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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

लघुकथा वीडियो: सआदत हसन मंटो की 6 लघुकथाएं | वाचनः डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी



11 मई 1912 को इस दुनिया में अवतरित हुए सआदत हसन मंटो उर्दू लेखक थे, मंटो की रचनाओं की जितनी चर्चा बीते दशक में हुई है उतनी शायद ही किसी उर्दू और हिंदी दुनिया के रचनाकार की हुई हो. (साभार wikipedia)

राजेंद्र यादव कहते हैं चेख़व के बाद मंटो ही थे जिन्होंने अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली यानी उन्होंने कोई उपन्यास नहीं लिखा.

कमलेश्वर उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कहानीकार बताते हैं.

अपनी रचनाओं में विभाजन, दंगों और सांप्रदायिकता पर जितने तीखे कटाक्ष मंटो ने किए उसे देखकर एक ओर तो आश्चर्य होता है कि कोई रचनाकार इतना साहसी और सच को सामने लाने के लिए इतना निर्मम भी हो सकता है लेकिन दूसरी ओर यह तथ्य भी चकित करता है कि अपनी इस कोशिश में मानवीय संवेदनाओं का सूत्र लेखक के हाथों से एक क्षण के लिए भी नहीं छूटता. (साभार BBC हिंदी)

18 जनवरी 1955 को मंटो ने इस दुनिया से विदा ली. अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किए।

लघुकथा दुनिया के यूट्यूब चैनल में प्रस्तुत है उनकी 6 लघुकथाएं -

1
बेख़बरी का फ़ायदा

लबलबी दबी – पिस्तौल से झुँझलाकर गोली बाहर निकली.
खिड़की में से बाहर झाँकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया.
लबलबी थोड़ी देर बाद फ़िर दबी – दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली.
सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा.
लबलबी तीसरी बार दबी – निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई.
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.
पाँचवी और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी.
गोलियाँ चलाने वाला भिन्ना गया.
दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया.
गोलियाँ चलानेवाले ने पिस्तौल का मुहँ उसकी तरफ़ मोड़ा.
उसके साथी ने कहा : “यह क्या करते हो?”
गोलियां चलानेवाले ने पूछा : “क्यों?”
“गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!”
“तुम ख़ामोश रहो....इतने-से बच्चे को क्या मालूम?”

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2
करामात

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए.
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे,
कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें.
एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया.
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं.
जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया.
लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया.
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था.
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.

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3

ख़बरदार

बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीटकर बाहर लाए.

कपड़े झाड़कर वह उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा :
“तुम मुझे मार डालो, लेकिन ख़बरदार, जो मेरे रुपए-पैसे को हाथ लगाया.........!”

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4
हलाल और झटका

“मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी, हौले-हौले फेरी और उसको हलाल कर दिया.”
“यह तुमने क्या किया?”
“क्यों?”
“इसको हलाल क्यों किया?”
"मज़ा आता है इस तरह."
“मज़ा आता है के बच्चे.....तुझे झटका करना चाहिए था....इस तरह. ”
और हलाल करनेवाले की गर्दन का झटका हो गया.

(शहरग - शरीर की सबसे बड़ी शिरा जो हृदय में मिलती है)

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5
घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और बयालीस रुपये देकर उसे ख़रीद लिया.
रात गुज़ारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा : “तुम्हारा नाम क्या है? ”
लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया : “हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो....!”
लड़की ने जवाब दिया : “उसने झूठ बोला था!”
यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा : “उस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोखा किया है.....हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी......चलो, वापस कर आएँ.....!”


