मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

लघुकथा: खेत | भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

अपनी-अपनी चौहद्दी और सीमाओं से बंधे हुए खेत हरियाली समेटे फसलों से लहलहा रहे थे। 

छोटू अपने दादा के साथ खेत पर पहुंचा तो सरसों के पीले फूल देखकर हर्षित हो गया। 

दादा जी ये खेत किसका है? और ये जो पौधे लगे हैं ये क्या हैं? 

दादा जी बिना कुछ बोले आगे आगे चलते गए। 

अब उनके सामने गांव का आखिरी खेत और सामने दूसरे गांव की सीमा। 

पास ही में मेड़ के ऊपर कंटीले तारों का बार लगा हुआ था। 

दूसरी ओर गेंदे का फूल किसी दूसरे खेत में लहलहा रहा था। छोटू दादा जी देखो ना कितने अच्छे फूल खिले हैं। 

मन करता है ढ़ेर सारे फूल तोड़ लूं। दादा जी बच्चे को रोकते हुए ऐसा बिल्कुल नहीं करना नहीं तो दूसरे गांव के लोग हम लोगों का जीना हराम कर देंगे। 

बच्चा फूल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ा रहा था लेकिन हाथ ठिठक गए।

बच्चा अगले ही क्षण ऐसा क्यों? बेटे ये खेत दूसरे गांव के लोगों की है। इस पर उनका मालिकाना हक है। मैं तुम्हें बाजार से इससे भी अच्छे अच्छे फूल लाकर दूंगा।

दादा जी बच्चे को बहलाने की कोशिश कर रहे थे। तभी फूल वाले खेत के पास किसी आदमी के आने की आहट सुनाई दी। 

बच्चे बूढ़े को एक साथ देखते हुए फूल वाले खेत के मालिक ने उन्हें नमस्ते किया। 

शायद वे उन्हें जानते थे। बहुत दिनों बाद दर्शन दिए मालिक अब तो खेत देखने भी नहीं आते।

दादा जी ने भी नमस्ते किया हां भई अब तो खेत बटाईदार के हाथों दे दिया है। 

कभी इन खेतों को अपने हाथों सींचते थे। अब बाल बच्चे नौकरी चाकरी वाले हो गए तो खेती किसानी छूट गई। 

दूसरे खेत वाले ये आपके साथ बच्चा कौन है? जी मेरा पोता है जिद करके मेरे साथ आ गया। 

अभी कुछ देर पहले ही फूल तोड़ने की जिद कर रहा था। मैंने साफ मना कर दिया। वो आदमी जो दूसरे खेत का मालिक था।

आ... हा हा । मालिक आप भी न कमाल करते हैं एकाध फूल तोड़ ही लेते तो क्या बिगड़ जाता।

 खेत भले बंट गए हैं। 

लेकिन हमलोग तो हैं अब भी एक दूसरे के पूरक ही। आपका खेत आपके पास नहीं है फिर भी खेत के मालिक तो हैं। 

दो चार फूल तोड़ भी लेते तो क्या बिगड़ जाता। एक साथ दस बारह फूल तोड़ कर बच्चे के हाथों में थमा दिया। 

लेउ बचबा जे फूल से जो कछु चाहो बनाय लियौ चाहे तो माला गूंथ लियौ या फिर खेल लियौ। 

तभी पहले खेत ने दूसरे खेत से चुटकी लेते हुए कहा देखो हमारे बीच 'मेड़़' रुपी दीवारें खींच दी गई है। लेकिन रहेंगे तो खेत ही!

हमारी एकता मनुष्यों से भिन्न है, लेकिन हमलोग फिर भी साथ रहते हैं। 

और मनुष्य क्या वे सिर्फ मिलकर रहने की वजह तलाशते हैं पर रहते अलग-अलग हैं।


- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

Village:- bajhai,khodawand pur, post:-meghaul, district:- begusarai

Bihar:-848202

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