों पर चर्चा हुई और आपसी कार्यों का वितरण किया गया ।

1. मिनी कहानी प्रतियोगिता :- कुलविंदर कौशल को अब हरभजन सिंह खेमकर्णी जी के संयोजक के तहत मिनी स्टोरी फोरम पंजाब, अमृतसर द्वारा आयोजित 'मिनी स्टोरी मैच' की जिम्मेदारी दी गई है । बाकी साथी पहले की तरह सहयोग करेंगे । प्रतियोगिता रचनाओं को 30 सितम्बर 2021 तक भेजा जा सकता है । पूर्ण विवरण और नियम जल्द ही साझा किए जाएंगे ।

2. मिनी पत्रिका :- मिनी पत्रिका ने अब रचना के साथ लेखक की फोटो पर फोन नंबर छपवाने का निर्णय लिया है ।

3. विशेष अंक: तिमाही ' मिनी ' का जनवरी-मार्च 2022 अंक ' शिक्षण विश्व संकट पर आधारित होगा । इस संकट के विभिन्न फैलाव और विभिन्न पहलुओं को कवर करने वाली मिनी कहानियां 2021 अक्टूबर 31 तक भेजी जा सकती हैं ।

4. वेबसाइट :- अदारा त्रिमासिक 'मिनी' की वेबसाइट बनाने का निर्णय लिया गया है । इसकी जिम्मेदारी मिनी परिवार के सहायक महेन्द्रपाल मिंडा जी को सौंपी गई है । अक्टूबर 2021 के अंतरराज्यीय / वार्षिक आयोजन में पाठकों को सौंपने का प्रयास किया जाएगा । इस वेबसाइट पर मिनी-स्टोरी से जुड़े सभी मिनी के बिंदुओं, अंतरराज्यीय और त्रिमासिक घटनाओं और शोध पत्रों को पढ़ सकते हैं ।

5. How to Write Mini Story :- इस विषय के तहत स्कूली छात्रों को जोड़ने और गुणवत्तापूर्ण मिनी कहानियों को उन तक पहुंचाने के लिए स्कूल और कॉलेजों को सुलभ किया जाएगा । यह पूरा अवलोकन है और स्कूलों / कॉलेजों में इस विधि कार्यशालाओं को समेकित करने की जिम्मेदारी मिनी परिवार के सहायक बहुपक्षीय लेखक भूपेंद्र सिंह मान जी को सौंपी गई है ।

6. मीडिया समन्वय :- समाचार पत्रों / पत्रिकाओं के संपादकों के साथ समन्वय करने की जिम्मेदारी और इस विधि के प्रचार के लिए मीडिया के समन्वय के बारे में गुणवत्तापूर्ण मिनी कहानियों के बारे में मीडिया को समन्वय बनाने की जिम्मेदारी, पासार और मिनी कहानीकार बीर इंदर बनभौरी जी को सौंपी गई है ।

7. शैक्षणिक संस्थानों के साथ समन्वय: एडवोकेट गुरसेवक सिंह रोड़की को विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों के माध्यम से मिनी कहानी पद्धतियों के प्रचार और निष्कासन की जिम्मेदारी दी गई है ।

8. पुरस्कार / सम्मान :- अदारा तिमाही मिनी और मिनी कहानी लेखक मंच पंजाब ने अंतरराज्यीय / वार्षिक कार्यक्रम में चार सम्मान देने का फैसला किया है । इन सम्मानों में सर्वश्रेष्ठ मिनी स्टोरी बुक ऑफ द ईयर अवार्ड, मिनी स्टोरी पद्धति से जुड़े आलोचकों, मिनी स्टोरी नए लेखक का सम्मान और पंजाबी मिनी स्टोरी का प्रमोशन, हिंदी लघु कथाकार को सम्मानित किया जाएगा । सम्मान के नाम पर जल्द ही चुनावी पद्धति साझा करेंगे । यह सम्मान मिनी परिवार से जुड़े विभिन्न लेखकों द्वारा अपने असली रिश्तेदारों की याद में दिया जाएगा ।

9. इंटरस्टेट इवेंट: पिंगलवाड़ा अक्टूबर 2021 में अमृतसर में होगा । रजिस्ट्रेशन फीस होगी । कार्यक्रम में भाग लेने वाले लेखकों के लिए 300 घटना का पूरा विवरण जल्द ही साझा किया जाएगा ।

10. आप सभी के सहयोग से ये सभी कार्यक्रम संपन्न होंगे । जिन साथियों को विभिन्न कार्यों की जिम्मेदारी दी गई है उनके सहयोग के लिए हम अन्य सदस्यों को भी जोड़ेंगे ।
आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी ।
पूरा मिनी परिवार

Source
https://www.facebook.com/100000874623660/posts/4610380029001106/

शनिवार, 28 अगस्त 2021

लघुकथा समाचार | प्रमुख विधा के रूप में उभरी है लघुकथा: डॉ. कच्छावा

22 अगस्त 2021 

प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट फाउंडेशन की ओर से आज 'आखर पोथी' का आयोजन किया गया। इसमे डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा की राजस्थानी भाषा में लिखी गई पुस्तक 'अटकळÓ का विमोचन किया गया। पुस्तक के लेखक डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि 'अटकळ'राजस्थानी में मेरा दूसरा लघुकथा संग्रह है। इससे पहले 2006 में लघुकथा ठूंठ प्रकाशित हुआ था। लघुकथा इस दौर में प्रमुख विधा के रूप में सामने आई है। यह पाठक के ऊपर विशेष प्रभाव डालती है। मैं जब अपने आसपास घटित घटनाओं, विसंगतियों और संवेदनहीनता को अनुभव करता हूं तो लघुकथा लिखने की प्रक्रिया शुरू होती है। राजस्थानी लघुकथा में राजस्थानी शब्दों की चाशनी इनका स्वाद बढ़ाती है। लघुकथा समाज को संदेश देती है तो व्यंग्य भी करती है। लघुकथा का काम भटकते हुए लोगों को रास्ता दिखाने का है। संवेदनहीन होते समाज को संवेदनशील बनाना, मनुष्यता के मूल्यों की स्थापना लघु कथाओं का मूल स्वभाव है।


आशीष पुरोहित ने प्रस्तावना पढ़ते हुए बताया कि इस पुस्तक में लघु कथाओं का संग्रह है। वर्तमान में लघु कथाएं लोकप्रिय विधा के रूप में उभर रही हैं। भागदौड़ की जिंदगी के चलते लोगों के पास समय कम है और यह कथाएं गागर में सागर भरते हुए समाज को सकारात्मक संदेश देती है। यह लघुकथाएं लोगों को आकर्षित करती हैं। इनकी खासियत यह है कि कुछ कथाएं तो सात आठ 8 लाइनों में ही पूरी हो जाती है तो कई कथाएं एक पेज में है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कमल रंगा ने कहा किए इस पुस्तक में माटी की महक और भाषा की चहक है। लेखक ने अपने कथा शिल्प और लेखन से जीवन और परिवेश का सुंदर चितराम उकेरा है।<br />पुस्तक की समीक्षा करते हुए साहित्यकार डॉ.करूणा दशोरा ने कहा कि डॉ. कच्छावा ने इस पुस्तक को अपने गुरु भंवरसिंह सामौर और सुजानगढ़ के प्रसिद्ध समाजसेवी स्व. कन्हैयालाल डूंगरवाल को समर्पित की है। राजस्थानी के माने हुए साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी ने अपने समय की अनूठी लघुकथाएं बताते हुए कहा है कि इसमें प्रतीकों से पूरी बात कही जाती है। ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्रीसीमेंट और आईटीसी राजपूताना का आभार जताते हुए कहा कि आखर पोथी का आयोजन युवा लेखकों के लेखन को पाठकों के सामने लाने के लिए किया जाता है। राजस्थानी भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए यह आयोजन किया गया है।


Source:

https://www.patrika.com/special-news/short-story-has-emerged-as-a-major-genre-dr-kachhawa-7024046/

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

लघुकथा समाचार: क्षितिज की ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी

लॉकडाऊन में रचनाधर्मिता को नवीन आयामलघुकथा प्रवासी और टेक दुनिया के अंतरंग का हिस्सा- श्री बीएल आच्छा

तकनीक के इस युग में कुछ भी असम्भव नहीं है। कोरोना वायरस के कारण लाकडाउन के मध्य  क्षितिज साहित्य मंच, इंदौर द्वारा शनिवार 25 अप्रैल 2020 सांय 4:00 बजे एक ऑनलाइन ऑडियो सार्थक लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया गया । क्षितिज साहित्य मंच द्वारा आयोजित ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी सचमुच प्रशंसनीय थी। बलराम अग्रवाल अध्यक्ष और विशेष अतिथि बी.एल.आच्छा थे। संचालन किया वरिष्ठ लघुकथाकार अंतरा करवड़े और वसुधा गाडगिल ने। 

