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बुधवार, 13 नवंबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 11 । संतोष सुपेकर की लघुकथाओं के बहाने वैश्विक मुद्दों पर सृजन चर्चा

आदरणीय स्वजन,

हमारी दुनिया वैश्विक चुनौतियों से लगातार प्रभावित रही है। चाहे जलवायु परिवर्तन हो, सामाजिक न्याय, आर्थिक असमानता हो स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दे हों, कितनी ही बातें विश्व में फैली हुई हैं, जिन्हें संबोधित करने का प्रयास चल रहा है। ऐसी स्थिति में साहित्य का दायित्व हो जाता है कि उन मुद्दों पर रचनाकर्म को स्थान दे और समाज के हित पर विचार-विमर्श करने को उचित मंच भी प्रदान करे। इस आलेख में श्री संतोष सुपेकर की रचनाओं के माध्यम से वैश्विक लघुकथाओं पर चर्चा की गई है।

कहना न होगा, लघुकथाएँ, विशेष रूप से, वैश्विक मुद्दों पर चर्चा हेतु शक्तिशाली साधन हो सकती हैं, जो पाठकों को जटिल चुनौतियों पर एक संक्षिप्त किन्तु प्रभावशाली दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। लघुकथाओं में वैश्विक मुद्दों पर लिखना न केवल जागरूकता लाता है बल्कि पाठकों को चिंतन और उनके प्रति कार्य करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा सकता है। अपरिचित दृष्टिकोणों को उजागर कर जागरूकता उत्पन्न करने, अपने पात्रों की आँखों से किसी वैश्विक मुद्दे के परिणामों का अनुभव कर सत्य से गहरे स्तर पर जुड़ने, जटिल मुद्दों को शक्तिशाली तरीके से संबोधित करने, बदलाव के बीज बोने के लिए लघुकथा उत्तम माध्यम है।

वैश्विक मुद्दों पर सृजन

वैश्विक मुद्दों पर सृजन हेतु सबसे पहले किसी ऐसे मुद्दे पर अध्ययन कर सकते हैं जो हमें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करता हो, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, गरीबी हो, मानसिक स्वास्थ्य हो, नस्ल भेद हो या लैंगिक समानता हो। जिस विषय की आप परवाह करते हैं, उस पर लेखन आपकी रचना में प्रामाणिकता भर देगा। रचनाओं में ऐसे पात्र बनाएं, जो आपके मुद्दे का प्रतिनिधित्व कर सकें। उचित पात्र पाठक और वैश्विक समस्या के बीच की खाई को पाटते हैं। 

मेरे अनुसार पाठकों को लघुकथाएँ अक्सर तब सबसे अच्छी लगती हैं जब वे सूक्ष्मतम को उजागर करें। प्रतीकों/रूपकों का उपयोग कर जटिल मुद्दों को आसानी से प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रभावी लघुकथा में व्याख्यान/उपदेश देने के बजाय अपनी बात को किसी विशेष और प्रभावी तरीके से दिखाया जाए तो बेहतर। पाठक स्वयं उनके निष्कर्ष निकालें। स्पष्ट कथनों के बजाय घटनाओं, संवाद और पात्रों के माध्यम से वैश्विक मुद्दे को प्रस्तुत करें।

वैश्विक मुद्दे स्वाभाविक रूप से भावनात्मक रूप से समुदायों से जुड़े होते हैं, और अपनी रचनाओं में भावनाओं को शामिल करना - जैसे कि डर, आशा, निराशा आदि से पात्रों, संवादों व नरेशन द्वारा पाठकों को जोड़ा जा सकता है। कोशिश करें कि छोटी लेकिन विशिष्ट घटनाओं द्वारा वैश्विक मुद्दों के बारे में कहा जाए। ये पल एक ऐसा स्नैपशॉट पेश करते हैं जो अक्सर व्यापक चित्रण से ज़्यादा मार्मिक होता है। समुदायों को प्रभावित करने वाले वैश्विक मुद्दों के बारे में लिखते समय, विषय को सम्मानपूर्वक और जिज्ञासा के साथ समझना ज़रूरी है। रूढ़िवादिता या ग़लतफ़हमी से बचने के लिए मुद्दे पर गहन शोध भी करें। प्रामाणिकता और सम्मान एक ऐसी कुंजी है जो ना केवल यथार्थ को उजागर करती है बल्कि पाठकों को प्रभावित भी करती है।

लघुकथाएं पाठकों को ऐसे व्यक्तियों और घटनाओं से जोड़ सकती हैं, जिनका सामना उन्होंने अपने दैनिक जीवन में कभी नहीं किया होगा। लेखकों के रूप में, ऐसा सृजन एक अवसर है जो समाज को शिक्षित और प्रेरित कर सकता है। लेकिन, यह भी सच है कि, इसका प्रभाव तभी स्थायी रह सकता है - जब रचनाकर्म का उद्देश्य, सत्य की गहराई और ईमानदारी से भरा हो।

संतोष सुपेकर जी सर की वैश्विक मुद्दों पर लघुकथाएं 

वरिष्ठ लघुकथाकार एवं कवि संतोष सुपेकर जी लघुकथा के अतिरिक्त पत्रकारिता एवं जनसंचार क्षेत्र में सुपरिचित नाम हैं। लघुकथा में उनके विशिष्ट कार्यों में भारत सरकार को लगातार पत्र भेजकर लघुकथा को शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लागू करने के लिए निवेदन करना सम्मिलित हैं। ‘साथ चलते हुए’, ‘हाशिए का आदमी’, ‘बंद आँखों का समाज’, 'सातवे पन्ने की खबर' ‘हँसी की चीखें’, 'Selected Laghukathas of Santosh Supekar', 'अपकेन्द्रीय बल' आदि उनके प्रमुख लघुकथा संग्रह हैं। लघुकथा विधा पर विभिन्न विद्वानों से चर्चा और समीक्षा कार्य भी उन्होंने कई बार किया है। हाल ही में आई उनकी पुस्तक 'अन्वीक्षण' उनके द्वारा किये गए समीक्षा कार्यों, आलेखों व पत्रों का संग्रह है, जो कि शोध कार्य हेतु अति उपयुक्त है। उनके लघुकथा संग्रह 'सातवे पन्ने की खबर' को साहित्य अकादमी भोपाल के द्वारा प्रादेशिक 'जैनेन्द्र कुमार जैन लघुकथा' पुरस्कार (2020) प्राप्त हुआ है। सरल काव्यांजलि संस्था के माध्यम से भी वे लघुकथा विधा के उत्थान हेतु प्रयासरत हैं। उज्जैन के लोकप्रिय हिन्दी दैनिक 'जन टाइम्स' में बतौर साहित्य सम्पादक, समकालीन लघुकथाकारों की लघुकथाएं प्रकाशित कर रहे हैं। उनकी पुस्तक 'उत्कंठा के चलते' लघुकथा विषयक साक्षात्कारों का संकलन है। उनके लघुकथा संग्रह 'अपकेन्द्रीय बल' के लिए आदरणीय योगराज जी लिखते हैं कि,"इस संग्रह से गुजरते हुए मैंने पाया कि संतोष सुपेकर की लघुकथाएँ हमारे जीवन की विसंगतियों का बहुत ही बारीकी से अन्वेषण करती हैं। यथार्थ से सजी इन लघुकथाओं में जीवन की श्वेत श्याम फोटोग्राफी है।"

उनकी कुछ ऐसी रचनाओं पर चर्चा करते हैं, जो कि वैश्विक मुद्दों को उजागर करती हैं।

श्री सुपेकर की रचना ‘ग्लोबल फिनॉमिना’ में श्री सुपेकर ने क्षेत्रवाद पर पडौस से लेकर पूरी दुनिया के व्यवहार को बताया है। रूस और क्रीमिया के मिलने से अमेरिका की और एक बड़ा प्लॉट खरीदने पर पडौस की महिला का बदला रूप ग्लोबल फिनॉमिना है। सूक्ष्मतम को उजागर करती यह रचना लघुकथा एक वैश्विक मुद्दे को इस तरह बता रही है जिससे हर तरह के पाठक जुड़ सकते हैं।

उनकी ही एक अन्य लघुकथा 'भयावह चिंता' में टेलीविज़न पर दृश्य के माध्यम से एक बच्चे को बचाने के लिए पिता सरहद की टूटी हुई बाड़ में से अपने बच्चे को दूसरे देश की सरहद में रख रहा था। लेखक द्वारा बिना कुछ कहे यह समझ में आ रहा है कि जिस देश में रह रहे हैं, वहां मार-काट होने के कारण इन लोगों को जान का खतरा है और बच्चा परेशानियां देखेगा तो सही, लेकिन कम से कम जान तो बची रहेगी, यह विचार पिता के दिमाग में है। केवल यही बात ही शान्ति का महत्व दर्शा रही है। कही भी कृत्रिमता का अनुभव हुए बिना भावनाओं को स्वाभाविक रूप से उजागर कर यह रचना श्री सुपेकर की काव्य प्रतिभा को भी गद्य से जोड़कर एक प्रयोग भी दर्शा रही है। बहुत व्यापक तौर की बजाय यह संक्षिप्त चित्रण अपेक्षाकृत अधिक मार्मिक प्रतीत होता है। यह भी प्रतीत होता है कि जैसे यह लेखक की स्वयं की पीड़ा हो। यह सत्य है कि दूसरो के दर्द को आत्मपीडा बना पाना ही सभी का हित सोच पाने वाले लेखक की संवेदनशीलता होती है।

'सभ्यताओं, सुनो' शीर्षक की लघुकथा में दो मित्रों की बातचीत में हथियार से बचाव के लिए हथियार के अपने पास होने की मानसिकता का सटीक वर्णन किया गया है। इस लघुकथा के लिए लेखक ने काफी रिसर्च की है और यह रिसर्च किसी भी लघुकथा के लिए करनी आवश्यक है भी। बुलेटप्रूफ जेकेट हमारी पूरी तरह सुरक्षा नहीं कर सकता है, यह बात भी बताती है कि हमारा समझदार मस्तिष्क वैश्विक स्तर पर किस दिशा में विचार रखता है। यदि हम बचाव का सोचते तो किसी न किसी ऐसी वास्तु का आविष्कार हो चुका होता, जो हमारे पूरे शरीर को सुरक्षा दे सकता। पात्र जब यह कहते हैं कि हम में से अधिकतर के अन्दर हत्यारा छिपा है तो एक सिहरन सी उठ जाती है। अंत में लेखक जोन्स मेकेस की रचना द्वारा यह समझाते हैं कि क्यों ना साहित्यकारों की बातें सुनी व समझी जाए!

इसी क्रम में उनकी एक रचना खामोश पढ़िए, 

खामोश !

"बेटा, तुम वैज्ञानिक तो बनना चाहते हो।" पीटीएम (शिक्षक-पालक बैठक) में उस नए शिक्षक ने एक साधारण से लड़के से कुछ व्यंग्य से पूछा, "पर ये तो सोचा होगा कि बनाओगे क्या, अविष्कार किस चीज़ का करोगे?"

"मैं, मैं.. वह इंस्ट्रूमेंट बनाना चाहता हूँ अपनी माता की ओर देखते, गोलीबारी में मारे गए व्यक्ति के दस वर्षीय पुत्र का जवाब था, "कि... कि "खामोश' कहते ही,  दुनिया 

 भर की  बन्दूकें, तोपें, रिवॉल्वर सब, सहम कर हो जाएँ, खामोश!"

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इस रचना में भी जब एक बच्चा यह कहता है कि दुनिया भर के हथियार खामोश हो जाएं, तो यह बात एक सकारात्मकता पैदा करती है। भविष्य की पीढ़ी जब ऐसी रचनाएं पढ़ेगी तो निःसंदेह ही भविष्य हमारी सोच से अधिक उज्जवल हो सकेगा। 

शांति जीवन है और कलह अजीवन। इसे मौत नहीं कह सकते, लेकिन जिस तरह प्रकृति अपने शांत रूप में ही सुंदर दिखाई देती है और बिगड़ने पर विध्वंसक, वैसे ही इंसानी स्वभाव भी है। अतः इसे मैंने 'अजीवन' कहा, जैसे प्रकृति की मृत्यु विध्वंस से नहीं होती, कलह से मानव की मृत्यु नहीं होती, लेकिन मानवीयता की तो होती ही है।

एक अन्य रचना भी पढ़िए,

भयतंत्र में एक शाम 

‘अरे!’ पैंतालीस वर्षीय सागर ने पत्नी को आते  हुए देखा तो पूछ बैठा, ‘अकेली  ही आ गई! मुझे फोन कर दिया होता, लेने आ जाता, सुनसान रास्ता था…’

‘लगाया था आपका फोन, पर लगा ही नहीं। फिर सोचा निकल ही चलूँ, और आ गई, बस्स!’

