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रविवार, 6 नवंबर 2022

लीला तिवानी की पांच लघुकथाएँ

लीला तिवानी जी इन दिनों अपनी लघुकथाओं के कारण चर्चित हो रही हैं। आपने हिंदी में एम.ए., एम.एड. किया है। कई वर्षों तक हिंदी अध्यापन के पश्चात अब रिटायर्ड हो हिंदी साहित्य सेवा में रत हैं। आपके दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत हो चुके हैं और हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। तिवानी जी की रचनाऍं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। नवभारत टाइम्स के अपना ब्लॉग "रसलीला'' में अब तक 3345 रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आइए पढ़ते हैं लीला तिवानी जी की पांच लघुकथाएँ:


1. काम बोलता है!
"सर, मैं रोहित बोल रहा हूं.''
"सब खैरियत तो है न! इतनी देर रात गए फोन कर रहे हो?''
"सर एक ख़ास बात करनी थी.'' रोहित ने हिचकते हुए कहा.
"बोलो, बोलो.'' बॉस ने उसे आश्वस्त किया.
"सर, मैंने सुना है आप रोहन को तरक्की देने वाले हैं!''
"तो!''
"सर, आप पता नहीं जानते हैं या नहीं, एक तो काम का बहुत ढीला है, दूसरे आपकी बुराई भी बहुत करता है!''
"चलो अच्छा हुआ तुमने बता दिया! मुझे तो पता ही नहीं था! मैं तो उसे डिप्टी चेयरमैन बनाने वाला था! तुम क्या चाहते हो?'' 
"सर, आप अगर मुझे कंसीडर करें तो!...'' आगे वह बोल नहीं पाया.
"अच्छा, सोचता हूं. कल ऑफिस में मिलते हैं.'' बॉस ने फोन रख दिया.''
खुशी के मारे रोहित का मन बल्लियों उछलने लगा! अब पता चलेगा बेटे को, मुझे सिखाता था.
लकदक सूट-बूट चढ़ाए वह ऑफिस की सीढ़ियां चढ़ रहा था कि चपरासी ने उसे बॉस के बुलावे का संदेश दिया.
अपनी सीट पर रोहित ने ब्रीफकेस रखा, एक बार फिर अपने सूट-बूट पर नजर डाली और चल दिया बॉस का दरवाजा खटखटाने.
"आओ-आओ रोहित, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था. ये लो अपना इनाम!'' बॉस ने एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा. 
"थैंक्यू-थैंक्यू'' कहते हुए रोहित बिना लिफाफा खोलकर देखे ही चल पड़ा.
"ओहो! ये क्या हुआ? रोहन को प्रोमोशन और मुझे डिमोशन!''
उल्टे पांव चलते हुए उसने बॉस का दरवाजा खटखटाया.
"येस, अंदर आओ.'' सुनकर वह अंदर आया.
"सर...'' लिफाफे की ओर इशारा करते हुए वह इतना ही कह पाया!
"मिस्टर रोहित, बॉस की नजर बोलती है, मातहत का काम बोलता है! आप अपनी सीट (औकात) पर जा सकते हैं.'' 
काम की तरह रोहित की नजर भी नीची हो गई थी.
 -०-