कोरोना वायरस के कारण किए गए लॉकडाऊन को देखते हुए क्षितिज साहित्य मंच, इंदौर द्वारा दिनांक 25 अप्रैल 2020 शनिवार शाम 4:00 बजे एक ऑनलाइन ऑडियो सार्थक लघुकथा गोष्ठी का क्षितिज साहित्य मंच के पटल पर आयोजन किया गया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, लघुकथाकार, कथाकार, आलोचक श्री बलराम अग्रवाल (दिल्ली) ने की और इस समारोह के प्रमुख अतिथि थे मूर्धन्य साहित्यकार, समीक्षक, आलोचक श्री बी. एल. आच्छा (चैन्नई)। गोष्ठी के आरम्भ में क्षितिज संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार, लघुकथाकार, समीक्षक श्री सतीश राठी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया और अतिथियों का स्वागत करते हुए श्री राठी ने कहा कि आज हमारे लिए बड़ी ख़ुशी कि बात है कि इस ऑनलाइन कार्यक्रम में आदरणीय श्री बलराम अग्रवाल (दिल्ली) और श्री बी. एल. आच्छा (चैन्नई) के साथ देश के वरिष्ठ साहित्यकार और लघुकथाकार आदरणीय सर्वश्री अशोक भाटिया (चंडीगढ़), सुभाष नीरव (दिल्ली), भागीरथ (रावतभाटा), माधव नागदा (नाथद्वारा), रामकुमार घोटड़ (चूरू, राजस्थान), अशोक जैन, मुकेश शर्मा, (गुरुग्राम), ओम मिश्रा (बीकानेर), योगराज प्रभाकर, जगदीश कुलारिया (पंजाब), हीरालाल मिश्रा (कोलकाता) लता चौहान चौहान (बेंगलुरु) पवन शर्मा (छत्तीसगढ़), पवन जैन (जबलपुर), संध्या तिवारी (पीलीभीत), अरूण धूत, संतोष श्रीवास्तव, अशोक गुजराती (भोपाल), मनीष वैद्य (देवास), राजेंद्र काटदारे (मुम्बई), अंजना अनिल (अलवर), देवेन्द्र सोनी (इटारसी), पवित्रा अग्रवाल (हैदराबाद), गोविन्द गुंजन (खंडवा), कुलदीप दासोत (जयपुर), धर्मपाल महेंद्र जैन (टोरंटो), सत्यनारायण व्यास सूत्रधार, व्यंग्यकार कांतिलाल ठाकरे, राकेश शर्मा संपादक वीणा, अश्विनी कुमार दुबे, पुरुषोत्तम दुबे, ब्रजेश कानूनगो, चंद्रा सायता, वन्दना पुणताम्बेकर, पदमा राजेंद्र, संगीता भारूका, रजनी रमण शर्मा, जगदीश जोशी, सुषमा व्यास, राजनारायण बोहरे, अर्जुन गौड़, नंदकिशोर बर्वे, सुभाष शर्मा, उमेश नीमा, ललित समतानी, सीमा व्यास, चेतना भाटी, मंजुला भूतड़ा, निधि जैन, राममूरत राही, (इंदौर), नई दुनिया के हमारे साथी श्री अनिल त्रिवेदी, दैनिक भास्कर के हमारे साथी श्री रविंद्र व्यास, पत्रिका से रूख़साना जी, बैंक के साथी गोपाल शास्त्री, गोपाल कृष्ण निगम (उज्जैन) भी उपस्थित हैं, मैं इन सभी का स्वागत करता हूँ और ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ।

इसके पश्चात लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से क्षितिज संस्था द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी एवं क्षितिज के विभिन्न प्रकाशनों की जानकारी श्री सतीश राठी द्वारा दी गई। इस गोष्ठी में हमारे इंदौर शहर से बाहर के क्षितिज के सदस्य लघुकथाकारों सर्वश्री संतोष सुपेकर, दिलीप जैन, कोमल वाधवानी, आशा गंगा शिरढोनकर (उज्जैन), सीमा जैन (ग्वालियर), कांता राय (भोपाल ), अनघा जोगलेकर, विभा रश्मि (गुरुग्राम), अंजू निगम, सावित्री कुमार( देहरादून), कनक हरलालका (धुबरी, आसाम), हनुमान प्रसाद मिश्रा (अयोध्या) ने लघुकथाओं का पाठ किया गया, स्व पारस दासोत की लघुकथा का पाठ उनकी बहू द्वारा किया गया। इन रचनाओं पर श्री बलराम अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा दिलीप जैन की लघुकथा 'गिनती की रोटी' में पात्र का चरित्र उसके दादाजी से प्राप्त संस्कार के रूप में आकार ग्रहण करता है और एक विशेष प्रकार का मनोविकार बन जाता है। कुल मिलाकर यह लघुकथा पद प्रतिष्ठा और स्थिति के अनुरूप भारतीय स्त्री भारतीय स्त्री के संस्कार पूर्ण मनोविज्ञान को सफलतापूर्वक हमारे सामने प्रस्तुत करती है। अंजू निगम की लघुकथा 'मां' के केंद्र में सौतेली मां की प्रचलित छवि को बदलने का प्रयास नजर आता है। विषय नया न होकर भी अच्छा है, लेकिन इस लघुकथा का शिल्प अभी कमजोर है। इस सदी में लघुकथा लेखन में कुछ सधी हुई कलम भी आई हैं। उनमें सीमा जैन ऐसा नाम है जिनका जो व्यक्ति जीवन के संवेदनशील क्ष‌‌णों को पकड़ने और प्रस्तुत करने के प्रति बहुत सचेत रहती हैं। उनकी प्रस्तुति जाने पहचाने विषय को भी नयापन दे देती है। उनकी लघुकथा 'उड़ान' सकारात्मक सरोकारों से लबालब है।

कांता राय की लघुकथा 'मां की नजर'! इस पूरी लघुकथा में पात्रों के चरित्र के साथ न्याय होता मुझे नजर नहीं आता है! कोमल वाधवानी लघुकथा 'गुहार'! यह संस्मरणात्मक शैली में लिखी कथा है। कथा का अंत इस अर्थ में अति नाटकीय हो गया है कि दीवारें अपने गिरने का पूर्वाभास नहीं देती हैं। वे गिर ही जाती हैं, बूढ़ी काकी की तरह किसी को बचा लेने का अवसर भी वे नहीं देतीं। सावित्री कुमार की लघुकथा 'भ्रम का संबल' कथ्य की दृष्टि से एक सुंदर लघुकथा है। इसका आधार एक मनोवैज्ञानिक सत्य है। इस लघुकथा में, मुझे लगता है कि अनु का डॉक्टर के पास हर बार पहले जाना जरूरी नहीं है। आशा गंगा प्रमोद शिरढोणकर की लघुकथा 'उसके बाद'। बढी उम्र में जीवनसाथी से बिछोह के बाद त्रस्त जीवन की भावपूर्ण झांकी इस लघुकथा में बड़ी सहजता से सफलतापूर्वक प्रस्तुत की गई है। अनघा जोगलेकर की लघुकथा 'जुगनू'। उन्होंने किसान के जीवन में आशा की एक किरण को 'जुगनू' की संज्ञा दी है! लघुकथा के इस कथानक में कई बातें अस्पष्ट सी छूट गई हैं। 'वेरी गुड' संतोष सुपेकर की लघुकथा है। मेरा विश्वास है कि बालमन को समझना और बालक का मान रखना हंसी खेल नहीं है। विपरीत परिस्थिति में भी इस लघुकथा का मुख्य पात्र जिस तरह अपने बेटे का मान रखता है वह हमें दूर तक फैले खुशियों के उपवन में ले जाता है। विभा रश्मि की एंटीवायरस स्त्री मनोविज्ञान की बेहतरीन लघुकथा है! हनुमान प्रसाद मिश्र अपेक्षाकृत कम लिखने वाले वरिष्ठ लेखक हैं। क्षितिज के इस ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति उत्साह बढ़ाने वाली है। दृष्टांत शैली की यह रचना प्रभावित करती है। कनक हरलालका की 'इनसोर' लघु कथा में एक मजदूर की पीड़ा को उभारने की भरपूर कोशिश है। शिल्प की दृष्टि से इसे अभी और कसा जा सकता था फिर भी इस भाव संप्रेषण के कारण कि मजदूर की पहली जरूरत उसके आज की पूर्ति होना है, यह एक प्रभावशाली लघुकथा कही जा सकती है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो वर्तमान लघु कथा लेखन नवीन विषयों को लेकर तो कुछ नवीन प्रस्तुतियों को लेकर साहित्य मार्ग पर अग्रसर है और उसकी यह अग्रसारिता संतुष्ट करती है।

