ह़मले और जुमले (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी
चन्द्रमा के एक विशेष क्षेत्र में आकस्मिक सभा जैसा कुछ गोपनीय आयोजन हो रहा था। चंद्रवासियों की किसी सांकेतिक भाषा में लूनर स्ट्राइक या स्ट्रेटजीज़ जैसा विमर्श चल रहा था।
"हम उनको क़ामयाब नहीं होने देंगे! जिनको हमारी बदौलत मुहब्बत के अलंकार मिले, ले-देकर जिनकी रातें हमारे चाँद ने रौशन कीं चांदनी से, वे ही हमारी ज़मीन पर ही सेंधमारी कर रहे हैं !" चंद्रवासी एलियन नंबर एक ने सभा में अपनी बात रखी।
"वे अब हम में मुहब्बत नहीं, नफ़रत भर रहे हैं.. नफ़रत! क्यों भाई गृहप्रवेश दक्षिण दिशा से करना चाहिए या किसी और से? .. क्या कहता है पृथ्वीवासियों का वास्तुशास्त्र? ... ख़ुद तो अपने धर्मों, धर्मग्रंथों और संस्कृति-संस्कारों को भूलकर अपनी तथाकथित विज्ञान से भरे हुए हैं और अब हम पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं!" दूसरे एलियन ने अपना व्यंग्यपूर्ण रोष ज़ाहिर किया।
तभी वरिष्ठ एलियन ने वहाँ की सतह पर ऊपर-नीचे झूलते हुए कहा, "हमारी आध्यात्मिक ताक़त के आगे उनकी वैज्ञानिक ताक़त नहीं चलेगी भाई! हमने उन मानवों की तरह न तो सर्वशक्तिमान ईश्वर की कोई अवज्ञा की है और न ही उसका उपहास कर उसे कोई चुनौती दी है!"
"इसी वज़ह से तो जन्नत सा सुख भोग रहे हैं! उस पालनहार माफ़िक़ हम भी अदृश्य हैं! न भूख-प्यास की झंझट और न तथाकथित ऑक्सीजन और जल की!" तीसरे एलियन ने चंद्रमा के बदलते गुरुत्व में हल्के-हल्के गोतों का लुत्फ़ उठाते हुए कहा।
"अहंकारी पृथ्वीवासियों के ढेरों यंत्र हमारे संरक्षक ज़ोन में चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं! प्यार-मुहब्बत, दया-करुणा और स्वच्छता की बातें करने वाले हमारे यहां घृणा तुल्य प्रदूषण फैला रहे हैं। उनकी हमारी ज़मीन पर नीयत ख़राब है!" एक और एलियन बोला।
"ये लोग अपनी मेहनत, खोज और आविष्कारों की दलीलें देकर हमारी ज़मीन पर अतिक्रमण करेंगे और फ़िर मालिकाना हक़ के मसलों पर यहाँ भी आपस में लड़ेंगे!"
"सही कहते हो भाई! पता नहीं क्या होगा? अपना हाल पृथ्वी के जम्मू-कश्मीर जैसा होगा, सीरिया-फिलिस्तीन-इज़राइल जैसा या हिरोशिमा-नागासाकी जैसा!" दो एलियन विमर्श में एक-दूसरे से मुख़ातिब हुए।
वरिष्ठ एलियन ने कहा, "वे कितनी भी कोशिशें कर लें हमारा पालनहार हमारे साथ है, ब्रह्मांड के साथी ग्रह-उपग्रह और सौर-मण्डल सब हमारे साथ हैं! बस, सब्र से सब देखते जाओ! उनकी तथाकथित लाँचिंग-वाँचिंग, नेविगेशन और यान-वान सब धरे के धरे रह जायेंगे!"