2. "सिर काट दो!''
"ममा आज हमारी मैम ने अलग-अलग विषयों पर कल कोई कहानी सुनाने का गृह कार्य दिया है. मुझे लालच का विषय दिया गया है, ममा प्लीज़ कोई कहानी सुना दो न!'' कविश ने निहोरा लिया.
"अरे ये काम तो दादी मां बड़े शौक से कर देंगी, उन्हें ढेरों कहानियां आती हैं.''
लालच पर कहानी! तो सुनो.
"दीनू बहुत ही दीन अवस्था में था. वह गुजारे के लिए हमेशा परेशान रहता था. 
एक दिन उसकी चिंतित अवस्था देखते हुए एक साधु बाबा ने उसे एक थाली दी, जिससे रात को कोई एक चीज मांगकर ढक कर रखना था, सुबह मनचाही चीज मिल जाएगी. पर एक से अधिक चीजें मांग लीं तो सब कुछ गायब हो जाएगा और थाली भी. 
घर आकर उसने खुशी से पत्नी को बताया, वह भी बहुत खुश हुई. उस रात उसने सोने की मोहरें मांगीं, उन्हें सुबह मिल गईं. 
फिर एक रात उसने महल, फिर दासी, फिर नौकर-चाकर सब कुछ एक-एक करके मांग लिया, तो अगले दिन उसे मन चाही चीज़ मिल जाती थी. गरीबी की जगह अब उनकी अमीरी का ठिकाना नहीं था. 
एक रात को दीनू घर नहीं आ पाया. उसकी लालची पत्नी ने थाली से एक से अधिक चीजें मांग लीं और थाली ढककर सो गई. 
अगले दिन सुबह जब दीनू घर आया तो वहां न महल था, न नौकर-चाकर. उसकी पत्नी उसी पहले वाली टूटी-फूटी झोंपड़ी में दुःखी हालत में बैठी थी. सब चीजें भी गायब हो गईं और थाली भी.''
"इसका मतलब लालच रूपी राक्षस का सिर काट देना चाहिए न दादी मां!'' 
अगले दिन कविश ने दादी मां की तरह चटखारे लेकर कक्षा में कहानी सुनाई. उसके कहानी सुनाने के अंदाज़ से सभी बच्चे भी खुश हुए और मैम भी. कहानी खत्म होते ही सभी बच्चे एक साथ बोल उठे- 
"लालच रूपी राक्षस का सिर काट दो!''
-०-

3. दीये रोशन हो उठे! 
“तीन दिवालियां आईं और गईं प्रियतम, तुम न आए. कब आओगे? तुम्हारे बिना दिवाली तो क्या हर दिन सूना-सूना लगता है.” पांचवीं पास बिटानी देवी चिट्ठी लिख रही थी.
“दहेज में मुझे जो भैंस मिली था, जानते हो न कितना दूध देती है! तुम्हारे सामने ही डेयरी का काम शुरु किया था, अब काम परवान चढ़ गया है. अब 16 गायें और 11 भैसें हैं, जिनसे हर दिन 100 से 120 लीटर दूध मिलता है. दूध सारा बिक जाता है, पैसे भी खूब आ रहे हैं, पर उन पैसों का क्या करूं. मेरा खाने-हंडाने वाला तो परदेस बैठा है!” आंखों से आंसू लुढ़ककर प्रियतम के पास पहुंचने वाले थे!
“पप्पू छः का हो लिया मुन्नी पांच की हो ली, दोनों बार-बार पूछते हैं कि पापा कब आएंगे?”
“आज फिर मूंग बने थे. पप्पू तुम पर गया है. दही में मूंग डालकर चटखारे लेकर खाता है. तुम्हारे बिना मूंग क्या कोई भी चीज नहीं भाती!”
“और क्या कहूं! बच्चों के लिए जो कुछ बनता है, हलक के नीचे उतार लेती हूं, अपने लिए अलग से कुछ बनाने का मन ही नहीं करता! बस एक बार तुम आ जाओ, हमारा हर दिन होली होगा, हर रात दिवाली.”
“मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं, इसलिए कविताई तो लिख नहीं पाऊंगी, इसी को कविताई भी समझ लेना और मेरे मन की बात भी! आज बस इतना ही.
तुम्हारे आने की आस में,
तुम्हारी बिटानी
दिवाली के एक महीना पहले मोलू को यह खत मिला था, उसका मन भी बिटानी के पास पहुंचने को बेताब था, पर उसने खत का कोई जवाब नहीं दिया.
दीपावली की सांझ को उदास-सी बिटानी दीये जला रही थी. तभी भैंस पगुरा उठी, बच्चे “पापा आ गए, पापा आ गए!” कहकर शोर मचाने लगे.
बिटानी का मन-कमल खिल गया, दीये रोशन हो उठे!
-०-