श्री बी. एल. आच्छा ने ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी पर अपनी प्रतिक्रया देते हुए कहा “हिंदी लघुकथा नई विधा है, पर अल्पकाल में इस विधा ने जितने संघर्षों को समेटा है, विमर्शों को अंतरंग बनाया है, मानव मन के अंतर्जाल को उकेरा है, उससे लगता है कि अन्य विधाओं की लंबी काल यात्रा लघुकथा में उतर आई है। यही नहीं लघुकथा ने आज की टेक दुनिया के साथ प्रवासी दुनिया तक विस्तार किया है। बड़ी बात यह इसका एक सिरा चूल्हे- चौके या मजदूर किसान जीवन से सिरजा है, उतना ही बुर्जुआ और बोल्ड संस्कृति से भी। प्रयोग के लिए न केवल अनेक नई पुरानी शैलियों को आजमाया है, बल्कि अन्य विधाओं से इसे संवादी नाट्यपरक और विजुअल बनाया है। आज की लघुकथा यद्यपि मोटे तौर पर मध्यमवर्गीय जीवन के घेरे में ज्यादा है, पर प्रवासी और टेक दुनिया भी उसका अंतरंग हिस्सा बनी है। आज की संगोष्ठी में इसकी झलक देखी जा सकती है।

अनघा जोगलेकर की लघुकथा किसानी व्यथाओं में पत्नी के जीवट में जुगनू की चमक दिखाती है, तो विभा रश्मि की 'एंटीवायरस 'आँखों के स्क्रीन में एंटीवायरस प्रोग्राम से हमउम्र के मनोविकारों को धोकर रख देती है। दिलीप जैन की लघुकथा 'गिनती की रोटी 'में पीढ़ियों की समझ का फेर भले ही हो पर ह्रदय कल्मश नहीं है। सावित्री कुमार की लघुकथा 'भ्रम का संबल' में नारी की उदात्त पारिवारिक भूमिका मन को छू लेती है। कोमल वाधवानी की 'गुहार' और आशा गंगा शिरढोणकर की 'उसके बाद 'लघुकथा में पारिवारिक रिश्तो में वृद्धावस्था की बेचैनियों के नुकीले सिरे चुभनदार बन जाते हैं ।अंजू निगम की 'मां' लघुकथा अपने उद्देश्य में बिखरती हुई भी समझ को विकसित करती है। सीमा जैन की 'उड़ान 'में जेंडर असमानता के बीच लड़की की उड़ान नारी चेतना के पंखों में गति ला देती है। संतोष सुपेकर दो मनोभूमियों के कंट्रास्ट को 'व्हेरी गुड 'में बखूबी मुखर कर देते हैं। हनुमानप्रसाद मिश्र दायित्व बोध लघुकथा में मानवेतर के माध्यम से सांस्कारिकता का संदेश देते हैं। कनक हरलालका की लघुकथा 'इनसोर 'में कारपोरेट बचत की बाजारवादी सोच में भूख की पीड़ा असरदार है। कांता राय की 'माँ की नजर में' लघुकथा पतित्व की स्वामी- सत्ता का घुलता हुआ अंदाज है। स्व.पारस दासोत की लघुकथा 'भारत 'में तमाम फटेहाली के बावजूद गरीब की जीत का जज्बा है। पठित रचनाओं में कथाभूमियाँ विविधता के क्षेत्रफल में बुनी हुई है। वे सामाजिक -पारिवारिक सरोकारों को जितनी वास्तविकताओं के साथ बुनती हैं,उतना ही बदलती दुनिया से भी।नरेटिव से संवादी बनती हैं और अंतर्वृत्तियों को सामने लाती हैं।

इस गोष्ठी की एक प्रमुख विशेषता रही है कि 1 घंटे के इस कार्यक्रम में देश के वरिष्ठ साहित्यकार और लघुकथाकार श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहकर प्रथम ऑनलाइन लघुकथा संगोष्ठी के सहभागी और साक्षी बने। क्षितिज ऑनलाईन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी जो कि क्षितिज संस्था का एक महत्वपूर्ण आयोजन था, ऐतिहासिक रूप से सफल रही। क्षितिज संस्था ने इस अनूठे साहित्यिक समारोह द्वारा लघुकथा विधा में नये आयाम स्थापित किए। इस गोष्ठी का संचालन जानी मानी मंच संचालक अंतरा करवड़े और डॉ. वसुधा गाडगिल ने किया। कार्यक्रम के अंतिम चरण में ऑनलाइन उपस्थित सहभागियों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं पोस्ट की और क्षितिज संस्था के सचिव श्री दीपक गिरकर द्वारा आभार व्यक्त किया गया।

नई दुनिया में इसका समाचारः




शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

लघुकथा एक ऐसा लाइट हाउस है जो पूरे साहित्य को दिशा प्रदान करता है। | लघुकथा समाचार

पत्रिका समाचार  21 फरवरी 2020

दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी।


रायपुर द्य फाफाडीह स्थित होटल में राष्ट्रीय लघुकथा का आयोजन किया गया। इसमें डॉ. बलराम अग्रवाल, सुभाष नीरव, गिरीश पंकज,डॉ राजेश श्रीवास्तव, डॉ सुधीर शर्मा, डॉ. मालती बसंत, जया केतकी, साकेत सुमन चतुर्वेदी शामिल हुए। 

संस्था की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने लघुकथा में नारी अस्मिता को लेकर अपनी बात रखते हुए कहा, आज लघुकथा मांग करती है एक ऐसी शक्ति स्वरूपा नारी की जो अपनी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा करती हुई शोषण की शक्तियों से मुठभेड़ करती नजर आए। दिल्ली से आए लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा, हम वृद्ध आश्रम की बात करके युवा पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैंं? क्या हमारे घर से कोई वृद्ध आश्रम गया है? जब हम अपने अनुभवों को कल्पना के आधार पर ही लिखेंगे तो वह बात गहराई से लोगों तक नहीं पहुंचेगी। उन्होंने कई लघुकथाओं के उदाहरण देते हुए नारी अस्मिता को लेकर लघुकथाएं लिखना मौजूदा समय की मांग बताया।विशिष्ट अतिथि गिरीश पंकज ने कहा कि लघुकथा एक ऐसा लाइट हाउस है जो पूरे साहित्य को दिशा प्रदान करता है मुख्य अतिथि सुभाष नीरव ने अपने वक्तव्य में लघुकथाओं में नारी अस्मिता को लेकर विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संस्था की ओर से विभिन्न विधाओं पर पांच पुरस्कार प्रदान किए गए। 

राधा अवधेश स्मृति पुरस्कार-लक्ष्मी यादव, पुष्पा विश्वनाथ स्मृति पुरस्कार -अजय श्रीवास्तव अजेय,हेमंत स्मृति लघुकथा रत्न सम्मान-कांता राय, पांखुरी लांबा सक्सेना स्मृति पुरस्कार-साधना वैद, द्वारका प्रसाद स्मृति साहित्य गरिमा पुरस्कार-अलका अग्रवाल ममता अहार द्वारा शक्ति स्वरूपा नाटक का एकल मंचन के साथ ही 75 कवियों और लघुकथाकारों की कविता व लघुकथा की प्रस्तुति।तीन सत्रों में आयोजित कार्यक्रम का संचालन क्रमश: नीता श्रीवास्तव, रूपेंद्र राज तिवारी और वर्षा रावल ने किया।

Source:
https://www.patrika.com/raipur-news/el-cuento-es-un-faro-que-da-direccin-a-toda-la-literatura-5803798/

