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सोमवार, 15 जुलाई 2024
शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023
बुधवार, 12 अगस्त 2020
विश्व हिंदी सम्मलेन, मॉरीशस की पुस्तक विश्व हिंदी पत्रिका में लघुकथाओं के शीर्षक पर मेरा एक शोध पत्र
विश्व हिंदी सम्मलेन, मॉरीशस की पुस्तक विश्व हिंदी पत्रिका में लघुकथाओं के शीर्षक पर मेरा एक शोध पत्र। इसकी जानकारी पूर्व में ही आ गई थी। अब यह विश्व हिंदी सम्मलेन के वेबसाइट http://www.vishwahindi.com/hi/default.aspx पर उपलब्ध है।
शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020
शोध पत्र: प्रेम सिंह बरनालवी की लघुकथाओ में व्यक्त लोकजीवन एवं साम्प्रदायिकता | डॉ हेमलता राणा
दृष्टिकोण Vol 11 No 4 (2019): Vol-11-Issue-4-July-August-2019
Abstract
प्रेम सिंह बरनालवी जी का जन्म 29 अक्टूबर 1945 को हरियाणा प्रांत के अंबाला जिल के बरनाला नामक गांव के एक गरीब परिवार में हुआ। वह बचपन से ही अपने पारिवारिक रिश्तो से बहुत जुड़े हुए थे। साहित्य में अपने आगमन को लेकर बरनालवी लिखते हैं कि "जब सेना में रहते हुए वे हाई लॉन्ग पोस्ट पर गए तो काफी समय होने के कारण समीप के पुस्तकालय की तमाम पुस्तक उन्होंने पढ़ डाली।" वहां के प्राकृतिक सौंदर्य तथा एकांत वातावरण ने बरनालवी जी को काव्य सृजन के लिए प्रेरित किया। देवताओं का निवास कहे जाने वाली उस धरती पर पता नहीं कब क्यों और कैसे बरनालवी जी के भीतर से काव्य स्त्रोत फूट पड़ा। वहीं पर उन्होंने अपनी पहली रचना 'मेरा मंदिर´ लिखी जो कि उनकी सबसे बेहतर काव्य रचना थी परंतु 30 पदों की लंबी रचना होने के कारण यह अभी तक अप्रकाशित है। इसके बाद बरनालवी जी हर समय प्रकृति का मानवीकरण कर कुछ ना कुछ लिखते ही रहे और धीरे धीरे एक प्रतिभाशाली और अनुभवी लेखक के रूप में उभर कर सामने आए। उन्होंने मानव मन की गहराइयों में उतर कर समस्याओं के मूल शुरू की खोज की। उनके पूर्वजों ने उन्हें जो संस्कार दिए। समाज ने जो अनुभव दिया और ईश्वर ने जो कौशल दिए, वह इन सभी विशेषताओं का खुलकर इस्तेमाल कर रहे थे। उनकी रचनाओं में विषय की मौलिकता व भावुकता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उनका साहित्य सृजन उनकी लोक कथाओ के माध्यम से ज्यादा उभर कर सामने आया जिसमे लोक कथा के माध्यम से सूक्ष्म मनः स्थितियों को प्रभावी रूप से उकेरा गया है । लघुकथा के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. सतीश राज पुष्करणा के कहा कि "लघुकथा मानव मन की अभिव्यक्ति को कुछ शब्दो में प्रभावशाली ढंग से कहा देने की विधा है।" बरनालवी जी की लघु कथा के साथ साथ लोक चेतना प्रमुख रूप से उभर कर सामने आई है। लोक चेतना से अभिप्राय उनकी संसार को देखने की दृष्टि है जो कि उनके अंतर्मन में पूरी तरह छाई हुई है। बरनालवी जी ने समाज की यथास्थिति और उस पर कुरीतियों के बढ़ते प्रभाव को भलीभांति स्पष्ट किया। ....
