. . . और आख़िर 24 दिन के लंबे 'संघर्ष' के बाद पोस्ट आफिस के मक्कड़जाल से निकलकर 28 अगस्त को रजिस्टर्ड पोस्ट की गई 'लघुकथा कलश' की प्रति मेरे हाथों में पहुंच ही गई।
'थैंक्स टू इंडिया पोस्ट'. . .
लघुकथा कलश का यह चतुर्थ अंक (जुलाई - दिसंबर 2019) 'रचना-प्रक्रिया, महाविशेषांक' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अपने पूर्व अंकों की तरह आकर्षक साज-सज्जा और बढ़िया क्वालिटी के पेपर पर छपा होने के साथ, अपने प्राकृतिक हरे रंग के खूबसूरत कवर पृष्ठ में पत्रिका सहज ही मन को आकर्षित कर रही है।
अपनी पहली नजर में पत्रिका को देखने में यही अनुभव हो रहा है कि 'रचना-प्रक्रिया' पर आधारित यह अंक अपने अंदर बहुत से गुणीजन लेखकों के लघुकथा से जुड़े अनुभवों को समेटे हुए है। पत्रिका में 360+2 कवर पृष्ठों में 126 नवोदित एवं स्थापित प्रतिष्ठित लघुकथाकारों की करीब 250 लघुकथाओं के साथ उनकी रचना प्रक्रिया एवं चार विशिष्ट लघुकथाकारों की लघुकथाओं सहित उनकी रचना प्रक्रिया को स्थान दिया गया है।
इसके अतिरिक्त छः पुस्तक समीक्षाएं और लघुकथा कलश के पूर्व अंकों से जुड़ी बेहतरीन समीक्षाएं भी इस अंक में शामिल की गई हैं। नेपाली लघुकथाओं की विशेष प्रस्तुति में आठ लघुकथाकारों की लघुकथाएं रचना प्रक्रिया सहित शामिल की गई हैं। अंत में कवर पृष्ठ पर अशोक भाटिया जी के बाल लघुकथा 'बालकांड' की योगराज प्रभाकर जी द्वारा काव्यात्मक समीक्षा भी इस अंक का एक आकर्षण बन गई है। निःसन्देह इतनी विस्तृत सामग्री के पीछे 'कलश परिवार' सहित सभी गुणीजन रचनाकारों की मेहनत का भी बहुत बड़ा योगदान है।
किसी भी पत्र-पत्रिका का संपादकीय उस कृति में सम्मलित किए गए अंशों की बानगी के संदर्भ में उसका सत्य प्रतिबिम्ब ही होता है। पत्रिका का सम्पादकीय "दिल दिआँ गल्लाँ" सहज ही रचना प्रक्रिया अंक की प्रेरणा के साथ उसके अस्तित्व में आने की कथा सामने रखता है। सम्पादकीय न केवल लघुकथाकारों को उनके लेखन के प्रति आश्वस्त करने की कोशिश करता है वरन उन्हें उनकी कमियों के प्रति ध्यानाकर्षित करने के साथ लघुकथा विधा पर और अधिक मंथन करने का आग्रह भी करता है।
"साहित्य सृजन अभिव्यंजना से अभिव्यक्ति तक का सफर है, जब अभिव्यक्ति का कद अभिव्यंजना के कद की बराबरी कर ले तब जाकर कोई कृति एक कलाकृति का रूप धारण करती है।" सम्पादकीय में इन शब्दों में दिए गए मंत्र से अधिक साहित्य साधना की और क्या परिभाषा हो सकती है, जिसे एक साधक को अंगीकार कर लेना चाहिए।
लघुकथा के ढांचे और आकार-प्रकार पर आए दिन होने वाले विवादों पर भी सम्पादकीय दृष्टि अपने चिर-परिचित अंदाज में अपना दृष्टिकोण रखने का प्रयास करती है।
बरहाल पत्रिका के विषय में और अधिक विचार तो संपूर्ण पत्रिका पढ़ने के बाद ही लिखे जा सकते हैं, फिलहाल तो इस अंक में शामिल मेरी दो लघुकथाओं श्राद्ध और जवाब को रचना प्रक्रिया सहित मान देने के लिए 'कलश टीम' को हार्दिक धन्यवाद। साथ ही आद: योगराज प्रभाकर सहित, कलश टीम के सभी वरिष्ठ परामर्शदाताओं और अन्य सभी सहयोगियों के साथ-साथ इसमें शामिल सभी गुणीजन रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई सहित इस अंक के लिए सादर शुभकामनाएँ।
//वीर//
पत्रिका प्राप्ति के लिये सम्पर्क सूत्र।
MR. YOGRAJ PRABHAKAR :
+91 98725 68228
MR. RAVI PRABHAKAR
+91 98769 30229
'थैंक्स टू इंडिया पोस्ट'. . .