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

लघुकथा समाचार: सुक्ष्म, तीक्ष्ण व संवेदनशील विधा है लघुकथा : अवधेश प्रीत

दर्पण समाचार 


मधुदीप द्वारा संपादित ” विश्व हिंदी लघुकथाकार निर्देशिका ” का हुआ लोकार्पण

 लघुकथा पाठ से गुंजायमान हुआ मंगल तालाब पन्नालाल मुक्ताकाश मंच


सुप्रसिद्ध कथाका अवधेश प्रीत ने कहा है कि लघु कथा एक ऐसी सुक्ष्म, तीक्ष्ण, मारक और संवेदनशील विधा है जिसका प्रभाव श्रोताओं के दिल दिमाग को वर्षों उद्वेलित करता है बशर्ते लघुकथाकार ने उसे संवेदना और अनुभव के बेहतर तालमेल के साथ लिखा हो।
वे रविवार को पटना सिटी मंगल तालाब स्थित पन्नालाल मुक्ताकाश प्रेक्षागृह में ”  विश्व हिंदी लघुकथाकार निर्देशिका ”  के लोकार्पण के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच और स्वरांजलि के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लघुकथा मंच के महासचिव  डॉ ध्रुव कुमार ने कहा कि विश्व हिंदी लघुकथाकार निर्देशिका के प्रकाशन से देशभर के लघुकथाकारों से संपर्क करना अब बहुत आसान हो गया है। उन्होंने इस सराहनीय कार्य के लिए इसके संपादक मधुदीप को बधाई दी।

 इस अवसर पर प्रसिद्ध कथाकार- उपन्यासकार डॉ संतोष दीक्षित ने कहा कि वस्तुतः साहित्य समाज का सापेक्ष है और लघुकथाएं प्रभावगामी होती हैं। ” सिकुड़े तो आशिक – फैले तो जमाना ”  लघुकथा पर बहुत ही सटीक है।
इस मौके पर डेढ़ दर्जन लघुकथाकारों ने अपनी – अपनी लघुकथाओं का पाठ किया।
इन लघुकथाओं की समीक्षा करते हुए जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा की प्रोफेसर  समोलचक डॉ अनीता राकेश ने कहा कि सभी रचनाएं समाज की विसंगतियों से हर रोज जूझते लोगों की मनोदशा व उनके मानसिक संघर्ष और द्वंद्ध को दर्शाती हैं। उन्होंने विशेष तौर पर प्रभात धवन, आलोक चोपड़ा, पंकज प्रियम, दयाशंकर प्रसाद,  शंकर शरण आर्य, संजू शरण, रिचा वर्मा, डॉ  मीना कुमारी परिहार, सूरज देव सिंह और गौरीशंकर राजहंस की लघु कथाओं का उल्लेख किया।
वरिष्ठ लेखक डॉ राधाकृष्ण सिंह ने लघुकथा मंच के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि लघुकथा का रूप भले छोटा हो लेकिन उसकी पहुंच बहुत दूर तक है। लघुकथा के बारे में ” देखन में छोटन लगे – घाव करे गंभीर”  पूर्णता सत्य है।
कार्यक्रम का संचालन स्वरांजलि के संयोजक अनिल रश्मि ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन ए आर हाशमी ने किया।
जिन लघुकथाकारों ने अपनी रचनाएं पढ़ी , उनमें प्रभात कुमार धवन, संजू शरण,  आलोक चोपड़ा, ए आर हाशमी, पंकज प्रियम, गौरीशंकर राजहंस, सूरज देव सिंह, शंकर शरण आर्य, दया शंकर प्रसाद, प्रो अनीता राकेश, अनिल रश्मि, डा ध्रुव कुमार, रिचा वर्मा और डॉ मीना कुमारी परिहार शामिल थीं।

Source:
http://www.darpansamachar.com/?p=23513&fbclid=IwAR0QJI-ICY0AdrhW9AnYpmFbj7BV5TCMFsjPs-KampmczAZeUbzVnZtVw5o


गुरुवार, 30 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार | लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा इंदौर : पद्मश्री मालती जोशी

लघुकथा संग्रह प्रवाह का विमोचन समारोह
शाश्वत सृजन समाचार

जानी-मानी लेखिका पद्मश्री मालती जोशी ने कहा है कि जो इंदौर कभी अपने नमकीन के लिये देश भर में जाना जाता था वह स्वच्छता के मामले में नंबर वन बना। वहीं इंदौर अब साहित्य और लघुकथा के लिए प्रसिद्ध होने जा रहा है। भविष्य में इंदौर लघुकथा के गढ़ के रूप में जाना जाएगा।

मालतीजी मंगलवार को यहां 21 लघुकथाकारों की लघुकथाओं के संग्रह प्रवाह के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहीं थीं। विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर के बैनर तले मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के शिवाजी सभागार में यह समारोह आयोजित किया गया था। 

समारोह की अध्यक्षता भोज शोध संस्थान, धार के निदेशक डाॅ दीपेंद्र शर्मा ने की। विशेष अतिथि और चर्चाकार के रूप में जानी-मानी लघुकथाकार श्रीमती मीरा जैन (उज्जैन) मौजूद रहीं।



पद्मश्री जोशी ने कहा कि लघुकथा का मुख्य लक्षण अपनी बात को छोटे रूप में लोगों तक पहुंचाना है । तीक्ष्णता से अपनी बात सबके समक्ष प्रस्तुत करना । जैसे आजकल ट्वेंटी-ट्वेंटी का ज़माना है वैसे ही लघुकथा भी अब ऐसे ही हो गयी है और अति लघुता की ओर जा रही है ।

डॉ. दीपेन्द्र शर्मा ने कहा कि लेखकों का संग्रह व्यक्तिगत चेतना को सामूहिक चेतना में बदल देता है। एक लेखक को विवादास्पद या प्रसिद्ध होने के स्थान पर ऐसा लिखना चाहिए कि उनके विचार और लेखन सदैव याद किए जाएं। सूर और तुलसी इसी श्रेणी के सृजनकर्ता रहे इसीलिए वे अमर रचनाकार बन गए।

श्रीमती मीरा जैन ने  कहा कि लघुकथा साहित्य उपवन में खिला एक खूबसूरत पुष्प है जिसके प्रति साहित्य प्रेमियों के आकर्षण में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है । लघुकथा की लघुता ही इसकी प्रमुख विशिष्टता है । लघुकथा का ताना बाना कसा हुआ हो तो ही पाठको के ह्रदय तक पहुंचेगा । लघुकथा का अपना एक नैसर्गिक सौंदर्य होता है । उन्होंने  21 लघुकथाकारो के लघुकथा संकलन प्रवाह  में से अनेक लघुकथाओं की सटीक समीक्षा भी की। उपरोक्त लघुकथा संग्रह का संपादन श्रीमती सुषमा दुबे ने किया है। सह संपादक श्री देवेन्द्र सिंह सिसौदिया एवं मुकेश तिवारी हैं।




समारोह में स्वागत भाषण विचार प्रवाह साहित्य मंच, इंदौर की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा दुबे ने दिया। सचिव डाॅ दीपा मनीष व्यास ने विचार प्रवाह के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सरस्वती वंदना डाॅ पूजा मिश्रा ने की। अतिथियों का स्वागत उपाध्यक्ष विजय सिंह चौहान, संध्या राय चौधरी, अर्चना मंडलोई, मनीष व्यास आदि ने किया। संचालन मुकेश तिवारी ने किया। आभार महासचिव देवेन्द्र सिंह सिसौदिया ने माना।

इस मौके पर सभी 21 लघुकथाकारों  को सम्मानित भी किया गया। मंच के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य सर्वश्री हरेराम वाजपेयी, नरेन्द्र मांडलिक, प्रदीप नवीन, संतोष मोहंती, श्रीमती पदमा राजेंद्र का भी इस मौके पर अभिनंदन किया गया। प्रवाह संग्रह का मुखपृष्ठ सजाने वाली तृप्ति त्रिवेदी और प्रतीक चिन्ह सज्जा करने वाली देव्यानी व्यास का भी सम्मान हुआ। प्रवाह संग्रह में श्रीमती माया बदेका, कुमुद दुबे, अंजू निगम, मीना गौड़, कुमुद मारू, सुषमा व्यास, देवेंद्रसिंह सिसौदिया, अर्चना मंडलोई, वंदना पुणतांबेकर,  मित्रा शर्मा, सुषमा दुबे, विजयसिंह चौहान, डाॅ. ज्योति सिंह, रश्मि चौधरी, मुकेश तिवारी, डाॅ दीपा मनीष व्यास, आरती चित्तौड़ा, डाॅ पूजा मिश्रा, माधुरी शुक्ला, अदिति सिंह भदौरिया और अविनाश अग्निहोत्री आदि की लघुकथाएं शामिल हैं।


Source:
https://shashwatsrijan.page/article/laghukatha-ke-gadh-ke-roop-mein-jaana-jaega-indaur/FJewfh.html

रविवार, 5 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार : विश्व पुस्तक मेले में होगा डॉ. भाटिया की पुस्तक का लोकार्पण


हरियाणा के लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया की नई पुस्तक कथा समय का दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण होगा। डॉ. अशोक की यह 33वीं पुस्तक है...

