मनमोहन गुप्ता मोनी
लघुकथा के क्षेत्र में डॉ. मधुकांत का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सम्मान से सम्मानित मधुकांत सातवें दशक से लघुकथा लेखन में सक्रिय हैं। उनकी अनेक पुस्तकें सम्मानित व प्रकाशित हो चुकी हैं। केवल लघुकथा पर ही उनके एक दर्जन से अधिक संग्रह छप चुके हैं। उपन्यास लेखन से लेकर कहानी, नाटक, कविता, व्यंग्य आदि के साथ-साथ लघुकथा का सृजन उनका निरंतर जारी है। लघुकथा की बात हो और डॉक्टर मधुकांत का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं। थोड़े शब्दों में अधिक बात कहना आसान काम नहीं है। एक लघुकथा लेखक ही इसे पूर्ण कर सकती है।
डॉ. मधुकांत की रचनाओं को पढ़ने पर ऐसा लगता है कि जिंदगी का शायद ही कोई पल या विसंगति, उनकी रचनाओं में अछूती नहीं रही। एक ही विषय पर उनकी अनेक लघुकथाएं पढ़ने को मिल सकती हैं लेकिन उनमें पुनरावृत्ति नहीं है। शैक्षिक जगत से जुड़े रहने के कारण रचनाओं में अध्यापन अनुभव भी स्पष्ट दिखाई देता है। ‘ब्लैक बोर्ड’ की तरह ही ‘मेरी शैक्षिक लघुकथाएं’ में भी शिक्षा की बात अधिक है। लघुकथा संग्रह ‘तूणीर’ की रचनाओं को पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि यह कोरी कल्पना पर आधारित है। ऐसा आभास होता है कि डॉ. मधुकांत ने हर रचना को जिया है। ‘नाम की महिमा’ लघुकथा में उन्होंने बिल्कुल सटीक इशारा किया है। इसी प्रकार अतिथि देवो भव, अंगूठे, आईना, सगाई, जानी-अनजानी, अन्न देवता आदि लघुकथाएं जिंदगी के बहुत करीब दिखाई देती हैं।
पुस्तक : तूणीर (लघुकथा संग्रह)
लेखक : डॉ. मधुकांत
प्रकाशक ः अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली
पृष्ठ ः 121
मूल्य ः रु. 240
Source:
https://www.dainiktribuneonline.com/2019/09/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4/
लघुकथा के क्षेत्र में डॉ. मधुकांत का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सम्मान से सम्मानित मधुकांत सातवें दशक से लघुकथा लेखन में सक्रिय हैं। उनकी अनेक पुस्तकें सम्मानित व प्रकाशित हो चुकी हैं। केवल लघुकथा पर ही उनके एक दर्जन से अधिक संग्रह छप चुके हैं। उपन्यास लेखन से लेकर कहानी, नाटक, कविता, व्यंग्य आदि के साथ-साथ लघुकथा का सृजन उनका निरंतर जारी है। लघुकथा की बात हो और डॉक्टर मधुकांत का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं। थोड़े शब्दों में अधिक बात कहना आसान काम नहीं है। एक लघुकथा लेखक ही इसे पूर्ण कर सकती है।
डॉ. मधुकांत की रचनाओं को पढ़ने पर ऐसा लगता है कि जिंदगी का शायद ही कोई पल या विसंगति, उनकी रचनाओं में अछूती नहीं रही। एक ही विषय पर उनकी अनेक लघुकथाएं पढ़ने को मिल सकती हैं लेकिन उनमें पुनरावृत्ति नहीं है। शैक्षिक जगत से जुड़े रहने के कारण रचनाओं में अध्यापन अनुभव भी स्पष्ट दिखाई देता है। ‘ब्लैक बोर्ड’ की तरह ही ‘मेरी शैक्षिक लघुकथाएं’ में भी शिक्षा की बात अधिक है। लघुकथा संग्रह ‘तूणीर’ की रचनाओं को पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि यह कोरी कल्पना पर आधारित है। ऐसा आभास होता है कि डॉ. मधुकांत ने हर रचना को जिया है। ‘नाम की महिमा’ लघुकथा में उन्होंने बिल्कुल सटीक इशारा किया है। इसी प्रकार अतिथि देवो भव, अंगूठे, आईना, सगाई, जानी-अनजानी, अन्न देवता आदि लघुकथाएं जिंदगी के बहुत करीब दिखाई देती हैं।
पुस्तक : तूणीर (लघुकथा संग्रह)
लेखक : डॉ. मधुकांत
प्रकाशक ः अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली
पृष्ठ ः 121
मूल्य ः रु. 240
Source:
https://www.dainiktribuneonline.com/2019/09/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4/
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-09-2019) को "मजहब की बुनियाद" (चर्चा अंक- 3455) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी ।
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