आदरणीय मित्रों,
किसी भी विषय पर रचनाकर्म करने से पहले उस विषय की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है। यह श्रृंखला इसीलिए ही प्रारंभ की थी, ताकि वैश्विक मुद्दों की लघुकथाओं के सर्जन के कुछ विषयों की जानकारी हम सभी को प्राप्त हो सके। मैं भी पढ़ रहा हूं और आप सभी के साथ सीखने की कोशिश भी कर रहा हूं। इसमें ऐसा कोई दावा नहीं है कि आपको हर जानकारी मिल जाएगी, लेकिन शायद कुछ जागरूकता ज़रूर प्राप्त हो सके।
बिना जानकारी के गद्य सर्जन का अर्थ तो कुछ इस प्रकार है जैसे बिना बीज के खेती करना, बिना fuel के गाड़ी चलाना या फिर बिना भाषा ज्ञान के उस भाषा की किताब पढ़ने को उठा लेना।
इस श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए, आज इस पोस्ट में भ्रष्टाचार पर बात करते हैं। यह तो सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार सबसे व्यापक और महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों में से एक है, जो सभी क्षेत्रों और हर तरह की आर्थिक स्थितियों वाले देशों को प्रभावित करता है। यह रिश्वतखोरी, गबन और भाई-भतीजावाद से लेकर प्रभाव-व्यापार और ज़मीनों पर कब्ज़ा करने तक विभिन्न कपटीपनो के रूपों में विद्यमान है। भ्रष्टाचार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को अशक्त करता है, शासन व तंत्र में विश्वास को कम करता है और हाशिए पर पड़े कमज़ोर लोगों के समय से लेकर जीवन तक की कीमत पर शक्तिशाली लोगों को सिस्टम में हेरफेर करने की अनुमति देकर असमानता को बढ़ाता है।
विकासशील देशों में, भ्रष्टाचार शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और infrastructure जैसी आवश्यक सेवाओं से आवश्यक संसाधनों को कम कर देता है, जबकि विकसित देशों में, यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को नष्ट करता है और बाज़ार की प्रतिस्पर्धा को विकृत करता है।
कहना न होगा कि, भ्रष्टाचार के परिणाम सीमाओं से परे हैं, जो वैश्विक आर्थिक स्थिरता, सुरक्षा और सामाजिक विकास को प्रभावित करते हैं। अपराध को बढ़ावा देने के साथ ही यह राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ावा देता है और जलवायु परिवर्तन व मानवाधिकारों के हनन जैसे वैश्विक मुद्दों से निपटने के प्रयासों को भी बाधित करता है।
भ्रष्टाचार न केवल मानवों, जंतुओं और प्रकृति को निष्पक्षता से वंचित करता है, बल्कि गरीबी उन्मूलन और सतत विकास जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी कहीं कम तो कहीं न्यूनतम करवा देता है। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए व्यापक सुधार, शासन में पारदर्शिता और नेताओं व प्रशासन को जवाबदेह ठहराने के लिए नागरिक समाज के सशक्तिकरण की आवश्यकता है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसे संगठनों द्वारा ट्रैक किए गए भ्रष्टाचार पर वैश्विक डेटा से यह संकेत मिलता है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में भ्रष्टाचार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (CPI) 180 देशों और क्षेत्रों को उनके सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के स्तरों के आधार पर रैंक करता है। हाल के वर्षों में, डेनमार्क, फ़िनलैंड और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों को लगातार सबसे कम भ्रष्ट के रूप में स्थान दिया गया है, जबकि सोमालिया, सीरिया और दक्षिण सूडान जैसे राष्ट्र अक्सर सबसे भ्रष्ट देशों में सूचीबद्ध होते हैं। यह डेटा इस बात पर प्रकाश डालता है कि उच्च रैंक वाले देशों में भी, भ्रष्टाचार के जोखिम मौजूद हैं, विशेष रूप से राजनीति पर कॉरपोरेट प्रभाव और वित्तीय पारदर्शिता की कमी जैसे क्षेत्रों में यह काफी फैला हुआ है। इसके अलावा, COVID-19 महामारी के दौरान, वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले बढ़ गए, क्योंकि कई देशों में आपातकालीन खरीद और राहत निधि का दुरुपयोग किया गया।
