कैनेडा हिंदी प्रचारिणी सभा की अंतर्राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका हिन्दी चेतना के जुलाई-सितम्बर 2019 अंक (लघुकथा विशेषांक) में मेरी लघुकथाओं (दायित्व-बोध और खजाना) को स्थान मिला है। दायित्व-बोध आपने पिछली पोस्ट (http://laghukathaduniya.blogspot.com/2019/07/blog-post_6.html) में पढ़ ली है। विश्वास है खजाना भी आपको निराश नहीं करेगी। खजाना मेरी उन लघुकथाओं में से एक है, जिन रचनाओं के लिए पाठकों ने मुझे फोन, ईमेल और पत्र व्यवहार कर अपने प्रेम और स्नेह से मुझे समृद्ध किया। कुछ पाठकों ने इसके कथ्य का अनुसरण करते हुए कुछ रुपये अपने स्वयं के अंतिम संस्कार हेतु अलग से रख भी दिये। आप भी पढ़िये और बताइये कि यह रचना कितनी सफल है।
खजाना / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
पिता के अंतिम संस्कार के बाद शाम को दोनों बेटे
घर के बाहर आंगन में अपने रिश्तेदारों और पड़ौसियों के साथ बैठे हुए थे। इतने में
बड़े बेटे की पत्नी आई और उसने अपने पति के कान में कुछ कहा। बड़े बेटे ने अपने छोटे
भाई की तरफ अर्थपूर्ण नजरों से देखकर अंदर आने का इशारा किया और खड़े होकर वहां
बैठे लोगों से हाथ जोड़कर कहा, “अभी पांच मिनट में आते हैं”।
फिर दोनों भाई अंदर चले गये। अंदर जाते ही बड़े
भाई ने फुसफुसा कर छोटे से कहा, "बक्से में देख लेते हैं,
नहीं तो कोई हक़ जताने आ जाएगा।" छोटे ने
भी सहमती में गर्दन हिलाई ।
पिता के कमरे में जाकर बड़े भाई की पत्नी ने अपने
पति से कहा, "बक्सा निकाल लीजिये, मैं
दरवाज़ा बंद कर देती हूँ।" और वह दरवाज़े की तरफ बढ़ गयी।
दोनों भाई पलंग के नीचे झुके और वहां रखे हुए
बक्से को खींच कर बाहर निकाला। बड़े भाई की पत्नी ने अपने पल्लू में खौंसी हुई चाबी
निकाली और अपने पति को दी।
बक्सा खुलते ही तीनों ने बड़ी उत्सुकता से बक्से
में झाँका, अंदर चालीस-पचास किताबें रखी थीं। तीनों को सहसा
विश्वास नहीं हुआ। बड़े भाई की पत्नी निराशा
भरे स्वर में बोली, "मुझे तो पूरा विश्वास था कि बाबूजी ने कभी अपनी दवाई तक के रुपये नहीं
लिये, तो उनकी बचत के रुपये और गहने इसी बक्से में रखे होंगे,
लेकिन इसमें तो....."
इतने में छोटे भाई ने देखा कि बक्से के कोने में किताबों के पास में एक
कपड़े की थैली रखी हुई है, उसने उस थैली को बाहर निकाला। उसमें कुछ रुपये थे और
साथ में एक कागज़। रुपये देखते ही उन तीनों के चेहरे पर जिज्ञासा आ गयी। छोटे भाई
ने रुपये गिने और उसके बाद कागज़ को पढ़ा, उसमें लिखा था,
"मेरे अंतिम संस्कार का खर्च"-0-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी सर।
हटाएंअंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रिका चेतना का अंक देखा पत्रिका में प्रकाशित रचना स्तरीय एवं नवीनता लिए हुए है। सात समंदर पार हिंदी पर इतनी अच्छी पत्रिका निकालना बहुत श्रेयस्कर है । आपकी साधना को साधुवाद। जय हिंद।
जवाब देंहटाएंहिन्दी चेतना के सम्पादक व पूरी टीम को सहृदय धन्यवाद। जय हिन्द 🙏
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