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मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

पूनम झा की लघुकथा - कमली



कमली / पूनम झा 

"आईये, आईये डाक्टर साहब ।" ठाकुर जी ये कहते हुए उन्हें शयनकक्ष में ले गए जहाँ उनकी पत्नी सुनयना बिस्तर पर लेटी हुई थीं । 
सुनयना रात से ही बुखार से तप रही थी । कमजोरी से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी इसीलिए डाक्टर साहब को घर पर ही बुलाया गया है ।
बिस्तर के बगल में कुर्सी पर बैठकर डाक्टर साहब सुनयना की जांच करने लगे । 

"आपको ठंड भी लगती है ?"

"हाँ डाक्टर साहब बहुत ठंड लगती है ।"

तभी डोर बेल बजी । शांता ( कामवाली ) जो वहीं खड़ी थी, घंटी की आवाज सुनकर दरवाजे की तरफ जाने लगी तो सुनयना ने कहा कि "अरे वो कमली आयी होगी । पीछे वाला गेट खोल देना । आंगन की नाली की सफाई करेगी ।"

शांता चली गयी, लेकिन तभी शांता की आवाज आयी "अरे रेsss...........तुम इधर अंदर क्यों जा रही हो ss...........?"

"वो डाक्टर आयल है न ?"

"हाँ  तो ?"

"कोई बीमार हो गईल का ?"

"हाँ ! मेमसाब बीमार हैं ।"

"ओहो ......"

"तुम पीछे चलो । मैं पीछे का गेट खोलती हूँ । नाली साफ करना है ।" शांता उसे अंदर आगे बढने से रोकते हुए बोली ।

"जाई ही ऊ तनी डाक्टर से कुछ कहे के हई । ऊ हमर भतीजा हई न ।"

सुनयना के कानों में सारी बातें साफ-साफ सुनाई दे रही थी ।
उसे याद है जब भी कमली को कुछ देती है तो ऊपर से उसके हाथ पर ऐसे रखती है जिससे स्पर्श नहीं हो या नीचे रख देती है जो उसे वह स्वयं उठा ले ।

इधर डाक्टर साहब उसका नब्ज देख रहे थे कि बुखार है या नहीं ।

सुनयना ने ठाकुर जी को इशारा किया कि कमली को अंदर बुला लें ।

कमली कमरे में आते ही "मेमसाब का होई गवा ?" और डाक्टर की तरफ देखते ही "बबुआ ! बढ़िया दवाई दे द हमार मेमसाब जल्दी से ठीक हो जाई ।"

"हाँ बूआ ! जरूर । बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगी  ।"  मुस्कुराते हुए डाक्टर साहब ने कहा ।

"हम तोहार गाड़ी से पहिचान गईली , जे बाबुआ हिंया आयल हई । केतना दिन हो गईली तूं घरे काहे नहीं अयली ?" डाक्टर ( भतीजा ) से मीठी मीठी शिकायत करती हुई कमली बोली ।

सुनयना शांता से "शांता जाओ सबके लिए चाय बनाकर ले आओ " और कमली की तरफ देखते हुए "बैठ जा कमली तू भी चाय पी ले ।"

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पूनम झा 
कोटा राजस्थान 
मोबाइल वाट्सएप  9414875654
Email: poonamjha14869@gmail.com 

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