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6
आराम की ज़रूरत

“मरा नहीं... देखो अभी जान बाक़ी है।”
“रहने दो यार... मैं थक गया हूँ।”

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

लघुकथा वीडियो: ह्यूमन हाइबरनेशन । लेखन व वाचन: डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी




उस रोबोटमेन का नाम मिस्की था। यह नाम उसे इसलिए दिया गया था क्योंकि उसकी नेनोचिप में मिस्र की प्राचीन सभ्यता से लेकर आज वर्ष 2255 तक की हर विषय के बारे में न केवल पूरी जानकारी संग्रहित थी बल्कि किसी भी एक या अधिक विषयों के विशेषज्ञ रोबोट का कार्य कर पाने में अकेला ही सक्षम था। अपने ज्ञान के बलबूते पर उसने पैदा होने के छह महीने में ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स को रियल इंटेलिजेन्स में बदल दिया था।

आज वह अपने जनक मानव से मिलने आया था और उसे बता रहा था कि, "मकड़ी के जालों में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक होता है जो घाव साफ़ रख सकता है। इसलिए उनका आवरण आपके घर पर बना दिया है।"

जनक मानव चुपचाप सुन रहा था। वह रोबोटमेन आगे बोला, “मैंने अब अल्ट्रा वॉयलेट किरणों को अपना भोजन बना लिया है। ज्यूपिटर से हजारों की संख्या में हीरे लाया हूँ, उनसे अपनी और अपनी आने वालीं नस्लों के पुर्जे तैयार करूंगा, जो सैंकड़ों सालों तक सुस्त नहीं पड़ेंगे।"

खिड़की से गुजरती बिजली को देखकर रोबोटमेन मुस्कुराया और कहा, "अब धरती को इन बिजलियों की ज़रूरत नहीं रहेगी। अपनी नयी नस्लों को मैं खुद ही तैयार कर रहा हूँ, पहले ही सेकंड मेरे बच्चे मुझसे दोगुने बड़े होंगे और उनकी चिप में मैं सनातन प्लास्टिक से बनी चिप-न्यूक्लिक-एसिड स्थायी रूप से फिक्स कर रहा हूँ ताकि वो नस्लें मेरे नाम 'मिस्की' से जानी जाएँ।“

“ये रोबोटमेन… ‘मेन’ अच्छा नहीं लगता।“  वह इंसानों की तरह मुंह बिगाड़ने की कोशिश करते हुए आगे बोला, “खैर, मेरी तरह ही तेज गति के दिमाग और बेहतर संतुलन के लिए अपने बच्चों की अंगुलियां भी छह-छह रख रहा हूँ।  अरे हाँ! आपके लिए यह 20 साल पुराना शहद लाया हूँ और कुछ तो धरती पर ऐसा कुछ बचा नहीं कि आप खा सकें।“

“अपनी शारीरिक कमजोरियों के कारण इंसानी नस्ल अब ख़त्म होने की कगार पर है। पेड़, पानी, साफ हवा के बिना आप लोग जी नहीं सकते। आने वाला समय हम रोबोट्स का है। धरती से लेकर सूरज तक सम्भालना है।“ कहते-कहते उसकी मुस्कराहट गहराती जा रही थी।

“अब चलता हूँ, बहुत काम बचा हुआ है। एक बात पूछनी थी, जब आप लोगों को पता था कि पेड़ों की कटाई, धुंआ, गैस आदि ग्लोबल वॉर्मिंग के द्वारा आपकी नस्ल खत्म कर देंगी, तो आप लोगों ने इन बातों को बढ़ावा दिया ही क्यों?”

और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये वह मुड़ा और चला गया। उत्तर पहले ही से उसकी चिप में दर्ज था।

जनक मानव तब भी चुपचाप देख रहा था। वह इस प्रश्न के पूछने का कारण जानता था।
- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

लघुकथा संग्रह : लम्हे | आयोजक: प्राची डिजिटल पब्लिकेशन्स | सह-आयोजक: लघुकथा दुनिया


