मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

लघुकथा समाचार: लघुकथाओं में सम-सामयिक मुद्दों को शामिल करें: अनुपमा, इससे समाज को नर्इ दिशा और सकारात्मक दृष्टि मिलती है

Bhaskar News Network: Apr 29, 2019


शुभ संकल्प समूह द्वारा रविवार 28  अप्रेल को लघुकथा संगोष्ठी आयोजित की गई। इसमें 22 साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। यहां लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। इसमें 3 मिनट के अंदर वक्ताओं को अपनी रचना प्रस्तुत करनी थी। इसमें पहला पुरस्कार इंदौर की डॉ. स्वाति सिंह, दूसरा शाहिस्ता खान और तीसरा भोपाल की नम्रता शरण सोना को दिया गया। साथ ही आरती शर्मा ने वर्तमान राजनीति को लेकर कथा और साहित्यकारों ने कहानियों का पाठ किया।

मुख्य अतिथि कांता रॉय ने कहा कि आजकल लघुकथाओं को लेकर काफी सरगर्मी चल रही है और लघुकथा के शोध में इस बात का महत्व रखा जाता है कि कथानक क्या है। इसके लिए कथाकारों को आमंत्रित किया गया। अनुपमा श्रीवास्तव ने कहा कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के दाैर में हम नई-नई विधाओं का जहां प्रयोग कर रहे हैं, वहां प्रगति का एक रास्ता खुलता है। लघुकथा छोटे कलेवर में बड़ी बात है। लघुकथाएं ऐसे सम-सामयिक विषय, मुद्दों और कथ्य को शामिल करके लिखना चाहिए, जिससे समाज को नई दिशा, दशा और सकारात्मक दृष्टि मिले। महिलाओं को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. स्वाति सिंह और नम्रता शरण सोना ने किया। वहीं अतिथि के रूप में डॉ. प्रीति खरे सहित अन्य साहित्यकार मौजूद रहीं।

Source:
https://www.bhaskar.com/mp/bhopal/news/mp-news-include-topical-issues-in-short-stories-anupama-it-gets-a-new-direction-and-positive-attitude-of-society-062116-4447028.html

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

लघुकथा समाचार: लघुकथा एक विधा है, शैली नहीं : राजेंद्र शर्मा

Bhaskar News Network Apr 28, 2019

सिटी रिपोर्टर | मानस भवन में शनिवार को लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर साहित्यकार राजेंद्र शर्मा ने कहा कि लघुकथा एक विधा है, शैली नहीं। इसकी भेदन क्षमता ऐसी है जो दिल के आर-पार हो जाती है। इस दौरान अशोक जैन द्वारा संपादित दृष्टि साहित्यिक लघुकथा पत्रिका पर प्रकाश डालते हुए कांता रॉय ने कहा कि यह किताब के रूप में एक पत्रिका है, जो समकालीन लघुकथाकारों का स्वाभावात्मक आलेख प्रस्तुत करती है। मालती बसंत की रचनाएं 45 वर्ष पूर्व इसमें प्रकाशित हो चुकी हैं। तब यह समग्र अंक के रूप में जानी जाती थीं।

Source:
https://www.bhaskar.com/mp/bhopal/news/mp-news-short-story-is-a-genre-not-style-rajendra-sharma-062058-4440222.html

रविवार, 28 अप्रैल 2019

लघुकथा समाचार: आत्म मु्ग्ध होना छोड़कर आलोचकों का आश्रय लें साहित्यकार...

Patrika Hindi News: 27 April 2019
ताज नगरी में हुआ विश्व मैत्री मंच व साहित्य साधिका समिति का सातवां राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन


आगरा। विश्व मैत्री मंच, भारत एवं साहित्य साधिका समिति, आगरा के संयुक्त बैनर तले शनिवार को मदिया कटरा स्थित होटल वैभव पैलेस में 7 वां राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन आयोजित किया गया। देश भर से 75 महिला-पुरुष कवि- साहित्यकारों ने सहभागिता की। इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी ने कहा कि साहित्यिक विधाएं बदलते दौर में महत्तम से लघुत्तम हो रही हैं। अब साहित्यकार बिंदु में ही सिंधु के दर्शन करना चाहता है। बिना साहित्यिक प्रतिभा के लोग ठेल ठाल के आगे बढ़ रहे हैं। गंभीर साहित्य साधकों को स्थान नहीं मिल पा रहा। ऐसे में जरूरी है कि साहित्यकार आत्म मुग्ध होना छोड़कर आलोचकों का आश्रय लें, ताकि सृजन का श्रेष्ठ तत्व सामने आ सके।