‘अरे पर…  रास्ता कितना सुनसान है और रात भी होने वाली है। तुम्हें डर नहीं लगा?’

‘डर? हां, डर तो था, बल्कि बहुत से डर ‘थे’। सुनसान रास्ते पर लुटेरों का डर,  छेड़छाड़ का डर, इज्जत का डर, आवारा कुत्तों का डर, विक्षिप्तों का डर, व्हीकल से कुचले जाने का डर, चैन स्नेचर्स का डर, मोबाइल छिन जाने का डर…’ जैसे-जैसे वह बोलती गई उसकी मुस्कान तीखी होती गई और अपने अंदर एक सिहरन-सी  महसूस करता गया सागर, ‘अकेली कहां थी मैं? इतने सारे डर जो थे मेरे साथ!

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यह रचना भी उन भयों को उजागर करती है, जो कामोबेश सभी देशों में व्याप्त हैं। यह रचना मानवीय समाज और जानवरों के बीच यह अंतर भी बिना कहे बताती है कि, जानवर रात को आराम से घूम सकते हैं लेकिन इंसान नहीं और विशेष तौर पर तो महिला तो बिलकुल नहीं। यह (अपराध) एक ऐसा वैश्विक मुद्दा है जिस पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है।

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जिन अन्य रचनाओं पर चर्चा की है, वे प्रस्तुत हैं:






कुल मिलाकर, यह कहने में कतई अतिशयोक्ति नहीं है कि, संतोष सुपेकर जी सर और उनकी तरह ही लिखने वालों ने विषय को समझने में जो अध्ययन किया है और जिस कलात्मकता और भावात्मकता का अपनी रचनाओं में परिचय दिया है, वह निःसंदेह सराहनीय है, पठनीय है और हमारी धरती और उस पर बसे हम सभी के लिए उपयुक्त एवं उपयोगी भी।
- चंद्रेश कुमार छतलानी

रविवार, 10 नवंबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 10 । साइबर सुरक्षा पर सृजन

आदरणीय मित्रों,

साइबर सुरक्षा एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा बनकर उभरा हुआ है, जो सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों को समान रूप से प्रभावित कर रहा है। अर्थव्यवस्थाओं और समाजों के बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ, साइबर खतरों से जुड़े जोखिम बढ़ गए हैं। हैकिंग, फ़िशिंग, रैनसमवेयर और डेटा चोरी सहित साइबर हमले, संवेदनशील जानकारियों, वित्तीय प्रणालियों आदि को निशाना बनाते हैं। ये हमले न केवल महत्वपूर्ण वित्तीय नुकसान का कारण बनते हैं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म और सेवाओं में विश्वास को भी कम करते हैं। उदाहरण के लिए, 2017 में कुख्यात WannaCry रैनसमवेयर हमले ने दुनिया भर में अस्पताल के संचालन को बाधित कर दिया। कनेक्टेड डिवाइस के उदय, जिसे इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) के रूप में जाना जाता है, ने साइबर अपराधियों के लिए हमले की सतह का विस्तार किया है, जिससे ऊर्जा, परिवहन और स्वास्थ्य सेवा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र अधिक असुरक्षित हो गए हैं। साइबर सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों को संबोधित करने के लिए समन्वित अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों, तकनीकी नवाचारों, और गोपनीयता की सुरक्षा के लिए व्यापक नीतियों की आवश्यकता है। कुछ मामलों में, साइबर हमले राष्ट्रीय सुरक्षा तक को भी खतरे में डाल सकते हैं, सार्वजनिक सेवाओं को बाधित कर सकते हैं और यहां तक कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी कमजोर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में साइबर हमलों के माध्यम से चुनाव में हस्तक्षेप ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। विकासशील राष्ट्र, जिनमें अक्सर मजबूत साइबर सुरक्षा सम्बन्धी संसाधानोम की कमी होती है, इन हमलों के लिए विशेष रूप से असुरक्षित हैं। साथ ही, दुनिया भर के व्यवसाय साइबर खतरों की बदलती प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। COVID-19 महामारी के दौरान वैश्विक कार्यबल के दूरस्थ कार्य में बदलाव ने इन जोखिमों को और बढ़ा दिया है, व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट सिस्टम पर साइबर हमलों में वृद्धि के साथ। सरकारों, निगमों और व्यक्तियों को साइबर खतरों के जोखिमों को कम करने के लिए एन्क्रिप्शन, मल्टी-फैक्टर प्रमाणीकरण और नियमित सॉफ़्टवेयर अपडेट सहित मजबूत सुरक्षा उपाय अपनाने चाहिए।

वैश्विक साइबर सुरक्षा परिदृश्य साइबर हमलों में अभूतपूर्व वृद्धि देख रहा है। साइबरसिक्यूरिटी वेंचर्स के अनुसार, साइबर अपराध से दुनिया को 2025 तक सालाना 10.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होने का अनुमान है, जो 2015 में 3 ट्रिलियन डॉलर था, जो इसे वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी आर्थिक चुनौतियों में से एक बनाता है। विश्व आर्थिक मंच के 2023 वैश्विक साइबर सुरक्षा आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार, साइबर सुरक्षा के 95% मुद्दे मानवीय भूल के कारण हो सकते हैं, जो बेहतर साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण और जागरूकता की आवश्यकता पर बल देता है। IBM सुरक्षा द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 2023 में डेटा उल्लंघन की औसत लागत $4.45 मिलियन थी, जिसमें स्वास्थ्य सेवा सबसे अधिक लक्षित उद्योग था। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ब्लॉकचेन जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ साइबर सुरक्षा को बढ़ाने के नए तरीके प्रदान करती हैं, लेकिन वे परिष्कृत साइबर अपराधियों के लिए उपकरण भी बन रही हैं। जैसे-जैसे साइबर खतरे विकसित होते हैं, राष्ट्र साइबर सुरक्षा ढाँचों में भारी निवेश कर रहे हैं; हालाँकि, एक महत्वपूर्ण कौशल अंतर बना हुआ है, 2023 में वैश्विक स्तर पर अनुमानित 3.4 मिलियन साइबर सुरक्षा नौकरियाँ खाली हैं।

साइबर सुरक्षा पर कुछ प्रख्यात गणमान्य व्यक्तियों के उद्धरण निम्नानुसार हैं:

नरेंद्र मोदी – "साइबर सुरक्षा अर्थव्यवस्था, हमारे नागरिकों की सुरक्षा और हमारी संप्रभुता की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।"

बराक ओबामा – "साइबर खतरे संयुक्त राज्य अमेरिका के सामने सबसे गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों में से एक हैं।"

एंटोनियो गुटेरेस (संयुक्त राष्ट्र महासचिव) – "साइबर सुरक्षा न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार, विकास और शांति का भी प्रश्न है।"

थेरेसा मे – "वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज को साइबर हमलों से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ काम करना जारी रखेगा।"

बिल गेट्स – "प्रौद्योगिकी की उन्नति को आप नोटिस करें न करें, यह आपकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। और, साइबर सुरक्षा सभी देशों के लिए एक सक्रिय और लगातार विकसित होती प्राथमिकता होनी चाहिए।"

एंजेला मर्केल – "हमें इस तथ्य का सामना करना होगा कि साइबर खतरे वास्तविक जिंदगी को प्रभावित करते हैं - व्यक्तियों से लेकर सरकारों तक। सामूहिक कार्रवाई ही आगे बढ़ने का रास्ता है।"

इन्हें समझा जाए तो ये उद्धरण वैश्विक परिप्रेक्ष्य में साइबर सुरक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हैं तथा सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और व्यक्तिगत अधिकारों के लिए इसकी प्रासंगिकता पर बल देते हैं।

साइबर सुरक्षा पर साहित्य

साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में कई मौलिक कार्य उभरते खतरे के परिदृश्य और शमन के लिए रणनीतियों में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। "साइबर सुरक्षा और साइबर युद्ध: हर किसी को क्या जानना चाहिए" पी.डब्ल्यू. सिंगर और एलन फ्राइडमैन द्वारा लिखित पुस्तक साइबर खतरों की जटिल दुनिया और साइबर हमलों के वैश्विक प्रभावों के लिए एक सुलभ लेकिन व्यापक मार्गदर्शिका है। केविन मिटनिक द्वारा लिखित "द आर्ट ऑफ़ इनविज़िबिलिटी" एक और महत्वपूर्ण कार्य है, जो डिजिटल युग में गोपनीयता बनाए रखने और साइबर खतरों से खुद को बचाने के बारे में व्यावहारिक सलाह प्रदान करता है। रॉन डीबर्ट द्वारा लिखित "ब्लैक कोड: इनसाइड द बैटल फ़ॉर साइबरस्पेस" साइबर जासूसी के वैश्विक प्रभाव और सरकारें और निगम सूचना को नियंत्रित करने के लिए इंटरनेट का उपयोग कैसे करते हैं, इस पर चर्चा करता है। रॉस एंडरसन द्वारा लिखित "सिक्योरिटी इंजीनियरिंग: ए गाइड टू बिल्डिंग डिपेंडेबल डिस्ट्रिब्यूटेड सिस्टम्स" एक और प्रभावशाली पुस्तक है जो सुरक्षा इंजीनियरिंग और सुरक्षित प्रणालियों के डिज़ाइन में गहराई से उतरती है। ये कार्य न केवल साइबर सुरक्षा पर अकादमिक चर्चा में योगदान करते हैं बल्कि आज की परस्पर जुड़ी दुनिया में साइबर खतरों से निपटने के लिए व्यावहारिक समाधान भी प्रदान करते हैं।

साइबर सुरक्षा पर लघुकथाएं

इस विषय पर हिंदी लघुकथाएं तलाश करने में बहुत वक्त लगा। आदरणीया अंजू निगम जी का मैं दिल से बहुत शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने इस विषय में रचनाकर्म किया और करते ही मुझे रचना भेज दी। लघुकथा विधा के समुदाय में भामाशाह की तरह कोई व्यक्ति अपनी पूँजी  (अप्रकाशित लघुकथा) यूं ही विधा को समृद्ध करने के लिए खर्च कर दे तो उनके प्रति विधा को भी कृतज्ञ रहना चाहिए। एक अंग्रेज़ी लघुकथा मुझे इन्टरनेट पर प्राप्त हुई है, ब्रूस स्टर्लिंग  नाम लेखक की 'द क्लिक', लेकिन मैं इन लेखक की रचनाओं से बहुत अधिक वाकिफ नहीं हूँ, अतः यह रचनाकर्म इन्हीं का है अथवा नहीं, इसकी पुष्टि नहीं करता। मुझे जैसे प्राप्त हुई, वैसे ही उसका हिंदी अनुवाद कर यहाँ पोस्ट की है। अपनी कोई रचना मैं इस श्रृंखला के लेखों में नहीं देना चाह रहा था, लेकिन चूँकि अन्य रचनाएं मेरे सीमित अध्ययन के कारण एक महीने से भी अधिक समय तक नहीं ढूंढ पाया, अतः अपनी ही एक रचना भी इसमें दी है। ये रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:

1. द क्लिक / ब्रूस स्टर्लिंग 

उसने बिना सोचे-समझे लिंक दबा दिया। वह सोच रहा था कि, "यह तो बस एक और पॉप-अप है - इससे क्या नुकसान हो सकता है?" 

लेकिन जैसे ही उसने क्लिक किया, कम्प्यूटर की स्क्रीन काली हो गई। कुछ सेकंड बाद, उसका फ़ोन बज उठा: "तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।" उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। तभी उसके सोशल मीडिया अकाउंट को हाईजैक कर लिया गया, और उसके बैंक अकाउंट से भी रुपये निकलने लग रहे थे। 

उसके द्वारा भेजे गए हर संदेश को हैकर द्वारा ट्रैक किया जा रहा था, हर कॉल को रीरूट किया जा रहा था। कोई तो था, जो उसे देख रहा था, अपनी छाया से उसके जीवन को नियंत्रित कर रहा था। 

उसने इसे ठीक करने की कोशिश की - मॉडेम को रीसेट किया, तकनीकी सहायता से संपर्क किया - लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। उसने जो कुछ भी ऑनलाइन बनाया था, वह सब शून्य में समा गया था।

और, यह सब एक लापरवाह क्लिक की वजह से हुआ।

2. सावधान!आगे खतरा है / अंजू निगम 

" लो, दामिनी का फोन है। कह रही थी तुम्हें दो-तीन बार कॉल किया मगर तुमने फोन ही नहीं उठाया।" बादल के स्वर में नाराजगी थी।

"रिंग टोन कम रखी है इसलिए सुनाई नहीं दिया होगा।" मानसी को भी लगा ही कि दामिनी का दो-तीन बार कॉल आना मतलब मामला कुछ गंभीर है। दामिनी से बात करने के बाद मानसी भी परेशान लगी।

"क्या हुआ ? कुछ परेशानी ?" बादल का स्वर थोड़ा नरम था।

" शायद मेरा मोबाइल हैक कर लिया गया है।"

"कैसे ?"

