"उत्कृष्ट लघुकथा विमर्श"
(संपादक - दीपक गिरकर)
शिवना प्रकाशन, सीहोर (म. प्र.)
मूल्य - 400 रूपए
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आ. दीपक गिरकर के द्वारा संपादित पुस्तक "उत्कृष्ट लघुकथा विमर्श" कुछ दिन पहले मुझे मिली | लघुकथा विधा के लिए यह पुस्तक बहुत ही महत्वपूर्ण है | पुस्तक को दो खंडों में बांटा गया है | पहला खंड लघुकथा विमर्श का है तो दूसरा खंड लघुकथाओं का है | पहले खंड में विमर्श के अंतर्गत कुल 26 आलेख हैं । दूसरे खंड में 28 उत्कृष्ट लघुकथाओं को प्रकाशित किया गया है |सभी गुणीजनों के आलेखों को मैंने पढ़ा ।उन आलेखों की जो पंक्तियां मुझे बेहद अच्छी लगीं, उन्हें मैंने कोट किया है।
"इस तरह की कृतियां नव लेखकों के लिए थ्योरी और प्रैक्टिकल का एक साथ अभ्यास करवाने में सक्षम होगी।"- डाॅ.विकास दवे
"एक सफल लघुकथा वह होती है जिसमें क्लिष्ट संकेत -मात्र न होकर सहजग्राह्य कथानक समाहित हो।"- बलराम अग्रवाल
" लेखन स्वांत सुखाय नहीं होता बल्कि समाज की बेहतरी के लिए होता है। "- भगीरथ परिहार
"केवल बहुत सारी लघुकथाएंँ पढ़ने या लिखते छपते रहने से काम नहीं चलने वाला, सभी विधाओं की रचनाओं से उसे गुजरना होगा। खूब पढ़ना होगा।"- ब्रजेश कानूनगो
"कथानक/कथ्य का समसामयिक होना अधिक प्रभाव छोड़ता है। घटना प्रस्तुति का प्रयोजन जनहित में होना चाहिए।"-डाॅ. चंद्रा सायता
" कालखंड कितने समय का होगा यह निश्चित नहीं है।यह एक क्षण से लेकर सदियों और उससे भी अधिक का हो सकता है।"- डाॅ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
" लघुकथा की शब्द संख्या निश्चित नहीं की जा सकती है। रचना का कथ्य ही उसके आकार को तय करता है।"- दीपक गिरकर
"जीवन के यथार्थ को कम से कम शब्दों में विषय की सटीक अभिव्यक्ति हेतु जो कथात्मक विधा बिना किसी लाग लपेट के सरस,सहज, सरल स्वाभाविक बोलचाल की भाषा में रंजनात्मकता लिए सीधा अपने गंतव्य तक पहुंचती है, लघुकथा कहलाती है।"- डाॅ. धर्मेन्द्र कुमार एच. राठवा
" लघुकथा के स्वरूप को समझकर स्वसमीक्षक बनें। एक बार लिखने पर रचना मुकम्मल नहीं हो पाती है। लिखने के बाद उसे कई बार पढ़ा जाना चाहिए। एवं अनावश्यक विवरण को छांटते जाना चाहिए।"- पवन जैन
"आपके पास लघुकथा लिखने के लिए लघुकथा का बीज ही हो, जिस पर सिर्फ लघुकथा ही लिखी जा सके।"- प्रबोध कुमार गोबिल
"एक अच्छी लघुकथा की पंच लाइन तीक्ष्ण हो तो लघुकथा सौ टके की सफल कृति बनती है।"- संध्या तिवारी
"अपने अंदर के आलोचक को बाहर निकाला जाए, उससे रचना जंचवाई जाए, फिर कहीं भेजी जाए।"- सन्तोष सुपेकर
"प्रोफेसर बी.एल.आच्छा ने लिखा है कि, लघुकथा ऐसी लगती है, जैसे खौलते तेल में पानी की बूंद, जैसे आलपिन की चुभन, जैसे आवेग का चरम क्षण ....या फिर गीत का पहला छंद।"- सतीश राठी
"लघुकथा एक कलात्मक अभिव्यक्ति है जो रचनाकार से अतिरिक्त कौशल की अपेक्षा रखती है।"- डाॅ.शील कौशिक
"लेखक की रचना- शैली ऐसी हो कि पाठक उसे सहज आत्मसात कर सके। शब्दों के प्रयोग में स्पष्टता रहनी भी अति आवश्यक है।"- डाॅ. सुरेश वशिष्ठ
"यहाँ शब्द सीमित पर चिंतन असीमित हो।"- सूर्यकांत नागर
"लेखक के भीतर किसी रचना के लिए आवश्यक कच्चे माल के पकने की प्रक्रिया ही लेखक की रचना-प्रक्रिया है।"- सुकेश साहनी।
इस पुस्तक में मेरा भी एक आलेख प्रकाशित हुआ है | इस हेतु दीपक सर का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार | यह पुस्तक हम सभी लघुकथाकारों के लिए बहुत ही उपयोगी, संग्रहणीय एवं महत्त्वपूर्ण
है।
🙏💐💐
मिन्नी मिश्र, पटना
हार्दिक आभार 🙏
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