यह कहा जा सकता है कि आपदा, आपातकाल या समस्या के समय भ्रष्टाचार के लिए अवसर होते हैं और यही अवसर भ्रष्टाचार उस हर स्थान पर ढूंढ लेता है, जहां धन का लेनदेन हो रहा हो।
भ्रष्टाचार पर साहित्य
ऐसे साहित्य बहुतायत में है जो विभिन्न दृष्टिकोणों से भ्रष्टाचार की जटिलताओं को दर्शाते हैं। रे फिसमैन और मिरियम ए. गोल्डन द्वारा लिखित "Corruption: What Everyone Needs to Know" भ्रष्टाचार के कारणों, प्रभावों और संभावित समाधानों का एक व्यापक, सुलभ अवलोकन प्रदान करता है। सुसान रोज़ एकरमैन की "Corruption and Government: Causes, Consequences, and Reform" को एक आधारभूत कार्य माना जाता है जो भ्रष्टाचार के आर्थिक और राजनीतिक दोनों आयामों में गहराई से उतरता है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों में रुचि रखने वालों के लिए, ग्राहम ग्रीन द्वारा लिखित "The Quiet American" एक ऐसा उपन्यास है जो वियतनाम संघर्ष की पृष्ठभूमि में भ्रष्टाचार, शक्ति और नैतिक अस्पष्टता के विषयों पर आधारित है। इसके अतिरिक्त, डेरॉन ऐसमोग्लू और जेम्स ए. रॉबिन्सन द्वारा लिखित "Why Nations Fail" इस बात की पड़ताल करता है कि भ्रष्टाचार राष्ट्रों की सफलता या विफलता में कैसे योगदान देता है, यह कृति राजनीतिक संस्थाओं और शासन कार्य हेतु भी गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। अतः , यह स्पष्ट है कि कई साहित्यिक कृतियां भ्रष्टाचार की बहुआयामी समस्या को समझने और उसका समाधान करने के लिए महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान कर रही हैं।
प्रेमचंद की कहानियाँ जैसे "नमक का दरोगा" भी भ्रष्टाचार और ईमानदारी के संघर्ष को दर्शाती हैं। श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास "राग दरबारी" ग्रामीण राजनीति और प्रशासनिक तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का जीवंत चित्रण करता है। इसके अलावा, हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएँ भी भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपों पर तीखा कटाक्ष करती हैं, जैसे "विकलांग श्रृद्धा का दौर", जिसमें समाज में व्याप्त अनैतिकता और भ्रष्टाचार पर प्रहार किया गया है।
इस विषय पर लघुकथा विधा में भी बहुत रचनाकर्म हुआ है। इनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं:
तंत्र / कमल चोपड़ा
बाजार में बंद पड़ी एक दुकान के फट्टे पर चढ़कर एक युवक बोलने लगा, ‘‘खल्क-खुदा की। हुक्म बादशाह का। तंत्र प्रजा का। वेश फकीर का। चेहरा प्रधान का। चरित्र तानाशाह का। इच्छा पूँजी नाथ की। इशारे कम्पनियों के। खून हमारा। पसीना हमारा। मेहनत हमारी। शक्ति हमारी। सत्ता उनकी। पावर उनकी। मल्कियत उनकी। पहाड़ उनके। जमीन उनकी। इमारतें उनकी। कारखाने उनके। माइन्स उनकी। खजाने उनके। अफसर उनके। सिपाई उनके। डंडे उनके? मुल्क हमारा। भूख हमारी। बेरोजगारी हमारी। अभाव हमारे। कंगाली हमारी। विवशता हमारी। फिर भी हमारा राज। हमारे द्वारा, हमारे लिए । वह जो दिए थे तुमने अपने हाथ काटकर। वही जो दिया था वोट? अब भुगतो……? बनाया सेवक? हुआ कब्जा? हमने पाला हमीं को भौं-भौं। हमारी जूती ….? हमारे डन्डे? हमारे सर?