 "दामिनी कह रही थी कि किसी ने मेरे मोबाइल नंबर से दामिनी से पैसे माँगे है। कहा कि बेटी के एडमिशन के लिये थोड़े पैसे कम पड़ रहे है। एक हफ्ते में लौटाने की भी बात कही।"

" तुमने कोई अनजान नंबर या समूह तो नहीं ऐड किया था अभी ?" बादल मसले की तह तक जाना चाह रहे थे।

 " हाँ, एक काव्य समूह से कल ही जुड़ी थी।"

" किसी को जानती हो उस समूह में?"

" नहीं मैं नहीं जानती। मुझे तो ऐड हो जाने के बाद मालूम पड़ा।"

" जिसने तुम्हें ऐड किया वह ग्रुप का एडमिन होगा। उससे पूछो।" बादल.ने सुझाया।

" कर चुकी। उसे नहीं मालूम कुछ। हो सकता है इस नये ग्रुप का कोई हो जिसे मैं नहीं जानती।" मानसी ने कयास लगाया।

" सबसे परेशानी वाली बात ये रही कि दामिनी ने मुझे बताये बिना पैसे दे दिये।"

" क्या ! कितने दे दिये ?" बादल सकते में था।

" करीब दस हजार।"

"दस हजार ! ये जानते हुये भी कि आजकल इस तरह के कितने गोरखधंधे चल रहे है।"

" दामिनी बता रही थी कि फोन करने वाला बहुत जल्दी में दिखा और दामिनी को सोचने-समझने तक का मौका नहीं दिया।"

" वह तो जल्दी करेंगा ही। कैसे पेमेंट किया ? गुगल पे किया तो कुछ नंबर तो दिया होगा।" बादल सारे लूपहोल तलाश रहे थे।

" जिस नंबर पर गुगल पे किया, वह अब बंद आ रहा है।"

"उसने कोई विकल्प नहीं छोड़ा। पहले भी जाने कितने लोगों को बेवकूफ बनाया होगा। इसकी रिपोर्ट साइबर क्राइम में लिखवानी पड़ेगी। पहले तुम्हारे अकाउंट फ्रीज करवाने पड़ेंगे फिर मोबाइल नंबर बदलना होगा।

 वैसे तो ये पता करना मुश्किल होता है कि मोबाइल हैक हुआ या नहीं लेकिन अगर तुम्हारे नंबर से पैसे मांगे गये तो ऐसा सोचा जा सकता है। मोबाइल कंपनी भी अब स्पैम नंबर को इंगित करती है। ऐसे स्पैम नंबर को कभी अटैंड न करो। अननोन नंबर को पहले ट्रूकॉलर से चैक करो। कभी कोई बेवजह ओ.टी.पी मांगे तो मत दो। कभी किसी समान की खरीदारी पर बिल बनाते समय तुम्हारा मोबाइल नंबर मांगा जायें तो मत ही दो। ये सावधानियां रखनी बहुत जरूरी है।" बादल ने कहा।

"  मैं समझ रही हूं सारी बातें। वैसे क्या मुझे दामिनी को पैसे देने चाहिए ?"

"प्रैक्टिकली देखें तो नहीं देने चाहिए क्योंकि पैसे देने से पहले उसने तुमसे पूछा नहीं था और अगर भावनाओं में बह कर सोचें तो देना चाहिए। तुम चाहो तो किसी और तरीके से उसके नुकसान की भरपाई कर सकती हो।"

"हां, ये ठीक रहेगा।" मानसी ने गहरी सांस लेते हुए कहा।

" अपने को तो तुम्हें भी टटोलना पड़ेगा, मानसी। मोबाइल यूं ही हैक नहीं हो जाते। किसी भी वजह से तुम्हारा पासवर्ड या थम्स इंप्रेशन मिले, तभी मोबाइल हैक किया जा सकता है। ऐसे किसी लूपहोल को टटोलो और आगे से सावधान रहो।" 

बादल के सावधानी भरी बातें सुनकर दामिनी सोच में पड़ गई।

अंजू निगम 

नई दिल्ली

3. इंटरनेट ऑफ बींग्स (Internet of Beings) / चंद्रेश कुमार छतलानी

उसका नाम सामनि था। सरगम के पहले, मध्यम और आखिरी स्वरों पर उसके संगीतकार पिता ने यह अजीबोगरीब नाम रखा था। लेकिन वह खुद को ज़िन्दगी कहती थी। साथ ही यह भी कहती थी, “ज़िन्दगी गाने के लिए नहीं है, गुनगुनाने के लिए है और गुनगुनाने के लिए सरगम के तीन स्वर काफी हैं।“ 

मैं तकनीक का व्यक्ति हूँ, इंटरनेट ऑफ थिंग्स पर काम करता हूँ। वह कहती थी कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स की बजाय इंटरनेट ऑफ बींग्स पर दुनिया काम क्यों नहीं करती! कहती थी, काश! ऐसी एक चिप होती जो रोज़ रात को ठीक ग्यारह बजे उसके शरीर को शिथिल कर देती, दिमाग को शांत और आँखों में नींद भर देती। 

प्रेमिका तो नहीं, वह केवल एक दोस्त थी। सच कहूं तो मुझे बहुत पसन्द थी, एक दिन मैंने उससे शादी का प्रस्ताव भी रखा, हँसते हुए बोली, "ज़िन्दगी को छूना नहीं चाहिए, ज़िन्दगी को अपने इंटरनेट की तरह ही मानो… जीने का अर्थ ही आभासी होना है।"

एक दिन तेज़ बारिश में भीगी हुई वह मेरे घर आई। कुछ सामान लेने गई थी कि बारिश हो गई। मैंने उसे पहनने को अपने कपड़े दिए और कमरे से बाहर चला गया। उसने दरवाज़ा बंद किया। मैं घर पर अकेला ही था। दिल का दानव दिमाग तक पहुंचा और मैंने दरवाज़े के की-होल से उसे कपड़े बदलते हुए भरपूर देखा। देखा क्या, बस अपनी स्मृति में हमेशा के लिए बसा लिया।

वह बेखबर बाहर आई, हम दोनों के लिए चाय बनाई और हम पीते रहे। वह चाय पीती रही और मैं… न जाने क्या?

उस बात को लगभग एक साल गुज़र गया है। आज शाम उसने खुद्कुशी कर ली।

देर रात मैं उसके घर गया तो पता चला कि किसी ने उसके कपड़े बदलने का वीडियो बना लिया था और उसे इंटरनेट की किसी वेबसाईट पर अपलोड कर दिया। सुनते ही मुझे याद आया कि उस दिन मेरा लैपटॉप भी तो ऑन ही था, इंटरनेट भी चल रहा था और… लैपटॉप का कैमरा भी… हाँ-हाँ कैमरा भी तो ऑन था।  शायद उसी वक्त मेरी तरह ही किसी और ने भी इंटरनेट के जरिये... मेरे लैपटॉप को हैक कर... उसे अपनी स्थायी मेमोरी में बसा लिया था। लेकिन सिर्फ बसाया ही नहीं, उजाड़ भी दिया उस उज्जड़ ने।

दिमागी हलचल पैरों तक पहुँची, मैं उसके घर से भागा। अपने घर पहुंच कर अपने कमरे में गया। लैपटॉप आज भी ऑन था। उसे बंद किया तो कुछ चैन सा मिला। मैं अपने कमरे से निकल आया और दरवाज़ा बंद कर दिया। डाईनिंग रूम में जाकर बैठ गया और आँखें बंद कर लीं। इस तरह जैसे ज़िन्दगी को कभी देखा ही नहीं हो। आज भी घर में मैं अकेला था। रात के ग्यारह बज रहे थे। मेरा पूरा शरीर शिथिल होने लगा, आँखें चाह कर भी खोल नहीं पा रहा था, जैसे डार्क वेब के किसी हैकर ने आँखें हर ली हों।

और उसी वक्त पता नहीं कैसे पूरा डाईनिंग रूम चाय की खूश्बू से महक उठा!

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चंद्रेश कुमार छतलानी


4. डेबिट कार्ड / सविता मिश्रा ‘अक्षजा'

“माँ..,” रुँधे गले से इस एक शब्द को फोन पर सुनते ही शैली ने बेटे की घबराहट को भांप लिया। अब शैली उस आवाज के माध्यम से अपने बेटे की रोती आँखें साफ-साफ देख पा रही थी। अपने को संयमित करके बोली,

“रोओ नहीं बेटा, क्या हुआ बताओ तो?”

न जाने कितने दुर्विचार शैली के सामने से चलचित्र की भांति दौड़ने लगे। पुनः साहस जुटाकर बोली, “मैं हूँ न! बताओ तो...!"

"माँ, एक नम्बर आया होगा, पूछकर, किसी ने बैंक खाते में... पड़े सारे रुपए... उड़ा लिए। सुबह आठ बजे... मैं नींद में था... तभी फोन आया, और... और सेकेंड भर में... सारे रुपये..! पापा... गुस्सा करेंगे... न माँ..."

रुँधे गले से अटक-अटककर किसी तरह वाक्य पूरा हुआ था।

मन किया कि चीखे-चिल्लाये उस पर, इतनी लापरवाही, सोने के चक्कर में होश खो बैठा था क्या? ओटीपी नंबर बता दिया! कल ही तेरे ग्रेजुएशन की फीस को जमा किए पूरे दो लाख रुपए लुटा बैठा तू...! सहसा आँखों के सामने वे घटनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं, जिसमें बच्चे साइबर क्राइम का शिकार होकर, माता-पिता की डांट के डर से आत्महत्या कर बैठे थे।

उसने अपने को सायास वर्तमान में धकेला और आवाज में लचीलापन लाकर बोली, “बेटा, गलतियाँ हर किसी से हो जाती हैं, परन्तु सीख भी दे जाती हैं। आगे से सावधानी रखना| वरना येन-केन-प्रकारेण सारी मेहनत की कमाई ये कार्ड चूस लेगा, क्योंकि इसकी तो आँखें हैं नहीं, बस सुरसा रूपी मुँह-ही-मुँह है।”

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सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

आगरा


सोमवार, 21 अक्तूबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 9 । रोजगार पर सर्जन

आदरणीय मित्रों,

वैश्विक मुद्दों के इन आलेखों को पढ़ने पर प्रारम्भ में आप इसे अकादमिक बातों से जुड़ा हुआ पा सकते हैं। हालाँकि, वे बातें मुद्दों पर कुछ सामयिक चर्चाएँ हैं, जो साझा करने का प्रयास किया गया है। विषय को समझने पर ही हमारा मस्तिष्क खुलता है और साहित्यिक समझ के व्यक्तियों के विचारों में रचना जन्म ले सकती है। वैसे भी, जब हम यह चाहते हैं कि हमारी रचनाएं अकादमिक रूप से भी प्रभावित करें तो, उस क्षेत्र में हमें एकाध कदम रखना पड़ेगा ही।

इस आलेख में रोजगार के बारे में चर्चा की गई है, जो कि एक ऐसा विषय है, जिससे हम सभी जुड़े हुए हैं। हम ही नहीं बल्कि पूरा विश्व जुड़ा हुआ है। कई भ्रांतियां भी हैं और कई बाधाएं भी। कहीं अच्छे रोजगार के अवसर नहीं हैं तो कहीं दिशा। कहीं भाई-भतीजावाद है तो कहीं गॉडफादर वाद।

कुल मिलाकर, वैश्विक रोजगार के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं, प्रौद्योगिकी में तेज़ी से हो रहे बदलाव, वैश्वीकरण और आर्थिक अस्थिरता के कारण नौकरी के बाज़ार प्रभावित हो रहे हैं। विशेष रूप से कम कौशल वाली नौकरियों में कामगारों की संख्या कम हो रही है, जिससे नौकरी की सुरक्षा को लेकर व्यापक चिंताएँ पैदा हो रही हैं।

