मेरा घर छिद्रों में समा गया / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
माँ भारती ने बड़ी मुश्किल से अंग्रेज किरायेदारों से अपना एक कमरे का मकान खाली करवाया था। अंग्रेजों ने घर के सारे माल-असबाब तोड़ डाले थे, गुंडागर्दी मचा कर खुद तो घर के सारे सामानों का उपभोग करते, लेकिन माँ भारती के बच्चों को सोने के लिए धरती पर चटाई भी नसीब नहीं होती। खैर, अब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सब ठीक हो जायेगा।
लेकिन…
पहले ही दिन उनका बड़ा बेटा भगवा वस्त्र पहन कर आया साथ में गीता, रामायण, वेद-पुराण शीर्षक की पुस्तकें तथा भगवान राम-कृष्ण की तस्वीरें लाया।
उसी दिन दूसरा बेटा पजामा-कुरता और टोपी पहन कर आया और पुस्तक कुरान, 786 का प्रतीक, मक्का-मदीना की तस्वीरें लाया।
तीसरा बेटा भी कुछ ही समय में पगड़ी बाँध कर आया और पुस्तकें गुरु ग्रन्थ साहिब, सुखमणि साहिब के साथ गुरु नानक, गुरु गोविन्द की तस्वीरें लाया।
और चौथा बेटा भी वक्त गंवाएं बिना लम्बे चोगे में आया साथ में पुस्तक बाइबल और प्रभु ईसा मसीह की तस्वीरें लाया।
चारों केवल खुदकी किताबों और तस्वीरों को घर के सबसे अच्छे स्थान पर रख कर अपने-अपने अनुसार घर बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आपस में लड़ना भी शुरू कर दिया।
यह देख माँ भारती ने ममता के वशीभूत हो उस एक कमरे के मकान की चारों दीवारों में कुछ ऊंचाई पर एक-एक छेद करवा दिया। जहाँ उसके बेटों ने एक-दूसरे से पीठ कर अपने-अपने प्रार्थना स्थल टाँगे और उनमें अपने द्वारा लाई हुई तस्वीरें और किताबें रख दीं।
वो बात और है कि अब वे छेद काफी मोटे हो चुके हैं और उस घर में बदलते मौसम के अनुसार बाहर से कभी ठण्ड, कभी धूल-धुआं, कभी बारिश तो कभी गर्म हवा आनी शुरू हो चुकी है…
और माँ भारती?...
अब वह दरवाज़े पर टंगी नेमप्लेट में रहती है।
वाह वाह। आपने एक सच को उत्तम तरीक़े से कहा।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीय.
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