अंदाज
"मैं अगर तेरी जगह होती तो उसे थप्पड़ मारते देर न लगाती । "
"यार ! एकबारगी इच्छा तो मेरी भी हुई थी । "
"एक कहानी क्या छप गयी , खुद को कमलेश्वर मान बैठा है । "
"फिर तूने मारा क्यों नहीं , बद्द्त्मीजी की हद है कि सबके सामने इतनी बेशर्मी से उसने तेरे गालों को छू लिया। छी,कितनी गन्दी सोच ।"
"बस रोक लिया खुद को कि भरी सभा में हंगामा न हो जाये । "
"तेरे पतिदेव भी तो थे वहां । उनको भी तो गुस्सा ही आया होगा । "
"उस वक्त वो शायद वॉशरूम में गये थे । "
"वो वहां होते तो बात बढ़ जाती । "
"हाँ ! तब अस्मित के जन्मदिन का सारा मजा स्वाहा हो जाता , इस घटना की वजह से । "
"पर यार मैंने जब उसे तेरा गाल सहलाते हुए देखा तो मुझे बुरा तो लगा ही शर्म भी महसूस हुई । "
"अब जाने दे न यार । उसे ,बता तो दिया था कि ये बात गलत है और उन्होंने अपनी गलती मान भी ली थी। "
"पर ये क्या बात हुई , पहले गलत काम करो और बात न बने तो गलती मान लो ।'
"क्या कहूँ यार कभी - कभी फोन पर उसके साथ साहित्य से इतर बिंदास वार्तालाप भी हो जाता था । हमने अपनी - अपनी जिंदगी के कुछ अनसुलझे पन्ने आपस में शेयर भी किए थे । हो सकता है इसलिए गलतफहमी में पड़ गया हो बेचारा "
"अरे ये वो लोग हैं जो मौका मिलते ही शुरू हो जाते हैं । "
"क्या कर सकते हैं यार । इसके लिए जान लेना या जान देना जरूरी है क्या ? मुझे विश्वास है अब कभी नहीं होगा ऐसा ।"
"वो देख , सरप्राइज आइटम ,अनुज जी आ रहे हैं । एक्सपर्ट हैं अपनी फील्ड के और ऊपर तक पहुंच में भी कमी नहीं है । "
"वाऊ । अनुज जी और यहां । रूक जरा । "
इससे पहले कि अकादमी के सर्वे-सर्वा अनुज जी , किसी और से मुखातिब होते , वे तपाक से उनके सामने जा खड़ी हुई ,
"अनुज जी ! मी , आयुषी ! नावल 'अल्पज्ञ ' की उपन्यासकार , आपने इस उपन्यास को नोटिस में भी लिया है। स्वागत है एक पारखी का इस पार्टी में।"
अनुज जी ने मुस्कुरा कर अपना हाथ आगे कर दिया ।
इसके पहले कि अनुज जी कुछ कहते , उन्हीने उन हाथों को मजबूती से अपने हाथों की कटोरिओं में जकड़ लिया और तब तक जकड़े रहीं जब तक अनुज जी ने आग्रह नहीं किया , " चलिए अब कार्क्रम की ओर चलें । बाकी बातें कभी घर आइये ,वहां आराम से बैठकर करेंगें । "
उन्होंने मुस्कुराकर सहमति की मुद्रा में सिर हिलाया और उनके साथ मंच की ओर चल पड़ीं ।
तालियां , पूरे हाल मेंअपने - अपने अंदाज में बज रहीं थीं ।
-0-
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - श्याम पार्क एक्सटेंशन,
साहिबाबाद - ( उत्तर प्रदेश )
मो 9911127277
"मैं अगर तेरी जगह होती तो उसे थप्पड़ मारते देर न लगाती । "
"यार ! एकबारगी इच्छा तो मेरी भी हुई थी । "
"एक कहानी क्या छप गयी , खुद को कमलेश्वर मान बैठा है । "
"फिर तूने मारा क्यों नहीं , बद्द्त्मीजी की हद है कि सबके सामने इतनी बेशर्मी से उसने तेरे गालों को छू लिया। छी,कितनी गन्दी सोच ।"
"बस रोक लिया खुद को कि भरी सभा में हंगामा न हो जाये । "
"तेरे पतिदेव भी तो थे वहां । उनको भी तो गुस्सा ही आया होगा । "
"उस वक्त वो शायद वॉशरूम में गये थे । "
"वो वहां होते तो बात बढ़ जाती । "
"हाँ ! तब अस्मित के जन्मदिन का सारा मजा स्वाहा हो जाता , इस घटना की वजह से । "
"पर यार मैंने जब उसे तेरा गाल सहलाते हुए देखा तो मुझे बुरा तो लगा ही शर्म भी महसूस हुई । "
"अब जाने दे न यार । उसे ,बता तो दिया था कि ये बात गलत है और उन्होंने अपनी गलती मान भी ली थी। "
"पर ये क्या बात हुई , पहले गलत काम करो और बात न बने तो गलती मान लो ।'
"क्या कहूँ यार कभी - कभी फोन पर उसके साथ साहित्य से इतर बिंदास वार्तालाप भी हो जाता था । हमने अपनी - अपनी जिंदगी के कुछ अनसुलझे पन्ने आपस में शेयर भी किए थे । हो सकता है इसलिए गलतफहमी में पड़ गया हो बेचारा "
"अरे ये वो लोग हैं जो मौका मिलते ही शुरू हो जाते हैं । "
"क्या कर सकते हैं यार । इसके लिए जान लेना या जान देना जरूरी है क्या ? मुझे विश्वास है अब कभी नहीं होगा ऐसा ।"
"वो देख , सरप्राइज आइटम ,अनुज जी आ रहे हैं । एक्सपर्ट हैं अपनी फील्ड के और ऊपर तक पहुंच में भी कमी नहीं है । "
"वाऊ । अनुज जी और यहां । रूक जरा । "
इससे पहले कि अकादमी के सर्वे-सर्वा अनुज जी , किसी और से मुखातिब होते , वे तपाक से उनके सामने जा खड़ी हुई ,
"अनुज जी ! मी , आयुषी ! नावल 'अल्पज्ञ ' की उपन्यासकार , आपने इस उपन्यास को नोटिस में भी लिया है। स्वागत है एक पारखी का इस पार्टी में।"
अनुज जी ने मुस्कुरा कर अपना हाथ आगे कर दिया ।
इसके पहले कि अनुज जी कुछ कहते , उन्हीने उन हाथों को मजबूती से अपने हाथों की कटोरिओं में जकड़ लिया और तब तक जकड़े रहीं जब तक अनुज जी ने आग्रह नहीं किया , " चलिए अब कार्क्रम की ओर चलें । बाकी बातें कभी घर आइये ,वहां आराम से बैठकर करेंगें । "
उन्होंने मुस्कुराकर सहमति की मुद्रा में सिर हिलाया और उनके साथ मंच की ओर चल पड़ीं ।
तालियां , पूरे हाल मेंअपने - अपने अंदाज में बज रहीं थीं ।
-0-
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - श्याम पार्क एक्सटेंशन,
साहिबाबाद - ( उत्तर प्रदेश )
मो 9911127277
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-09-2019) को "मोदी स्वयं सुबूत" (चर्चा अंक- 3462) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी सर।
हटाएंकरारा व्यंग्य दोहरी मानसिकता पर .... उम्दा है।
जवाब देंहटाएंमौका परस्ती और दिखावे झूठी अस्मिता के करारा तंज है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।