इनके साथ ही, जलवायु परिवर्तन और राजनीतिक तनाव जैसे परिवर्तन भी आर्थिक अनिश्चितता में योगदान दे रहे हैं, जिसके फलस्वरूप कई क्षेत्रों में नौकरी के अवसर सीमित हो रहे हैं। यह विकासशील देशों में विशेष रूप से होता है, जहाँ कार्यबल या जनसंख्या बढ़ रही है, लेकिन नौकरियाँ उस गति से नहीं बढ़ रही हैं, जिससे गरीबी और असमानता बढ़ती है।

सबसे बड़ा मुद्दा युवा बेरोज़गारी का है, क्योंकि कई युवा रोज़गार हासिल करने के लिए आवश्यक कौशल या अवसरों के बिना नौकरी चाह रहे हैं। अविकसित उद्योग, शिक्षा की कमी और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच जैसे संरचनात्मक कारक उपलब्ध नौकरियों की संख्या और काम की तलाश करने वाले लोगों की संख्या के बीच के अंतर को और बढ़ाते हैं। इसके अलावा, रोज़गार में लैंगिक असमानताएँ, जिसमें महिलाओं को वेतन असमानता और कम नौकरी की संभावनाओं जैसी अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और ये मुद्दे रोज़गार संकट में जटिलता की एक और परत जोड़ते हैं।

इन दिनों के मुख्य मुद्दें, Artificial Intelligence और Robotics की बात करें तो, आने वाले कुछ ही वर्षों में यह बहुत कुछ बदलने वाले हैं और इनसे एक भय भी उत्पन्न हो रहा है कि, कई रोजगार चले जाएंगे। हालाँकि यह भय उस लुडाइट हिस्टीरिया की तरह ही है, जब 19 वीं सदी के कपड़ा मजदूरों ने रोजगार छीन जाने के भय के कारण कपड़ा बनाने वाली मशीनों को नष्ट कर दिया था। आज के समय में यह हास्यास्पद लग सकता है कि जब उद्योगों का मशीनों के बिना अस्तित्व ही नहीं है तो पहले के मजदूरों ने यह धारणा कैसे बनाई? बिलकुल यही धारणा आज भी है। यह सच है कि मशीनें या प्रोद्योगिकी जब भी उन्नत होती हैं, हमारी कार्य दक्षता बढ़ती है और उन कार्यों को करने वालों के मानवों को यह चिंता होती ही है कि कहीं उनके रोजगार पर संकट तो नहीं आएगा! यह भी सच है कि - आएगा। लेकिन उसके साथ ही, मशीनें अपने साथ नए रोजगार लाती हैं, जो अधिकतर बार संख्या में अधिक होते हैं और मानदेय (सैलरी) में भी, क्योंकि जब अधिक दक्षता से कार्य होगा तब परिणामस्वरुप कार्य का मूल्य भी बढ़ेगा ही। अतः, यह कह सकते हैं कि, जब भी प्रोद्योगिकी उन्नत हो रही हो, उसे सीखना हमारी उन्नति का भी द्योतक है।

बेरोजगारी पर पुनः आते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, वैश्विक बेरोजगारी दर अनुमानित र्रोप से 200 मिलियन से अधिक है। 2023 में, वैश्विक बेरोजगारी दर लगभग 5.3% थी, जिसमें विकासशील देशों में सबसे अधिक समस्या थी। युवा बेरोजगारी, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में, वैश्विक औसत से काफी अधिक बनी हुई है, कुछ देशों में दरें 20% से अधिक तक पहुँच गई हैं। 

COVID-19 महामारी ने इन संख्याओं को और बढ़ा दिया, जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए और दुनिया भर में आर्थिक अस्थिरता बढ़ गई। यह भी है कि, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कुछ सुधार के बावजूद, रोजगार सृजन धीमा ही बना हुआ है, जिसमें अल्परोजगार और अनौपचारिक कार्य भी अतिरिक्त चुनौतियाँ हैं।

कुछ उल्लेखनीय गणमान्य व्यक्तियों के बेरोजगारी पर उद्धरण निम्नानुसार हैं:

फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट - "हमारी प्रगति की परीक्षा यह नहीं है कि हम उन लोगों की समृद्धि में और वृद्धि करते हैं या नहीं, बल्कि यह है कि हम उन लोगों के लिए पर्याप्त प्रदान करते हैं या नहीं जिनके पास बहुत कम है।"

बराक ओबामा - "हम दीर्घकालिक बेरोजगारी की समस्या से तब तक नहीं निपट सकते जब तक हम लोगों को फिर से काम पर नहीं लगाते, एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण नहीं करते जो हर अमेरिकी को अवसर प्रदान करे।"

बान की-मून - "युवा बेरोजगारी एक वैश्विक चुनौती है। तत्काल उपायों के बिना, हम प्रतिभा, नवाचार और गतिशीलता से 'खोई हुई पीढ़ी' बनाने का जोखिम उठा रहे हैं।"

नेल्सन मंडेला - "गरीबी पर काबू पाना दान का इशारा नहीं है, यह न्याय का कार्य है। यह मानव का एक मौलिक अधिकार, उसकी गरिमा और सभ्य जीवन के अधिकार की सुरक्षा है।"

कोफी अन्नान - "यदि एक बेहतर और सुरक्षित दुनिया बनाने की हमारी उम्मीदें केवल कल्पना से अधिक होनी चाहिए, तो हमें कार्यबल में अधिक लोगों की भागीदारी की आवश्यकता होगी, जिनके पास उचित नौकरियां और बेहतर अवसर हों।"

रोजगार समस्या को हल करने के तरीकों पर विचारें तो सबसे पहले विचार आता है कौशल विकास और शिक्षा का। आवश्यक कौशल से लैस करने के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में निवेश करना आवश्यक है।

इसके पश्चात सरकारों को नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना चाहिए। छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने से नए रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं, विशेषकर वंचित क्षेत्रों में।

सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना भी आवश्यक है। बेरोजगारी भत्ता, आर्थिक संकट के समय स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं तक आसान पहुँच मानव सुरक्षा में मदद कर सकता है।

समान वेतन, मातृत्व लाभ और उचित अवसरों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना रोजगार में लैंगिक असमानताओं को दूर कर सकता है।

इनके साथ ही सरकारों को रोजगार सृजन के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

बेरोजगारी पर साहित्य सर्जन

बेरोजगारी पर सबसे प्रभावशाली साहित्य में जॉन मेनार्ड कीन्स की 'द जनरल थ्योरी ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट, एंड मनी' जैसी रचनाएँ शामिल हैं, जो आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में बेरोजगारी की एक आधारभूत समझ प्रदान करती हैं। कीन्स ने तर्क दिया कि बेरोजगारी अक्सर वस्तुओं और सेवाओं की अपर्याप्त मांग के कारण होती है, वे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी हस्तक्षेप पर भी जोर देते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान डेल मोर्टेंसन और क्रिस्टोफर पिसाराइड्स द्वारा 'जॉब क्रिएशन एंड डिस्ट्रक्शन' है, जो श्रम बाजारों की गतिशीलता और श्रमिकों और नौकरियों के बीच दक्षता/कार्य-कुशलता की जांच करता है।

बेरोजगारी पर लघुकथा सर्जन

बेरोजगारी पर लघुकथा सर्जन बहुतायत में हुआ है। सबसे पहली लघुकथा उन रचनाकार की है, जिन्होंने बहुत कम समय में लघुकथा विधा को ऊँचाइयों पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। COVID ने उन्हें हमसे छीन लिया, अन्यथा वे विधा के लिए और भी काफी कार्य करते। मैं बात कर रहा हूँ, मेरे अग्रज स्वरूप श्री रवि प्रभाकर की। उनकी रचना पढ़ते हैं

एक बड़ा हादसा / कीर्तिशेष रवि प्रभाकर (Ravi Prabhakar)

फैक्ट्री में हुए एक भयानक हादसे में उसे अपनी दोनों टाँगे गंवानी पड़ गई, जबकि उसके तीन साथियों को जान से हाथ धोना पड़ा था.

"तुम्हें ठीक होनें में तो अभी बहुत समय लगेगा, जबकि एक महीने के बाद ही तुम्हारी रिटायरमेंट है। इसलिए मैनेजमेंट ने फैसला किया है कि तुम्हें एक महीना पहले ही रिटायर कर दिया जाए।”  उसका हाल चाल पूछने आए सहकर्मियों में से एक ने उसे सूचित किया

“चलो कोई बात नहीं यार, भगवान का शुकर मनायो कि जान बच गई।” दूसरे ने दिलासा देते हुए कहा.

"हमारे उन तीन साथियों का क्या हुआ जिनकी मौत हो गई थी ?" उसने उदास स्वर में पूछा

"उन सब के बेटों को नौकरी दे दी गई है." उत्तर मिला

कोने में बैठे अपने बेरोजगार बेटे और उसके तीन बच्चों को देख आज उसे अपने ज़िंदा बच जाने का बेहद अफ़सोस हो रहा था।

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- रवि प्रभाकर (कीर्तिशेष)


अगली एक रचना श्री बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’ की है। इसे पढ़िए,

प्रसाद/ बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’

लंबी बेरोजगारी से परेशान चार युवकों के चेहरों पर अब नौकरी लग जाने से संतुष्टि के भाव थे। चारों खुश थे और इसी खुशी में अपनी नौकरी के पीछे का रहस्य बता रहे थे।

पहला युवक – “मैंने सीधे बड़े साहब से बात की, ताकि चूक की कोई गुंजाइश ही न रहे। बात पूरे दो लाख में बनी।”

दूसरा युवक – “मैंने छोटे साहब से बात की। वे स्थापना विभाग के प्रभारी थे, इसलिए चूकने की आशंका नहीं थी। मैंने लाख रुपए में बात पक्की की थी।”

तीसरा युवक – “मैंने डीलिंग क्लर्क से बात की थी। हस्ताक्षर होने के बाद भी सूची में बीच में एक–दो नाम डालने की योग्यता उसमें थी ही। वह पचास हजार में ही मान गया।”

चौथा युवक – “मैंने किसी को रुपए नहीं दिए, मेरा काम मुफ्त में हो गया।” 

बाकी तीनों युवक एक स्वर में बोले – “सफेद झूठ!”

चौथे युवक ने राज खोला – “मैंने चार अन्य बेरोजगार युवकों से साहब को रुपए दिलवाए, तो प्रसाद के रूप में मुझे नौकरी मिल गई।”

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- बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’


श्री कपिश चन्द्र श्रीवास्तव की लघुकथा विडम्बना भी महत्वपूर्ण बात कह जाती है,

विडम्बना / कपिश चन्द्र श्रीवास्तव 

(सामान्य सम्पादन पश्चात)

चप्पल घिस-घिस कर आधे रह गए थे सूरज शर्मा के। पिछले 3 साल से अपनी मास्टर  डिग्री की फ़ाइल प्लास्टिक के थैले में रखे नौकरी की तलाश में  जगह-जगह धक्के और ठोकरें खाते घूम जो रहा था। मई महीने की दोपहरी थी। दैनिक पत्रिका के 'वान्टेड' वाले पृष्ठ में कई जगह पेन से गोल घेरा लगाए  सूरज पिछले चार घंटे से शहर के चक्कर लगाते भूख-प्यास से बेहाल हो चुका था। शाम तक  दो-तीन इंटरव्यू और देने थे। बची-खुची हिम्मत जुटा, सिटी बस पकड़ने वो दौड़ पडा। सड़क पर पहुँचते-पहुँचते सहसा चकराकर गिर पड़ा और  विपरीत दिशा से आता एक ट्रक उसके बाएं पैर को कुचलते  निकल गया।

देखते-देखते भीड़ लग गयी । बेहोश हो चुके सूरज को लोगों ने अस्पताल पहुंचाया। होश आने पर सूरज ने देखा उसका बायाँ पैर घुटने के ऊपर से काटा जा चुका है। मन पीड़ा और अपने अपाहिज हो जाने के अहसास से तड़प उठा।

सहसा उसे ध्यान आया 'वांटेड' वाले पृष्ठ में शायद किसी बैंक का विज्ञापन था 'केवल विकलांगों के लिए सीधी भर्ती'। उसका दिल अपने दोनों पैरों से बाल्लियों उछलने लगा  और उसके उदास चेहरे पर एक  विद्रूप सी मुस्कराहट उभर आई।

-0-

- कपीश चन्द्र श्रीवास्तव

साहित्य के ये सर्जनात्मक कार्य समकालीन अध्ययनों के साथ, वैश्विक बेरोजगारी के कारणों और संभावित समाधानों दोनों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

