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शनिवार, 29 जून 2019

प्रतिलिपि लघुकथा सम्मान 2018 प्राप्त विजेता लघुकथा:: अन्नदाता | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

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फसल कटाई के बाद उसके चेहरे और खेत की ज़मीन में कोई खास फर्क नहीं दिखाई दे रहा था। दोनों पर गड्ढे और रेशे। घर की चौखट पर बैठा धंसी हुई आंखों से वह कटी हुई फसल और काटने वाली ज़िन्दगी के अनुपात को मापने का प्रयास कर रहा था कि एक चमचमाती कार उसके घर के सामने आ खड़ी हुई। उसमें से एक सफेद कुर्ता-पजामा धारी हाथ जोड़ता हुआ बाहर निकला और उसके पास आकर बोला, "राम-राम काका।" और अपने कुर्ते की जेब से केसरिया सरीखा रंग निकाल कर उसके ललाट पर लगा दिया। उसने अचंभित होकर पूछा, "आज होली..."

उस व्यक्ति ने हँसते हुए उत्तर दिया, "नहीं काका। यह रंग हमारे धर्म का है, इसे सिर पर लगाये रखिये। दूसरे लोग हमारे धर्म को बेचना चाहते हैं, इसलिए आप वोट हमें देना ताकि हमारा धर्म सुरक्षित रहें और हां! हम और सिर्फ हम ही आपके साथ हैं और कोई नहीं।"

सुनकर उसने हाँ की मुद्रा में गर्दन हिलाकर कहा, "जी अन्नदाता।"

उस चमचमाती कार के जाते ही एक दूसरी चमचमाती कार उसके घर के सामने आई। उसमें से भी पहले व्यक्ति जैसे कपड़े पहने एक आदमी निकला। हाथ दिखाते हुए उस आदमी ने उसके पास आकर उसकी आँखों और नाक पर सफेद रंग लगाया और बोला, "देश को धर्म के आधार पर तोड़ने की साजिश की जा रही है। आप अपनी आंखें खुली रखें और देश की इज्जत बचाये रखने के लिये हमें वोट दें और हाँ! हम और सिर्फ हम ही आपके साथ हैं और कोई नहीं।"

उसे भी अपने साथ पा वह मुस्कुरा कर बोला, "जी अन्नदाता।"

उस व्यक्ति के जाते ही एक तीसरा आदमी अंदर आ गया। उसके चेहरे के रंगों को देखकर वह आदमी घृणायुक्त स्वर में बोला, "तुम खुद अन्नदाता होकर गलत रंगों में रंगे हो! अपने लिए खुद आवाज़ उठाओ, और हाँ! सिर्फ हम ही हैं जो तुम्हारे साथ हैं।" कहकर उस आदमी ने उसके मुंह पर लाल रंग मल दिया।

वह प्रफुल्लित हो उठा। सभी तो उसके साथ थे।

उसने अपने बायीं तरफ देखा, वहां वह खुद ही खड़ा था और दाएं तरफ भी वही। अपने सभी ओर उसने खुदको ही खड़ा पाया। अलग-अलग रंगों से पुता हुआ उसका हर रूप अलग-अलग कुर्ता-पजामा धारियों के नाम के ढोल बजाता हुआ चल दिया, इस बात से अनभिज्ञ कि घर की चौखट पर एक रंगीन फंदे में लुढ़की हुई गर्दन लिए उसका जिस्म सड़ने लगा है।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी सर।

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  2. गजब लिखे हैं आप डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी सर जी। यह लघुकथा वास्तव में विजेता बनने योग्य ही है। बधाई।

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