तीन संकल्प
वो दौड़ते हुए पहुँचता उससे पहले ही उसके परिवार के एक सदस्य के सामने उसकी वो ही तलवार आ गयी, जिसे हाथ में लेते ही उसने पहला संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी किसी की भी बुराई नहीं सुनेगा'। वो पीछे से चिल्लाया, "रुक जाओ तुम्हें तो दूसरे धर्मों के लोगों को मारना है।" लेकिन तलवार के कान कहाँ होते हैं, उसने उसके परिवार के उस सदस्य की गर्दन काट दी।
वो फिर दूसरी तरफ दौड़ा, वहाँ भी उससे पहले उसी की एक बन्दूक पहुँच गयी थी, जिसे हाथ में लेकर उसने दूसरा संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी भी बुराई की तरफ नहीं देखेगा'। बन्दूक के सामने आकर उसने कहा, "मेरी बात मानो, देखो मैं तुम्हारा मालिक हूँ..." लेकिन बन्दूक को कुछ कहाँ दिखाई देता है, और उसने उसके परिवार के दूसरे सदस्य के ऊपर गोलियां दाग दीं।
वो फिर तीसरी दिशा में दौड़ा, लेकिन उसी का आग उगलने वाला वही हथियार पहले से पहुँच चुका था, जिसके आने पर उसने अपना तीसरा संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी किसी को बुरा नहीं कहेगा'। वो कुछ कहता उससे पहले ही हथियार चला और उसने उसके परिवार के तीसरे सदस्य को जला दिया।
और वो स्वयं चौथी दिशा में गिर पड़ा। उसने गिरे हुए ही देखा कि एक बूढ़ा आदमी दूर से धीरे-धीरे लाठी के सहारे चलता हुआ आ रहा था, गोल चश्मा पहने, बिना बालों का वो कृशकाय बूढ़ा उसका वही गुरु था जिसने उसे मुक्ति दिला कर ये तीनों संकल्प दिलाये थे।
उस गुरु के साथ तीन वानर थे, जिन्हें देखते ही सारे हथियार लुप्त हो गये।
और उसने देखा कि उसके गुरु उसे आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं और उनकी लाठी में उसी का चेहरा झाँक रहा है, उसके मुंह से बरबस निकल गया 'हे राम!'।
कहते ही वो नींद से जाग गया।
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