जागरण संवाददाता, करनाल : हरियाणा के लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया की नई पुस्तक कथा समय का दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण होगा। डॉ. अशोक की यह 33वीं पुस्तक है, जिसे आठ जनवरी को वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा विमोचित किया जाएगा। कथा समय पुस्तक में लघुकथा के 50 वर्षो के संघर्ष के साक्षी और यात्री रहे प्रतिनिधि कथाकारों की चुनिदा लघुकथाएं शामिल हैं।

पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर अशोक भाटिया की अनेक पुस्तकों के कई-कई संस्करण छपकर लोकप्रिय हो चुके हैं। इनकी जंगल में आदमी और अंधेरे में आंख लघुकथा पुस्तकें हिदी जगत में बहुत सराही गई हैं। इनके द्वारा पंजाबी से अनुवाद कर श्रेष्ठ पंजाबी लघुकथाएं हिदी में इस तरह की पहली पुस्तक है। हरियाणा ग्रंथ अकादमी के अनुरोध पर लिखी समकालीन हिदी लघुकथा इस विद्या की प्रतिमानक पुस्तक मानी जाती है। साहित्यिक क्षेत्र में निरंतर सक्रिय डा. भाटिया की अनेक लघुकथाएं स्कूली तथा विश्वविद्यालयों के पाठयक्रमों में पढ़ाई जा रही हैं। इन्हें अब तक हरियाणा साहित्य अकादमी सहित कोलकाता, पटना, शिलांग, हैदराबाद, इंदौर, भोपाल, रायपुर, अमृतसर, जालंधर आदि की संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित किया जा चुका है।

Source:
https://www.jagran.com/haryana/karnal-bhatia-book-will-be-released-at-the-world-book-fair-19904749.html

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

लघुकथा समाचार: सम्मान रचनाकार का हौसला बढ़ाता है और दायित्व भी



जब किसी रचनाकार को सम्मान दिया जाता है यह उसको और बेहतर लिखने की प्रेरणा तो देता ही है, वह रचनाकार का दायित्व भी बढ़ा देता है कि वह लगातार अच्छी रचता रहे। लघुकथा लिखना आसान नहीं है। लघुकथा लिखना उपन्यास लिखने जैसा ही कठिन रचनाकर्म है। लघुकथा आकार में भले लघु हो पर दीर्घ प्रभाव छोड़ती है। यह बात देवास के कहानीकार मनीष वैद्य ने कही। वे श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में वरिष्ठ शिक्षक और लेखक स्व. डॉ.एस.एन. तिवारी के पुण्य स्मरण दिवस पर रचनाकारों के सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम में मुकेश तिवारी के लघुकथा संग्रह आम के पत्ते का लोकार्पण भी किया गया। 

इन्हें किया गया सम्मानित 

इसमें इंदौर के कांतिलाल ठाकरे, धार के नरेंद्र मांडलिक और एकता शर्मा,, भोपाल के कमल किशोर दुबे, इंदौर की संध्या रायचौधरी और अदिति सिंह भदौरिया, अमर कौर चड्ढा, कोटा की माधुरी शुक्ला सम्मानित किया गया। आभार डॉ पूजा मिश्रा ने माना। दूसरे सत्र में लघुकथा पाठ कियागया। लघुकथाकार डॉ योगेन्द्रनाथ शुक्ला ने कहा कि लघुकथा एक अलग-सा तेवर रखने वाली विधा है। अच्छा लिखने से पहले अच्छा पढ़ना भी बहुत ज़रूरी है। डॉ. पद्मा सिंह ने कहा कि अगर लघुकथा लिखी जा रही है तो वह लघु ही होना चाहिए। लेखन ऐसा हो जो पाठकों के दिल को छू जाए। विशेष अतिथि मीरा जैन और देवेन्द्र सिंह सिसौदिया ने लघुकथा लेखन की बारीकियों बताईं। संचालन डॉ. दीपा मनीष व्यास ने किया। 

Source:
https://www.bhaskar.com/news/mp-news-honor-gives-encouragement-to-the-creator-and-also-responsibility-153552-6291565.html

रविवार, 29 दिसंबर 2019

लघुकथा समाचार: शब्द-शब्द अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूलमंत्र

December 29, 2019

हिंदी भवन, भोपाल में लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आचार्य ओम नीरव के सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह 'स्वरा' के विमर्श व सम्मान समारोह

जहां व्यथा है, वहां कथा है, शब्द-शब्द रचना और अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूल मंत्र है, जिससे ये पूर्ण होता है।

लेखक विस्थापितों, शरणार्थियों की व्यथा से जुड़े यह उद्गार थे वरिष्ठ साहित्यकार व पूर्व निदेशक साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. देवेंद्र दीपक के। वह हिंदी भवन में लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आचार्य ओम नीरव के सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह स्वरा के विमर्श व सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कांति शुक्ला उर्मि ने पद्य-काव्य के बाद लघुकथा के क्षेत्र में नीरव के आगमन को सुखद अनुभव बताया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार मुकेश वर्मा ने कहा कि लघुकथा, कथा परिवार की छोटी सदस्य भले हो परंतु प्रभाव में किसी बड़ी कथा या उपन्यास से कम नहीं।

संस्कृति को साथ लेकर चलता है साहित्य

लघु कथाकार और कृति के लेखक ओम नीरव ने कहा कि जो बात हम छंद विधा के माध्यम से नहीं कह पाते, उसे हम पूरे प्रभाव और प्रखरता के साथ एक छोटी सी लघुकथा के माध्यम से कह सकते हैं। इस मौके पर ओम नीरव को साहित्य साधना सम्मान से विभूषित किया गया। साहित्यकार गोकुल सोनी ने कहा कि साहित्य संस्कृति को साथ लेकर चलता है। जीवन मूल्यों का स्पंदन साहित्य का प्राण होता है। ओम नीरव की लघुकथाओं में सत्य और कल्पना का अद्भुत सम्मिश्रण है। उनमें गहरे अन्वेषण का मनोविज्ञान भी परिलक्षित होता है, अत: वे समाजोपयोगी हैं। वरिष्ठ साहित्यकार युगेश शर्मा ने कहा कि संग्रह की लघुकथाओं में आज की समाज व्यवस्था को गहराई से रखा गया है और लेखक ने भविष्य के समाज की रचना के लिए दिशाएं बताई हैं।

Source:
https://www.patrika.com/bhopal-news/literature-1-5568524/

रविवार, 22 दिसंबर 2019

लघुकथा समाचार: फेसबुक पर लघुकथा आयोजन 2020


नमस्ते!!!

साहित्य की अपेक्षाकृत नवीन विधा लघुकथा शीघ्रता से अपने पंख फैलाते हुये व्योम की ऊँचाई को छूने का प्रयास कर रही है। इसमें लघुकथा के तमाम पुरोधाओं के साथ सभी समूहों का योगदान है और सब अपने अपने तरीके से यथासम्भव लघुकथा के विकास हेतु प्रतिबद्ध हैं।

हम (दिव्या राकेश शर्मा,  चित्रा राणा राघव, कुमार गौरव, वीरेंद्र वीर मेहता, नेहा शर्मा और मृणाल आशुतोष) समस्त लघुकथा परिवार की ओर से एक वृहद आयोजन लेकर आप सबके समक्ष उपस्थित हुये हैं जिसमें हम सभी समूहों की सामुहिक भागीदारी सुनिश्चित हो। इस आयोजन को हमने
#लघुकथा_आयोजन_2020 की संज्ञा दी है।

आयोजन का लक्ष्य अधिकाधिक लघुकथाप्रेमियों तक  पहुँचने का प्रयास है और आयोजन में आयी श्रेष्ठ लघुकथाओं का चयन करना है।

वरिष्ठ लेखक अगर इस आयोजन का हिस्सा बनें तो हमें अति प्रसन्नता होगी और इससे आयोजन की महत्ता बढ़ेगी।

श्रेष्ठ रचनाओ के चयन हेतु कुछ नियम निर्धारित किये गए हैं जिनका अनुपालन अनिवार्य है।

1.रचना मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रसारित होनी चाहिए। सोशल साइट्स, वेबसाइट आदि पर प्रकाशित रचना भी कतई मान्य नहीं होंगी।

2.आयोजन का समय भारतीय समयानुसार 1 जनवरी 2020 प्रातः 8 बजे से  20 जनवरी 2020 रात्रि10 बजे तक रहेगा।

3. एक रचनाकार दो और अधिकतम दो रचना आयोजन में भेज सकते हैं। वह किसी भी समूह में पोस्ट कर सकते हैं। एक समूह में केवल एक ही रचना पोस्ट कर सकते हैं। अन्यथा रचनाकार आयोजन से पृथक माने जाएंगे।