राज है जिसका वह राजा है भूखा। राजा है नंगा। राजा है बेघर। मांगेगा जो रोटी कपड़ा और रोजगार। माना जाएगा उसे गद्दार। गद्दी पर है चौकीदार। उसे हासिल है सेठ का दुलार। करवाए प्रचार। समझे सिर्फ सेठ का अधिकार। उसे पसंद नहीं चींख पुकार। करेगा जो हाहाकार होगी आंसू गैस लाठीचार्ज और गोलियों की बौछार। करो जय-जय कार, बार-बार, हर बार। यही सरकार। यही सरकार। ये नहीं तो वो सरकार वो नहीं तो ये सरकार। करो जय-जय कार। करो जय-जय कार।
बाअदब-बामुलाहिजा होश्यार! होश्यार ! बनो होश्यार! रहो होश्यार। रहो होश्यार!
‘‘यह है जुमलेबाजी। अच्छे-अच्छे बोल-ढोल की पोल। कट गए हैं हाथ बाकी है जान। सलामत है जुबान। करेगी जमीनी हकीकत बयान। सुनेगा जहान करता रहा मेरा दादा उम्र भर घाटे का सौदा। उगाता रहा अनाज। नहीं की थीं उसने आत्महत्या। सरकारी नीतियों, लालों-दलालों ने की थी उसकी हत्या। कम्पनी को चाहिए हमारी जमीन। सरकार ने हमारी जमीन अधिग्रहण करके दे दी कम्पनी को। मेरे पिता बैठे विरोध में धरने पर। विरोध में खानी पड़ी उन्हें गोली।
जिन्हें हमने बिठाया सिर पर। उन्होंने मारी गोली आँसू गैस और डन्डे? कैसे हमारा राज। हमारे द्वारा। हमारे लिए?’’
वहाँ जुट आए कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया। “ साला हमारे बादशाह को झूठा कहता है। मारो साले को!” भीड़ ने मार-मार कर उसे अधमरा कर दिया। वह नीचे गिर कर बेहोश हो गया।
भीड़ में से एक बुजुर्ग महिला ने आगे आकर कहा, ‘‘मत मारो बेचारे को। बेचारा अपना मानसिक संतुलन खो चुका है। इसकी माँ ने लोगों के घर बर्तन माँज-माँजकर और कुछ इधर-उधर से कर्जा लेकर इसे उच्च शिक्षा दिलाई।
लेकिन नौकरी नहीं लग पाई। सरकार ने कहा पूड़ी-पकौड़े की रेहड़ी लगाओ। इसने इधर-उधर से कर्ज लेकर पकौड़े की रेहड़ी लगाई। एक दिन कमेटी वाले आए और इसके बर्तन रेहड़ी गाड़ी में लादकर ले गए। यह छुड़वाने गया, तो उन्होंने पाँच हजार का चालान या चार हजार रिश्वत भरने को कहा। कहाँ से देता? कोई चारा नहीं था इसके पास। यह जाकर बेरोजगारों के धरने जुलूस में शामिल हो गया। फिर पुलिस का एक डण्डा इसके सिर पर लगा और यह तब से अपना मानसिक संतुलन खो बैठा है। कहता है- राज मेरा है। मेरे द्वारा है। मेरे लिए है फिर भी ……?’’
- कमल चोपड़ा
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एक अन्य अच्छी रचना पढ़िए,
छब्बीस जनवरी / मृणाल आशुतोष
आज वोट का दिन था। मंगरू और चन्दर दोनों तेज़ी से मिडिल स्कूल की ओर जा रहे थे।
" अरे ससुरा, तेज़ी से चलो न! देर हो जाएगा।"
" भाय, वोट के कारण सवेरे से काम में भिड़ गए थे। ठीक से खाना भी नहीं खा पाये।"
स्कूल पर पहुँचते ही देखा कि पोलिंग वाले बाबू सब जाने की तैयारी कर रहे हैं।
"मालिक, पेटी सब काहे समेट रहे हैं?" चन्दर ने हिम्मत दिखाया।
"वोट खत्म हो गया तो अब यहाँ घर बाँध लें क्या?"
