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शुक्रवार, 1 मई 2020

लघुकथा वीडियो: मुआवज़ा | लेखन व वाचन: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी





लघुकथा: मुआवज़ा 

शाम ढले वह दलित महिला अपने पांच साल के बेटे को लेकर गाँव के ठाकुर के घर के दरवाज़े के बाहर खड़ी थी। चेहरे ही से लग रहा था कि वह बहुत क्षुब्ध है। नौकर के बुलाने पर ठाकुर बाहर आया और उसे घूर कर देखा।

 उस महिला ने तीक्ष्ण स्वर में कहा, "साब, मेरे इत्ते से बेटे को चोर कह कर माँ-बाप की गाली क्यों दी?"

 "तो चोर को चोर नहीं कहूं, यह कुत्ते का पि... मेरे बाग़ के अमरुद चोरी कर रहा था... " ठाकुर की आवाज़ से साफ़ प्रतीत हो रहा था कि वह नशे में था।

 "इत्ता सा बच्चा कुछ समझता है क्या?" महिला भी चुप रहने के मानस में नहीं थी।

 "तुम जैसे छोटी जात के लोग हमारे घर की दहलीज़ के अंदर भी नहीं आ सकते हैं, और इसकी यह मजाल कि हमारे बाग़ में घुस गया..." ठाकुर की आँखें तमतमा उठी।

 महिला ने भी ठाकुर को तीक्ष्ण नज़रों से देखा, और शब्द चबाते हुए, स्वयं की तरफ इशारा करते हुए कहा,

"जब जबरदस्ती इसकी इज्जत की दहलीज लांघी थी...तब?"

 ठाकुर चौंका, लेकिन उसने संयत होकर कहा, "उस बात का हमने तुझे मुआवज़ा अदा कर दिया है।"

 "यह भी तो उसी मुआवजे में ही मिला है..." महिला ने बच्चे की तरफ इशारा करते हुए भर्राये स्वर में कहा।

और ठाकुर की नज़रें उस बच्चे को ऊपर से नीचे तक तौलने लगीं।

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चित्रः साभार गूगल

1 टिप्पणी:

  1. ऑडियो में लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ी गई है. कहानी सुनने-सुनाने की विधा रही है लिखित फॉर्म बहुत बाद आया. इसलिए जब हम कोई कहानी सुनाते है तो कहने/बोलने के अंदाज में होनी चाहिए इसके लिए स्किप्ट में परिवर्तन लाकर सुनाना चाहिए. आप प्रयोग के तौर पर ऐसा कर सकते हैं तो करें यहीं पर पोस्ट करें व् लोगों की राय जाने .

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