सादर,

चंद्रेश कुमार छतलानी

9928544748


शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 5 । युद्ध पर लघुकथा सर्जन

आदरणीय मित्रों,
वैश्विक सरोकार की लघुकथाओं के इस भाग में यह युद्ध पर चर्चा कर रहे हैं। देशों के दिमागों में फैली यह महामारी युद्ध सबसे अधिक विनाशकारी वैश्विक मुद्दों में से एक है, जो समाज को बाधित करता है, लाखों लोगों को विस्थापित करता है, और अथाह मानवीय पीड़ा का कारण बनता है। पूरे इतिहास में, युद्ध विभिन्न कारकों से प्रेरित रहे हैं, जिनमें राजनीतिक सत्ता संघर्ष, क्षेत्रीय विवाद, जातीय तनाव और वैचारिक संघर्ष शामिल हैं। युद्ध के परिणाम युद्ध के मैदान से कहीं आगे तक फैले हुए हैं, जो घरों, स्कूलों, अस्पतालों और आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विनाश के माध्यम से नागरिकों को प्रभावित करते हैं। सीरिया, अफ़गानिस्तान और यमन जैसे देशों में, चल रहे संघर्षों ने मानवीय संकटों को जन्म दिया है, जिसमें आबादी के बड़े हिस्से को खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा की कमी और विस्थापन का सामना करना पड़ रहा है। युद्ध सामाजिक विभाजन को भी गहरा करता है, आक्रोश को जन्म देता है, और अक्सर आर्थिक प्रगति को दशकों तक पीछे धकेलता है। युद्ध का वित्तीय बोझ चौंका देने वाला है, क्योंकि सरकारें सैन्य अभियानों को निधि देने के लिए सामाजिक कार्यक्रमों, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से संसाधनों को हटा देती हैं। उदाहरण के लिए, इराक और अफ़गानिस्तान में युद्ध की लागत अमेरिका के लिए खरबों डॉलर में चली गई है, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर स्थायी प्रभाव डाला है। युद्ध की आग में फंसे देशों को अक्सर दीर्घकालिक आर्थिक तबाही का सामना करना पड़ता है, क्योंकि व्यवसाय ध्वस्त हो जाते हैं, उद्योग ठप हो जाते हैं और विदेशी निवेश कम हो जाता है। इसके अलावा, युद्ध अक्सर महत्वपूर्ण पर्यावरणीय गिरावट की ओर ले जाते हैं, क्योंकि बमबारी से भूदृश्य क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जंगल नष्ट हो जाते हैं और सैन्य गतिविधियों से होने वाला प्रदूषण प्राकृतिक संसाधनों को दूषित कर देता है। संघर्ष समाप्त होने के बाद भी ये प्रभाव दशकों तक रह सकते हैं।
आज की दुनिया में, युद्ध एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, यूक्रेन, सूडान और अन्य क्षेत्रों में संघर्ष जारी है। उदाहरण के लिए, यूक्रेन में युद्ध ने वैश्विक खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति को बाधित कर दिया है, जिससे कीमतें बढ़ गई हैं और व्यापक आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई है। जीवन और विनाश के तत्काल नुकसान के अलावा, युद्ध कई दीर्घकालिक समस्याओं को जन्म दे सकते हैं, जैसे शरणार्थी संकट, बढ़ती गरीबी और बाधित स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के कारण बीमारियों का प्रसार। संघर्षों का एक डोमिनो प्रभाव भी हो सकता है, जो पूरे क्षेत्रों को अस्थिर कर सकता है और चरमपंथी समूहों के उदय सहित नए सुरक्षा खतरों को जन्म दे सकता है। एक दूसरे से अत्यधिक जुड़े हुए विश्व में, एक क्षेत्र में युद्ध के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, जिससे वैश्विक व्यापार, प्रवासन पैटर्न और अंतर्राष्ट्रीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं। युद्ध के मूल कारणों, जैसे राजनीतिक अस्थिरता, असमानता और संसाधन प्रतिस्पर्धा को संबोधित करने के प्रयासों के बिना, दुनिया निरंतर संघर्ष के चक्र में फंसने का जोखिम उठाती है।
साथियों,
कीर्तिशेष मधुदीप गुप्ता जी सर की रचना 'युद्ध' जो उजागर करती है, वह एक बड़ा सत्य है।
उनके ही शब्दों में एक रचनाकार की संवेदना भी बताना चाहूंगा,
"दोस्तो ! क्या विश्व में किसी शक्ति-महाशक्ति का कोई दीन-ईमान है? मेरे विचार से सभी के अपने-अपने हित सबसे पहले हैं। इस समय एक तरफ तो समूचा विश्व पकिस्तान को आतंक का जन्मदाता कह रहा है तो दूसरी तरफ रूस उसके साथ साँझा सैनिक अभ्यास कर रहा है ताकि उसे अपने हथियार बेच सके। बात तो सारी वहीं आकर टिक गयी कि कैसे महाशक्तियाँ हमें आपस में लड़वाकर अपने हथियारों की बिक्री कर सके। हम लड़ेंगे तो उनके कारखाने चलेंगे, उनकी अर्थव्यवस्था उन्नत होगी।" - मधुदीप जी
और इस विषय पर उन्हीं की लघुकथा,
युद्ध (स्व. मधुदीप जी की लघुकथा)
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तोप और टैंकों से लैस दोनों देशों की सेनाएँ अन्तर्राष्ट्रीय बोर्डर पर जमा थीं। दोनों देशों के मध्य गुरिल्ला युद्ध तो लम्बे अरसे से चल ही रहा था मगर अब किसी भी पल युद्ध का साफ ऐलान हो सकता था। दोनों देशों के नागरिकों में देशप्रेम पूरे उफान पर था। पल-पल उत्तेजना बढ़ती जा रही थी।
“शान्ति की इच्छा को हमारी कमजोरी न समझा जाए।” इधर से उछाला गया जुमला उधर जा रहा था।
“हमें बुजदिल न समझा जाए। हम अपनी पिछली सभी हारों का बदला लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।” उधर से उछाला गया जुमला इधर आ रहा था।
“पड़ोसी देश अपनी दहशतगर्दी की नीति से बाज आए वर्ना एक बार फिर उसका भूगोल बदल जायेगा।” एक धमकी इधर से उधर जा रही थी |
“हमने एटम बम शबे बारात में फोड़ने के लिए नहीं बनाए हैं।” एक धमकी उधर से इधर आ रही थी।
विश्व की महाशक्ति एक देश की पीठ पर सवार थी। विश्व की महाशक्ति दूसरे देश की गर्दन से चिपकी हुई थी। विश्व की महाशक्ति मन्दी की गिरफ्त में थी |
दोनों देशों की नौसेना के जंगी बेड़े समुद्र में आगे बढ़ने लगे थे। दोनों देशों के फाइटर विमान आसमान में मँडराने लगे थे दोनों देशों की सरहदों पर तोप-टैंकों में गोला-बारूद भरा जाने लगा था।
महाशक्ति के आयुध निर्माता जश्न मना रहे थ। उनके कारखानों में तीनों पालियों में जोर-शोर से काम चल रहा था।
महाशक्ति के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी। ***

- स्व. मधुदीप
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मधुदीप जी सर की रचना के साथ ही एक अन्य रचना भी प्रेषित है। मोहन राजेश कुमावत जी सर की यह रचना 'मेहरबान' भी विषय के साथ पूर्ण न्याय करती है। इस रचना की पिक निम्न है:



सादर,
- चंद्रेश कुमार छतलानी  

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 4 । स्वास्थ्य पर लघुकथा सर्जन

आदरणीय मित्रों,

वैश्विक सरोकार की लघुकथाओं के भाग 4 में स्वास्थ्य पर ध्यानाकर्षण का प्रयास किया है। स्वास्थ्य का वैश्विक मुद्दा वर्षों से तो क्या बल्कि जीवोत्पत्ति से ही एक गंभीर चुनौती बना हुआ है, जो विकसित और विकासशील दोनों ही प्रकार के देशों को प्रभावित कर रहा है। गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच, गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) का बढ़ना और कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों के प्रसार ने दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों की कमज़ोरी को उजागर किया है। कम आय वाले देशों में अपर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर, डॉक्टर्स व नर्सिंग स्टाफ की कमी और धन की कमी, आम आदमी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में बाधक हैं। उदाहरण के लिए, नाइजीरिया और बांग्लादेश जैसे देश सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण उच्च मातृ मृत्यु दर का सामना कर रहे हैं, जबकि भारत कुपोषण और बढ़ते मधुमेह के मामलों से जूझ रहा है। इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे उच्च आय वाले देश भी स्वास्थ्य सेवाओं में असमानताओं से जूझ रहे हैं, वहाँ वंचित समुदायों के लिए उत्तम चिकित्सा की कमी है। इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए परम्परागत असमानताओं और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के तरीके में बड़े बदलाव की तत्काल आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 3 को प्राप्त करने के लिए, जिसका उद्देश्य उत्तम स्वास्थ्य सुनिश्चित करना है, एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सरकारों को स्वास्थ्य कवरेज को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी को, हर तरह की सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले को, आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त हों। ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश महत्वपूर्ण है। रोग निवारण कार्यक्रमों को अधिक सशक्त करना, स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देना और स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों, जैसे गरीबी, शिक्षा और स्वच्छता को संबोधित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सीमित संसाधनों वाले देशों की सहायता करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसे वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समर्थन महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, घाना और न्यूजीलैंड जैसे देशों में देखी गई COVID-19 महामारी के दौरान वैक्सीन वितरण की सफलता, स्वास्थ्य संकटों पर काबू पाने में वैश्विक साझेदारी के महत्व को उजागर करती है। सामूहिक प्रयासों के माध्यम से, हम 2030 तक SDG 3 लक्ष्य को प्राप्त करने वाली लचीली स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं।

मानवों के साथ-साथ अन्य जीवों का स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है। मेडिकल ट्यूरिज्म पर भी कार्य किया जा सकता है।

किन देशों में किस तरह की बीमारियां अधिक हैं, उनका एक सामान्य चित्रण निम्नानुसार है:

1. भारत:

  • तपेदिक (टीबी): भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा टीबी रोगियों वाले देशों में से एक है।
  • मधुमेह: देश में मधुमेह महामारी बढ़ रही है, खास तौर पर टाइप 2 के रोगी।
  • हृदय रोग (सीवीडी): जीवनशैली में बदलाव के कारण उच्च रक्तचाप और हृदय रोग बढ़ रहे हैं।
  • कुपोषण: आर्थिक विकास के बावजूद, कुपोषण एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है, खासकर बच्चों में।
  • जीर्ण श्वसन रोग: अस्थमा और जीर्ण प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग (सीओपीडी) आम हैं, जो प्रदूषण के कारण और भी बढ़ गए हैं।

2. संयुक्त राज्य अमेरिका:

  • हृदय रोग: मृत्यु का प्रमुख कारण, मोटापा, खराब आहार और व्यायाम की कमी से जुड़ा हुआ है।
  • कैंसर: आम रूपों में स्तन, फेफड़े और प्रोस्टेट कैंसर शामिल हैं।
  • मधुमेह: मोटापे और गतिहीन जीवनशैली के कारण टाइप 2 मधुमेह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
  • जीर्ण श्वसन रोग: सीओपीडी, वातस्फीति और जीर्ण ब्रोंकाइटिस आम हैं, जो अक्सर धूम्रपान से संबंधित होते हैं।
  • ओपियोइड नशे की लत: यह एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल में बदल गया है।

3. नाइजीरिया:

  • मलेरिया: बीमारी और मृत्यु का एक प्रमुख कारण, विशेष रूप से बच्चों में।
  • एचआईवी/एड्स: नाइजीरिया में दुनिया की सबसे बड़ी एचआईवी महामारी है।
  • डायरिया संबंधी रोग: खराब जल गुणवत्ता और स्वच्छता के कारण बाल मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण।
  • तपेदिक: टीबी की उच्च घटना, जिसे अक्सर एचआईवी/एड्स से जोड़ा जाता है।
  • लासा बुखार: एक स्थानिक वायरल रक्तस्रावी बीमारी।

4. चीन:

  • हृदय रोग: मृत्यु के प्रमुख कारण, धूम्रपान और वायु प्रदूषण से बढ़ जाते हैं।
  • स्ट्रोक: बहुत अधिक प्रचलन, अक्सर उच्च रक्तचाप से जुड़ा होता है।
  • फेफड़ों का कैंसर: अत्यधिक तम्बाकू के उपयोग और खराब वायु गुणवत्ता के कारण।
  • मधुमेह: मोटापे की बढ़ती दरों के कारण बढ़ती चिंता।
  • क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी): वायु प्रदूषण एक महत्वपूर्ण योगदान कारक है।

