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शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

ई-बुक | 50 अंतरराष्ट्रीय लघुकथाएं

आप सभी को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि स्टोरीमिरर एवं लघुकथा दुनिया के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतरराष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. इस प्रतियोगिता में उल्लेखनीय स्थान प्राप्त करने वाली 50 लघुकथाओं की ई-बुक बनाई गई है. फिलहाल यह पुस्तक निशुल्क है तथा इसे आप निम्न लिंक पर जाकर आर्डर कर सकते हैं:

50 अंतरराष्ट्रीय लघुकथाएं 



बुधवार, 12 अगस्त 2020

विश्व हिंदी सम्मलेन, मॉरीशस की पुस्तक विश्व हिंदी पत्रिका में लघुकथाओं के शीर्षक पर मेरा एक शोध पत्र

विश्व हिंदी सम्मलेन, मॉरीशस की पुस्तक विश्व हिंदी पत्रिका में लघुकथाओं के शीर्षक पर मेरा एक शोध पत्र।  इसकी जानकारी पूर्व में ही आ गई थी। अब यह विश्व हिंदी सम्मलेन के वेबसाइट http://www.vishwahindi.com/hi/default.aspx पर उपलब्ध है।


मंगलवार, 23 जून 2020

नया पकवान | चंद्रेश कुमार छतलानी


एक महान राजा के राज्य में एक भिखारीनुमा आदमी सड़क पर मरा पाया गया। बात राजा तक पहुंची तो उसने इस घटना को बहुत गम्भीर मानते हुए पूरी जांच कराए जाने का हुक्म दिया।

सबसे बड़े मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई जिसने गहन जांच कर अपनी रिपोर्ट पेश की। राजा ने उस लंबी-चौड़ी रिपोर्ट को देखा और आंखें छोटी कर संजीदा स्वर में कहा, "एक लाइन में बताओ कि वह क्यों मरा?"

सबसे बड़े मंत्री ने अत्यंत विनम्र शब्दों में उत्तर दिया, "हुज़ूर, क्योंकि वह भूखा था।"

सुनते ही राजा की आंखें चौड़ी हो गईं और उसने आंखे तरेर कर मंत्री को देखते हुए कहा, "मतलब... मेरे... राज्य में... कोई... भू...खाथा।" यह कहते समय राजा हर शब्द के बाद एक क्षण रुक कर फिर दूसरा शब्द कह रहा था।

मंत्री तुरंत समझ गया और बिना समय गंवाए उसने उत्तर दिया, "जी हुज़ूर। वह 'भू... खाता'। इसलिए मर गया। यही सच है कि उसने भू ज़्यादा खा लिया था।"

रिपोर्ट में उस अनुसार बदलाव कर दिया गया और उस राज्य में 'भू' नामक एक नए पकवान का अविष्कार हो गया, जो काजू-बादाम और शुद्ध घी से बनाया जाता था।
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सोमवार, 11 मई 2020

लघुकथा वीडियो: भेद-अभाव | लेखन व वाचन: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी



लघुकथा: भेद-अभाव 

 मोमबत्ती फड़फड़ाती हुई बुझ गयी।

 अँधेरे हॉल में निस्तब्धता फ़ैल गयी थी, फिर एक स्त्री स्वर गूंजा, "जानते हो मैं कौन हूँ?"

 वहां बीस-पच्चीस लोग थे, सभी एक-दूसरे को जानते या पहचानते थे। एक ने हँसते हुए कहा, "तुम हमारी मित्र हो - रोशनी। तुमने ही तो हम सभी को अपने जन्मदिन की दावत में बुलाया है और हमें ताली बजाने को मना कर अभी-अभी मोमबत्ती को फूंक मार कर बुझाया।"

 स्त्री स्वर फिर गूंजा, "विलियम, क्या तुम देख सकते हो कि  तुम गोरे हो और बाकी सब तुम्हारी तुलना में काले?"

 विलियम वहीँ था उसने कहा, "नहीं।"

 वही स्त्री स्वर फिर गूंजा, "शुक्ला, क्या तुम बता सकते हो कि यहाँ कितने शूद्र हैं?"

 वहीँ खड़े शुक्ला ने उत्तर दिया, "पहले देखा तो था लेकिन बिना प्रकाश के कैसे गिन पाऊंगा?"

 फिर उसी स्त्री ने कहा, "अहमद, तुम्हारे लिए माँसाहार रखा है, खा लो।"

 अहमद ने कहा, "अभी नहीं, अँधेरे में कहीं हमारे वाले की जगह दूसरा वाला मांस आ गया तो...?"

 अब स्वर फिर गूंजा, "एक खेल खेलते हैं। अँधेरे में दूसरे को सिर्फ छूकर यह बताना है कि तुम उससे बेहतर हो और क्यों?"

 उनमें से किसी ने कहा, "यह कैसे संभव है?"

 उसी समय हॉल का दरवाज़ा खुला। बाहर से आ रहे प्रकाश में अंदर खड़े व्यक्तियों ने देखा कि उनकी मित्र रोशनी, जिसका जन्मदिन था, वह आ रही है। सभी हक्के-बक्के रह गए। रोशनी ने अंदर आते हुए कहा, "सभी से माफ़ी चाहती हूँ, तैयारी में कुछ समय लग गया।"

 और बुझी हुई मोमबत्ती खुद-ब-खुद जलने लगी,  लेकिन वहां कोई खड़ा नहीं था। सिर्फ एक कागज़ मेज पर रखा हुआ था। एक व्यक्ति ने उस कागज़ को उठा कर पढ़ा, उसमें लिखा था, "मैनें तुम्हें प्रकाश में नहीं बनाया... जानते हो तुम कौन हो?"

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चित्रः साभार गूगल