" ... तो सर, आपका संकेत धरती पर भेजे जाने वाले एस्ट्रोयेड-स्ट्राइक मिशन की ओर है! .. कब तक बचेंगे पृथ्वी वाले। उनको नहीं मालूम कि उनसे भी बुद्धिमान व शक्तिशाली और भी हैं ब्रह्मांड में! पृथ्वी के साथ मानवों का भी वजूद जल्द ही समाप्त होगा!" एक अन्य वरिष्ठ एलियन ने भरोसा दिलाया।
" ... लेकिन सर... मैं कुछ और ही चाह रहा हूँ!" एक युवा एलियन उन सब के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ बोला, "पृथ्वीवासियों ने हमारे चंद्रमा को बहुत मान दिया है उनके धर्मों और साहित्य-विधाओं में! हमें भी उनकी मुसीबतों को समझ कर उनकी जिज्ञासाओं का आदर करना चाहिए। नफ़रत से काम नहीं चलेगा! .. आने दीजिए उनको हमारी ज़मीन पर! उनकी मंगलकामनाएं पूरी होने दीजिए। यहाँ से मंगल तक जाने दीजिए।"
"सही बात है! यही वक़्त का तक़ाज़ा भी है कि जितने भी सौर-मण्डल, ग्रह-उपग्रह हैं उन सबके रहवासियों के बीच सामंजस्य, प्रेम, दया-करुणा व गुरुत्व आदि ईश्वर की मर्ज़ी मुताबिक़ बना रहे, तो ही बेहतर होगा!" उसके दूसरे युवा साथी ने कहा।
'तथास्तु! ..आमीन!" कुछ ऐसा उन्होंने आपस में सांकेतिक भाषा में कहा और सभा विसर्जित हो गई।
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मेरा सूर्ययान/शेख़ शहज़ाद उस्मानी
"मम्मी-पापा, दादा-दादी और नाना-नानी सब मुझे अपना चाँद कहते हैं!... और स्कूल में टीचर कहतीं हैं कि एक दिन सूरज की तरह चमकोगे!" नूर का बाल-मन स्वयं के द्वारा दीवार पर चॉक से बनाये गए अपने सूरज की ओर देखकर सोच रहा था। सूरज के गोले के चारों ओर आठ किरणें खींच कर वह रुक गया और चाँद और चंद्रयान-2 के समाचारों पर मम्मी-पापा और टीचर जी से सुनी हुई बातें सोचने लगा।
"विज्ञान वाली मैडम कह रहीं थीं कि चन्द्रमा पर पानी और जीवन की तलाश की जा रही है! ... सूरज की रौशनी से ही चाँद रात को चमकता दिखता है!" वह फ़िर जानकारियों के जाल में उलझ गया, "चंद्रमा पर गड्ढे हैं! फ़िर मुझे चन्दा क्यों कहते हैं सब के सब? ... मेरा सूरज कौन है? ... लोग सूर्ययान क्यों नहीं भेजते आसमान में?"
उसने चॉक उठाई और स्टूल पर चढ़कर सूर्य के निचले हिस्से में हवाई जहाज़ का आकार बनाने लगा और फ़िर मम्मी को बुलाकर उनसे बोला, "ये है मेरा सूर्ययान! सूरज से सारी रौशनी हमें भेजेगा! ... अंधेरा कभी नहीं रहेगा! ... मैं सूरज सा चमक जाऊंगा न!"
माँ अपने नन्हें जिज्ञासु बेटे के सवालिया व जोशीले चेहरे को देखकर बोली, "हाँ बेटू! तुम अच्छे इंसान बनोगे; अच्छी पढ़ाई-लिखाई करोगे, तो ख़ुदा तुम पर नूर ही नूर बरसायेगा न! सूर्ययान मतलब ज्ञान-विज्ञान!"
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लघुकथा-युग्म ( दो दृश्य : दो लघुकथाएं) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी
पहला दृश्य : संज्ञान
वह नन्हा बच्चा चॉक से दीवार पर सूरज का रेखाचित्र बना कर स्टूल पर बैठा उसे निहार कर सोच रहा था, "मैं नहीं बदलवाऊंगा अपना नाम। 'सूरज' ही बढ़िया है। सबको रौशनी देता है; टीचर बता रही थीं कि चाँद को भी!"
फ़िर उसने दूसरी तरफ़ चंदा मामा बनाने की सोची; लेकिन अख़बार में छपी चंद्रयान की तस्वीर याद आ गई। ठीक तभी उसे मम्मी-पापा की बातें याद आ गईं।
"नहीं! मैं अपना नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' नहीं रखवाऊंगा। वे तो मशीनों के नाम हैं! 'सूरज' ही बढ़िया है! नहीं बदलवाऊंगा! टीचर अपनी फ़्रैंड को बता रहीं थीं कि ये दोनों भटक गये या अटक गए कहीं!"
