6 जनवरी, 1883 को जन्मे खलील जिब्रान अंग्रेजी और अरबी के लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था।
satyagargah.scroll.in के एक वेबपेज उनके बारे में कुछ यों लिखा है कि:
खलील जिब्रान को पढ़ना कुछ ऐसा है जैसे अपनी ही आत्मा से दो चार होना. आप अपनी हर उलझन का हल उनकी सूक्तियों में ढूंढ़ सकते हैं. इस लिहाज से खलील जिब्रान को पढ़ना किसी अच्छे डॉक्टर से मिलने जैसा भी है. खलील का लेखन जीवन को समझने की एक मुकम्मल कुंजी है. उसे पढ़ पाने की एक ज्ञात लिपि.
खलील इसीलिए हर देश और हर भाषा के इतने अपने हुए. हर इंसान को उनकी बात अपनी बात लगी. चाहे वह उनकी लघुकथाएं हों या सूक्तियां, प्रेम और दोस्ती सहित जिंदगी के तमाम अनुभवों की वे कम से कम शब्दों में कुछ इस तरह व्याख्या करते हैं कि वह बहुत सहजता से सबके दिलों में उतर जाए. प्रेम और दोस्ती पर तो उन्होंने इतना कुछ और कुछ इस तरह लिखा कि उसे जितना भी पढो वह कम ही जान पड़ता है. यह लिखना हर बार एक नई व्याख्या, सन्दर्भ और दर्शन के साथ हुआ. ‘प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है, जिस पर फल नहीं लगते’ या फिर ‘आपका दोस्त आपकी जरूरतों का जवाब है.’ जैसी उनकी न जाने कितनी पंक्तियां हैं जो कई पीढ़ियों के लिए बोध वाक्य बन गईं.
10 जनवरी, 1931 को जिब्रान इस दुनिया से विदा हुए, वे इस दुनिया को अपनी लेखनी से इतना कुछ दे गये कि आनी वाली सह्स्त्राब्दियां भी याद रखेंगी।
जिब्रान की तीन लघुकथाएं:
1)
मेजबान
'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।'
करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा
'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।'
भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।
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2)
वेश
एक दिन समुद्र के किनारे सौन्दर्य की देवी की भेंट कुरूपता की देवी से हुई। एक ने दूसरी से कहा, ‘‘आओ, समुद्र में स्नान करें।’’
फिर उन्होंने अपने-अपने वस्त्र उतार लिए और समुद्र में तैरने लगीं।
कुछ समय बाद कुरूपता की देवी समुद्र से बाहर निकली, तो वह चुपके-से सौन्दर्य की देवी के वस्त्र पहनकर खिसक गई।
और जब सौन्दर्य की देवी समुद्र से बाहर निकली, तो उसने देखा कि उसके वस्त्र वहां न थे। नग्न रहना उसे पसन्द न था। अब उसके लिए कुरूपता की देवी के वस्त्र पहनने के सिवा और कोई चारा न था। लाचार हो उसने वही वस्त्र पहन लिये और अपना रास्ता लिया।
आज तक सभी स्त्री-पुरुष उन्हें पहचानने में धोखा खा जाते हैं।
किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे अवश्य हैं, जिन्होंने सौन्दर्य की देवी को देखा हुआ है और उसके वस्त्र बदले होने पर भी उसे पहचान लेते हैं। और यह भी विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि कुछ व्यक्ति ऐसे भी जरूर होंगे जिन्होंने कुरूपता की देवी को भी देखा होगा और उसके वस्त्र उसे उनकी दृष्टियों से छिपा न सकते होंगे।
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3)
धोखा
पहाड़ की चोटी पर अच्छाई और बुराई की भेंट हुई। अच्छाई ने कहा, ‘‘आज का दिन तुम्हारे लिए शुभ हो।’’
बुराई ने कोई उत्तर नहीं दिया।
अच्छाई ने फिर कहा, ‘‘क्या बात है, बहुत उखड़ी–उखड़ी लगती हो!’’
बुराई बोली, ‘‘ठीक समझा तुमने, पिछले कई दिनों से लोग मुझे तुम पर भूलते हैं, तुम्हारे नाम से पुकारते हैं और इस तरह का व्यवहार करते हैं जैसे मैं ‘मैं’नहीं ‘तुम’ हूँ। मुझे बुरा लगता है।’’
अच्छाई ने कहा, ‘‘मुझमें भी लोगों को तुम्हारा धोखा हुआ है। वे मुझे तुम्हारे नाम से पुकारने लगते हैं।’’
यह सुनकर बुराई लोगों की मूर्खता को कोसती हुई वहाँ से चली गई।
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चित्रः साभार गूगल
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीय.
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