रविवार, 13 अक्तूबर 2019

मेरी एक लघुकथा हिन्दीभाषा.कॉम में

दंगे की जड़ / डॉ.चंद्रेश कुमार छतलानी 



आखिर उस आतंकवादी को पकड़ ही लिया गया,जिसने दूसरे धर्म का होकर भी रावण दहन के दिन रावण को आग लगा दी थी। उस कृत्य के कुछ ही घंटों बाद पूरे शहर में दंगे भड़क उठे थे।

आतंकवादी के पकड़ा जाने का पता चलते ही पुलिस स्टेशन में कुछ राजनीतिक दलों के नेता अपने दल-बल सहित आ गये,एक कह रहा था कि उस आतंकवादी को हमारे हवाले करो,हम उसे जनता को सौंप कर सज़ा देंगे तो दूसरा उसे न्यायालय द्वारा कड़ी सजा देने पक्षधर था,वहीं तीसरा उस आतंकवादी से बात करने को उत्सुक था।

शहर के दंगे ख़त्म होने की स्थिति में थे,लेकिन राजनीतिक दलों के यह रुख देखकर पुलिस ने फिर से दंगे फैलने के डर से न्यायालय द्वारा उस आतंकवादी को दूसरे शहर में भेजने का आदेश करवा दियाl उसके मुँह पर कपड़ा बाँध,छिपा कर बाहर निकालने का प्रयत्न कर ही रहे थे कि,एक राजनीतिक दल के लोगों ने उन्हें पकड़ लिया।

उनका नेता भागता हुआ आया,और उस आतंकवादी से चिल्ला कर पूछा,-“क्यों बे! रावण तूने ही जलाया था ?” कहते हुए उसने उसके मुँह से कपड़ा हटा दिया। कपड़ा हटते ही उसने देखा लगभग बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का खड़ा था,जो चेहरे से ही मंदबुद्धि लग रहा था। और वह लड़का आँखें और मुँह टेढ़े कर के चेहरे के सामने हाथ की अंगुलियाँ घुमाते हुए हकलाते हुए बोला,-
“हाँ…! मैंने जलाया है…रावन को,क्यों…क्या मैं…राम नहीं बन सकता ?
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Source:
http://hindibhashaa.com/%E0%A4%A6%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%9C/

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