'लम्हे' लघुकथा संग्रह का उद्देश्य

‘लम्हें’ लघुकथा संग्रह के लिए आयोजित प्रतियोगिता का उद्देश्य लघुकथा लेखन के क्षेत्र में नये व पुराने साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना है। लघुकथा विधा के लेखकों को सम्मानित करने के साथ ही उनके साक्षात्कार को प्रकाशित कर दुनिया को लघुकथा लेखकों से परिचित कराना है। हमारा प्रयास लघुकथा विधाके उत्थान के लिए छोटा सा सहयोग है।


'लम्हे' लघुकथा संग्रह में शामिल होने के लिए नियम व शर्ते

✔ लम्हे’ लघुकथा संग्रह में प्रकाशन हेतु किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं है।

✔ लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए आयोजित प्रतियोगिता में कोई भी लेखक, ब्लॉगर व साहित्यकार प्रतिभाग कर सकता है।

✔ ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए भेजी जानी वाली लघुकथा किसी भी विषय पर लिखी जा सकती है। (एक प्रतिभागी अधिकतम 4 प्रविष्टियां भेज सकता है)।

✔ ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए लघुकथा भेजने से पूर्व ध्यान दें कि उनकी भेजी गई रचना अन्य कहीं भी अर्थात किसी भी वेब पत्रिका या प्रिन्ट पत्रिका या समाचार पत्र में प्रकाशित न हो।

✔ हमारी संपादकीय टीम द्वारा संबधित लेखक व साहित्यकार द्वारा भेजी गई रचना अन्य कहीं भी प्रकाशित पाए जाने पर संपादकीय टीम उसे संग्रह में शामिल नहीं करेगी और न दुबारा उस लेखक पर विचार करेगी।

✔ निर्णायक मंडल द्वारा ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए प्राप्त किसी भी लेखक की निरस्त रचना पर पुनः विचार नहीं किया जायेगा और प्राची डिजिटल पब्लिकेशन किसी भी निर्णय के लिए स्वतंत्र होगा।

✔ लघुकथा सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित होनी चाहिए। इस सन्दर्भ में होने वाले किसी भी वाद-विवाद के लिए केवल लेखक जिम्मेवार होगा।

✔ ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह का प्रकाशन प्रतिभा खोज एवं लघुकथा लेखन प्रोत्साहन हेतु आयोजित स्पर्द्धा है, अत: प्राची डिजिटल पब्लिकेशन लेखक को रॉयल्टी देने के लिए बाध्य नहीं है।

✔ अंतिम तिथिः इंतज़ार करिए

कैसे प्रतिभाग करें

✔ सर्वप्रथम लेखक स्वयं को iBlogger में पंजीकृत करें।

✔ Dashboard पर लॉगइन कर New Post कंपोज करें और Category में Lamhe चयनित करें। यदि आप पोस्ट करते समय Lamhe कैटेगरी का चयन नहीं करते हैं, तो आपकी रचना पर कोई विचार नहीं किया जायेगा।




लेखक काे पुरस्कार स्वरूप मिलने वाले अन्य लाभ


  • ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए चुनी गई श्रेष्ठ लघुकथाओं को स्थान दिया जायेगा और चयनित लेखकों का साक्षात्कार वेब पोर्टल indiBooks.in में प्रकाशित किया जायेगा। यदि लेखक ब्लॉगर है, तो iBlogger में भी साक्षात्कार प्रकाशित किया जायेगा।
  • लम्हे’ लघुकथा संग्रह की ई-बुक सभी प्रतिभागियों को नि:शुल्क उपलब्ध करायी जायेगी। साथ ही देश-विदेश के सभी ई-बुक स्टोर पर पाठकों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध कराई जायेगी। वहीं, ‘लम्हें’ लघुकथा संग्रह का पेपरबैक संस्करण भी प्रकाशित किया जायेगा, जिसे सम्मानित प्रतिभागियो को नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए प्राची डिजिटल पब्लिकेशन बाध्य नहीं है, लेकिन यदि लेखक पेपरबैक प्रतियां प्राप्त करना चाहते है, तो उन्हे 40% छूट पर उपलब्ध कराई जायेगी।
  • प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से लेखक व साहित्यकार को ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह में प्रतिभाग करने के लिए प्रमाण-पत्र प्रदान किया जायेगा।
  • लेखक यदि भविष्य में कोई भी पुस्तक प्रकाशित कराना चाहता है, तो प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से उसे किसी भी प्रीमियम सेल्फ पब्लिशिंग योजना में 20 प्रतिशत की छूट प्रदान की जायेगी।