फ़िर उसने स्टूल पर खड़े होकर सूरज के बगल में भारत का नक्शा बनाने की कोशिश की; जैसा भी बन पाया, उसके ऊपर छोटा सा तिरंगा झंडा उसने बना दिया।
"टीचर कह रहीं थीं कि हमारा देश दुनिया में चमक रहा है! ... सूरज ही चमका रहा होगा न इसे! मेरा नाम कितना अच्छा है! सूरज हूँ मैं!" अपने बनाये दोनों रेखाचित्रों को देखता मुस्कराता हुआ वह स्टूल पर बैठ गया।
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दूसरा दृश्य : सार्थक नाम
"सुनो जी, अब मैंने अपना इरादा बदल लिया है। सूरज का नाम बदलवाने अब उसके स्कूल नहीं जायेंगे!"
"क्यों? इतने दिनों से तो पीछे पड़ीं थीं अपने बेटे का नाम नये ज़माने के नये ट्रेंडी नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' रखवाने वास्ते!"
"सुना तो है न तुमने भी चंद्रयान के हिस्सों के बारे में कि दोनों भटक गए चाँद पर उतरने से पहले ही! 'लैंडर' और 'रोवर' दोनों को पता नहीं कौन से 'रोबर्स' कहीं हाँक ले गये या फ़िर भटक गए या अटक गए कहीं!"
"तुम औरतों को तो बस ऐसी ही बातें सूझती हैं! चंद्रयान मिशन अपनी जगह है! अपनी संतान के लिए अपना मिशन अपनी जगह! सूरज अपने नाम को सार्थक क्यों नहीं कर सकता?"
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शेख़ शहज़ाद उस्मानी
(शिक्षक, रेडियो अनाउंसर, लेखक)
पुत्र: श्री शेख़ रहमतुल्लाह उस्मानी
संतुष्टि अपार्टमेंट्स,
विंग - बी-2 (टॉप फ़्लोर पेंटहाउस)
ग्वालियर बाइपास ए.बी. रोड,
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
473551
भारत
[ लैंडमार्क्स: 1- हैपिडेज़ स्कूल, 2- गणेशा ब्लेश्ड पब्लिक स्कूल]
[वाट्सएप नंबर - 9406589589, 07987465975
ई-मेल पता: shahzad.usmani.writes@gmail.com
चन्द्रमा के एक विशेष क्षेत्र में आकस्मिक सभा जैसा कुछ गोपनीय आयोजन हो रहा था। चंद्रवासियों की किसी सांकेतिक भाषा में लूनर स्ट्राइक या स्ट्रेटजीज़ जैसा विमर्श चल रहा था।
"हम उनको क़ामयाब नहीं होने देंगे! जिनको हमारी बदौलत मुहब्बत के अलंकार मिले, ले-देकर जिनकी रातें हमारे चाँद ने रौशन कीं चांदनी से, वे ही हमारी ज़मीन पर ही सेंधमारी कर रहे हैं !" चंद्रवासी एलियन नंबर एक ने सभा में अपनी बात रखी।
"वे अब हम में मुहब्बत नहीं, नफ़रत भर रहे हैं.. नफ़रत! क्यों भाई गृहप्रवेश दक्षिण दिशा से करना चाहिए या किसी और से? .. क्या कहता है पृथ्वीवासियों का वास्तुशास्त्र? ... ख़ुद तो अपने धर्मों, धर्मग्रंथों और संस्कृति-संस्कारों को भूलकर अपनी तथाकथित विज्ञान से भरे हुए हैं और अब हम पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं!" दूसरे एलियन ने अपना व्यंग्यपूर्ण रोष ज़ाहिर किया।
तभी वरिष्ठ एलियन ने वहाँ की सतह पर ऊपर-नीचे झूलते हुए कहा, "हमारी आध्यात्मिक ताक़त के आगे उनकी वैज्ञानिक ताक़त नहीं चलेगी भाई! हमने उन मानवों की तरह न तो सर्वशक्तिमान ईश्वर की कोई अवज्ञा की है और न ही उसका उपहास कर उसे कोई चुनौती दी है!"