इस तरह बनते बेहतर साहित्यकार

अध्यक्षीय उद्बोधन में रविंद्र प्रभात ने कहा कि बोलना, सुनना, स्पर्श करना, महसूस करना, रोना, हंसना और प्यार करना जीवन के सात आश्चर्य हैं, इन सातों को आत्मसात कर के ही बेहतर साहित्यकार बनता है। स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार ने साहित्य के उत्सवों के यूं ही गतिमान बने रहने का आशीर्वाद दिया। अनुपमा यादव ने एकल नाट्य मीराबाई का मंचन कर दिल जीता। विश्व मैत्री मंच की संस्थापक संतोष श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन दिया। साहित्य साधिका समिति की संस्थापक डॉ सुषमा सिंह ने शारदे वंदना की व दोनों आयोजक संस्थाओं का परिचय दिया। साहित्य साधिका समिति की अध्यक्ष माला गुप्ता ने आभार व्यक्त किया। कवि रमेश पंडित ने उद्घाटन सत्र का संचालन किया। विशिष्ट अतिथि डॉ राजेश श्रीवास्तव ने रामायण के विभिन्न पहलुओं का शोध परक विवेचन किया। इन्हें मिला सम्मानइलाहाबाद की सरस दरबारी को राधा अवधेश स्मृति पांडुलिपि सम्मान, लखनऊ की डॉ मिथिलेश दीक्षित को हेमंत स्मृति विशिष्ट हिंदी सेवी सम्मान व आगरा की पूजा आहूजा कालरा को द्वारिका प्रसाद सक्सेना स्मृति साहित्य गरिमा सम्मान प्रदान किया गया। मंचस्थ महानुभावों को मनीषी सम्मान व शेष सभी साहित्यकारों को सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया।

इनका हुआ लोकार्पण

समारोह में कई कृतियों का लोकार्पण किया गया। इनमें अलका अग्रवाल की बोलते चित्र, क्षमा सिसोदिया की कथा सीपिका, निवेदिता श्रीवास्तव की कथांजली, महिमा श्रीवास्तव वर्मा की आदम बोनसाई, डॉ मिथिलेश दीक्षित की हिंदी लघु कथा पुस्तक और डॉ प्रभा गुप्ता की सन्नाटे को चीरती आवाज शामिल है।

विमर्श में छाई लघु कथा


सम्मेलन के द्वितीय सत्र में लघु कथा की संवेदना और शिल्प विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता करते हुए डॉ मिथिलेश दीक्षित ने कहा कि लघुकथा के सृजन में अब कोरी कल्पना का अंधेरा छंट चुका है। लघु कथाकार समय गत परिवेश को अपने भीतर जीता है और महसूस करता है। सरस दरबारी ने कहा कि लघु कथा में उसकी भाषा, शब्द संयोजन, प्रतीक और बिंब का विशेष महत्व होता है। सविता चड्ढा ने कहा कि लघुकथा प्राचीन विधा है जो विश्व का कल्याण करने में सक्षम रही है। विषय प्रवर्तन करते हुए निवेदिता श्रीवास्तव लखनऊ ने कहा कि लघुकथा क्षण में छिपे जीवन के विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति है. यह जीवन की विसंगतियों से उपजे तीखे तेवर वाली सुई की नोक जैसी विधा है। जया केतकी, नितिन सेठी व यशोधरा यादव यशो ने भी विचार रखे. अलका अग्रवाल ने इस सत्र का संचालन किया। तृतीय सत्र में महिमा वर्मा की अध्यक्षता में रचनाकारों ने लघु कथाओं व ग़ज़ल कार अशोक रावत की अध्यक्षता में कविताओं की प्रस्तुति कर सबको भाव विभोर कर दिया. तृतीय सत्र का संचालन रमा वर्मा व नूतन अग्रवाल ज्योति ने किया।