4. रचना के शीर्ष में #लघुकथा_आयोजन_2020
नाम शहर का नाम एवम मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रसारित अंकित करना नितांत अनिवार्य है। आयोजन में पोस्ट की हुई रचना  परिणाम आने तक आयोजन के इतर रचना कहीं न तो पोस्ट की जा सकती है और न ही कहीं पत्र-पत्रिका/वेबसाइट में भेजी जा सकती है।  अन्यथा वह रचना आयोजन का हिस्सा नहीं बन सकेगी।

5.रचना पटल पर डालने के पश्चात न तो संपादित(एडीट) और न ही डिलिट की जा सकती है ऐसा करने पर रचनाकार आयोजन  से बाहर हो माने जाएंगे एवम यदि उसकी जगह दूसरी रचना प्रेषित करने का प्रयास किया गया तो आयोजन समिति को रचना स्वीकृत (अप्रूव) न करने एवम डिलिट करने का सम्पूर्ण अधिकार होगा।

6 20 जनवरी के पश्चात 30 जनवरी 2020 तक प्रत्येक समूह के एडमिन समिति अपने समूह से न्यूनतम 5 अधिकतम 10 श्रेष्ठ रचनाओं का चयन कर हम आयोजन मंडल को देंगे। समूह से एक लेखक की एक और केवल एक ही रचना का चयन किया जा सकता है। यहाँ समूह के एडमिन के लघुकथा के प्रति प्रतिबद्धता सामने आयेगी।

7 एडमिन अपने समूह में रचना भेजने से वंचित रहेंगे। वह दूसरे समूह में अपनी रचना भेज सकते हैं।

8 जो लेखक किसी भी समूह में सक्रिय नहीं है किंतु इस आयोजन में भाग लेना चाहते हैं तो वह अपने वाल पर आयोजन के अन्य सभी नियमो का पालन करते हुये आयोजन का हिस्सा बन सकते हैं। इस आयोजन हेतु पोस्ट किए रचना पर इस आयोजन मंडल के दो सदस्यों को मेंशन जरूर करें।

9. रचनाकारों से सविनय निवेदन है कि रचना पोस्ट करने से पहले नियमावली को ध्यानपूर्वक पढ़े। तदुपरांत ही रचना पोस्ट करें।

10. सभी समूह से रचना प्राप्त होने के पश्चात रचनाओं को लघुकथा के दो मर्मज्ञ के पास निर्णय  हेतु भेजा जायेगा।

11. #प्रथम_पुरस्कार-3100 ₹ और मधुदीप निर्देशित पड़ाव पड़ताल के पांच खण्ड
#द्वितीय_पुरस्कार- 2100₹ और पड़ाव पड़ताल के पांच खण्ड
#तृतीय_पुरस्कार -1100₹ और पड़ाव पड़ताल के पांच खण्ड
इसके अतिरिक्त सात अन्य लेखकों को प्रोत्साहन पुरस्कार के रूप में लघुकथा की दो प्रतिष्ठित पुस्तक दी जाएगी।

12. सभी समूहों के एडमिन से विनम्र निवेदन है कि इस आयोजन में सहभागी बनें और अपने आपको इस पोस्ट में टैग समझें। इस पोस्ट को अपने समूह में पोस्ट करें और इसे पिन कर लें। तथा आयोजन के अंतराल में रचनाकारों को रचना पोस्ट में मार्गदर्शन करें।

13. इन नियमों के विरुद्ध जाने पर उत्पन्न वाद विवाद  पर आयोजन मंडल का निर्णय ही अंतिम और सर्वोमान्य होगा। इसे किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

सभी मित्रों से निवेदन है कि इस पोस्ट को कॉपी पेस्ट कर अपने वाल पर स्थान दें ताकि अधिकाधिक लघुकथाकार इस आयोजन का हिस्सा बन सकें।

कोई भी संस्था या व्यक्ति पुरस्कार का प्रायोजक बनना चाहते हैं तो आयोजन मंडल से सम्पर्क कर सकते हैं

■■■
◆लघुकथा के परिंदे
◆साहित्य संवेद
◆नया लेखन और नया दस्तखत
◆साहित्य प्रहरी
◆साहित्य अर्पण
◆लघुकथा:गागर में सागर
◆सार्थक साहित्य मंच
◆शब्दशः
◆ज़िन्दगीनामा: लघुकथाओं का सफ़र
◆अनुपम साहित्य
◆चिकीर्षा- ग़ज़ल एवम् लघुकथा को समर्पित एक प्रयास
◆क्षितिज
◆फलक (फेसबुक लघुकथाएं)
◆आधुनिक लघुकथाएं

उपर्युक्त समूहों की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।
इनमे रचनाकार अपनी रचना पोस्ट कर सकते हैं।
नियमावली को एक बार ध्यान से पढ़ लीजिए।

जैसे जैसे अन्य समूह की स्वीकृति आती जाएगी, साझा किया जाएगा।

■■■(साथियो,
पुरस्कार की राशि मे बढोत्तरी हुई है।
अब प्रथम पुरस्कार 3100₹ और मधुदीप संपादित पड़ाव-पड़ताल के पांच खण्ड
द्वितीय पुरस्कार 2100₹ और मधुदीप संपादित पड़ाव-पड़ताल के पांच खण्ड
तृतीय पुरस्कार 1100₹ और मधुदीप संपादित पड़ाव-पड़ताल के पांच खण्ड

आयोजन की सफलता के बाद इसे एक पुस्तक रूप देने का और विजेताओं को  पुरुस्कार एक समारोह में देने का भी विचार है।

Source:

https://www.facebook.com/groups/437133820382776/permalink/591733908256099/

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

लघुकथा समाचार | जो निरंतरता बनाए रखेगा वही लंबी रेस का घोड़ा होगा | श्याम सुंदर अग्रवाल

नईदुनिया, इंदौर। 'लघुकथा शिखर सेतु सम्मान' से सम्मानित पंजाब के ख्यात लघुकथाकार श्याम सुंदर अग्रवाल से विशेष चर्चा | 
Publish Date: | Sun, 24 Nov 2019 



तीन दशक पहले मैंने जब लघुकथा की त्रैमासिक पत्रिका शुरू की, उस वक्त साहित्य परिदृश्य पर नए लेखकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी थी। मगर इनमें से कई लोग लघुकथा के नाम पर सिर्फ चुटकुलेबाजी करते रहे और परिदृश्य से ओझल हो गए। कमोबेश ऐसी ही स्थिति पिछले कुछ वर्षों में एक बार फिर बनी है। फर्क ये है कि इस बार लेखिकाओं की संख्या ज्यादा है। मैं नहीं चाहता कि एक बार फिर अस्सी के दशक जैसी स्थिति बने और नए कलमकार साहित्यिक पटल से नदारद होते जाएं। इसलिए मैं उन्हें ये सलाह देना चाहूंगा कि अपनी लघुकथाओं में निरंतरता बनाए रखें। इसके अलावा पुराने घिसे-पिटे जुमलों और विषयों के बजाय आधुनिक समाज और राजनीति से जुड़े ऐसे चुटीले और ज्वलंत विषय उठाएं, जो जनता की नब्ज पर सीधे हाथ रखते हैं। जो इन दो पैमानों पर खरा उतरेगा, वही लंबी रेस का घोड़ा साबित होगा।

ये कहना है रविवार को हिंदी साहित्य समिति में होने वाले 'अखिल भारतीय लघुकथाकार सम्मेलन' में 'लघुकथा शिखर सेतु सम्मान' से सम्मानित किए जा रहे पंजाब के ख्यात लघुकथाकार श्याम सुंदर अग्रवाल का। नईदुनिया से विशेष चर्चा में उन्होंने स्वीकार किया कि जब किसी भी विधा में लेखकों की संख्या बढ़ती है तो कई बार स्तरहीन रचनाएं भी देखने में आ जाती हैं। लेकिन हमारा फर्ज है कि ऐसी रचनाओं के लेखकों को दरकिनार करने के बजाय उन्हें समझाइश देकर बेहतर बनाएं ताकि वो भी मुख्य धारा में शामिल होकर साहित्य को समृद्ध कर सकें, क्योंकि लघुकथा की संरचना अन्य विधाओं से बिलकुल अलग होती है।

बहुत गंभीर विधा है लघुकथा

मैंने देखा है कि कई बार नए लेखक कन्फ्यूज हो जाते हैं कि अपनी भावनाओं को किस तरह प्रस्तुत करें। ऐसे लोगों को मैं सुझाव देना चाहूंगा कि लघुकथा भी बहुत गंभीर विधा है। अगर आप सिर्फ हंसना-हंसाना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि लघुकथा की बजाय कॉमेडी शो लिखें। इसके जरिए तो आपकी कोशिश कम शब्दों में अपनी बात प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचानी है, ताकि उन्हें ज्यादा पढ़ना भी न पड़े, उनका वक्त भी बचे और आपका संदेश भी उन तक पहुंच जाए। एक दौर था, जब कविताओं को समाज से संवाद का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता था, लेकिन हल्के स्तर की रचनाओं और चुटकुलेबाजी ने इसकी गंभीरता खत्म कर दी और लघुकथा को पांव पसारने का मौका मिल गया। इस मौके को मत गंवाइए। आमजन के मुद्दों पर केंद्रित तीखे तेवर के साथ शाब्दिक और तात्विक प्रहार कीजिए तो ये विधा बहुत आसानी से आपको देश-दुनिया में लोकप्रिय बना सकती है।

Source:

https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-naidunia-live-3683196


सोमवार, 25 नवंबर 2019

लघुकथा समाचार | क्षितिज मंच द्वारा इंदौर में आयोजित अ. भा. लघुकथा सम्मेलन

दैनिक भास्कर | Nov 25, 2019.