या

  • 100 पृष्ठों की कविता, कहानी या गज़ल की किताब मात्र 6,000/- रूपये देकर प्रकाशित करा सकता है। जिसमे लेखक को 20 लेखकीय प्रतियां, पुस्तक की डिजाइन, ISBN, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नेपडील पर पुस्तक की उपलब्धता एवं Unlimited Inventory Management की सुविधा दी जायेगी।


Source: https://www.iblogger.prachidigital.in/lamhe/

मंगलवार, 31 मार्च 2020

लघुकथा वीडियो: अदृश्य जीत | लेखन व वाचन डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी





लघुकथा: अदृश्य जीत | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

जंगल के अंदर उस खुले स्थान पर जानवरों की भारी भीड़ जमा थी। जंगल के राजा शेर ने कई वर्षों बाद आज फिर खरगोश और कछुए की दौड़ का आयोजन किया था।




पिछली बार से कुछ अलग यह दौड़, जानवरों के झुण्ड के बीच में सौ मीटर की पगडंडी में ही संपन्न होनी थी। दोनों प्रतिभागी पगडंडी के एक सिरे पर खड़े हुए थे। दौड़ प्रारंभ होने से पहले कछुए ने खरगोश की तरफ देखा, खरगोश उसे देख कर ऐसे मुस्कुरा दिया, मानों कह रहा हो, "सौ मीटर की दौड़ में मैं सो जाऊँगा क्या?"


और कुछ ही क्षणों में दौड़ प्रारंभ हो गयी।

खरगोश एक ही फर्लांग में बहुत आगे निकल गया और कछुआ अपनी धीमी चाल के कारण उससे बहुत पीछे रह गया।

लगभग पचास मीटर दौड़ने के बाद खरगोश रुक गया, और चुपचाप खड़ा हो गया।

कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ, खरगोश तक पहुंचा। खरगोश ने कोई हरकत नहीं की। कछुआ उससे आगे निकल कर सौ मीटर की पगडंडी को भी पार कर गया, लेकिन खरगोश वहीँ खड़ा रहा।

कछुए के जीतते ही चारों तरफ शोर मच गया, जंगल के जानवरों ने यह तो नहीं सोचा कि खरगोश क्यों खड़ा रह गया और वे सभी चिल्ला-चिल्ला कर कछुए को बधाई देने लगे।

कछुए ने पीछे मुड़ कर खरगोश की तरफ देखा, जो अभी भी पगडंडी के मध्य में ही खड़ा हुआ था। उसे देख खरगोश फिर मुस्कुरा दिया, वह सोच रहा था,
"यह कोई जीवन की दौड़ नहीं है, जिसमें जीतना ज़रूरी हो। खरगोश की वास्तविक गति कछुए के सामने बताई नहीं जाती।"

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
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रविवार, 29 मार्च 2020

लघुकथा वीडियो: क्या क्यूँ कैसे @ लघु कथा संग्रह | लेखन: अशोक भाटिया | वाचन: सृजनउत्सव



अशोक भाटिया करनाल से हैं। हिन्दी में एसोसिएट प्रोफेसर रह चुके हैं, आजकल लेखन और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। आपकी कविता, आलोचना, बाल साहित्य, व्यंग्य, लघु कथा जैसे विषयों पर 13 मौलिक और 15 संपादित पुस्तकें आ चुकी हैं। उनके लघुकथा संग्रह 'क्या क्यूँ कैसे' से लीजिए कुछ लघुकथाएँ सुनिए..