गुरुवार, 12 सितंबर 2019

मंटो की कुछ लघुकथाएँ


दावत-ए-अमल

आग लगी तो सारा मोहल्ला जल गया...सिर्फ़ एक दुकान बच गई जिसकी पेशानी पर ये बोर्ड आवेज़ां था... 
यहां इमारत साज़ी का जुमला सामान मिलता है।
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हलाल और झटका

मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी, हौले-हौले फेरी और उसको हलाल कर दिया.” 
यह तुमने क्या किया?” 
क्यों?” 
इसको हलाल क्यों किया?” 
"मज़ा आता है इस तरह." 
मज़ा आता है के बच्चे.....तुझे झटका करना चाहिए था....इस तरह. ” 
और हलाल करनेवाले की गर्दन का झटका हो गया.
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घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और बयालीस रुपये देकर उसे ख़रीद लिया. रात गुज़ारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा : तुम्हारा नाम क्या है? ” 
लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया : हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो....!” 
लड़की ने जवाब दिया : उसने झूठ बोला था!” 
यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा : उस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोखा किया है.....हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी......चलो, वापस कर आएँ.....!
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खबरदार

बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीटकर बाहर लाए. कपड़े झाड़कर वह उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा : तुम मुझे मार डालो, लेकिन ख़बरदार, जो मेरे रुपए-पैसे को हाथ लगाया.........!
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रियायत

"मेरी आँखों के सामने मेरी बेटी को न मारो…" 
"चलो, इसी की मान लोकपड़े उतारकर हाँक दो एक तरफ…"
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उलाहना

देखो यार। तुम ने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।
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किस्मत

कुछ नहीं दोस्त......इतनी मेहनत करने पर सिर्फ़ एक बक्स हाथ लगा था पर इस में भी साला सुअर का गोश्त निकला।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-09-2019) को    "बनकर रहो विजेता"  (चर्चा अंक- 3457)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  --शिक्षक दिवस कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी सर।

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  2. उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार आदरणीया ज्योति देहलीवाल जी।

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  3. ये कहानियां पसंद नहीं आतीं ।
    नश्तर की तरह घुप जाती हैं ।

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  4. बहुत-बहुत आभार आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी।

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