इस आलेख के भाग 1 (https://laghukathaduniya.blogspot.com/2019/06/blog-post_8.html) में हमने यह चर्चा की थी कि समीक्षा और आलोचना में भी ईमानदारी की कमी है। बहुत सारी साहित्यिक समीक्षाएं केवल उस पुस्तक
की अनुक्रमणिका को देख कर लिखी जा रही है। एक पत्रिका की समीक्षा लिखने से पूर्व
उस पत्रिका को पूरा पढ़ना फिर समझना और आत्मसात करना आवश्यक है लेकिन कई बार
समीक्षाएं पढ़ कर ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ भी ईमानदारी की कमी है।
इस भाग में इसी बात को आगे बढ़ाते हुए एक समीक्षक या आलोचक में क्या गुण होने चाहिए
उस पर चर्चा करते हैं।
समीक्षक या आलोचक के गुण
सभी अन्य कार्यों की तरह समीक्षक समीक्षा के प्रति ईमानदार तो हो ही, अध्ययनशीलता अथवा समय की कमी के कारण पूरी पुस्तक नहीं पढे बिना समीक्षा ना करें।
हालांकि सबसे महत्वपूर्ण है आपका समीक्षात्मक विवेक जिसके जरिये आपको लेखक की आत्मा में प्रवेश करना है, उसके भाव और कला को उसकी अभिव्यक्ति के जरिये पहचानना है। उस लेखक की अन्य रचनाएँ आपने पढ़ी हों तो बेहतर और लेखक के व्यक्तित्व के बारे में आप जानते हों तो आप समीक्षा के लिए बेहतरीन व्यक्ति हैं। रचनाकार की समान अनुभूति से सहृदय होकर जुड़ना समीक्षक का मूलभूत गुण है।
हालांकि सबसे महत्वपूर्ण है आपका समीक्षात्मक विवेक जिसके जरिये आपको लेखक की आत्मा में प्रवेश करना है, उसके भाव और कला को उसकी अभिव्यक्ति के जरिये पहचानना है। उस लेखक की अन्य रचनाएँ आपने पढ़ी हों तो बेहतर और लेखक के व्यक्तित्व के बारे में आप जानते हों तो आप समीक्षा के लिए बेहतरीन व्यक्ति हैं। रचनाकार की समान अनुभूति से सहृदय होकर जुड़ना समीक्षक का मूलभूत गुण है।
समीक्षक निष्पक्ष होकर या यों कहें
कि तटस्थ रहकर अर्थात अपने स्वयं के आग्रहों से मुक्त होकर समीक्षा करे। इन दिनों लघुकथा में समीक्षा
के तौर पर वाह-वाही का दौर प्रारम्भ हो गया है, जो कि भविष्य में लघुकथा के
लिए घातक सिद्ध होगा। व्यक्तिगत दिलचस्पी की
ज़मीन पर किसी लघुकथा के गुणों अथवा अवगुणों की विवेचना करने से समीक्षा रूपी पौधा नहीं
उग सकता है।
समीक्षक में सत्य कहने और लिखने का साहस भी होना चाहिए, हालांकि मैं यह मानता हूँ कि समीक्षक एक अच्छा मार्गदर्शक भी होता
है और कितनी ही बार लेखक का mentor भी हो जाता है। इसलिए समीक्षक के पास, जिस तरह की रचना की वह समीक्षा कर रहे हैं, का उचित ज्ञान, हृदय में संवेदनशीलता और चिंतन करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
समीक्षक को अपनी बातों को
तर्कसंगत और तथ्यपरक ढंग से रखना भी आना चाहिए। समीक्षा में देशी-विदेशी
रचनाओं/पुस्तकों आदि के अध्ययन कर उनके संदर्भ भी देने चाहिए।
समीक्षक को विदेशी साहित्य (रचनाएँ और पुस्तकें आदि) पढ़ना तो चाहिए लेकिन समीक्षा में उनकी नक़ल नहीं करनी है, बल्कि अपने साहित्य को समझ कर उसकी उपयोगिता पर मनन करना चाहिए।
समीक्षक को किसी भी तथ्य तक पहुँचने में उतावला नहीं होना चाहिए।
अपनी पहली समीक्षा प्रारम्भ करने से पहले निम्न शब्दों के अर्थों को लघुकथा के संदर्भ में अवश्य समझिए:
आधुनिकता (समसामयिकता), प्रयोगशीलता, अनुभूति, क्षण, सत्य, यथार्थ, मानव-मूल्य, विसंगति, घटित होना, विडंबना, उपदेशात्मक, मनोरंजन, गंभीरता, संचेतना, व्यापकता, उपयोगिता, साहित्येतर,
सामाजिक सरोकार, शिल्प, भाषा, पाठक की बोध-वृति, बिम्ब, प्रगतिशीलता, प्रतिबद्धता, प्रतिमान और सपाटबयानी।
इसी प्रकार साहित्य की दृष्टि से इन शब्दों पर भी विचार कीजिये:
साहित्य की जड़ता, कृत्रिमता, अप्रासंगिक लेखन, स्वच्छंदता, परम्परागत लेखन, वैयक्तिक रुचि, साहित्यिक दृष्टि, विचारों की प्रौढ़ता, रचनात्मक विचार, युगीन हलचल, वैचारिक द्वंद्, सामाजिक-आर्थिक सहसंबंध, राजनीतिक चिंतन, धार्मिक चिंतन, राष्ट्रीय चिंतन और वैश्विक चिंतन।
क्रमशः:
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
Read Also:
आलेख: लघुकथा समीक्षा भाग-1
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -06-2019) को "जग के झंझावातों में" (चर्चा अंक- 3381) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत-बहुत आभार आदरणीया अनीता सैनी जी।
हटाएंसर,आपने अद्भुत लिखा है । कंठस्थ करने की क्षमता होती तो मैं कर लेती। असीम शुभकामनाएँ 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीया मिन्नी मिश्रा जी।
हटाएंसीखने-सिखाने की दृष्टि से बेहतरीन ज्ञानवर्धक आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीय खयाली जी।
हटाएं