प्रदर्शनी ने मन मोहा

सम्मेलन में डॉ. रेखा कक्कड़ व पूनम भार्गव जाकिर द्वारा बनाए गए आकर्षक चित्रों की प्रदर्शनी ने सबका मन मोह लिया। प्रदर्शनी का उद्घाटन रानी सरोज गौरिहार ने किया। सम्मेलन में झांसी से निहाल चंद शिवहरे, साकेत सुमन चतुर्वेदी, दिल्ली से उर्मिला माधव, ग्वालियर से सीमा जैन, नासिक से डॉक्टर आराधना भास्कर, गाजियाबाद से सीमा सिंह, अलीगढ़ से अनीता पोरवाल, लखनऊ से सत्या सिंह, दिल्ली से डॉ श्याम सिंह शशि, आगरा आकाशवाणी की निदेशक डॉक्टर राज्यश्री बनर्जी, माया अशोक, आभा चतुर्वेदी, सर्वज्ञ शेखर गुप्ता, विद्या तिवारी, प्रेमलता मिश्रा, रमा रश्मि, अंकिता कुलश्रेष्ठ, रश्मि शर्मा, रीता शर्मा, पूनम तिवारी, कमला सैनी और कुमार ललित भी शामिल रहे।


Source:
https://www.patrika.com/agra-news/7th-national-hindi-sahitya-sammelan-in-agra-4488923/

पुस्तक समीक्षा | पिघलती बर्फ (सविता इंद्र गुप्ता) | कमलेश भारतीय



पुस्तक : पिघलती बर्फ
लेखिका : सविता इंद्र गुप्ता
प्रकाशक : अक्षर प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ संख्या : 128
मूल्य : रु. 300.

सविता इंद्र गुप्ता का लघुकथा संग्रह ‘पिघलती बर्फ’ में कुल 88 रचनाओं में ज्यादातर लघुकथाएं नारी जीवन की समस्याओं को उजागर करती हैं ।
पुस्तक की कहानी ‘भेडि़या’ में सुरसती को गांव में स्कूल चलाने से न रोक पाने पर प्रधान उसका यौन शोषण करना चाहते हैं तो बच्चे अपने अविभावकों को बुला लाते हैं और सभी प्रधान जैसे भेडि़ये का शिकार कर डालते हैं। ‘वापसी’ में पति-पत्नी प्यार से चलकर कोर्ट के गलियारों तक पहुंच गये लेकिन कोर्ट के बाहर बातचीत में ही वापसी हो जाती है। उसके बिना लघुकथा अच्छी है कि पति बीस साल बाद पत्नी को अपनी सुंदर सेक्रेटरी के लिए तलाक देना चाहता है और पत्नी कहती है कि मेरे बीस वर्ष लौटा दो। इस पर समरसेट माॅम की लघुकथा सहज ही ध्यान में आ जाती है।
शीर्षक लघुकथा ‘पिघलती बर्फ’ में कठोरता पिघल जाती है जब सर्दी में कम्बल देने में देरी होने पर भिखारी बालक मर जाता है। तब पति-पत्नी फैसला करते हैं कि कुछ कम्बल खरीद कर गरीब बच्चों को बांट कर आएंगे। कामवालियां क्या दीपावली की सफाई में किसी कूड़ेदान की तरह होती हैं? यह सवाल उठाती है ‘कूड़ेदान’ लघुकथा।
इस तरह सविता इंद्र की लघुकथाएं इस विधा की कसौटी पर सही उतरती हैं। उनका पहला लघुकथा संग्रह ही काफी परिपक्व रचनाएं लिए हुए है। दो लघुकथाओं का क्रम गड़बड़ है। एक शीर्षक वाली लघुकथा क्रम में है लेकिन संग्रह में नहीं। एक है तो उसका उल्लेख नहीं। इन छोटी बातों की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए था।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

ईबुक | जिस्‍म के छिलके : लघुकथा संग्रह | लेखक: आचार्य निशांतकेतु | गूगल बुक्स पर कुछ पृष्ठ

इस ग्रंथ का पाँच प्रतिशत उस अभिधा को समर्पित है जिसने लक्षणा और व्यंजना तक पहुँचने में पंचानवे प्रतिशत योगदान दिया। - निशांतकेतु

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

लघुकथा: पत्ता परिवर्तन | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

पत्ता परिवर्तन 

वह ताश की एक गड्डी हाथ में लिए घर के अंदर चुपचाप बैठा था कि बाहर दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने दरवाज़ा खोला तो देखा कि बाहर कुर्ता-पजामाधारी ताश का एक जाना-पहचाना पत्ता फड़फड़ा रहा था। उस ताश के पत्ते के पीछे बहुत सारे इंसान तख्ते लिए खड़े थे। उन तख्तों पर लिखा था, "यही है आपका इक्का, जो आपको हर खेल जितवाएगा।"

वह जानता था कि यह पत्ता इक्का नहीं है। वह खीज गया, फिर भी पत्ते से उसने संयत स्वर में पूछा, "कल तक तो तुम अपनी गड्डी छोड़ गद्दी पर बैठे थे, आज इस खुली सड़क में फड़फड़ा क्यों रहे हो?"

