शनिवार, 15 जून 2019

लघुकथा : डर के दायरे | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

 "आज की कक्षा का विषय है - डर" यह कहते हुए मनोविज्ञान के शिक्षक ने अपने विद्यार्थियों को एक चित्र दिखाया, जिसमें एक छोटी मछली कांच के मर्तबान में तैर रही थी और एक बड़ी मछली मर्तबान के बाहर उस छोटी मछली को क्रोध भरी आँखों से देख रही थी।
अब शिक्षक ने कहा, "बड़ी मछली छोटी मछली को डरा रही है कि वह मर्तबान तोड़ देगी और छोटी मछली मर जायेगी।"
"सर डरना तो चाहिये, अगर जार टूट गया तो पानी बिखर जायेगा..." एक विद्यार्थी ने कहा।
शिक्षक मुस्कुराते हुए बोला, "लेकिन यह भी तो सोचो कि बड़ी मछली खुद कैसे ज़िन्दा है?"
कक्षा में चुप्पी छा गयी।
उसने आगे कहा, "मर्तबान के कांच के कारण छोटी मछली देख नहीं रही पा रही है कि बाहर मर्तबान से कहीं ज़्यादा पानी है, क्योंकि सामने भी मछली ही तो खड़ी है।"
"तो सर उसे क्या करना चाहिये?"
"उसे खुद मर्तबान से बाहर आना चाहिये... मर्तबान टूटने का ‘डर’ ही उसके ज़्यादा और खुले पानी में जाने में बाधक है।" उसने जोर देकर कहा।
कक्षा में तालियाँ बज उठीं। अब शिक्षक ने सारे विद्यार्थियों से कहा, "यह बताओ कि ट्यूशन पर कौन-कौन जाता है?"
अधिकतर विद्यार्थियों ने हाथ खड़े कर दिए। उसने उनसे पूछा, “क्लास में समझ में नहीं आता है क्या?”
“लेकिन सर ट्यूशन से मार्क्स और अच्छे..." एक विद्यार्थी ने लड़खड़ाते स्वर में कहा।
सुनते ही वह शिक्षक कुछ क्षण चुप हो गया, फिर कहा, "अगर मार्क्स के लिए ट्यूशन जाते हो तो..."
"तो सर?"
"तो... अपने मर्तबान से निकल नहीं पाओगे।" कहकर वह शिक्षक बाहर चला गया और विद्यार्थियों के चेहरों पर छटपटाहट दिखाई देने लगी।

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16 -06-2019) को "पिता विधातारूप" (चर्चा अंक- 3368) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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