"इसी वज़ह से तो जन्नत सा सुख भोग रहे हैं! उस पालनहार माफ़िक़ हम भी अदृश्य हैं! न भूख-प्यास की झंझट और न तथाकथित ऑक्सीजन और जल की!" तीसरे एलियन ने चंद्रमा के बदलते गुरुत्व में हल्के-हल्के गोतों का लुत्फ़ उठाते हुए कहा।
"अहंकारी पृथ्वीवासियों के ढेरों यंत्र हमारे संरक्षक ज़ोन में चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं! प्यार-मुहब्बत, दया-करुणा और स्वच्छता की बातें करने वाले हमारे यहां घृणा तुल्य प्रदूषण फैला रहे हैं। उनकी हमारी ज़मीन पर नीयत ख़राब है!" एक और एलियन बोला।
"ये लोग अपनी मेहनत, खोज और आविष्कारों की दलीलें देकर हमारी ज़मीन पर अतिक्रमण करेंगे और फ़िर मालिकाना हक़ के मसलों पर यहाँ भी आपस में लड़ेंगे!"
"सही कहते हो भाई! पता नहीं क्या होगा? अपना हाल पृथ्वी के जम्मू-कश्मीर जैसा होगा, सीरिया-फिलिस्तीन-इज़राइल जैसा या हिरोशिमा-नागासाकी जैसा!" दो एलियन विमर्श में एक-दूसरे से मुख़ातिब हुए।
वरिष्ठ एलियन ने कहा, "वे कितनी भी कोशिशें कर लें हमारा पालनहार हमारे साथ है, ब्रह्मांड के साथी ग्रह-उपग्रह और सौर-मण्डल सब हमारे साथ हैं! बस, सब्र से सब देखते जाओ! उनकी तथाकथित लाँचिंग-वाँचिंग, नेविगेशन और यान-वान सब धरे के धरे रह जायेंगे!"
" ... तो सर, आपका संकेत धरती पर भेजे जाने वाले एस्ट्रोयेड-स्ट्राइक मिशन की ओर है! .. कब तक बचेंगे पृथ्वी वाले। उनको नहीं मालूम कि उनसे भी बुद्धिमान व शक्तिशाली और भी हैं ब्रह्मांड में! पृथ्वी के साथ मानवों का भी वजूद जल्द ही समाप्त होगा!" एक अन्य वरिष्ठ एलियन ने भरोसा दिलाया।
" ... लेकिन सर... मैं कुछ और ही चाह रहा हूँ!" एक युवा एलियन उन सब के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ बोला, "पृथ्वीवासियों ने हमारे चंद्रमा को बहुत मान दिया है उनके धर्मों और साहित्य-विधाओं में! हमें भी उनकी मुसीबतों को समझ कर उनकी जिज्ञासाओं का आदर करना चाहिए। नफ़रत से काम नहीं चलेगा! .. आने दीजिए उनको हमारी ज़मीन पर! उनकी मंगलकामनाएं पूरी होने दीजिए। यहाँ से मंगल तक जाने दीजिए।"
"सही बात है! यही वक़्त का तक़ाज़ा भी है कि जितने भी सौर-मण्डल, ग्रह-उपग्रह हैं उन सबके रहवासियों के बीच सामंजस्य, प्रेम, दया-करुणा व गुरुत्व आदि ईश्वर की मर्ज़ी मुताबिक़ बना रहे, तो ही बेहतर होगा!" उसके दूसरे युवा साथी ने कहा।
'तथास्तु! ..आमीन!" कुछ ऐसा उन्होंने आपस में सांकेतिक भाषा में कहा और सभा विसर्जित हो गई।
मेरा सूर्ययान/शेख़ शहज़ाद उस्मानी
"मम्मी-पापा, दादा-दादी और नाना-नानी सब मुझे अपना चाँद कहते हैं!... और स्कूल में टीचर कहतीं हैं कि एक दिन सूरज की तरह चमकोगे!" नूर का बाल-मन स्वयं के द्वारा दीवार पर चॉक से बनाये गए अपने सूरज की ओर देखकर सोच रहा था। सूरज के गोले के चारों ओर आठ किरणें खींच कर वह रुक गया और चाँद और चंद्रयान-2 के समाचारों पर मम्मी-पापा और टीचर जी से सुनी हुई बातें सोचने लगा।
"विज्ञान वाली मैडम कह रहीं थीं कि चन्द्रमा पर पानी और जीवन की तलाश की जा रही है! ... सूरज की रौशनी से ही चाँद रात को चमकता दिखता है!" वह फ़िर जानकारियों के जाल में उलझ गया, "चंद्रमा पर गड्ढे हैं! फ़िर मुझे चन्दा क्यों कहते हैं सब के सब? ... मेरा सूरज कौन है? ... लोग सूर्ययान क्यों नहीं भेजते आसमान में?"