Source:
https://hindijournals.org/index.php/drishtikon/article/view/1611
Abstract
प्रेम सिंह बरनालवी जी का जन्म 29 अक्टूबर 1945 को हरियाणा प्रांत के अंबाला जिल के बरनाला नामक गांव के एक गरीब परिवार में हुआ। वह बचपन से ही अपने पारिवारिक रिश्तो से बहुत जुड़े हुए थे। साहित्य में अपने आगमन को लेकर बरनालवी लिखते हैं कि "जब सेना में रहते हुए वे हाई लॉन्ग पोस्ट पर गए तो काफी समय होने के कारण समीप के पुस्तकालय की तमाम पुस्तक उन्होंने पढ़ डाली।" वहां के प्राकृतिक सौंदर्य तथा एकांत वातावरण ने बरनालवी जी को काव्य सृजन के लिए प्रेरित किया। देवताओं का निवास कहे जाने वाली उस धरती पर पता नहीं कब क्यों और कैसे बरनालवी जी के भीतर से काव्य स्त्रोत फूट पड़ा। वहीं पर उन्होंने अपनी पहली रचना 'मेरा मंदिर´ लिखी जो कि उनकी सबसे बेहतर काव्य रचना थी परंतु 30 पदों की लंबी रचना होने के कारण यह अभी तक अप्रकाशित है। इसके बाद बरनालवी जी हर समय प्रकृति का मानवीकरण कर कुछ ना कुछ लिखते ही रहे और धीरे धीरे एक प्रतिभाशाली और अनुभवी लेखक के रूप में उभर कर सामने आए। उन्होंने मानव मन की गहराइयों में उतर कर समस्याओं के मूल शुरू की खोज की। उनके पूर्वजों ने उन्हें जो संस्कार दिए। समाज ने जो अनुभव दिया और ईश्वर ने जो कौशल दिए, वह इन सभी विशेषताओं का खुलकर इस्तेमाल कर रहे थे। उनकी रचनाओं में विषय की मौलिकता व भावुकता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उनका साहित्य सृजन उनकी लोक कथाओ के माध्यम से ज्यादा उभर कर सामने आया जिसमे लोक कथा के माध्यम से सूक्ष्म मनः स्थितियों को प्रभावी रूप से उकेरा गया है । लघुकथा के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. सतीश राज पुष्करणा के कहा कि "लघुकथा मानव मन की अभिव्यक्ति को कुछ शब्दो में प्रभावशाली ढंग से कहा देने की विधा है।" बरनालवी जी की लघु कथा के साथ साथ लोक चेतना प्रमुख रूप से उभर कर सामने आई है। लोक चेतना से अभिप्राय उनकी संसार को देखने की दृष्टि है जो कि उनके अंतर्मन में पूरी तरह छाई हुई है। बरनालवी जी ने समाज की यथास्थिति और उस पर कुरीतियों के बढ़ते प्रभाव को भलीभांति स्पष्ट किया। ....
Source:
https://hindijournals.org/index.php/drishtikon/article/view/1611
शुक्रवार, 15 नवंबर 2019
बुधवार, 13 मार्च 2019
शोध पत्र: राधावल्लभ त्रिपाठी रचित लघुकथा "एकं रुप्यकम" की समीक्षा | डॉ. ज्वाला प्रसाद
International Journal of Multidisciplinary Research and Development
Online ISSN: 2349-4182, Print ISSN: 2349-5979, Impact Factor: RJIF 5.72
Volume 4; Issue 2; February 2017; Page No. 97-98
Source:
http://www.allsubjectjournal.com/download/2855/4-2-24-857.pdf
शुक्रवार, 8 मार्च 2019
गुरुवार, 7 मार्च 2019
बुधवार, 6 मार्च 2019
शोध पत्र: हिन्दी लघुकथा: राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिकता के सन्दर्भ में | खेमकरण
International Journal of Advanced Research and Development ISSN: 2455-4030 Vol. 3, Issue 3 (2018) PP: 100-105
