लघुकथा को आज नजरअंदाज करना बेमानी है: डॉ बलराम अग्रवाल
आज लघुकथा को अब गंभीरता से लिया जाने लगा है।बेहद छोटी मगर असरदार होती है इसकी मारक क्षमता कि कब तीर निकलता है और कब वह लक्ष्य पर पहुंच कर अपना निशाना लगा आता है।जी,हाँ इसका नाम लघुकथा है।
आज राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,भारत द्वारा आयोजित उज्जैन पुस्तक मेले में लघुकथा पर एक यादगार गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें उज्जैन-इंदौर के बेहतरीन मगर राष्ट्रीय स्तर के लघुकथाकारों ने शिरकत की।जिसमें संतोष सुपेकर,राजेन्द्र देवघरे, मीरा जैन,कोमल वाधवानी,आशा गंगा शिरदोनकर ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया।इस मौके पर डॉ बलराम अग्रवाल की पुस्तक "लघुकथा का प्रबल पक्ष" का लोकार्पण भी मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया।
सत्र की अध्यक्षता दिल्ली से पधारे वरिष्ठ लेखक डॉ बलराम अग्रवाल ने की।सत्र का समन्वय राजेन्द्र नागर ने किया।
सत्र की अध्यक्षता दिल्ली से पधारे वरिष्ठ लेखक डॉ बलराम अग्रवाल ने की।सत्र का समन्वय राजेन्द्र नागर ने किया।
कार्यक्रम से पूर्व राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,भारत के हिंदी संपादक डॉ ललित किशोर मंडोरा ने न्यास की गतिविधियों से आमन्त्रित लेखकों का परिचय करवाया व आमन्त्रित वक्ताओं को न्यास की ओर से पुस्तकें भेंट की।उन्होंने कहा कि हम अपने अतिथियों का स्वागत पुस्तकों से करते है।
इस मौके पर अध्यक्षता कर रहे लघुकथा के वरिष्ठ हस्ताक्षर डॉ बलराम अग्रवाल ने कहा:
निश्चित ही यह बड़े सौभाग्य की बात है कि अब बड़े प्रकाशन घरानों ने लघुकथा को गम्भीरता से लेना शुरू कर दिया है।बेशक वह राष्ट्रीय पुस्तक न्यास हो या साहित्य अकादेमी हो।ये वह विधा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
निश्चित ही यह बड़े सौभाग्य की बात है कि अब बड़े प्रकाशन घरानों ने लघुकथा को गम्भीरता से लेना शुरू कर दिया है।बेशक वह राष्ट्रीय पुस्तक न्यास हो या साहित्य अकादेमी हो।ये वह विधा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उन्होंने आगे कहा कि "युवा रचनाकारों को न्यास ने कार्यक्रमों में शामिल कर एक बड़ा कार्य किया है।सही मायने में न्यास प्रकाशन और लेखकों के बीच में एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निभा रहा है। लघुकथा सामान्य से कुछ अलग हट कर विधा नहीं है।ये एक गंभीर विधा है जिसे आज पर्याप्त समझा जा रहा है।व्यक्ति समाज से लेता है व समाज को ही लौटाता है।"
इस मौके पर उन्होंने साहिर लुधियानवी का जिक्र करते हुए बात को आगे बढ़ाया।उन्होंने कहा कि "साहित्य मनुष्य के लिए है।हम आजकल अपनी सराउंडिंग भूल गए।जिसे नहीं भूलना चाहिए।आस पास का चित्रण भी हमारी कथाओं में बरबस ही नजर आता है।आसपास का बोध हमारी रचनाओं का केंद्र बिंदु है।"
दृष्टि नाम से अशोक जैन की पत्रिका का जिक्र भी अपने वक्तव्य में किया और साथ ही डॉ बलराम अग्रवाल ने अपनी कुछ लघुकथाओं का पाठ भी किया।
कार्यक्रम के सूत्रधार राजेन्द्र नागर ने कहा कि लघुकथा की ताकत ही यही होती है कि अपने आकार में वह मारक होती है और यही लघुकथा की ताकत भी यही है।
नेत्रहीन लघुकथाकार कोमल वाधवानी ने अपनी सुंदर लघुकथाओं से कार्यक्रम की शुरुआत की।
राजेन्द्र देवघरे ने अपनी लघुकथा"सड़क पर चर्चा " सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में विसंगतियों का होना बेहद लाजिमी है,तभी उनकी लघुकथा सड़क पर चर्चा को देखते ही रह गए कि बारिश के दिनों में आखिर सड़क गई तो कहां!
राजेन्द्र देवघरे ने अपनी लघुकथा"सड़क पर चर्चा " सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में विसंगतियों का होना बेहद लाजिमी है,तभी उनकी लघुकथा सड़क पर चर्चा को देखते ही रह गए कि बारिश के दिनों में आखिर सड़क गई तो कहां!
उनकी अगली रचना 'प्रतिबंध' ने भी श्रोताओं के ध्यान अपनी और आकर्षित किया।
आशा गंगा शिरदोनकर ने अपनी सामयिक रचनाओं को शिक्षा दिवस के संदर्भ में सुनाई।जिसमें नकाबपोश व अन्य रचनाओं ने श्रोताओं को प्रभावित किया।
आशा गंगा शिरदोनकर ने अपनी सामयिक रचनाओं को शिक्षा दिवस के संदर्भ में सुनाई।जिसमें नकाबपोश व अन्य रचनाओं ने श्रोताओं को प्रभावित किया।
लघुकथा की नई शैली को विकसित करने में आशा गंगा शिदोंकर ने नया आयाम प्रस्तुत किया है।जिसने आकाशवाणी के कार्यक्रम हवामहल की याद दिला दी।
संतोष सुपेकर ने ओढ़ी हुई बुराई लघुकथा सुना कर हरियाणवी शैली श्रोताओं के सम्मुख रखने का जबरदस्त प्रयास किया।
संतोष सुपेकर ने ओढ़ी हुई बुराई लघुकथा सुना कर हरियाणवी शैली श्रोताओं के सम्मुख रखने का जबरदस्त प्रयास किया।
मीरा जैन ने अपनी कुछ लघुकथाओं का पाठ किया जिसमें समकालीन विषयों को आधार बनाया गया।
उल्लेखनीय साहित्यकारों में इसरार अहमद,दिलीप जैन,विजय सिंह गहलौत,डॉ पुष्पा चौरसिया,नरेंद्र शर्मा,गड़बड़ नागर,पिलकेन्द्र अरोड़ा ,डॉ देवेंद्र जोशी भी कार्यक्रम में नजर आएं।
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