रविवार, 10 नवंबर 2024

वैश्विक सरोकार की लघुकथाएं । भाग 10 । साइबर सुरक्षा पर सृजन

आदरणीय मित्रों,

साइबर सुरक्षा एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा बनकर उभरा हुआ है, जो सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों को समान रूप से प्रभावित कर रहा है। अर्थव्यवस्थाओं और समाजों के बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ, साइबर खतरों से जुड़े जोखिम बढ़ गए हैं। हैकिंग, फ़िशिंग, रैनसमवेयर और डेटा चोरी सहित साइबर हमले, संवेदनशील जानकारियों, वित्तीय प्रणालियों आदि को निशाना बनाते हैं। ये हमले न केवल महत्वपूर्ण वित्तीय नुकसान का कारण बनते हैं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म और सेवाओं में विश्वास को भी कम करते हैं। उदाहरण के लिए, 2017 में कुख्यात WannaCry रैनसमवेयर हमले ने दुनिया भर में अस्पताल के संचालन को बाधित कर दिया। कनेक्टेड डिवाइस के उदय, जिसे इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) के रूप में जाना जाता है, ने साइबर अपराधियों के लिए हमले की सतह का विस्तार किया है, जिससे ऊर्जा, परिवहन और स्वास्थ्य सेवा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र अधिक असुरक्षित हो गए हैं। साइबर सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों को संबोधित करने के लिए समन्वित अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों, तकनीकी नवाचारों, और गोपनीयता की सुरक्षा के लिए व्यापक नीतियों की आवश्यकता है। कुछ मामलों में, साइबर हमले राष्ट्रीय सुरक्षा तक को भी खतरे में डाल सकते हैं, सार्वजनिक सेवाओं को बाधित कर सकते हैं और यहां तक कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी कमजोर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में साइबर हमलों के माध्यम से चुनाव में हस्तक्षेप ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। विकासशील राष्ट्र, जिनमें अक्सर मजबूत साइबर सुरक्षा सम्बन्धी संसाधानोम की कमी होती है, इन हमलों के लिए विशेष रूप से असुरक्षित हैं। साथ ही, दुनिया भर के व्यवसाय साइबर खतरों की बदलती प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। COVID-19 महामारी के दौरान वैश्विक कार्यबल के दूरस्थ कार्य में बदलाव ने इन जोखिमों को और बढ़ा दिया है, व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट सिस्टम पर साइबर हमलों में वृद्धि के साथ। सरकारों, निगमों और व्यक्तियों को साइबर खतरों के जोखिमों को कम करने के लिए एन्क्रिप्शन, मल्टी-फैक्टर प्रमाणीकरण और नियमित सॉफ़्टवेयर अपडेट सहित मजबूत सुरक्षा उपाय अपनाने चाहिए।

वैश्विक साइबर सुरक्षा परिदृश्य साइबर हमलों में अभूतपूर्व वृद्धि देख रहा है। साइबरसिक्यूरिटी वेंचर्स के अनुसार, साइबर अपराध से दुनिया को 2025 तक सालाना 10.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होने का अनुमान है, जो 2015 में 3 ट्रिलियन डॉलर था, जो इसे वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी आर्थिक चुनौतियों में से एक बनाता है। विश्व आर्थिक मंच के 2023 वैश्विक साइबर सुरक्षा आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार, साइबर सुरक्षा के 95% मुद्दे मानवीय भूल के कारण हो सकते हैं, जो बेहतर साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण और जागरूकता की आवश्यकता पर बल देता है। IBM सुरक्षा द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 2023 में डेटा उल्लंघन की औसत लागत $4.45 मिलियन थी, जिसमें स्वास्थ्य सेवा सबसे अधिक लक्षित उद्योग था। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ब्लॉकचेन जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ साइबर सुरक्षा को बढ़ाने के नए तरीके प्रदान करती हैं, लेकिन वे परिष्कृत साइबर अपराधियों के लिए उपकरण भी बन रही हैं। जैसे-जैसे साइबर खतरे विकसित होते हैं, राष्ट्र साइबर सुरक्षा ढाँचों में भारी निवेश कर रहे हैं; हालाँकि, एक महत्वपूर्ण कौशल अंतर बना हुआ है, 2023 में वैश्विक स्तर पर अनुमानित 3.4 मिलियन साइबर सुरक्षा नौकरियाँ खाली हैं।