कहानियां दवा पर लघुकथा इंजेक्शन हैं, फौरन असर करेंगी, बच्चों के पाठ्यक्रम में इन्हें शामिल कर हम जागरूक पीढ़ी तैयार कर सकेंगे


"लघुकथा जातीय भेदभाव, लिंगभेद, स्त्री पर अत्याचारों और साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ किशोरों-युवाओं को प्रभावी ढंग से जागरूक कर सकती है। इसलिए देश के तमाम स्कूल-काॅलेज के पाठ्यक्रमों में श्रेष्ठ लघुकथाओं को शामिल किया जाना चाहिए। कहानी के मुकाबले लघुकथा इंजेक्शन की तरह फौरन असर करती है। आकार में लघु होने और बेहतर संप्रेषण के कारण ये ज्यादा असरदार साबित हुई हैं।' शुक्रवार को क्षितिज के अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में साहित्यकार माधव नागदा संबोधित कर रहे थे। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में हुए सम्मेलन में कई सत्रों में वक्ताओं ने विचार रखे। 


सीप में मोती बनने की प्रक्रिया पीड़ादायक होती है, लघुकथाकार के मन में हो यह पीड़ा 

सुकेश साहनी ने कहा कि सीप में मोती बनने की प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक होती है इसी तरह मन में लघुकथा बनने की प्रक्रिया भी पीड़ादायक होना चाहिए। जैसे मोती को निकालने के लिए नाज़ुक शल्य क्रिया होती है, उसी तरह लघुकथा को भी संवारना होता है। रचनायात्रा तपती रेत पर चलने के समान है और पुरस्कार मिलना शीतल छाया है। साहित्यकार श्यामसुंदर अग्रवाल ने कहा कि क्षितिज लघुकथा पत्रिका में पंजाबी लघुकथा पर एक लेख पढ़कर मैंने लघुकथा रचने को चुनौती की तरह लिया और खूब लिखा। आज पंजाब में 25 लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने कहा कि लघुकथाकार दूसरे अनुशासनों में झांककर ही बेहतर लिख सकता है। दृष्टिसम्पन्न होकर ही पुनरावृत्ति के दोष और शिल्पगत वैविध्य के अभाव से मुक्त हुआ जा सकता है। कुणाल शर्मा ने भी संबोधित किया। दूसरे सत्र में 35 लघुकथाकारों ने पाठ किया। 

तीसरे सत्र में नारी अस्मिता और लघुकथा पर सूरीकांत नागर बलराम अग्रवाल, ज्योति जैन और वसुधा गाडगिल ने बातचीत की। आखरी सत्र कथा शिल्प और प्रभाव पर साहित्यकार राकेश शर्मा, सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल, श्याम सुंदर अग्रवाल और ब्रजेश कानूनगो ने सवालों के जवाब दिए। संचालन अंतरा करवेड़े, सीमा व्यास, निधि जैन और डॉ. गरिमा संजय दुबे ने किया। आभार सतीश राठी, पुरुषोत्तम दुबे ने माना। 

श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान, श्री हीरालाल नागर को लघुकथा सम्मान, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा शिखर सेतु सम्मान 2019 हिंदी और पंजाबी भाषा में मिनी पत्रिका के माध्यम से सेतु का काम करने के संदर्भ में दिया गया है जबकि श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019 प्रदान किया गया है जो गत वर्ष श्री बलराम अग्रवाल को दिया गया था श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019 प्रदान किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री बीएल आच्छा को दिया गया था। श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया है गत वर्ष यह सम्मान श्री कपिल शास्त्री को दिया गया था



Sources:
1. https://www.bhaskar.com/news/mp-news-stories-are-short-lived-injections-on-medicine-they-will-make-an-immediate-impact-by-including-them-in-the-curriculum-of-children-we-will-be-able-to-create-a-conscious-generation-075624-6019212.html

2. Shri Satish Rathi

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रविवार, 24 नवंबर 2019

लघुकथा समाचार | अशोक जैन को लघुकथा श्रेष्ठि सम्मान | एनकाउंटर इंडिया


Punjab -Jalandhar  | Sunday, November 24, 2019


जालन्धर (वरुण): अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता-प्राप्त हिन्दी-सेवी साहित्यिक संस्था पंजाब कला साहित्य अकादमी (पंकस अकादमी) रजि. जालन्धर की ओर से 23वां वार्षिक अकादमी अवार्ड वितरण समारोह लायन्स क्लब के सौजन्य से लायन्स क्लब भवन में सम्पन्न हुआ। गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में यह समारोह बाबा नानक प्रकाश पर्व को समर्पित किया गया।

समारोह में गुरुद्वारा श्री रामपुर खेड़ा साहिब गढ़दीवाला के संत बाबा सेवा सिंह जी आशीर्वाद देने पहुंचे। विशेष मेहमान के तौर पर विधायक राजेंद्र बेरी, पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया, पूर्व बागवानी मंत्री हिमाचल प्रदेश, ठाकुर सत्य प्रकाश मौजूद थे। वही मुख्य मेहमान के तौर पर एडीजीपी अर्पित शुक्ला, आईजी क्राइम पंजाब प्रवीण कुमार सिन्हा, पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर, डीसी विरेंद्र कुमार शर्मा मौजूद रहे। समारोह के दौरान सुरेश सेठ, सतनाम सिंह माणक, के.के. शर्मा, चेयरमैन सिटी अर्बन को-आप्रेटिव बैंक लिमि., डा. जसदीप सिंह एम.एस., डा. फकीर चन्द शुक्ला विशेष तौर पर शामिल हुए। वाणी विज, पार्षद उमा बेरी, प्रेम लता ठाकुर, सदस्य जिला परिषद कुल्लू, पार्षद अनीता राजा, सोनिका भाटिया, विनोद कालड़ा, रोहिणी मेहरा, रानू सलारिया, मनवीन कौर, डा. डेजी एस. शर्मा, पूजा सुक्रांत एवं सुखमनी भाटिया ने शमां प्रज्वलन की रस्म अदा की।

संस्था के अध्यक्ष सिमर सदोष, निदेशक डा. जगदीप सिंह एवं डा. रमेश कम्बोज ने आए मेहमानोंं का स्वागत किया। संस्था के अध्यक्ष सिमर सदोष ने बताया कि इस वर्ष का आजीवन उपलबि्ध सम्मान यानि लाईफ टाईम अचीवमैंट अवार्ड जयपुर के साहित्यकार एवं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के संरक्षक डा. बजरंग लाल सोनी को दिया गया। पंकस अकादमी को सामाजिक धरातल पर विस्तार प्रदान करते हुए इस वर्ष कुछ नये अवार्ड/सम्मान भी घोषित किये गए जिनमें पहली बार स्थापित कृषि कर्मण अवार्ड पयरवरणविद स. दर्शन सिंह रुदाल एवं मलविन्दर कौर रुदाल को दिया गया। पहली बार स्थापित हास्य-व्यंग्य चेतना अवार्ड हिमाचल प्रदेश के प्रख्यात व्यंग्य-लेखक बेदी और कला-श्री अवार्ड अर्शदीप सिंह और राखी सिंह को दिया गया।

प्रतिष्ठाजनक पंकस अकादमी विद्या वाचस्पति एवं भारत गौरव उपाधि सम्मान डा. चितरंजन मित्तल और डा. अनिल पाण्डेय को, विद्या वाचस्पति डा. इन्दु शमर और वीणा विज को, लघुकथा श्रेष्ठि सम्मान हिन्दी लघुकथा-आधारित पत्रिका ‘दृष्टि’ के सम्पादक अशोक जैन को, मानव सेवा रत्न सम्मान भूतपूर्व अध्यक्ष आई.एम.ए. डा. मुकेश गुप्ता और अपाहिज आश्रम के तरसेम कपूर को दिया गया।

