अनुपयोगी
जनवरी की एक सुबह। फिजा में ठंडक घुली हुई है। मुँह धोकर पोंछ लिया है। आईने में नहीं देखा है। अब वैसा ही तो होगा। रात भर में क्या कुछ बदल जायेगा! चाय पी ली है। मोटरसाइकिल पोर्च में रखे-रखे गंदी हो गयी है। उसके दोनों मिररर्स पर धूल जमी हुई है। इंडीकेटर्स हैं, हाथ हैं तो इनको साफ करने की जरूरत नहीं लगती। साफ करने का मन भी नहीं है। ऐसे ही स्टार्ट करके चौराहे तक आ गया हूँ। गुनगुनी धूप अच्छी लग रही है। कुछ देर यहीं खड़े रहने का मन है। सिटी बस का यह आखरी स्टॉप है। इसलिए ड्रायवर बस वापस मोड़ते हुए ऐसे खुश है जैसे धरती की एक परिक्रमा पूरी कर ली है।
मजदूर काम पर जाने से पहले टपरे में पोहे-जलेबी खा रहे हैं। रूम शेयर करके रहने वाली कॉलेज की कुछ लड़कियाँ भी टपरे पर चाय पी रही हैं। बच्चे यूनिफार्म में पैदल स्कूल जा रहे हैं। कुछ स्कूल बस का इंतजार कर रहे हैं। एक कुत्ता तीन टांगों पर चल रहा है। चौथी टांग टेढ़ी जो है।
पंद्रह-सोलह साल की लड़की और उसके छोटे भाई को स्कूल बस तक छोड़ने उसके पिताजी आये हुए हैं। जब तक बस नहीं आ जाती वो नहीं जाएंगे। मैं लड़की के बाप की उम्र का हूँ मगर बाप नहीं हूँ। लड़की मेरी बेटी से भी कम उम्र की है मगर बेटी नहीं है। लड़की सुंदर है। मेरी नीयत में खोट नहीं है। बस इस वक्त अपनी उम्र के बारे में कुछ सोचना नहीं चाहता। बस आ गयी। पहले भाई लपककर चढ़ गया। लड़की ठिठकी। उसने एक पल को मेरी मोटरसाइकिल के मिरर में खुद को देखा और फिर बस में चढ़ गई। मेरा अनुपयोगी मिरर एक क्षण को उपयोगी हो गया।
धूल थी तो क्या हुआ! उम्र ऐसी है कि एक आईना तो चाहिए।
वाकया बस इतना सा ही है। लेकिन श्रीमती जी निष्कर्ष पर पहुँच चुकी हैं-"अब समझ में आया वहाँ खड़े रहने का मन क्यों करता है।"
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परिचय
नाम-कपिल शास्त्री
शिक्षा-मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल,टी.टी.नगर.से वर्ष 1982 में ग्यारवीं पास, बी.एस.सी.(मोतीलाल विज्ञानं महाविद्यालय)1986,एम्.एस.सी.(एप्लाइड जियोलॉजी)(यूनिवर्सिटी टीचिंग डिपार्टमेंट)बरकतउल्ला विश्वविद्यालय ,वर्ष 1989.
लेखन विधा-लघुकथा (2015 से लेखन आरम्भ)
प्रकाशित कृतियाँ-वनिका पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित लघुकथा संकलन "बूँद बूँद सागर"(संपादन डॉ.जीतेन्द्र "जीतू" व डॉ.नीरज सुधांशु)में चार लघुकथाएँ "इन्द्रधनुष","ठेला","रक्षा बंद","कवर"प्रकाशित।वनिका पब्लिकेशन द्वारा ही प्रकाशित द्वितीय लघुकथा संकलन "अपने अपने क्षितिज"में चार लघुकथाएँ "हार-जीत,सेफ्टी वाल्व" "ढोंग" "चार रुपये की ख़ुशी" प्रकाशित।राष्ट्रीय पत्रिका "सत्य की मशाल"और "अविराम सहित्यकी"में लघुकथा प्रकाशित।"लघुकथा के परिंदे" "गागर में सागर" "लघुकथा साहित्य" जैसे प्रतिष्ठित फेसबुक लघुकथा ग्रुप्स में नियमित रूप से प्रकाशन।"स्टोरी मिरर.कॉम" होप्स मेगेज़ीन" "प्रतिलिपि.कॉम"में अनेक रचनाएँ प्रकाशित।पहला लघुकथा संग्रह "ज़िन्दगी की छलांग"जून 2017 में वनिका पब्लिकेशन,बिजनोर द्वारा प्रकाशित।शब्द प्रवाह सामाजिक,सांस्कृतिक मंच उज्जैन द्वारा "ज़िन्दगी की छलांग"को लघुकथा विधा में प्रथम पुरस्कार।इंदौर की 'क्षितिज' साहित्यिक संस्था द्वारा वर्ष 2018 में नवोदित लेखक सम्मान।
सम्प्रति-वर्ष 1990 से 2004 तक प्रतिष्ठित फार्मा कंपनी "वोखहार्ड"में कार्यरत।2004 से वर्तमान तक मेडिकल होलसेल का व्यापार
पता-निरुपम रीजेंसी,S-3,231A/2A साकेत नगर.भोपाल.
संपर्क-9406543770.
email kshastri121@gmail.com
मतलब - अर्थ का अनर्थ मतलब निकालते लोग - ...खास कर नारी-पुरुष के रिश्ते में ...
जवाब देंहटाएंलघुकथा पर टिपण्णी के लिए धन्यवाद सुबोध सिन्हा जी।ये एक ऑब्जरवेशन है।लोग तो गलत अर्थ निकलते ही हैं लेकिन यहाँ कोई रिश्ता नहीं है सिर्फ एक घटना है जिसका पत्नियाँ अक्सर गलत अर्थ निकाल लेती हैं।
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