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रविवार, 28 अप्रैल 2019

पुस्तक समीक्षा | पिघलती बर्फ (सविता इंद्र गुप्ता) | कमलेश भारतीय



पुस्तक : पिघलती बर्फ
लेखिका : सविता इंद्र गुप्ता
प्रकाशक : अक्षर प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ संख्या : 128
मूल्य : रु. 300.

सविता इंद्र गुप्ता का लघुकथा संग्रह ‘पिघलती बर्फ’ में कुल 88 रचनाओं में ज्यादातर लघुकथाएं नारी जीवन की समस्याओं को उजागर करती हैं ।
पुस्तक की कहानी ‘भेडि़या’ में सुरसती को गांव में स्कूल चलाने से न रोक पाने पर प्रधान उसका यौन शोषण करना चाहते हैं तो बच्चे अपने अविभावकों को बुला लाते हैं और सभी प्रधान जैसे भेडि़ये का शिकार कर डालते हैं। ‘वापसी’ में पति-पत्नी प्यार से चलकर कोर्ट के गलियारों तक पहुंच गये लेकिन कोर्ट के बाहर बातचीत में ही वापसी हो जाती है। उसके बिना लघुकथा अच्छी है कि पति बीस साल बाद पत्नी को अपनी सुंदर सेक्रेटरी के लिए तलाक देना चाहता है और पत्नी कहती है कि मेरे बीस वर्ष लौटा दो। इस पर समरसेट माॅम की लघुकथा सहज ही ध्यान में आ जाती है।
शीर्षक लघुकथा ‘पिघलती बर्फ’ में कठोरता पिघल जाती है जब सर्दी में कम्बल देने में देरी होने पर भिखारी बालक मर जाता है। तब पति-पत्नी फैसला करते हैं कि कुछ कम्बल खरीद कर गरीब बच्चों को बांट कर आएंगे। कामवालियां क्या दीपावली की सफाई में किसी कूड़ेदान की तरह होती हैं? यह सवाल उठाती है ‘कूड़ेदान’ लघुकथा।
इस तरह सविता इंद्र की लघुकथाएं इस विधा की कसौटी पर सही उतरती हैं। उनका पहला लघुकथा संग्रह ही काफी परिपक्व रचनाएं लिए हुए है। दो लघुकथाओं का क्रम गड़बड़ है। एक शीर्षक वाली लघुकथा क्रम में है लेकिन संग्रह में नहीं। एक है तो उसका उल्लेख नहीं। इन छोटी बातों की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए था।