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मंगलवार, 12 मार्च 2024

लघुकथा:रीलें । सुरेश सौरभ


        अपना बैग पटक, वह शान्त बैठ गयी।

      "क्या बात है बेटी! इतना फूली क्यों बैठी है? कालेज में कुछ हुआ क्या? जल्दी हाथ-मुँह धो ले, नाश्ता लगा रही हूँ।"

      "नहीं करना नाश्ता-वास्ता"-गुस्से से उसके नथुने फूलने-पिचकने लगे।

       माँ ने जैसे कुरेद दिया हो। 

       "अरे! क्या हुआ बेटी।"

       "जरा एक मिनट के लिए अपना मोबाइल देना मम्मी, अभी बताती हूँ क्या हुआ।" 

      मम्मी ने उसे मोबाइल दे दिया।

     "ये  देखो! ये देखो! आप की हैं ये रीलें।"

    "हाँ हाँ आँ ऽऽऽऽ.."-झेंपते हुए माँ बोली।

     "आज महिला दिवस पर भाषण प्रतियोगिता में मुझे फर्स्ट प्राइज़ मिला। सबने तालियाँ बजा कर मेरा हौसला बढ़ाया। बड़ी प्रशंसा मिली। लोगाें ने मंच के नीचे आते ही पूछा-इतना अच्छा कैसे बोला बेटी। मैंने गर्व से जवाब दिया-यह सब मेरी माँ के दिये संस्कारों का प्रतिफल है। पर.."

    "पर पर क्या बेटी..."

    "रास्ते में मेरी सहेलियाँ फूहड़ गानों पर बनी आप की रीलें, दिखा-दिखा कर फिकरें कस रहीं थीं-भाई बड़ी संस्कारवान हैं माँ-बेटी।"

      "फिर..."

       "फिर क्या.....आप ही बताएँ मेरी जगह आप होतीं तो क्या करतीं ?"

     माँ बुत सी मौन थी। सिर पर जैसे घड़ों पानी पड़ चुका हो। पास में पड़ा मोबाइल मानो कहना चाह रहा था-मैं बिलकुल निर्दोष हूँ। मैंने किसी का दिल नहीं दुखाया।

-०-

-सुरेश सौरभ 

 पता-निर्मल नगर लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश पिन-262701

मो-7860600355


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