5. ब्राज़ील:

  • ज़ीका वायरस: हाल के वर्षों में प्रकोप के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है।
  • डेंगू बुखार: मच्छर जनित संक्रमण के कारण बार-बार होने वाला मुद्दा।
  • हृदय रोग: हृदय रोग और स्ट्रोक मृत्यु के प्रमुख कारणों में से हैं।
  • जीर्ण श्वसन रोग: श्वसन संक्रमण और अस्थमा जैसी स्थितियाँ आम हैं।
  • एचआईवी/एड्स: हालाँकि मामले बेहतर नियंत्रण में हैं, लेकिन यह बीमारी कुछ आबादी में चिंता का विषय बनी हुई है।

6. दक्षिण अफ़्रीका:

  • एचआईवी/एड्स: दुनिया भर में सबसे ज़्यादा एचआईवी संक्रमण दरों में से एक।
  • तपेदिक: एचआईवी महामारी से निकटता से जुड़ा हुआ है।
  • मधुमेह: जीवनशैली में बदलाव के कारण बढ़ती घटनाएँ।
  • हृदय रोग: आबादी की उम्र बढ़ने और जीवनशैली के अधिक गतिहीन होने के साथ बढ़ रहे हैं।
  • श्वसन संक्रमण: निमोनिया और अन्य श्वसन रोग बीमारी के प्रमुख कारण हैं।

7. जापान:

  • स्ट्रोक: मृत्यु का एक प्रमुख कारण, विशेष रूप से बुज़ुर्गों में।
  • कैंसर: विशेष रूप से पेट, यकृत और फेफड़ों के कैंसर।
  • अल्जाइमर रोग: जापान की बढ़ती उम्र की आबादी के लिए एक बढ़ती चिंता।
  • मधुमेह: आहार और जीवनशैली में बदलाव के कारण टाइप 2 मधुमेह बढ़ रहा है।
  • उच्च रक्तचाप: हृदय संबंधी समस्याओं और स्ट्रोक का एक प्रमुख कारण।

8. कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC):

  • मलेरिया: बीमारी और मृत्यु का एक प्रमुख कारण, विशेष रूप से बच्चों में।
  • इबोला: इस क्षेत्र में स्थानिक, हाल ही में कई प्रकोपों के साथ।
  • एचआईवी/एड्स: एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती।
  • खसरा: कम टीकाकरण दरों के कारण बार-बार प्रकोप।
  • हैजा: खराब जल और स्वच्छता बुनियादी ढांचे के कारण नियमित प्रकोप।

9. ऑस्ट्रेलिया:

  • त्वचा कैंसर: उच्च यूवी (Ultra Voilet) जोखिम के कारण दुनिया में त्वचा कैंसर की सबसे अधिक दर।
  • हृदय रोग: मृत्यु का एक प्रमुख कारण।
  • मानसिक स्वास्थ्य विकार: अवसाद और चिंता तेजी से प्रचलित हो रहे हैं, विशेष रूप से युवा आबादी में।
  • टाइप 2 मधुमेह: मोटापे और जीवनशैली कारकों से जुड़ी घटनाओं में वृद्धि।
  • श्वसन रोग: अस्थमा विशेष रूप से आम है, आंशिक रूप से पर्यावरणीय कारकों के कारण।

10. रूस:

  • हृदय रोग: धूम्रपान और शराब के सेवन की उच्च दर के कारण मृत्यु का प्रमुख कारण।
  • शराब से संबंधित रोग: लीवर सिरोसिस और शराब से संबंधित अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ व्यापक हैं।
  • तपेदिक: एमडीआर-टीबी (मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस) एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
  • एचआईवी/एड्स: विशेष रूप से कुछ उच्च जोखिम वाली आबादी के बीच तेजी से बढ़ती महामारी।
  • फेफड़ों का कैंसर: धूम्रपान की उच्च दर फेफड़ों के कैंसर के उच्च प्रसार में योगदान करती है।

11. यूनाइटेड किंगडम:

  • हृदय रोग: आहार और जीवनशैली से जुड़ी मृत्यु का एक प्रमुख कारण।
  • मनोभ्रंश (Dementia): बढ़ती उम्र के साथ अल्जाइमर और अन्य प्रकार के मनोभ्रंश बढ़ रहे हैं।
  • कैंसर: स्तन, फेफड़े और कोलोरेक्टल कैंसर की उच्च दर।
  • मधुमेह: टाइप 2 मधुमेह एक बढ़ती हुई समस्या है, जिसमें मोटापे की दर भी बढ़ रही है।
  • मानसिक स्वास्थ्य विकार: चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की व्यापक रूप से रिपोर्ट की जाती है, खासकर महामारी के बाद।

WHO के विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी 2024 और स्वास्थ्य मीट्रिक और मूल्यांकन संस्थान (IHME) के सन्दर्भ के अनुसार नवीनतम स्वास्थ्य डेटा 2024 में हृदय संबंधी रोग मृत्यु का प्रमुख कारण बने हुए हैं, जो वैश्विक मृत्यु दर के 28% हैं, विशेष रूप से उच्च रक्तचाप और खराब आहार के कारण। हालाँकि, गलत आहार रोका जा सकता है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त करना, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, महत्वपूर्ण है। RSV और इन्फ्लूएंजा सहित निचले श्वसन संक्रमण भी COVID-19 महामारी के दौरान गिरावट के बाद फिर से उभर रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।

जलवायु परिवर्तन एक और बढ़ती चिंता है, जो चरम मौसम की घटनाओं, खाद्य असुरक्षा और वायु प्रदूषण के माध्यम से स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ा रहा है, जो वैश्विक मृत्युओं के 8% के लिए जिम्मेदार है। गरीबी स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, कम आय वाले देशों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध और हिंसा जैसे कारकों के कारण समय से पहले मृत्यु की दर बहुत अधिक है।

आदरणीयजनों,

इन सभी समस्याओं और एक सीमा तक हम समाधानों पर भी अपने विचार रख ही सकते हैं। सिगरेट, ड्रग्स आदि नशे की लत से दूर जाना। डॉक्टर्स का कम फीस लेकर सही इलाज कर देना, बहुत और मुद्दे हैं, जो आपके दिमाग में दस्तक देंगे। 

हालांकि इस विषय पर बहुत लघुकथाएं आपने पढ़ी होंगी, रचनाकर्म भी किया होगा। मैं यहां एक ऐसी रचना बता रहा हूं, जो मुझे बहुत पसंद है। एक मरीज़ से कैसे बर्ताव किया जाए।

सकारात्मकता से ओतप्रोत आदरणीया ( Chitra Mudgal ) चित्रा मुद्गल दी की यह रचना मेरे लिए इसलिए भी बहुत विशिष्ट है क्योंकि, चिकित्सा जैसे गंभीर मुद्दे पर ऐसी कलम चलाना सभी के बस की तो बात नहीं। 

आइए पढ़ते हैं,

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रिश्ता / चित्रा मुद्गल

लगभग बाईस दिनों तक ‘कॉमा’ में रहने के बाद जेब उसे होश आया था तो जिस जीवनदायिनी को उसने अपने करीब, बहुत निकट पाया था, वे थीं मारथा मम्मी। अस्पताल के अन्य मरीजों के लिए सिस्टर मारथा। वह पूना जा रहा था......खंडाला घाट की चढ़ाई पर अचानक वह दुर्घटाग्रस्त हो गया। जख्मी अवस्था में नौ घंटे तक पड़े रहने के बाद एक यात्री ने अपनी गाड़ी से उसे सुसान अस्पताल में दाखिल करवाया.....पूरे चार महीने बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। चलते समय वह मारथा मम्मी से लिपटकर बच्चे की तरह रोया। उन्होंने उसके माथे पर ममत्व के सैकड़ों चुंबन टाँक दिए। ‘गॉड ब्लेस यू माय चाइल्ड....’ डॉ0 कोठारी से उसने कहा भी था, ‘‘डॉ0 साहब! आज अगर इस अस्पताल से मैं जिंदा लौट रहा हूँ तो आपकी दवाइयों और इंजेक्शनों के बल पर नहीं, मारथा मम्मी के प्यार के बल पर।’’

उस रोज वे उसे गेट तक छोड़ने आई थीं और जब तक उसकी गाड़ी अस्पताल के गेट से बाहर नहीं हो गई, वे अपलक खड़ी विदाई में हाथ हिलाती रही थीं....

वही मारथा मम्मी....आज जब अरसे बाद वह उनसे वार्ड में मिलने पहुँचा तो उन्हें देखकर खुशी से पगला उठा। वे एक मरीज के पलंग से सटी उसकी कलाई थामे धड़कनों का अंदाजा लगा रही थी। उन्होंने मरीज की कलाई हौले से बिस्तर पर टिकाई कि उसने उन्हें अचानक पीछे से बाजुओं में उठा लिया।

‘‘अरे,अरे, क्या करता है तुम....इडियट....छोड़ो मेरे को! ये अस्पताल है ना।’’

वह सकपका उठा। उन्हें फर्श पर खड़ा करते हुए उसने अचरज से मारथा मम्मी को देखा। ‘‘मैं आपका बेटा अशोक, मम्मी? पहचाना नहीं आपने मुझे....!’’

‘‘पेचाना, पेचाना....पन अभी मेरे को टाइम नई.....डियूटी पर ऐसा नई आने का मिलने कू। अब्बी जाओ तुम...देखता नई पेशेन्ट तकलीफ में हय....’’उन्होंने उसे तिक्त स्वर में झिड़का।

वह उनके अनपेक्षित व्यवहार से स्तब्ध हो उठा, तिलमिलाया–खिसियाया सा फौरन मुड़ने लगा कि तभी उसी मरीज की प्राणलेवा कराह सुनकर क्षणांश को ठिठक गया। मरीज के पपडि़याये होंठ पीड़ा से बिलबिलाते बुनबुदा रहे थे, ‘‘माँ....ओ....माँ....हा....आ....’’

‘‘माय चाइल्ड, आॅय अंम विद यू। हैव पेशन्स...हैव पेशन्स...’’ उसकी मारथा मम्मी अत्यन्त स्नेहिल स्वर में उस मरीज का सीना सहला रही थी....’’

वह मुड़ा और तेजी से वार्ड से बाहर हो गया।

-चित्रा मुद्गल

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प्रगति त्रिपाठी जी की एक लघुकथा भी प्रस्तुत है, जो आज के हालात बयां कर रही है।

इंस्टेंट / प्रगति त्रिपाठी

होश आते ही, अपने आपको अस्पताल की बेड पर लेटे हुए, हाथ में सलाइन की बोतल लगी हुई, पास में पापा और मम्मी को चिंतित देखकर मनोज घबड़ा गया।

"मुझे क्या हो गया था? मैं तो ठीक ही था। रोज की तरह जिम कर रहा था।" आशंकित मनु सवाल पर सवाल करता जा रहा था।

डाॅक्टर साहब ने कहा "घबड़ाने की कोई बात नहीं, अब आप खतरे से बाहर है। "

"लेकिन मुझे क्या हुआ था डाॅक्टर साहब? मैं तो बिलकुल फिट हूं। मुझे कोई बीमारी नहीं है।"

"आपको माइनर हार्ट अटैक आया था।"

"क्या??" इतना सुनते ही मनोज भौंचक्का रह गया।

"यह बाॅडी बनाने के लिए जो सप्लीमेंट आप ले रहे थे ये उसी का परिणाम है। सप्लीमेंट्स और प्रोटीन पाउडर का ज्यादा सेवन करने से ब्लड फ्लो प्रभावित होता है। जिसकी वजह से हार्ट स्ट्रोक और अटैक का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है।"

"लेकिन वो तो जिम ट्रेनर के कहने पर ही ले रहा था। उन्होंने कहा था ये दवाएं आजमाए हुए हैं, इसका कोई नुकसान नहीं है।"

"आजकल सबको इंस्टेंट सफलता चाहिए। आपको भी, आपके जिम ट्रेनर को भी।" चिंतित स्वर में डाॅक्टर ने कहा।

- प्रगति त्रिपाठी, बैंगलुरू

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सच है कि ,लघुकथा में जागरूकता की शक्ति है, वो बात और है कि, बहुत सारे कारणों से, फिलवक्त हम उसका प्रयोग कर तो रहे हैं, लेकिन पूरी तरह नहीं।

