सतीश राठी जी और दीपक गिरकर जी के सम्पादन में क्षितिज का संवादात्मक लघुकथा अंक प्राप्त हुआ। पढ़ना प्रारम्भ किया है। मेरी एक लघुकथा भी इसमें सम्मिलित है।
एक औरत / लघुकथा / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
"काजल लगाने के बाद तुम्हारी आँखें कितनी सुंदर हो जाती हैं?"
"जी, मेरे बॉस भी यही कहते हैं।"
"अच्छा, तुम्हारे कपड़ों का चयन भी बहुत अच्छा है, तुम पर एकदम फिट!"
"बॉस को भी यही लगता है"
"ओह, तुम जो मेकअप करती हो उससे तुम्हारा रूप कितना खिल उठता है।"
"बॉस भी बिलकुल यही शब्द कहते हैं..."
"उफ़.... तुम्हारा पति मैं हूँ या बॉस?"
"आपकी नज़रें पति जैसी नहीं, बॉस जैसी हैं। वर्ना इस सुंदरता के पीछे एक औरत भी है।"
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"काजल लगाने के बाद तुम्हारी आँखें कितनी सुंदर हो जाती हैं?"
"जी, मेरे बॉस भी यही कहते हैं।"
"अच्छा, तुम्हारे कपड़ों का चयन भी बहुत अच्छा है, तुम पर एकदम फिट!"
"बॉस को भी यही लगता है"
"ओह, तुम जो मेकअप करती हो उससे तुम्हारा रूप कितना खिल उठता है।"
"बॉस भी बिलकुल यही शब्द कहते हैं..."
"उफ़.... तुम्हारा पति मैं हूँ या बॉस?"
"आपकी नज़रें पति जैसी नहीं, बॉस जैसी हैं। वर्ना इस सुंदरता के पीछे एक औरत भी है।"
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गूढ़ बात, जो सबको समझ नहीं आएगी।
जवाब देंहटाएंउम्दा लघुकथा।
हार्दिक आभार आपका आदरणीया।
हटाएंमारक लघु कथा बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका।
हटाएंमारक लघुकथा बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका।
हटाएंबहुत सुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका।
हटाएंबहुत सुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका।
हटाएंअर्थपूर्ण लघुकथा। बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका।
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