Abstract: समाजिक और साँस्कृतिक बहुलता, भारत की बड़ी उपलब्धि है। इन्हीं उपलब्धियों के कारण जीवन जीवन्त और राष्ट्रीय एकता मजबूत है। यह भारत की मूलभूत पहचान है जो सदा ही गौरवान्वित करती रही है परन्तु, चिन्ताजनक बिन्दु यह भी है कि साम्प्रदायिक ताकतें, विभिन्न धर्मों के बीच धार्मिक, जातिगत खाईयाँ पैदाकर, जन-मानस को छिन्न-भिन्न, और दंगे करवाकर अपने नापाक उद्देश्य में सफल होती रही हैं। इनका कार्य है अपने धर्म, जाति को सर्वोपरि मानकर, दूसरे धर्म की आलोचना करना और धार्मिक विवाद को बढ़ावा देकर, मानव-मानवता का खून बहाना। इस प्रकार साम्प्रदायिक सोच देश की एकता, अखण्डता को खतरे में डालती है। इन खतरों को हिन्दी कथाकारों ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से रेखांकित किया है। साँझा विरासत के कथाकार मंटो के अतिरिक्त समकालीन हिन्दी लघुकथा के वरिष्ठ हस्ताक्षर असगर वजाहत, मधुदीप, डाॅ0 सतीश दुबे, पारस दासोत, सुकेश साहनी, भगीरथ, महेन्द्र सिंह महलान, हबीब कैफी, बलराम अग्रवाल, कमलेश भारतीय, डाॅ श्याम सुन्दर दीप्ति, श्यामबिहारी श्यामल, डाॅ0 दामोदर खड़से, डाॅ0 कमल चोपड़ा, बलराम, माधव नागदा, कस्तूरीलाल तागरा और संतोष सुपेकर आदि कथाकारों की लघुकथाओं में राष्ट्रीय एकता के तत्व प्रमुखता से मिलते हैं। वहीं, इन कथाकारों की लघुकथाएँ, यह भेद भी खोलती है कि साम्प्रदायिक दंगों के पीछे निम्न स्तर की राजनीति, राजनीतिक पार्टियाँ और कट्टरपंथी नेता हैं, जिनके शिकार प्रायः आमजन ही होते हैं। सैकड़ों दंगे-फसाद, हिंसक-शर्मनाक घटनाएँ इनसान होने पर प्रश्न चिह्न हैं। हिन्दी लघुकथा इन सबकी प्रत्यक्षदर्शी रही है। प्रस्तुत शोध-पत्र इन्हीं विषयों पर केन्द्रित है।
Source:
http://www.advancedjournal.com/download/1555/3-3-97-803.pdf
Abstract: समाजिक और साँस्कृतिक बहुलता, भारत की बड़ी उपलब्धि है। इन्हीं उपलब्धियों के कारण जीवन जीवन्त और राष्ट्रीय एकता मजबूत है। यह भारत की मूलभूत पहचान है जो सदा ही गौरवान्वित करती रही है परन्तु, चिन्ताजनक बिन्दु यह भी है कि साम्प्रदायिक ताकतें, विभिन्न धर्मों के बीच धार्मिक, जातिगत खाईयाँ पैदाकर, जन-मानस को छिन्न-भिन्न, और दंगे करवाकर अपने नापाक उद्देश्य में सफल होती रही हैं। इनका कार्य है अपने धर्म, जाति को सर्वोपरि मानकर, दूसरे धर्म की आलोचना करना और धार्मिक विवाद को बढ़ावा देकर, मानव-मानवता का खून बहाना। इस प्रकार साम्प्रदायिक सोच देश की एकता, अखण्डता को खतरे में डालती है। इन खतरों को हिन्दी कथाकारों ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से रेखांकित किया है। साँझा विरासत के कथाकार मंटो के अतिरिक्त समकालीन हिन्दी लघुकथा के वरिष्ठ हस्ताक्षर असगर वजाहत, मधुदीप, डाॅ0 सतीश दुबे, पारस दासोत, सुकेश साहनी, भगीरथ, महेन्द्र सिंह महलान, हबीब कैफी, बलराम अग्रवाल, कमलेश भारतीय, डाॅ श्याम सुन्दर दीप्ति, श्यामबिहारी श्यामल, डाॅ0 दामोदर खड़से, डाॅ0 कमल चोपड़ा, बलराम, माधव नागदा, कस्तूरीलाल तागरा और संतोष सुपेकर आदि कथाकारों की लघुकथाओं में राष्ट्रीय एकता के तत्व प्रमुखता से मिलते हैं। वहीं, इन कथाकारों की लघुकथाएँ, यह भेद भी खोलती है कि साम्प्रदायिक दंगों के पीछे निम्न स्तर की राजनीति, राजनीतिक पार्टियाँ और कट्टरपंथी नेता हैं, जिनके शिकार प्रायः आमजन ही होते हैं। सैकड़ों दंगे-फसाद, हिंसक-शर्मनाक घटनाएँ इनसान होने पर प्रश्न चिह्न हैं। हिन्दी लघुकथा इन सबकी प्रत्यक्षदर्शी रही है। प्रस्तुत शोध-पत्र इन्हीं विषयों पर केन्द्रित है।
Source:
http://www.advancedjournal.com/download/1555/3-3-97-803.pdf
मंगलवार, 5 मार्च 2019
रविवार, 24 फ़रवरी 2019
शोध पत्र: हिन्दी लघुकथा: स्वरूप, परिभाषा और तत्व | डॉ॰ हेमलता शर्मा
Source:
Journal of Advances and Scholarly Research in Allied education Vol-I, Issue-III ISSN: 2230-7540 April 2011 - PP 1-8
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