सादर

- चंद्रेश कुमार छ्तलानी

बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 3 । शिक्षा पर लघुकथा सर्जन

आदरणीय मित्रों,

वैश्विक मुद्दों की जानकारी में इस पोस्ट में एक ऐसे मुद्दे पर चर्चा का प्रयास है जो, दुनिया में नक्शे बदल देने में समर्थ है। जीतने भी देश विकसित हैं, उनके मूल में उचित शिक्षा है। हमारे देश में भी सदियों पहले, उस समय के अनुसार शिक्षा थी, तो हम उन्नत थे। सोने की चिड़िया भी कहलाए और विश्वगुरु भी। आज शिक्षा के प्रति जागरूकता की हालांकि, वैश्विक स्तर पर हर देश में, कहीं कम तो कहीं अधिक आवश्यकता है। इस पर चर्चा करते हैं।

वैश्विक स्तर पर, शिक्षा को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इनमें सभी तक शिक्षा की पहुँच, शिक्षा की गुणवत्ता और सभी को समान शिक्षा सहित अन्य मुद्दे शामिल हैं। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में शैक्षिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और संसाधनों के मामले में विकसित और विकासशील देशों के बीच बढ़ता अंतर भी शामिल है। जहां उच्च आय वाले देश प्रौद्योगिकी-संचालित (digitally/technological controlled) शिक्षा और व्यक्तिगत सीखने में निवेश करते हैं/पूरा ध्यान देते हैं, वहीँ कई कम आय वाले देश अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, कम शिक्षक संख्या, भीड़भाड़ वाली कक्षाओं, (कथित) अच्छे शिक्षण के नाम पर डोनेशन, और बुनियादी शिक्षण सामग्री की कमियों से जूझ रहे हैं। यह फर्क देशों के मध्य शिक्षा के परिणामों में अंतर को बढ़ाता है, जिससे वंचित क्षेत्रों के छात्रों के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है।

एक और बड़ी समस्या समावेशिता की कमी, महिला शिक्षा, विकलांग बच्चों की शिक्षा या जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित व्यक्तियों / समूहों के लिए शिक्षा प्रदान करने में विफलता है। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी 4) जैसी वैश्विक प्रतिबद्धताओं के बावजूद, लाखों बच्चे स्कूल से बाहर रहते हैं, विशेषकर गरीबी, युद्ध और भेदभाव से प्रभावित क्षेत्रों में। इसके अतिरिक्त, शिक्षा के पारंपरिक मॉडल अक्सर आधुनिक human resource की जरूरतों, जैसे डिजिटल साक्षरता और critical thinking, skill based system आदि की मांग के अनुकूल होने में धीमे होते हैं, जिससे कई छात्र भविष्य के रोजगार के अवसरों के लिए तैयार नहीं हो पा रहे हैं। जैसे AI का विरोध कर एक भय का वातावरण है कि परंपरागत रोजगार छीन जाएंगे। जबकि, होगा यह कि नए रोजगार भी उत्पन्न होंगे। उसके अनुसार human resource तैयार करना ज़रूरी है। 

डिजिटल नैतिकता, उचित शोध, शोध में नकल, साहित्यिक चोरी, शोध का वैश्विक विकास में महत्व भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।

इनके अतिरिक्त, परीक्षा प्रणाली पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। विकसित देशों में कई बार अच्छे विद्यार्थियों की परीक्षा ना ली जाकर उन्हें एक समिति द्वारा उन विद्यार्थियों की क्षमतानुसार मार्क्स दे दिए जाते हैं। विकासशील देशों में भाई-भतीजावाद या यूं कहें कि ईमानदारी की कमी के कारण यह अभी तक संभव नहीं है।

एक विसंगति यह भी है कि, सरकारी कौंसिल्स के नियमों में भी कहीं ना कहीं विरोधाभास सा दिखाई देता है। जैसे, किसी दो वर्ष के कोर्स में, इंटेक 60, फीस अधिकतम 30,000/- प्रति वर्ष, आचार्यों की संख्या: प्रोफ़ेसर-1, एसोशिएट प्रोफेसर्स-2, अस्सिस्टेंट प्रोफेसर्स-4...आदि से पात्रता मिली हो तो, इसमें विद्यार्थियों की अधिकतम संख्या 60x2 वर्ष=120, तब अधिकतम वार्षिक फीस आएगी120x30,000= 36,00,000/- (छत्तीस लाख रुपये)। अब सरकारी ग्रेड से तुलना करें तो एक प्रोफ़ेसर की सैलरी कम से कम लगभग 1.5 लाख रुपये महीना (18 लाख रुपये सालाना), एसोशिएट प्रो. की लगभग 1 लाख रुपए महिना (दो की 24 लाख रुपये )। इन दोनों की वार्षिक सैलरी ही आय से अधिक है (लगभग 42 लाख रुपये)। अब अन्य कर्मचारियों की सैलरी, और दुसरे खर्चे। इन सभी को पूरा करने के लिए सरकारी फंड की व्यवस्था भी इतनी सही नहीं। प्राइवेट कॉलेज तब या तो घालमेल शुरू कर देते हैं या अधिक पाठ्यक्रम चला कर खर्चा निकालते हैं। गवर्नमेंट ग्रेड से तनख्वाह नहीं देते। दें भी तो कहाँ से? यहाँ शिक्षा की गुणवत्ता से सीधे-सीधे समझौता हो ही जाता है।

एक अन्य विषय है, अपनी भाषा में पढ़ाई। अपनी यह बात सालों पहले से मैं सेमिनार्स, कांफ्रेंस आदि में रखता रहा हूँ। कई बार देश के बड़े वक्ताओं के माध्यम से भी पहुंचाई है, mygov.in पर भी भेजा है कि हमारे डीएनए में अपनी भाषा में सीखने की क्षमता अधिक होती है वनिस्पत विदेशी भाषा के। हालाँकि अब अंग्रेज़ी भी हमारे डीएनए में बस गई है। लेकिन फिर भी यह सच है कि विकसित देशों में अन्य गुणों के साथ-साथ पढ़ाई उनकी अपनी भाषा में ही होती है। भला हो कस्तूरीरंगन कमिटी का जिनके विचार भी यही थे कि भारत में हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई हो और उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह लागू कर दिया। हालाँकि, अब इसके क्रियान्वयन में समस्या आ रही है कि, पाठ्य सामग्री उपलब्ध नहीं हो पा रही। और भी कुछ समस्याएं हो सकती हैं। इस विषय पर भी रचनाकर्म किया जा सकता है।

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 एक हद तक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में भी कई चुनौतियाँ हैं। मुख्य बाधाओं में से एक बड़े पैमाने पर इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार की आवश्यकता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ स्कूलों में अक्सर उचित सुविधाओं और शिक्षण संसाधनों की कमी होती है। हमारी एनईपी में जिस तरह से डिजिटल शिक्षा की ओर बदलाव पर जोर दिया गया है, वह भी इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों तक असमान पहुँच तथा केवल सैद्धांतिक रूप से सक्षम शिक्षकों की सीमाओं के कारण पूरी तरह लागू नहीं हो पा रहा है, और यह शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शैक्षिक असमानताओं को और बढ़ा रहा है। इसके अतिरिक्त, शिक्षकों को नए शैक्षणिक तरीकों को अपनाने और पारंपरिक रटने वाली शिक्षा प्रणाली से दूर जाने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए समय, संसाधनों और शिक्षकों और छात्रों के बीच मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता भी है।

ट्यूशन संस्कृति, कोचिंग सेंटर्स, शिक्षकों का आर्थिक शोषण, शिक्षण संस्थानों में फंड की कमी, आदि और भी बहुत से मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

कुल मिलाकर, सच यह है कि, जब शिक्षा उचित दिशा में होगी, सिर्फ तभी ही विकास की दिशा भी उचित होगी, उसके बिना कतई नहीं। 

इस विषय पर रचनाकर्म हेतु मुद्दों की कोई कमी नहीं, केवल दृष्टिकोण विश्वव्यापी रखिए।

डॉ. अशोक भाटिया जी सर की एक रचना प्रस्तुत है, जो सरकारी स्कूल शिक्षा के सत्य हालात बयान कर रही है। ऐसी व्यवस्थाएं केवल भारत में नहीं हैं, बल्कि कई विकासशील देशों में हैं. इसे पढ़िए,

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लगा हुआ स्कूल / अशोक भाटिया 

नए साल में स्कूल खुल गए थे। रामगढ़ गाँव का यह सरकारी स्कूल मिडिल से हाई स्कूल बन गया था। कुछ दिन पहले वहां एक नया अधिकारी बिना पूर्व सूचना दिए पहुँच गया। उस समय स्कूल में एक सेवादार के अलावा कोई जिम्मेवार व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा था। बच्चे खुले में कूद-फांद रहे थे। गाड़ी को देख वे अपनी-अपनी कक्षाओं में दुबक गए। कमरों में लाइट नहीं थी, गर्मी और अँधेरा था। 

-क्या बात, किधर हैं सब लोग?’ युवा अधिकारी का पारा चढ़ गया। सेवादार उनके निर्देशानुसार हाजरी का रजिस्टर ले आया। उसमें सभी अध्यापकों की हाजरी लगी हुई थी। अधिकारी को दाल में काला ही काला नज़र आ रहा था। उसने दोषियों को देख लेने की सख्त भाव-मुद्रा बना ली। सेवादार बड़ा अनुभवी था। ऐसे हालात से वह कई बार निपट चुका था। उसने साहब को खुद ही बता दिया कि हेडमास्साब बैंक तक गए हैं। आने ही वाले होंगे। 

अध्यापकों के बारे पूछने पर वह तफसील से बताने लगा। पहला नाम सबसे सीनियर टीचर रामफल का था। 

-जी रामफड़ गाम मैं ड्राप आउट बाड़कां का पता करण गए हैं। 

-और श्रीचंद?

-वो आज बाड़कां खात्तर सब्जी खरीदण ने जा रया सै। मिड डे मील बणेगा। 

-और ये कृष्ण कुमार कहाँ जा रहा है?’ कड़क अधिकारी ने सेवादार से ही सारी जानकारी लेना ठीक समझा या उसकी यह मजबूरी थी- कहा नहीं जा सकता। 

-जी किशन भी दूध-धी खरीदण जा रया सै। 

-सुबह-सुबह क्यों नहीं चला गया?’ अधिकारी ने टांग पर दूसरी टांग रखते हुए पूछा। 

-जी वा बच्यां की गिणती करके ले जाणी थी।’ सेवादार ने स्पष्टीकरण दिया, जैसे सारी जिम्मेदारी उसी की हो। 

अधिकारी ने ठोड़ी पर हाथ फेरते हुए सोचा– सारे बाहर के काम इन टीचर्स को ही दे रखे हैं। अब बाकी के टीचर तो पक्का फरलो पर होने चाहिएं।  

-वो संस्कृत वाले शास्त्री कहाँ हैं?

-जी वा नए बाड़काँ खात्तर यूनिफाम का रेट पता करण शहर नै जाण लाग रे। इहाँ गाम मैं तो मिलदी कोन्या। 

अधिकारी सकपका गया, पर उसे चौकीदार की बातें सच लग रहीं थीं। अब तक जितना उसने सुन रखा था, उसमें उसे अध्यापक ही दोषी और काम न करने वाले लगते थे। लेकिन यहाँ तो उसे माजरा कुछ और ही लग रहा था। उसे अपना इरादा पूरा होता नहीं दिख रहा था। उसने इधर-उधर देखा,धीरे-धीरे पानी के दो घूँट भरे, फिर चौकीदार से कहा- ये गणित वाले भूषण की भी रामकहानी सुना दे फिर।’

-साब वो हर साल स्टेशनरी अर बैग खरीदया करे है। इब्बी आ ज्यागा। 

इतने में कैंटीन वाला बुज़ुर्ग चाय ले आया था। 

कक्षाओं में से बच्चे रह-रहकर बाहर झाँकते हुए उस अधिकारी को देख लेते, मानो वह चिड़ियाघर से भागा हुआ कोई जंतु हो। अधिकारी को बहुत मीठी चाय भी कड़वी लग रही थी। उसने दो घूँट भरकर अपना काम पूरा करने की कवायद फिर शुरू की। 

-ये अनिल कुमार भी किसी काम गया है?

