गुरुवार, 15 अगस्त 2019

लघुकथा: ना-लायक

देश के स्वतंत्रता दिवस पर, उसे स्कूल के बाहर से ही झंडा लहराता हुआ दिखाई दे रहा था, परन्तु उसका हृदय झंडे से भी तेज़ लहरा रहा था, मानो मिट्टी की सुगंध लिये हवा झंडे को छूते हुए उसकी कार के अंदर तक पहुँच रही थी। उसकी पत्नी के कल ही कहे के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे जब वह चिल्लाते हुए घर में घुसी थी,
"सुनते हो, गुप्ता जी की बेटी दौड़ में अव्वल आई है और एक हमारी सीतू है, पास हो जाती है यही उसका एहसान है। आठवीं में है और बैठी ऐसे रहती है जैसे 50 साल की बुढ़िया हो। अब ऐसी मंदबुद्धि और नालायक बेटी से उम्मीद रखूँ भी तो क्या?"
वह सिर पकड़ कर बैठ गया था। चाहता तो वह भी था कि उसकी बेटी हर क्षेत्र में आगे बढे और अपनी बेटी के विकास के लिए जब वह घर पर होती तो उसने अच्छा संगीत और देश-प्रेम के गीत बजाना भी प्रारम्भ किया था, लेकिन उसकी पत्नी ही यह कहकर रोक देती कि, "पढाई तो करती ही नहीं, फिर इसमें क्या करेगी, यह सबसे अलग ही है?"
बारिश के कारण स्कूल के बाहर कीचड़ जमा हो गयी थी, जिसमें देश के छोटे-छोटे झंडे गिरे पड़े थे । अगले ही क्षण उसकी आँखों से आंसू निकल आये, जब उसने देखा कि बाकी सारे बच्चे तो पानी से बचते हुए निकल रहे थे, लेकिन उसकी नालायक बेटी अकेली उस कीचड़ में गंदे होने की परवाह किये बिना अपने हाथ डाल कर झंडे बाहर निकाल रही थी।
और उसके मुंह से निकल गया, "सच में सबसे अलग..."

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-08-2019) को "ऊधौ कहियो जाय" (चर्चा अंक- 3429) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी सर।

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  2. अद्भुत जज्बा!नन्ही प्रतिबद्धता को सलाम।

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  3. सच में ही जो पढ़ाई लिखाई में कमज़ोर होते हैं वो असल ज़िदंगी में अलहदा होते हैं

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