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शुक्रवार, 18 मार्च 2022

लघुकथा: रंगों का मिलन । हिलव्यू समाचार पत्र

 कल 17.02.2022 के हिलव्यू समाचार पत्र में मेरी एक लघुकथा। आप सभी के सादर अवलोकनार्थ।


रंगों का मिलन

धरती पर होली का दिन था और धरती से बहुत दूर किसी लोक में कृष्ण अपने कक्ष का द्वार बंद कर अंदर चुपचाप बैठे थे। रुक्मणि से रहा नहीं गया, वह कक्ष का द्वार खोल कर कृष्ण के पास गयी और बड़े प्रेम से बोली, "प्रभु, आप द्वारा प्रारंभ किये गए फागोत्सव में आप ही सबसे दूर! इस दिन प्रति वर्ष क्यों विचलित हो जाते हैं? आज तो आपके सारे भक्त, सखा और हम आपको अबीर लगाये बिना नहीं मानेंगे।"
कृष्ण मौन ही रहे। उनके झुके हुए चेहरे पर दुःख साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था।
"अपनी प्रथम भक्त के निमन्त्रण को तो अस्वीकार नहीं कर सकते, यही तो आपकी संगिनी थी फागोत्सव के प्रारंभ में।" कहते हुए रुक्मणि ने राधा को सामने कर दिया।
कृष्ण के चेहरे पर मुस्कान आ गयी लेकिन अगले ही क्षण जाने क्या सोच कर वह फिर चुप हो गए। राधा ने अबीर लगाना चाहा तो खुद को दूर कर दिया, और भरे हुए स्वर में कहा, “होली अपूर्ण है।“
कृष्ण यह कह कर बाहर निकल गये, लेकिन सम्पूर्ण द्वारा शुरू किये गए त्यौहार में अपूर्णता क्यों है, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था।
कृष्ण बाहर निकले ही थे कि, उनकी दृष्टि भवन के द्वार पर आये अतिथि पर गयी, यकायक कृष्ण के चेहरे पर प्रसन्नता आ गयी, वो द्वार की तरफ भागे, राह में ही अबीर की मुट्ठी भर ली और  द्वार पर खड़े अतिथि को रंग दिया।
और गले मिलते हुए अतिथि मोहम्मद ने कहा, "मेरे भाई, हर ईद पर आते हो, सेवईयां भी प्यार से खाते हो, कब तक मैं होली पर तुम्हारी मोहब्बत भरी मिठाई ना खा कर अधूरा रहूँगा?"
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- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी


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