19-11-1945 को जयपुर में जन्मे लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ने एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा प्राप्त की है. वेअग्रगामी (मासिक) के सह-सम्पादक (1975 से 1978) व 1978 से 1990 तक निराला समाज (त्रैमासिक) में भी कार्य किया है. बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं. वे ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सम्मानित हुए हैं. साहित्य में वे दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताएं, कहानियाँ और लघुकथाओं का लेखन करते हैं. आइए आज पढ़ते हैं उनकी एक लघुकथा
सीता सी वामा
"सैकड़ों लड़कियाँ देख चुके पर तुझे कोई लड़की पसन्द ही नहीं आती। लड़की देखकर जवाब नहीं देता और दो दिन बाद मना कर देता है। आखिर तुम्हारी पसन्द है क्या?" माँ ने पुत्र से पूछा।
"लड़की देखने के बाद छानबीन करने पर लड़की में वह समर्पित भावना नजर नहीं आती, जो मैं चाहता हूँ माँ।"
अब माँ ने आश्चर्यचकित हो पूछा "समर्पित भावना से तुम्हारा क्या आशय है?"
"जैसे प्रभु राम के साथ माँ सीता सारे सुख त्यागकर वनवास गई थी, ऐसी समर्पित भावना।"
माँ यह सुनकर मुस्कुरा दी और बोली, "वो तो ठीक है लेकिन क्या तुम्हारा खुदका आचरण भी श्रीराम जैसा मर्यादित है?"
और यह सुनकर वह विचारों में खो गया।
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- लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
कृष्णा साकेत, 165, गंगौत्री नगर, गोपालपुरा, टोंक रोड, जयपुर (राज.) - 302018
Mo. 9314249608
Email- lpladiwala@gmail.com
लघुकथा को स्थान प्रदत्त करने के लिए हार्दिक आभार श्री Chandresh Kumar Chhatlani जी
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