4. दो बूंद पानी
“कम्मो, कहीं से दो बूंद पानी लादे, प्यास से जान जा रही है.” मां ने बेटी से कहा.
“प्यास को भी हम पर तरस भी नहीं आता, पता है कि पानी नहीं है तो प्यास लगती ही क्यों है?” कम्मो और क्या कह सकती थी. रीते बरतन लेकर पानी की तलाश में चल पड़ी.
जहां-जहां पानी मिलने की आस थी, वह गई. कहीं भी पानी की बूंद तक न दिखाई दी.
“पिछले साल बारिश जो बहुत कम हुई, पानी आए कहां से!” वह खुद से ही बतियाने लगी.
“अरी कम्मो, तू तो खुद से ही बतियाने लग रही है, क्या बात है?” बिम्मो भी रीते बरतन लिए उसके साथ हो ली.
“क्या करें जीजी! अम्मा प्यास के मारे मरी जा रही हैं, यहां पानी के दर्शन ही नहीं हो रहे.”
“ठहर, ये ले पानी!” बिम्मो ने अंटी से पानी की छोटी बोतल निकालकर कम्मो को दे दी, “जा तू अम्मा जी को पानी पिलाकर आ, ये कलसिया मुझे दे दे. पानी मिलेगा तो मैं भर दूंगी.”
बोतल लेकर कम्मो भागी, बिम्मो को धन्यवाद कहने का टेम भी नहीं था. अम्मा की जान का सवाल जो था!
“ले अम्मा, पानी पी ले.”
“जींवदी रह मेरी बच्ची.” गट-गट पानी गटगने के बाद अम्मा के दिल से आशीर्वाद की धारा बह निकली.
“ब‍िन पानी सब सून… गंभीर जल संकट से जूझ रहा गुजरात, तस्‍वीरें करा देंगी एहसास” एक लड़के की साइकिल पर रेडियो बोल रहा था.
“हम तो खुद ही प्यास की मूरत बनी हुई हैं, हमें ही देख लो.” कम्मो भागती जा रही थी.
“माननीयों की आंखों का पानी सूखने का नतीजा है दांडीची का जल संकट, अब आयोग के नोटिस से कुछ हो पाएगा?” जोर-जोर से भोंपू बोल रहा था.
“हमारी आंखों का पानी भी सूखने लग गया है. पहले तो कभी आंसू से ही खुद को तर कर लेते थे, भले ही वह तरावट खारी होती थी. अब तो तरसते-तरसते ही वह तरावट भी तरसने लग गई है.”
“महाराष्‍ट्र के एक गांव में महिलाएं जान जोखिम में डालकर थोड़े-से पानी के लिए 50 फीट गहरे कुएं में उतरने तक को मजबूर हो जाती हैं.” मुए भोंपू को आज ही सब कुछ बोलना था!
“पिछले बरस ऐसे ही तो गांव से चाची जी के मरने की खबर आई थी!” चाची जी के प्यार को याद कर कम्मो उदास हो गई थी.
”और वो लच्छो, वो तो सादी के दो दिनां बाद ही ससुराल से भाग आई थी. सुबह-सुबह रीती कलसी लेकर पहाड़ पर चढ़ना और फिर दिन चढ़े आधी कलसी लेकर पहाड़ से उतरना क्या आसान था! छोरी का सादी का सौक ही उतर गया.”
“आज तो पानी मिलने की उम्मीद ही नहीं है.” बिम्मो रीते बरतन लेकर दूर से आती हुई दिखी.
“क्या हुआ बिम्मो?”
“वो पाइप ही रिसने लाग गया था, जिससे पानी मिलवे था.” फूटे भाग्य की तरह मुश्किल से बिम्मो के बोल फूटे.
“बिम्मो वो पाइप नहीं, हमारी किस्मत ही रिस रही होगी! चल रीते बरतन लेकर ही घरवालों को मुंह दिखाएंगे. तूने तो जरा-सा पानी भी अम्मा जी के लिए दे दिया!”
“अरे अम्मा जी जैसे लोगन के आसीर्वाद से हम बिन पानी के भी जिंदा हैं! और सुन ये बरतन रीते नहीं हैं. इनमें हमारी आस है, हमारी प्यास है, फिर भी हम नहीं निरास हैं”
“इन बर्तनों में, भाईचारे की भावना, ममता की मिठाई, मेहनत की मलाई, खुशी की खुराक भी तो है! नहीं तो तू अम्मा जी के लिए पानी क्यों देती!”
“चल-चल, अब तो सूखे टिक्कड़ के बिना ही सोना पड़ेगा. सूखे टिक्कड़ भी दो बूंद पानी की जरूरत होती है न!”
-०-
लीला तिवानी
नई दिल्ली