"लेकिन अभी तो पाँच नहीं बजा है। रेडियो में सुने थे कि...."
" रेडियो-तेडीओ कम सुना करो और काम पर ध्यान दो। समझे।
" जी मालिक। पर पाँच साल में एक बार तो मौका मिलता है हम गरीब को, अपने मन की बात...
"तुमको ज्यादा नेतागिरी समझ में आने लगा है क्या?" सफेद चकचक धोती पहने गाँव के ही एक बाबू साहेब पीछे से गरजे।"
"चल रे मंगरु। लगता है कि इस बार भी अपना वोट गिर गया है!"
" भाय, एक चीज़ समझ में नहीं आता है कि हम निचला टोले वाले का वोट हमरे आने से पहले कैसे गिर जाता है?"
इससे पहले कि वह कुछ जबाब देता, पुरबा हवा बहने लगी और उसके अंदर से दर्द की गहरी टीस उठी।,"आह !"
- मृणाल आशुतोष
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और तीसरी अच्छी लघुकथा भी प्रस्तुत है,
सत्य की अग्नि परीक्षा / डॉ. लता अग्रवाल
"अरे भाई कौन हो तुम और शहर से दूर यहाँ जंगल में ...इस झोपड़े में क्या कर रहे हो ? " युधिष्ठिर ने वन में भ्रमण करते हुए एक झोपड़े के बाहर बैठे उदास , लाचार से दिख रहे उस व्यक्ति से पूछा।
"मैं सत्य हूँ ,आज कल यहीं रहता हूँ । यही मेरा झोपड़ा है ।"
"आश्चर्य है तुम यहाँ हो ,..तुम्हें लोगों के दिलों में रहना चाहिए...। "
" वहाँ तो धर्मराज , झूठ ने अपना स्थायी निवास बना लिया है और मुझे खोटे सिक्के की तरह बाहर निकाल फैंका है।"
" ओह ! यह तो बुरी खबर है तो तुम समाज में रह सकते हो ।"
"वहाँ सब मुझसे नफरत करते हैं । "
"इसकी कोई वजह होगी। "
"हाँ ! वजह है मैं आईने की भांति लोगों को उनकी सही सूरत दिखाता हूँ। "
"तो उसमें हर्ज क्या है ? यह तो अच्छी बात है। "
"धर्मराज ! आज भ्रष्टाचार, चार सौ बीसी, रिश्वत खोरी आदि के इतने खतरनाक कॉस्मेटिक्स के लेप बाजार में आ गये हैं, जिनके प्रयोग से लोगों के चेहरे इतने भयावह हो गए हैं कि वे अपना चेहरा देखना पसंद नहीं करते । "
"तो कार्यालयों में चले जाओ वहाँ तो तुम्हारा होना बहुत आवश्यक है। "
"गया था धर्मराज ...मगर एक ही पल में उठाकर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया गया।"
"ओह ! तब तो पक्का तुम्हें राजनीति में जाना चाहिए।"
" राजनीति ...! तो अब देश में कहीं बची नहीं । कूटनीति का ही सर्वत्र साम्राज्य है। और कूटनीति को तो सदा ही से मुझसे परहेज रहा है।"
" बड़े आश्चर्य की बात है मैं तो सत्य की पताका लेकर ही स्वर्ग तक पहुंचा था।"
" आप भूल रहे हैं धर्मराज, वह द्वापर युग था आज कलयुग है।"
"तब तो पक्का तुम संचार विभाग (मीडिया) में चले जाओ वहाँ लोग तुम्हें सिर माथे बैठाएंगे । "
" वहाँ मेरे लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा है धर्मराज।"
"ऐसा क्यों भला...? "
"क्योंकि मैं उन्हें विज्ञापन शुल्क जो नहीं दे पाता।"
- डॉ. लता अग्रवाल
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उम्मीद है यह पोस्ट और रचनाएं विषय पर कुछ प्रकाश डालने में सफल रही होगी।
- चंद्रेश कुमार छ्तलानी
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