उसने चॉक उठाई और स्टूल पर चढ़कर सूर्य के निचले हिस्से में हवाई जहाज़ का आकार बनाने लगा और फ़िर मम्मी को बुलाकर उनसे बोला, "ये है मेरा सूर्ययान! सूरज से सारी रौशनी हमें भेजेगा! ... अंधेरा कभी नहीं रहेगा! ... मैं सूरज सा चमक जाऊंगा न!"
माँ अपने नन्हें जिज्ञासु बेटे के सवालिया व जोशीले चेहरे को देखकर बोली, "हाँ बेटू! तुम अच्छे इंसान बनोगे; अच्छी पढ़ाई-लिखाई करोगे, तो ख़ुदा तुम पर नूर ही नूर बरसायेगा न! सूर्ययान मतलब ज्ञान-विज्ञान!"
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लघुकथा-युग्म ( दो दृश्य : दो लघुकथाएं) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी
पहला दृश्य : संज्ञान
वह नन्हा बच्चा चॉक से दीवार पर सूरज का रेखाचित्र बना कर स्टूल पर बैठा उसे निहार कर सोच रहा था, "मैं नहीं बदलवाऊंगा अपना नाम। 'सूरज' ही बढ़िया है। सबको रौशनी देता है; टीचर बता रही थीं कि चाँद को भी!"
फ़िर उसने दूसरी तरफ़ चंदा मामा बनाने की सोची; लेकिन अख़बार में छपी चंद्रयान की तस्वीर याद आ गई। ठीक तभी उसे मम्मी-पापा की बातें याद आ गईं।
"नहीं! मैं अपना नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' नहीं रखवाऊंगा। वे तो मशीनों के नाम हैं! 'सूरज' ही बढ़िया है! नहीं बदलवाऊंगा! टीचर अपनी फ़्रैंड को बता रहीं थीं कि ये दोनों भटक गये या अटक गए कहीं!"
फ़िर उसने स्टूल पर खड़े होकर सूरज के बगल में भारत का नक्शा बनाने की कोशिश की; जैसा भी बन पाया, उसके ऊपर छोटा सा तिरंगा झंडा उसने बना दिया।
"टीचर कह रहीं थीं कि हमारा देश दुनिया में चमक रहा है! ... सूरज ही चमका रहा होगा न इसे! मेरा नाम कितना अच्छा है! सूरज हूँ मैं!" अपने बनाये दोनों रेखाचित्रों को देखता मुस्कराता हुआ वह स्टूल पर बैठ गया।
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दूसरा दृश्य : सार्थक नाम
"सुनो जी, अब मैंने अपना इरादा बदल लिया है। सूरज का नाम बदलवाने अब उसके स्कूल नहीं जायेंगे!"
"क्यों? इतने दिनों से तो पीछे पड़ीं थीं अपने बेटे का नाम नये ज़माने के नये ट्रेंडी नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' रखवाने वास्ते!"
"सुना तो है न तुमने भी चंद्रयान के हिस्सों के बारे में कि दोनों भटक गए चाँद पर उतरने से पहले ही! 'लैंडर' और 'रोवर' दोनों को पता नहीं कौन से 'रोबर्स' कहीं हाँक ले गये या फ़िर भटक गए या अटक गए कहीं!"
"तुम औरतों को तो बस ऐसी ही बातें सूझती हैं! चंद्रयान मिशन अपनी जगह है! अपनी संतान के लिए अपना मिशन अपनी जगह! सूरज अपने नाम को सार्थक क्यों नहीं कर सकता?"
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शेख़ शहज़ाद उस्मानी
(शिक्षक, रेडियो अनाउंसर, लेखक)
पुत्र: श्री शेख़ रहमतुल्लाह उस्मानी
संतुष्टि अपार्टमेंट्स,
विंग - बी-2 (टॉप फ़्लोर पेंटहाउस)
ग्वालियर बाइपास ए.बी. रोड,
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
473551
भारत
[ लैंडमार्क्स: 1- हैपिडेज़ स्कूल, 2- गणेशा ब्लेश्ड पब्लिक स्कूल]
[वाट्सएप नंबर - 9406589589, 07987465975
ई-मेल पता: shahzad.usmani.writes@gmail.com