लघुकथा कलश का यह चतुर्थ अंक (जुलाई - दिसंबर 2019) 'रचना-प्रक्रिया, महाविशेषांक' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अपने पूर्व अंकों की तरह आकर्षक साज-सज्जा और बढ़िया क्वालिटी के पेपर पर छपा होने के साथ, अपने प्राकृतिक हरे रंग के खूबसूरत कवर पृष्ठ में पत्रिका सहज ही मन को आकर्षित कर रही है।
अपनी पहली नजर में पत्रिका को देखने में यही अनुभव हो रहा है कि 'रचना-प्रक्रिया' पर आधारित यह अंक अपने अंदर बहुत से गुणीजन लेखकों के लघुकथा से जुड़े अनुभवों को समेटे हुए है। पत्रिका में 360+2 कवर पृष्ठों में 126 नवोदित एवं स्थापित प्रतिष्ठित लघुकथाकारों की करीब 250 लघुकथाओं के साथ उनकी रचना प्रक्रिया एवं चार विशिष्ट लघुकथाकारों की लघुकथाओं सहित उनकी रचना प्रक्रिया को स्थान दिया गया है।
इसके अतिरिक्त छः पुस्तक समीक्षाएं और लघुकथा कलश के पूर्व अंकों से जुड़ी बेहतरीन समीक्षाएं भी इस अंक में शामिल की गई हैं। नेपाली लघुकथाओं की विशेष प्रस्तुति में आठ लघुकथाकारों की लघुकथाएं रचना प्रक्रिया सहित शामिल की गई हैं। अंत में कवर पृष्ठ पर अशोक भाटिया जी के बाल लघुकथा 'बालकांड' की योगराज प्रभाकर जी द्वारा काव्यात्मक समीक्षा भी इस अंक का एक आकर्षण बन गई है। निःसन्देह इतनी विस्तृत सामग्री के पीछे 'कलश परिवार' सहित सभी गुणीजन रचनाकारों की मेहनत का भी बहुत बड़ा योगदान है।
किसी भी पत्र-पत्रिका का संपादकीय उस कृति में सम्मलित किए गए अंशों की बानगी के संदर्भ में उसका सत्य प्रतिबिम्ब ही होता है। पत्रिका का सम्पादकीय "दिल दिआँ गल्लाँ" सहज ही रचना प्रक्रिया अंक की प्रेरणा के साथ उसके अस्तित्व में आने की कथा सामने रखता है। सम्पादकीय न केवल लघुकथाकारों को उनके लेखन के प्रति आश्वस्त करने की कोशिश करता है वरन उन्हें उनकी कमियों के प्रति ध्यानाकर्षित करने के साथ लघुकथा विधा पर और अधिक मंथन करने का आग्रह भी करता है।
"साहित्य सृजन अभिव्यंजना से अभिव्यक्ति तक का सफर है, जब अभिव्यक्ति का कद अभिव्यंजना के कद की बराबरी कर ले तब जाकर कोई कृति एक कलाकृति का रूप धारण करती है।" सम्पादकीय में इन शब्दों में दिए गए मंत्र से अधिक साहित्य साधना की और क्या परिभाषा हो सकती है, जिसे एक साधक को अंगीकार कर लेना चाहिए।
लघुकथा के ढांचे और आकार-प्रकार पर आए दिन होने वाले विवादों पर भी सम्पादकीय दृष्टि अपने चिर-परिचित अंदाज में अपना दृष्टिकोण रखने का प्रयास करती है।
बरहाल पत्रिका के विषय में और अधिक विचार तो संपूर्ण पत्रिका पढ़ने के बाद ही लिखे जा सकते हैं, फिलहाल तो इस अंक में शामिल मेरी दो लघुकथाओं श्राद्ध और जवाब को रचना प्रक्रिया सहित मान देने के लिए 'कलश टीम' को हार्दिक धन्यवाद। साथ ही आद: योगराज प्रभाकर सहित, कलश टीम के सभी वरिष्ठ परामर्शदाताओं और अन्य सभी सहयोगियों के साथ-साथ इसमें शामिल सभी गुणीजन रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई सहित इस अंक के लिए सादर शुभकामनाएँ।
//वीर//
पत्रिका प्राप्ति के लिये सम्पर्क सूत्र।
MR. YOGRAJ PRABHAKAR :
+91 98725 68228
MR. RAVI PRABHAKAR
+91 98769 30229
पत्रिका 'लघुकथा कलश' पर की टिप्पणी महज एक प्रारम्भिक एक नजर का दृष्टिकोण ही कहूंगा मैं, वरना इतनी विस्तृत पत्रिका की चर्चा इतने संक्षेप में तो सम्भव ही नहीं हैं.... एक बेहतरीन अंक रचना प्रक्रिया के सन्दर्भ में.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-09-2019) को "बदल गया है काल" (चर्चा अंक- 3468) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'