साइबर सुरक्षा पर कुछ प्रख्यात गणमान्य व्यक्तियों के उद्धरण निम्नानुसार हैं:

नरेंद्र मोदी – "साइबर सुरक्षा अर्थव्यवस्था, हमारे नागरिकों की सुरक्षा और हमारी संप्रभुता की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।"

बराक ओबामा – "साइबर खतरे संयुक्त राज्य अमेरिका के सामने सबसे गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों में से एक हैं।"

एंटोनियो गुटेरेस (संयुक्त राष्ट्र महासचिव) – "साइबर सुरक्षा न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार, विकास और शांति का भी प्रश्न है।"

थेरेसा मे – "वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज को साइबर हमलों से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ काम करना जारी रखेगा।"

बिल गेट्स – "प्रौद्योगिकी की उन्नति को आप नोटिस करें न करें, यह आपकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। और, साइबर सुरक्षा सभी देशों के लिए एक सक्रिय और लगातार विकसित होती प्राथमिकता होनी चाहिए।"

एंजेला मर्केल – "हमें इस तथ्य का सामना करना होगा कि साइबर खतरे वास्तविक जिंदगी को प्रभावित करते हैं - व्यक्तियों से लेकर सरकारों तक। सामूहिक कार्रवाई ही आगे बढ़ने का रास्ता है।"

इन्हें समझा जाए तो ये उद्धरण वैश्विक परिप्रेक्ष्य में साइबर सुरक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हैं तथा सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और व्यक्तिगत अधिकारों के लिए इसकी प्रासंगिकता पर बल देते हैं।

साइबर सुरक्षा पर साहित्य

साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में कई मौलिक कार्य उभरते खतरे के परिदृश्य और शमन के लिए रणनीतियों में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। "साइबर सुरक्षा और साइबर युद्ध: हर किसी को क्या जानना चाहिए" पी.डब्ल्यू. सिंगर और एलन फ्राइडमैन द्वारा लिखित पुस्तक साइबर खतरों की जटिल दुनिया और साइबर हमलों के वैश्विक प्रभावों के लिए एक सुलभ लेकिन व्यापक मार्गदर्शिका है। केविन मिटनिक द्वारा लिखित "द आर्ट ऑफ़ इनविज़िबिलिटी" एक और महत्वपूर्ण कार्य है, जो डिजिटल युग में गोपनीयता बनाए रखने और साइबर खतरों से खुद को बचाने के बारे में व्यावहारिक सलाह प्रदान करता है। रॉन डीबर्ट द्वारा लिखित "ब्लैक कोड: इनसाइड द बैटल फ़ॉर साइबरस्पेस" साइबर जासूसी के वैश्विक प्रभाव और सरकारें और निगम सूचना को नियंत्रित करने के लिए इंटरनेट का उपयोग कैसे करते हैं, इस पर चर्चा करता है। रॉस एंडरसन द्वारा लिखित "सिक्योरिटी इंजीनियरिंग: ए गाइड टू बिल्डिंग डिपेंडेबल डिस्ट्रिब्यूटेड सिस्टम्स" एक और प्रभावशाली पुस्तक है जो सुरक्षा इंजीनियरिंग और सुरक्षित प्रणालियों के डिज़ाइन में गहराई से उतरती है। ये कार्य न केवल साइबर सुरक्षा पर अकादमिक चर्चा में योगदान करते हैं बल्कि आज की परस्पर जुड़ी दुनिया में साइबर खतरों से निपटने के लिए व्यावहारिक समाधान भी प्रदान करते हैं।

