बुधवार, 29 अप्रैल 2020

लघुकथा वीडियो: खरीदी हुई तलाश | लेखन व वाचन: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी


लघुकथा: खरीदी हुई तलाश | लेखन व वाचन: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

उस रेड लाइट एरिया में रात का अंधेरा गहराने के साथ ही चहल-पहल बढती जा रही थी। जिन्हें अपने शौक पूरे करने के लिये रौशनी से बेहतर अंधेरे लगते हैं, वे सभी निर्भय होकर वहां आ रहे थे।

वहीँ एक मकान के बाहर एक अधेड़ उम्र की महिला पान चबाती हुई खोजी निगाहों से इधर-उधर देख रही थी कि सामने से आ रहे एक आदमी को देखकर वह चौंकी और उसके पास जाकर पूछा,

"क्या हुआ साब, आज यहाँ का रास्ता कैसे भूल गए? तीन दिन पहले ही तो तुम्हारा हक़ पहुंचा दिया था।"

सादे कपड़ों में घूम रहे उस पुलिस हवलदार को वह महिला अच्छी तरह पहचानती थी।

“कुछ काम है तुमसे।” पुलिसकर्मी ने थकी आवाज़ में कहा।

“परेशान दिखाई दे रहे हो साब, लेकिन तुम्हें देखकर हमारे ग्राहक भी परेशान हो जायेंगे, कहीं अलग चलकर बात करते है।”

वह उसे अपने मकान के पास ले गयी और दरवाज़ा आधा बंद कर इस तरह खड़ी हो गयी कि पुलिसकर्मी का चेहरा बंद दरवाजे की तरफ रहे।

पुलिसकर्मी ने फुसफुसाते हुए पूछा,
"आज-कल में कोई नयी लड़की... लाई गयी है क्या?"

"क्यों साब? कोई अपनी है या फिर..." उस महिला ने आँख मारते हुए कहा।

"चुप... तमीज़ से बात कर... मेरी बीवी की बहन है, दो दिनों से लापता है।" पुलिसकर्मी का लहजा थोड़ा सख्त था।

उस महिला ने अपनी काजल लगीं आँखें तरेर कर पुलिसकर्मी की तरफ देखा और व्यंग्य से मुस्कुराते हुए कहा,

"तुम्हारे जैसों के लालच की वजह से कितने ही भाई यहाँ आकर खाली हाथ लौट गए, उनकी बहनें किसी की बीवी नहीं बन पायीं और तुम यहीं आकर अपनी बीवी की बहन को खोज रहे हो!"

और वह सड़क पर पान की पीक थूक कर अपने मकान के अंदर चली गयी।

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चित्रः साभार गूगल

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