मंगलवार, 8 मार्च 2022

हाल-ए-वक्त | राजस्थान साहित्य अकादमी से आर्थिक सहयोग प्राप्त लघुकथा संग्रह | लेखक : चंद्रेश कुमार छतलानी

लेखक का नाम : चंद्रेश कुमार छतलानी
पुस्तक का नाम : हाल-ए-वक्त
(राजस्थान साहित्य अकादमी से आर्थिक सहयोग प्राप्त लघुकथा संग्रह)
प्रकाशक: हिमांशु पब्लिकेशन्स, उदयपुर
प्रकाशन वर्ष: 2022
ISBN: 978-81-7906-955-4

लघुकथाएं:
देशबंदी, E=(MC)xशून्य, कटती हुई हवा, वही पुरानी तकनीक, पत्ता परिवर्तन, एक बिखरता टुकड़ा, संस्कार, भटकना बेहतर, गूंगा कुछ तो करता है, खोटा सिक्का, गुलाम अधिनायक, अस्वीकृत मृत्यु, ईलाज, सोयी हुई सृष्टि, अन्नदाता, भेड़िया आया था, मुर्दों के सम्प्रदाय, इतिहास गवाह है, निर्भर आज़ादी, नीरव प्रतिध्वनि, सर्पिला इंसान, मानव-मूल्य, मुआवज़ा, खजाना, भयभीत दर्पण, पलायन का दर्द, वीआईपी लाइन, तीन संकल्प, मार्गदर्शक, पश्चाताप, विधवा धरती, धर्म-प्रदूषण, मेरी याद, गरीब सोच, उम्मीद, अपवित्र कर्म, मारते कंकाल, भूख, भय, दोहन, गंगा का धर्म, बिछड़ने का दर्द, अंतिम श्रृंगार, आरती-दर्शन, धार्मिक पुस्तक, झूठे मुखौटे, सिर्फ चाय, माँ पूतना, डर, मेच फिक्सिंग, स्वप्न को समर्पित, विरोध का सच, गांधीजी का तीसरा बन्दर, इंसान जिन्दा है, मौकापरस्त मोहरे, आतंकवादी का धर्म, छुआछूत, ममता, निर्माताओं से मुलाक़ात, बुनियादी कमाई, धर्म, दशा, खुलते पेच, बिकती निष्क्रियता, रसीला फल, नियोजित प्रतिक्रिया, बच्चा नहीं, दायित्व-बोध, अहमियत, अदृश्य जीत, स्वच्छता निवारण, एक गिलास पानी, दहन किसका, गर्व-हीन भावना, अपरिपक्व, माँ के सौदागर, बहुरूपिया, नयी शराब का नशा, उसकी ज़रूरत, कोई तो मरा है
संग्रह से एक लघुकथा:
अदृश्य जीत
जंगल के अंदर उस खुले स्थान पर जानवरों की भारी भीड़ जमा थी। जंगल के राजा शेर ने कई वर्षों बाद आज फिर खरगोश और कछुए की दौड़ का आयोजन किया था।
पिछली बार से कुछ अलग यह दौड़, जानवरों के झुण्ड के बीच में सौ मीटर की पगडंडी में ही संपन्न होनी थी। दोनों प्रतिभागी पगडंडी के एक सिरे पर खड़े हुए थे। दौड़ प्रारंभ होने से पहले कछुए ने खरगोश की तरफ देखा, खरगोश उसे देख कर ऐसे मुस्कुरा दिया, मानों कह रहा हो, "सौ मीटर की दौड़ में मैं सो जाऊँगा क्या?"
और कुछ ही क्षणों में दौड़ प्रारंभ हो गयी।
खरगोश एक ही फर्लांग में बहुत आगे निकल गया और कछुआ अपनी धीमी चाल के कारण उससे बहुत पीछे रह गया।
लगभग पचास मीटर दौड़ने के बाद खरगोश रुक गया, और चुपचाप खड़ा हो गया।
कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ, खरगोश तक पहुंचा। खरगोश ने कोई हरकत नहीं की। कछुआ उससे आगे निकल कर सौ मीटर की पगडंडी को भी पार कर गया, लेकिन खरगोश वहीँ खड़ा रहा।
कछुए के जीतते ही चारों तरफ शोर मच गया, जंगल के जानवरों ने यह तो नहीं सोचा कि खरगोश क्यों खड़ा रह गया और वे सभी चिल्ला-चिल्ला कर कछुए को बधाई देने लगे।
कछुए ने पीछे मुड़ कर खरगोश की तरफ देखा, जो अभी भी पगडंडी के मध्य में ही खड़ा हुआ था। उसे देख खरगोश फिर मुस्कुरा दिया, वह सोच रहा था,
"यह कोई जीवन की दौड़ नहीं है, जिसमें जीतना ज़रूरी हो। खरगोश की वास्तविक गति कछुए के सामने बताई नहीं जाती।"
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