साइबर सुरक्षा पर लघुकथाएं

इस विषय पर हिंदी लघुकथाएं तलाश करने में बहुत वक्त लगा। आदरणीया अंजू निगम जी का मैं दिल से बहुत शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने इस विषय में रचनाकर्म किया और करते ही मुझे रचना भेज दी। लघुकथा विधा के समुदाय में भामाशाह की तरह कोई व्यक्ति अपनी पूँजी  (अप्रकाशित लघुकथा) यूं ही विधा को समृद्ध करने के लिए खर्च कर दे तो उनके प्रति विधा को भी कृतज्ञ रहना चाहिए। एक अंग्रेज़ी लघुकथा मुझे इन्टरनेट पर प्राप्त हुई है, ब्रूस स्टर्लिंग  नाम लेखक की 'द क्लिक', लेकिन मैं इन लेखक की रचनाओं से बहुत अधिक वाकिफ नहीं हूँ, अतः यह रचनाकर्म इन्हीं का है अथवा नहीं, इसकी पुष्टि नहीं करता। मुझे जैसे प्राप्त हुई, वैसे ही उसका हिंदी अनुवाद कर यहाँ पोस्ट की है। अपनी कोई रचना मैं इस श्रृंखला के लेखों में नहीं देना चाह रहा था, लेकिन चूँकि अन्य रचनाएं मेरे सीमित अध्ययन के कारण एक महीने से भी अधिक समय तक नहीं ढूंढ पाया, अतः अपनी ही एक रचना भी इसमें दी है। ये रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:

1. द क्लिक / ब्रूस स्टर्लिंग 

उसने बिना सोचे-समझे लिंक दबा दिया। वह सोच रहा था कि, "यह तो बस एक और पॉप-अप है - इससे क्या नुकसान हो सकता है?" 

लेकिन जैसे ही उसने क्लिक किया, कम्प्यूटर की स्क्रीन काली हो गई। कुछ सेकंड बाद, उसका फ़ोन बज उठा: "तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।" उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। तभी उसके सोशल मीडिया अकाउंट को हाईजैक कर लिया गया, और उसके बैंक अकाउंट से भी रुपये निकलने लग रहे थे। 

उसके द्वारा भेजे गए हर संदेश को हैकर द्वारा ट्रैक किया जा रहा था, हर कॉल को रीरूट किया जा रहा था। कोई तो था, जो उसे देख रहा था, अपनी छाया से उसके जीवन को नियंत्रित कर रहा था। 

उसने इसे ठीक करने की कोशिश की - मॉडेम को रीसेट किया, तकनीकी सहायता से संपर्क किया - लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। उसने जो कुछ भी ऑनलाइन बनाया था, वह सब शून्य में समा गया था।

और, यह सब एक लापरवाह क्लिक की वजह से हुआ।

2. सावधान!आगे खतरा है / अंजू निगम 

" लो, दामिनी का फोन है। कह रही थी तुम्हें दो-तीन बार कॉल किया मगर तुमने फोन ही नहीं उठाया।" बादल के स्वर में नाराजगी थी।

"रिंग टोन कम रखी है इसलिए सुनाई नहीं दिया होगा।" मानसी को भी लगा ही कि दामिनी का दो-तीन बार कॉल आना मतलब मामला कुछ गंभीर है। दामिनी से बात करने के बाद मानसी भी परेशान लगी।

"क्या हुआ ? कुछ परेशानी ?" बादल का स्वर थोड़ा नरम था।

" शायद मेरा मोबाइल हैक कर लिया गया है।"

"कैसे ?"

 "दामिनी कह रही थी कि किसी ने मेरे मोबाइल नंबर से दामिनी से पैसे माँगे है। कहा कि बेटी के एडमिशन के लिये थोड़े पैसे कम पड़ रहे है। एक हफ्ते में लौटाने की भी बात कही।"

" तुमने कोई अनजान नंबर या समूह तो नहीं ऐड किया था अभी ?" बादल मसले की तह तक जाना चाह रहे थे।

 " हाँ, एक काव्य समूह से कल ही जुड़ी थी।"

" किसी को जानती हो उस समूह में?"

" नहीं मैं नहीं जानती। मुझे तो ऐड हो जाने के बाद मालूम पड़ा।"

" जिसने तुम्हें ऐड किया वह ग्रुप का एडमिन होगा। उससे पूछो।" बादल.ने सुझाया।

" कर चुकी। उसे नहीं मालूम कुछ। हो सकता है इस नये ग्रुप का कोई हो जिसे मैं नहीं जानती।" मानसी ने कयास लगाया।

" सबसे परेशानी वाली बात ये रही कि दामिनी ने मुझे बताये बिना पैसे दे दिये।"

" क्या ! कितने दे दिये ?" बादल सकते में था।

" करीब दस हजार।"

"दस हजार ! ये जानते हुये भी कि आजकल इस तरह के कितने गोरखधंधे चल रहे है।"

" दामिनी बता रही थी कि फोन करने वाला बहुत जल्दी में दिखा और दामिनी को सोचने-समझने तक का मौका नहीं दिया।"