5. श्री गणेश
"बिटिया, सारे घर में ए. सी.लगे हुए हैं, उनको छोड़कर तुम यहां बाहर गर्मी में क्यों बैठी हुई हो?'' इकलौती बिटिया सलोनी को ढूंढते हुए पिता ने उसे देखते ही पूछा.
"पापा, इस दीवार पर माली काका ने सूरज की जो तस्वीर बनाई है, वह मुझे कुछ सोचने का इशारा-सा करती हुई लग रही है, इसलिए जब मुझे कुछ सोचना होता है, मैं यहीं आकर बैठ जाती हूं.''
"इस समय क्या सोच रही हो?''
"पापा, आप शिक्षित व्यक्ति हैं न!''
"हां बिटिया, पर ऐसा क्यों पूछ रही हो?''
"पापा, आपने कल मुझे फ्रेडरिक डगलस की प्रेरक कहानी सुनाई थी, जिसमें फ्रेडरिक डगलस ने कहा था, कि "शिक्षित व्यक्ति में दुनिया बदलने की ताकत होती है.”
"हां बिटिया, यह बात सत्य भी है.''
"तो आप सच्चे शिक्षित व्यक्ति नहीं हैं क्या?''
"तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है!'' पापा का आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक ही था.
"कल आपके पास बिल्डिंग बनवाने के लिए जो व्यक्ति आया था, आप उसे बता रहे थे- ”देखिए, आपकी बिल्डिंग में भी ऐसा ही प्रबंध होगा, जैसा हमारे घर में है. बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए दो प्लांट लगेंगे. उनमें से एक नहाने-कपड़े धोने के लिए होगा, दूसरा पानी पीने और भोजन पकाने के लिए. रसोईघर का सारा पानी आपकी लॉन और सब्जी-भाजी की क्यारियों में जाएगा. इससे एक तो पानी का बिल कम आएगा, दूसरे पर्यावरण की सुरक्षा के साथ देश-सेवा भी हो जाएगी.''
"हां बिटिया, यह तो मैंने कहा था.''
"पापा यह सब तो आप कमाने के लिए कह रहे थे न! कमाने के लिए तो एक अशिक्षित व्यक्ति भी बहुत कुछ करता है, आपने अपने पड़ोसियों को यह सब बताने के लिए कुछ किया?''
"सच कह रही हो बिटिया, यह बात तो मुझे कभी सूझी ही नहीं. चलो अंदर चलते हैं और पड़ोसियों को फोन करके आज ही मीटिंग बुलाते हैं और समाज में बदलाव का काम शुरु करते हैं.''
बदलाव का श्री गणेश हो चुका था.
-०-
लीला तिवानी
नई दिल्ली

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०७-११-२०२२ ) को 'नई- नई अनुभूतियों का उन्मेष हो रहा है'(चर्चा अंक-४६०५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. सभी कहानियां एक से बढ़कर एक हैं ...लीला तिवानी की पांचों लघुकथाएँ

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