-जी, गाम की मर्दमशुमारी की उसकी ड्यूटी लग री सै। 

-जनगणना तो खत्म हो चुकी है!’ अधिकारी की सवालिया निगाहें उसकी ओर उठीं। 

-साब वो तो पिछले महीन्ने घर और गाए-भैंस गिणन की हुई थी। इबकै धर्म अर जात का पता करण गए हैं जी। 

अब तक पी.टी.मास्टर को भी खबर मिल चुकी थी। वह आखरी कमरे से तेजी से निकला। आकर अधिकारी को करारी नमस्ते ठोकी और अपना परिचय दिया। वह स्कूल में तरह-तरह के काम करने से बड़ा परेशान था। अधिकारी ने चेहरे पर सख्ती और गर्दन में अकड़ को बढ़ाते हुए उससे पूछा –

-आप कहाँ थे? ये बच्चे हुडदंग कर रहे थे। इन्हें कौन कण्ट्रोल करेगा?

-सर, मैं नौवीं क्लास के बच्चों की आँखें और दांत चेक कर रहा था। 

-ये काम तो डॉक्टर का है!

-सर, यहाँ कभी कोई डॉक्टर नहीं आता। पीर-बावर्ची-खर-भिश्ती सब हमें ही बनना पड़ता है।’ कहकर पी.टी. मास्टर अपनी भाषा पर मुग्ध हो गया। 

तभी स्कूटर पर स्कूल के मुख्य अध्यापक अवतरित हुए। उन्होंने अधिकारी को बताया कि वे बैंक में बच्चों के खाते खुलवाने के कागज़ात जमा कराकर आये हैं। स्कूल का एकमात्र क्लर्क उस दिन छुट्टी पर था। अधिकारी और मुख्य अध्यापक- दोनों की आँखों में कुछ सवाल और विषय चमके, फिर दोनों की संक्षिप्त बातचीत के बाद उन सवालों की बत्तियां गुल हो गईं। 

पी.टी.मास्टर बच्चों को आयरन की गोलियां बांटने नौवीं कक्षा की तरफ हो लिया। मुख्य अध्यापक ने अधिकारी को नाश्ते के लिए जैसे-कैसे मनाया और उसे अपने घर की तरफ लेकर चल दिया। 

स्कूल फिर पहले की तरह चलने लगा, जो आज तक वैसा ही चल रहा है....

- अशोक भाटिया 

-0-

गौर कीजिए इन पंक्तियों पर

//पीर-बावर्ची-खर-भिश्ती सब हमें ही बनना पड़ता है।//

//दोनों की आँखों में कुछ सवाल और विषय चमके, फिर दोनों की संक्षिप्त बातचीत के बाद उन सवालों की बत्तियां गुल हो गईं।//

सादर

- चंद्रेश कुमार छ्तलानी

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 2 । भूख पर लघुकथा सर्जन

आदरणीय मित्रों,

वैश्विक मुद्दों पर लघुकथा सर्जन में, हमें वैश्विक मुद्दों को तलाशना आवश्यक है। ईश्वर भूखा जगाता है लेकिन भूखा सुलाता नहीं, यह बात इस मायने में सही है कि, जो भूखा होगा उसे नींद ही नहीं आएगी। आज सबसे बड़े मुद्दों में एक भूख एक गंभीर वैश्विक मुद्दा है जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करता है। साहित्यकारों का दायित्व है कि इस पर सर्जन किया जाए। किसी भी सर्जन से पहले विषय की जानकारी और सामयिक स्थिति को गहराई से जानना भी ज़रूरी है। अतः इस मुद्दे पर थोड़ी जानकारी प्रेषित कर, एक लघुकथा आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।

भूख के कुछ कारणों में गरीबी, जलवायु परिवर्तन और अपर्याप्त कृषि प्रणालियां शामिल हैं। भूख के मामलों में उप-सहारा अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्से विशेष रूप से असुरक्षित हैं, क्योंकि सूखे और बाढ़ जैसी घटनाएँ खाद्य उत्पादन को बाधित करती हैं। उदाहरण के लिए, सोमालिया ने भयंकर सूखे का सामना किया है, जिससे लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और लोगों को जीवित रहने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ा है। इसी तरह, दक्षिण सूडान में, वर्षों के गृहयुद्ध ने कृषि के बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया है, जिससे भूख एक बड़ी और सतत समस्या बन गई है। कुल मिलाकर संपूर्ण विश्व को भूख की समस्या संबोधित करने के लिए एक साथ मिलकर कार्रवाई की आवश्यकता है।

दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में, भूख एक छिपी हुई समस्या भी है। वेनेजुएला में, आर्थिक अस्थिरता ने खाद्य कमी कर दी है, जिसमें कई परिवार बुनियादी आवश्यकताओं को वहन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच, भारत में, समग्र आर्थिक विकास के बावजूद, बिहार और झारखंड जैसे कुछ क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा का उच्च स्तर का अनुभव होता है, विशेष रूप से वंचित समुदायों में। विकसित और विकासशील दोनों देशों में, खाद्य असुरक्षा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में समान रूप से हो सकती है, यह दर्शाता है कि भूख किसी एक विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक चुनौती है जिसके लिए व्यापक समाधान की आवश्यकता है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को मापने और ट्रैक करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक उपकरण है। इसकी गणना "कुपोषण, बाल दुर्बलता, बाल बौनापन और बाल मृत्यु दर" जैसे संकेतकों के आधार पर की जाती है। इन सभी पर रचनाकर्म किया जा सकता है। उच्च GHI स्कोर वाले देश कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसा कि चाड और मेडागास्कर जैसे देशों में देखा गया है, जहां लगातार गरीबी और पर्यावरणीय गिरावट खाद्य कमी को बढ़ा रही है। 

संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDG 2) का हिस्सा, "शून्य भूख" का लक्ष्य 2030 तक भूख की समस्या को खत्म करना है। यह लक्ष्य खाद्य सुरक्षा, पोषण में सुधार और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यह न केवल भोजन की मात्रा को संबोधित कर रहा है, बल्कि इसकी गुणवत्ता, पहुंच और दीर्घकालिक स्थिरता पर भी आधारित है। इस लक्ष्य के प्रयासों में कृषि उत्पादकता में निवेश बढ़ाना, खाद्य प्रणालियों में सुधार करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वंचित समुदायों को पौष्टिक भोजन मिले। यह स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक विकास से निकटता से जुड़ा हुआ है।

भूख पर आधारित आदरणीया कनक हरलालका जी की एक रचना यहां प्रेषित कर रहा हूं। 

मौसम और भूख / कनक हरलालका

सुबह सुबह की कड़कड़ाती ठंड में रजाई से निकलने का मन तो नहीं था, पर कॉलबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोलने के लिए उठना ही पड़ा। सामने वही मजदूर खड़ा था जिसे उसने दो दिन के लिए अपने एक मित्र से कहकर बुलवा रखा था। आंगन के सामने वाले छज्जे की ऊपरी दीवार ठीक करवानी थी। नदी पार की ठंडी हवा सीधे आंगन में मार करती थी। बढ़ते जाड़े से बचने के सभी जतन जरूरी थे।

 "अर्रे इतनी सुबह इतनी ठण्ड में काम पर आ भी गए ?"

"जी, आप काम बतला दें। कुछ पैसे मिल जाएं तो शाम जाकर चूल्हे में आग तो जले।"

"पर इतनी सुबह? इतने ठंडे मौसम में? जरा सूरज को गरम हो जाने दिया होता तो कम से कम हाथ पांव के जोड़ तो खुल जाते।"

"मालिक भूख का कोई मौसम नहीं होता है। पेट की आग गर्मी पंहुचा देती है।"

-कनक हरलालका

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- चंद्रेश कुमार छ्तलानी

रविवार, 15 सितंबर 2024

लघुकथाओं में वैश्विक मुद्दों की आवश्यकता । भाग 1

नेतराम भारती जी के महती कार्य "लघुकथा: चिंतन और चुनौतियां" में एक प्रश्न

"लघुकथा के ऐसे कौन-से क्षेत्र हैं जिन्हें देखकर आपको लगता है कि अभी भी इनपर और काम करने की आवश्यकता है?

का मेरा उत्तर कुछ इस प्रकार से शुरू हुआ था, 

"विषय। सबसे पहले सामयिक विषयों पर ध्यान देना आवश्यक है। ग्लोबल वॉर्मिंग, पेयजल में हो रही कमी, सड़क सुरक्षा, वित्त या अर्थव्यवस्था सम्बंधित, साइबर सुरक्षा, गामीण विकास, ऑर्गेनिक खेती, सांस्कृतिक परिवर्तन आदि ऐसे विषय हैं, जिन पर लेखन न के बराबर हो रहा है।..."

आगे कुछ और भी था, बहरहाल, कुल मिलाकर मेरा यह विचार है कि लघुकथा में 'उचित सामयिक विषयों' का कुछ तो अभाव है ही। 

अतः कुछ समकालीन वैश्विक चुनौतियाँ, जितनी मुझे समझ है, को आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।

साथियों,

संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2015 में 2030 तक के लिए 17 लक्ष्य रखे हैं। ये सभी मानवता और धरती के समक्ष सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियां हैं और इन सभी पर रचनाकर्म करना साहित्यकारों का दायित्व है। 

हमारी धरती की रक्षा करने और सभी के लिए समृद्धि व कल्याण सुनिश्चित करने के लिए ये 17 एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य Sustainable Development Goals) एक सार्वभौमिक आह्वान है। आप इन पर कार्य कर सकते हैं, ये सभी ज्वलंत वैश्विक मुद्दे हैं।

पहला लक्ष्य है गरीबी उन्मूलन:

2030 तक हर जगह फैली गरीबी को समाप्त करना।

दूसरा है शून्य भूख:

कोई भूखा न रहे, खाद्य सुरक्षा मिले, उचित पोषण प्राप्त हो और आर्गेनिक कृषि हो।

3, बेहतर स्वास्थ्य:

सभी आयु के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित हो।

4, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा:

समावेशी, समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित हो और सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसर हों।

5, लैंगिक समानता:

हर स्थान पर लैंगिक समानता हो और सभी ओर महिला सशक्तिकरण हो।

6, स्वच्छ जल और स्वच्छता:

सभी के लिए स्वच्छ जल की उपलब्धता और जल का सही और सस्टेनेबल मैनेजमेंट सुनिश्चित हो।

7, सस्ती और टिकाऊ ऊर्जा:

सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक सभी पहुँच सुनिश्चित हो।

8, रोजगार और आर्थिक विकास:

सभी के लिए सतत, समावेशी आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार के साथ प्राप्त हो।

9, उद्योग, नवाचार और इंफ्रास्ट्रक्चर:

फ्लेक्सिबल इंफ्रास्ट्रक्चर हो, टिकाऊ औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दें और नवाचार को बढ़ावा मिले।

10, असमानता में कमी:

सभी देशों के भीतर और उनके बीच असमानता ना हो, चाहे वह आर्थिक दृष्टि से हो, सामाजिक या अन्य कोई भी।

11, स्थायी व सुरक्षित शहर:

शहरों का निर्माण ऐसा हो जो समावेशी, सुरक्षित, लचीला और टिकाऊ हो। हमारे यहाँ स्मार्ट सिटी की अवधारणा है।

12, दायित्वपूर्ण उत्पादन और उपभोग:

उत्पादन के अनुसार उपभोग दायित्व पूर्ण हो और उपभोग के अनुसार उत्पादन।

13, जलवायु:

जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्यवाहियों की आवश्यकता है।

14, पानी के नीचे जीवन:

महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों, जीवों का संरक्षण करते हुए उनका उपयोग करें।

15, भूमि पर जीवन:

धरती की पारिस्थितिकी प्रणालियों के सरंक्षण, पुनर्स्थापना को बढ़ावा मिले, वनों का उचित प्रबंधन हो, मरुस्थलीकरण से लड़ें और जैव विविधता की हानि को रोका जाए।

16, शांति, न्याय और सशक्त संस्थान:

शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा मिले, सभी के लिए न्याय तक पहुँच हो और प्रभावी, जवाबदेह संस्थानों का निर्माण हो।

17, लक्ष्यों के लिए भागीदारी:

कार्यान्वयन के साधनों को मजबूत करना और सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करना। 

मित्रों,

एसडीजी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे आज हमारी पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले कुछ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित कर रहे हैं। 

इनके अतिरिक्त आप प्रदूषण, सड़क सुरक्षा, युद्ध, साइबर क्राइम, जैसे अन्य मुद्दों पर भी कार्य कर सकते हैं। लघुकथाकार होते हुए अपने साहित्यकार होने के दायित्व का निर्वहन ज़रूर करें।

सादर, 

चंद्रेश कुमार छतलानी