" वह तो जल्दी करेंगा ही। कैसे पेमेंट किया ? गुगल पे किया तो कुछ नंबर तो दिया होगा।" बादल सारे लूपहोल तलाश रहे थे।

" जिस नंबर पर गुगल पे किया, वह अब बंद आ रहा है।"

"उसने कोई विकल्प नहीं छोड़ा। पहले भी जाने कितने लोगों को बेवकूफ बनाया होगा। इसकी रिपोर्ट साइबर क्राइम में लिखवानी पड़ेगी। पहले तुम्हारे अकाउंट फ्रीज करवाने पड़ेंगे फिर मोबाइल नंबर बदलना होगा।

 वैसे तो ये पता करना मुश्किल होता है कि मोबाइल हैक हुआ या नहीं लेकिन अगर तुम्हारे नंबर से पैसे मांगे गये तो ऐसा सोचा जा सकता है। मोबाइल कंपनी भी अब स्पैम नंबर को इंगित करती है। ऐसे स्पैम नंबर को कभी अटैंड न करो। अननोन नंबर को पहले ट्रूकॉलर से चैक करो। कभी कोई बेवजह ओ.टी.पी मांगे तो मत दो। कभी किसी समान की खरीदारी पर बिल बनाते समय तुम्हारा मोबाइल नंबर मांगा जायें तो मत ही दो। ये सावधानियां रखनी बहुत जरूरी है।" बादल ने कहा।

"  मैं समझ रही हूं सारी बातें। वैसे क्या मुझे दामिनी को पैसे देने चाहिए ?"

"प्रैक्टिकली देखें तो नहीं देने चाहिए क्योंकि पैसे देने से पहले उसने तुमसे पूछा नहीं था और अगर भावनाओं में बह कर सोचें तो देना चाहिए। तुम चाहो तो किसी और तरीके से उसके नुकसान की भरपाई कर सकती हो।"

"हां, ये ठीक रहेगा।" मानसी ने गहरी सांस लेते हुए कहा।

" अपने को तो तुम्हें भी टटोलना पड़ेगा, मानसी। मोबाइल यूं ही हैक नहीं हो जाते। किसी भी वजह से तुम्हारा पासवर्ड या थम्स इंप्रेशन मिले, तभी मोबाइल हैक किया जा सकता है। ऐसे किसी लूपहोल को टटोलो और आगे से सावधान रहो।" 

बादल के सावधानी भरी बातें सुनकर दामिनी सोच में पड़ गई।

अंजू निगम 

नई दिल्ली

3. इंटरनेट ऑफ बींग्स (Internet of Beings) / चंद्रेश कुमार छतलानी

उसका नाम सामनि था। सरगम के पहले, मध्यम और आखिरी स्वरों पर उसके संगीतकार पिता ने यह अजीबोगरीब नाम रखा था। लेकिन वह खुद को ज़िन्दगी कहती थी। साथ ही यह भी कहती थी, “ज़िन्दगी गाने के लिए नहीं है, गुनगुनाने के लिए है और गुनगुनाने के लिए सरगम के तीन स्वर काफी हैं।“ 

मैं तकनीक का व्यक्ति हूँ, इंटरनेट ऑफ थिंग्स पर काम करता हूँ। वह कहती थी कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स की बजाय इंटरनेट ऑफ बींग्स पर दुनिया काम क्यों नहीं करती! कहती थी, काश! ऐसी एक चिप होती जो रोज़ रात को ठीक ग्यारह बजे उसके शरीर को शिथिल कर देती, दिमाग को शांत और आँखों में नींद भर देती। 

प्रेमिका तो नहीं, वह केवल एक दोस्त थी। सच कहूं तो मुझे बहुत पसन्द थी, एक दिन मैंने उससे शादी का प्रस्ताव भी रखा, हँसते हुए बोली, "ज़िन्दगी को छूना नहीं चाहिए, ज़िन्दगी को अपने इंटरनेट की तरह ही मानो… जीने का अर्थ ही आभासी होना है।"

एक दिन तेज़ बारिश में भीगी हुई वह मेरे घर आई। कुछ सामान लेने गई थी कि बारिश हो गई। मैंने उसे पहनने को अपने कपड़े दिए और कमरे से बाहर चला गया। उसने दरवाज़ा बंद किया। मैं घर पर अकेला ही था। दिल का दानव दिमाग तक पहुंचा और मैंने दरवाज़े के की-होल से उसे कपड़े बदलते हुए भरपूर देखा। देखा क्या, बस अपनी स्मृति में हमेशा के लिए बसा लिया।

वह बेखबर बाहर आई, हम दोनों के लिए चाय बनाई और हम पीते रहे। वह चाय पीती रही और मैं… न जाने क्या?