पंकस अकादमी के प्रतिष्ठाजनक अकादमी अवार्ड गुरुग्राम के उदय शंकर पंत, अम्बाला के विकेश निझावन, भोपाल की अंजना छलोत्रे, मीडिया शिमला के प्रभारी मोहित प्रेम शर्मा, विजय पुरी, कुंवर राजीव, पंचकूला के लाजपत राय गर्ग और जयपुर के चेतन चौहान को दिया गया। आधी दुनिया पंकस अकादमी अवार्ड शैल-सूत्र नैनीताल की सम्पादक आशा शैली और साहित्य साधना सम्मान आकाशवाणी जालन्धर के सोहन कुमार को दिया गया।
शिरोमणि पत्रकारिता अवार्ड दिव्य हिमाचल नई दिल्ली के ब्यूरो प्रमुख सुशील राजेश और जनता संसार के सम्पादक जतिन्द्र मोहन विग, सुर-संगीत प्रतिभा सम्मान अरुण कपूर (स्वर्गीय) के नाम और तबला-वादक उस्ताद जनाब काले राम जी को, प्रतिष्ठाजनक शिक्षा रत्न सम्मान अमन ब्रोका, सुधीर ब्रोका एवं नीलम सलवान, .के. सलवान को, सहकार शिरोमणि सम्मान दिल्ली के संतोष शमर को, काव्य रत्न सम्मान अमिता सागर, स. बलविन्दर सिंह मन्नी स्मृति सम्मान सोनू त्रेहन एवं जन-सेवा सम्मान डा. मधुरिमा करवल और इंस्पेक्टर पुष्प बाली को दिया  गया।

अकादमी के अध्यक्ष सिमर सदोष ने बताया कि सुदेश कुमार और शिशु शमर शांतल को पहली बार स्थापित सद्भावना सम्मान प्रदान किया गिरा। सिम्मी अरोड़ा, संजय अरोड़ा कानपुर, गुरकीरत कौर बत्तरा, चरणजीत सिंह बत्तरा,  रविन्द्र अरोड़ा खुरजा, सीमा डावर, गौरव डावर, लुधियाना, रोहित बिबलानी एवं मोहित बिबलानी को भी सद्भावना सम्मान दिया गया।


Source:
http://encounterindia.in/dr-bajrang-soni-of-jaipur-received-lifetime-achievement-award-of-pankas

शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

लघुकथा समाचार: महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक के हरियाणा अध्ययन केन्द्र लघुकथा लेखन तथा कविता लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन

Bhaskar News Network Sep 12, 2019


महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के हरियाणा अध्ययन केन्द्र लघुकथा लेखन तथा कविता लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन करेगा। बदलता हरियाणा-बढ़ता हरियाणा, हमारा प्यारा हरियाणा, जल ही जीवन है व सोशल मीडिया के युग में जीवन विषय पर आयोजित की जाने वाले इस प्रतियोगिता में हरियाणा के सभी राज्य विश्वविद्यालयों तथा संबद्ध महाविद्यालयों के विद्यार्थी भाग ले सकते हैं। हरियाणा अध्ययन केन्द्र की निदेशिका प्रो. अंजना गर्ग ने बताया इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले विद्यार्थी 31 अक्टूबर तक अपनी लघुकथा या कविता भारतीय डाक या ईमेल के माध्यम से हरियाणा अध्ययन केन्द्र में भेज सकते हैं। 


Source:
https://www.bhaskar.com/haryana/rohtak/news/haryana-news-articles-asked-for-short-story-writing-and-poetry-writing-by-31-october-084504-5467193.html

सोमवार, 2 सितंबर 2019

लघुकथा समाचार | लघुकथाओं में बड़ी बात | दैनिक ट्रिब्यून | 01 Sep 2019 | मनमोहन गुप्ता मोनी

मनमोहन गुप्ता मोनी


लघुकथा के क्षेत्र में डॉ. मधुकांत का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सम्मान से सम्मानित मधुकांत सातवें दशक से लघुकथा लेखन में सक्रिय हैं। उनकी अनेक पुस्तकें सम्मानित व प्रकाशित हो चुकी हैं। केवल लघुकथा पर ही उनके एक दर्जन से अधिक संग्रह छप चुके हैं। उपन्यास लेखन से लेकर कहानी, नाटक, कविता, व्यंग्य आदि के साथ-साथ लघुकथा का सृजन उनका निरंतर जारी है। लघुकथा की बात हो और डॉक्टर मधुकांत का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं। थोड़े शब्दों में अधिक बात कहना आसान काम नहीं है। एक लघुकथा लेखक ही इसे पूर्ण कर सकती है।
डॉ. मधुकांत की रचनाओं को पढ़ने पर ऐसा लगता है कि जिंदगी का शायद ही कोई पल या विसंगति, उनकी रचनाओं में अछूती नहीं रही। एक ही विषय पर उनकी अनेक लघुकथाएं पढ़ने को मिल सकती हैं लेकिन उनमें पुनरावृत्ति नहीं है। शैक्षिक जगत से जुड़े रहने के कारण रचनाओं में अध्यापन अनुभव भी स्पष्ट दिखाई देता है। ‘ब्लैक बोर्ड’ की तरह ही ‘मेरी शैक्षिक लघुकथाएं’ में भी शिक्षा की बात अधिक है। लघुकथा संग्रह ‘तूणीर’ की रचनाओं को पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि यह कोरी कल्पना पर आधारित है। ऐसा आभास होता है कि डॉ. मधुकांत ने हर रचना को जिया है। ‘नाम की महिमा’ लघुकथा में उन्होंने बिल्कुल सटीक इशारा किया है। इसी प्रकार अतिथि देवो भव, अंगूठे, आईना, सगाई, जानी-अनजानी, अन्न देवता आदि लघुकथाएं जिंदगी के बहुत करीब दिखाई देती हैं।

पुस्तक : तूणीर (लघुकथा संग्रह) 
लेखक : डॉ. मधुकांत 
प्रकाशक ः अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली 
पृष्ठ ः 121 
मूल्य ः रु. 240


Source:
https://www.dainiktribuneonline.com/2019/09/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4/

सोमवार, 12 अगस्त 2019

लघुकथा समाचार : बुनावट व घनीभूत कसाव की वजह से नई पीढ़ी में लोकप्रिय हो रही लघुकथा

सिटी रिपाेर्टर | पटना सिटी | दैनिक भास्कर 

कथाकार व उपन्यासकार डाॅ. संतोष दीक्षित का मानना है कि लघुकथा एक ऐसी विधा है, जो अत्यधिक संतुलन और सजगता की मांग करती है। एक अच्छी लघुकथा लिखना आसान काम नहीं है। सबसे बड़ी समस्या विषय के चयन की होती है। वे रविवार को बिहार हितैषी पुस्तकालय सभागार में अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच व स्वरांजलि की ओर से आयोजित वार्षिक पत्रिका संरचना के 11वंे अंक के लोकार्पण के दौरान संबोधित कर रहे थे। 

पत्रिका के अंक का लोकार्पण दूरदर्शन पटना के कार्यक्रम प्रमुख डाॅ. राजकुमार नाहर, डाॅ. संतोष दीक्षित, लघुकथा मंच के अध्यक्ष डाॅ. सतीश राज पुष्करण, डाॅ. भोला पासवान, डाॅ. अनीता राकेश, डाॅ. ध्रुव कुमार ने किया। डाॅ. ध्रुव कुमार ने कहा कि लघुकथा बुनावट व घनीभूत कसाव की वजह से नई पीढ़ी में लोकप्रिय हो रही है। संचालन संयोजक अनिल रश्मि व धन्यवाद ज्ञापन आलोक चोपड़ा ने किया। संरचना में प्रकाशित एक दर्जन से अधिक लघुकथाओं का पाठ भी हुआ। मौके पर विभा रानी श्रीवास्तव, वीरेंद्र भारद्वाज, पुष्पा जमुआर, प्रभात धवन, विवेक कुमार, संजय कुमार, ज्योति मिश्र, रानी कुमारी आदि ने विचार रखे। पुस्तक में बिहार से जुड़े दर्जनों लघु कथाकारों की रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। 

Source:
https://www.bhaskar.com/bihar/patna/news/short-story-becoming-popular-in-new-generation-due-to-texture-and-condensation-tightness-094005-5227095.html