उस बात को लगभग एक साल गुज़र गया है। आज शाम उसने खुद्कुशी कर ली।

देर रात मैं उसके घर गया तो पता चला कि किसी ने उसके कपड़े बदलने का वीडियो बना लिया था और उसे इंटरनेट की किसी वेबसाईट पर अपलोड कर दिया। सुनते ही मुझे याद आया कि उस दिन मेरा लैपटॉप भी तो ऑन ही था, इंटरनेट भी चल रहा था और… लैपटॉप का कैमरा भी… हाँ-हाँ कैमरा भी तो ऑन था।  शायद उसी वक्त मेरी तरह ही किसी और ने भी इंटरनेट के जरिये... मेरे लैपटॉप को हैक कर... उसे अपनी स्थायी मेमोरी में बसा लिया था। लेकिन सिर्फ बसाया ही नहीं, उजाड़ भी दिया उस उज्जड़ ने।

दिमागी हलचल पैरों तक पहुँची, मैं उसके घर से भागा। अपने घर पहुंच कर अपने कमरे में गया। लैपटॉप आज भी ऑन था। उसे बंद किया तो कुछ चैन सा मिला। मैं अपने कमरे से निकल आया और दरवाज़ा बंद कर दिया। डाईनिंग रूम में जाकर बैठ गया और आँखें बंद कर लीं। इस तरह जैसे ज़िन्दगी को कभी देखा ही नहीं हो। आज भी घर में मैं अकेला था। रात के ग्यारह बज रहे थे। मेरा पूरा शरीर शिथिल होने लगा, आँखें चाह कर भी खोल नहीं पा रहा था, जैसे डार्क वेब के किसी हैकर ने आँखें हर ली हों।

और उसी वक्त पता नहीं कैसे पूरा डाईनिंग रूम चाय की खूश्बू से महक उठा!

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चंद्रेश कुमार छतलानी


4. डेबिट कार्ड / सविता मिश्रा ‘अक्षजा'

“माँ..,” रुँधे गले से इस एक शब्द को फोन पर सुनते ही शैली ने बेटे की घबराहट को भांप लिया। अब शैली उस आवाज के माध्यम से अपने बेटे की रोती आँखें साफ-साफ देख पा रही थी। अपने को संयमित करके बोली,

“रोओ नहीं बेटा, क्या हुआ बताओ तो?”

न जाने कितने दुर्विचार शैली के सामने से चलचित्र की भांति दौड़ने लगे। पुनः साहस जुटाकर बोली, “मैं हूँ न! बताओ तो...!"

"माँ, एक नम्बर आया होगा, पूछकर, किसी ने बैंक खाते में... पड़े सारे रुपए... उड़ा लिए। सुबह आठ बजे... मैं नींद में था... तभी फोन आया, और... और सेकेंड भर में... सारे रुपये..! पापा... गुस्सा करेंगे... न माँ..."

रुँधे गले से अटक-अटककर किसी तरह वाक्य पूरा हुआ था।

मन किया कि चीखे-चिल्लाये उस पर, इतनी लापरवाही, सोने के चक्कर में होश खो बैठा था क्या? ओटीपी नंबर बता दिया! कल ही तेरे ग्रेजुएशन की फीस को जमा किए पूरे दो लाख रुपए लुटा बैठा तू...! सहसा आँखों के सामने वे घटनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं, जिसमें बच्चे साइबर क्राइम का शिकार होकर, माता-पिता की डांट के डर से आत्महत्या कर बैठे थे।

उसने अपने को सायास वर्तमान में धकेला और आवाज में लचीलापन लाकर बोली, “बेटा, गलतियाँ हर किसी से हो जाती हैं, परन्तु सीख भी दे जाती हैं। आगे से सावधानी रखना| वरना येन-केन-प्रकारेण सारी मेहनत की कमाई ये कार्ड चूस लेगा, क्योंकि इसकी तो आँखें हैं नहीं, बस सुरसा रूपी मुँह-ही-मुँह है।”

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सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

आगरा


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