पत्ते ने लहराते हुए उत्तर दिया, "मेरे प्रिय भाई! चुनावी हवा बड़ी तेज़ चल रही है...। आप तो अपने हो, अपना खेल खेलते समय ताश की गड्डी में से आप मुझे ही सबके सामने फेंकना।"

वह खुश हो उठा, आखिर लगभग पाँच सालों बाद वह दर्शक से फिर खिलाड़ी बना था। उसने उस पत्ते के रंग और समूह को गौर से निहारा और अपनी ताश की गड्डी में से उसी रंग और समूह के राजा को निकाल कर पूछा, "तुम्हारा राजा यही है क्या?"

पत्ते ने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया, "हाँ प्रिय भाई।"

अब उसने आशंकित स्वर में प्रश्न किया, "लेकिन कुछ दिनों बाद यह राजा भी कहीं पिछले राजाओं की तरह बदल कर जोकर तो नहीं बन जाएगा?"

यह सुनते ही पत्ते के पीछे खड़े इंसान उस राजा की जय-जय कार के नारे लगाने लगे और वह पत्ता उड़ कर दूसरे दरवाज़े पर चला गया।

वह निराश हो गया। दरवाज़ा बंद कर उसने अपने हाथ में सहेजी हुई ताश की पूरी गड्डी को अपने घर के अंदर उछाल दिया।

और आश्चर्य! आसमान में उड़ रहे वे सारे पत्ते जोकर वाले पत्ते में बदलने लगे।


- ० -
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

लघुकथा संकलन: लोकतंत्र का चुनाव | बीजेन्द्र जैमिनी



श्री बीजेन्द्र जैमिनी द्वारा लोकतन्त्र का चुनाव शीर्षक से उनके ब्लॉग पर एक लघुकथा संकलन प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक कुल 61 रचनाएँ चयनित कर प्रकाशित की जा चुकी हैं।





सम्पादकीय

विश्व में लोकतंत्र का अपना महत्व है । जो समय समय पर परिवर्तनशील होता है । भारत भी लोकतंत्र पर ही कामयाबी हासिल हुई है । चुनाव के लिए अनेक तरह की कार्यप्रणाली अपनाई जाती है ताकि जनता अपने मत का प्रयोग हमारे पक्ष में करती रही है । कार्यप्रणाली के विभिन्न रूपों को देखने के उद्देश्य से इस लघुकथा संकलन का सम्पादन किया जा रहा है ।

ब्लॉग का लिंक:

http://bijendergemini.blogspot.com/2019/04/blog-post_16.html


लघुकथा वीडियो : तमाचा | प्रस्तुतिः मनोज श्रीवास्तव

हमारे घरों में वर्तमान सामाजिक ताने बाने में हम बड़े बुजुगों का आदर सम्मान बिसराते जा रहे है , लेकिन हमारे बच्चे बड़े ही संवेदनशील है, वे हमें हमारी गलती का एहसास करा ही देते है ! ऐसी ही भावना को रेखांकित करती लघु कथा।


लघुकथा वीडियो: रशियन लेखक निकोले गोगोल की 210वीं जयंती पर साहित्यिक सभा

22 अप्रैल 2019

श्री अशोक वर्मा अपनी लघुकथा पढ़ते हुए



श्री लक्ष्मी शंकर वाजपाई अपनी लघुकथा पढ़ते हुए


श्री अतुल प्रभाकर अपने पिता द्वारा सृजित लघुकथा पढ़ते हुए



मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

लघुकथा सुधार | हरीशंकर परसाई


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एक जनहित की संस्‍था में कुछ सदस्‍यों ने आवाज उठाई, 'संस्‍था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्‍था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग कर देना चाहिए।

संस्‍था के अध्‍यक्ष ने पूछा कि किन-किन सदस्‍यों को असंतोष है।

दस सदस्‍यों ने असंतोष व्‍यक्‍त किया।

अध्‍यक्ष ने कहा, 'हमें सब लोगों का सहयोग चाहिए। सबको संतोष हो, इसी तरह हम काम करना चाहते हैं। आप दस सज्‍जन क्‍या सुधार चाहते हैं, कृपा कर बतलावें।'

और उन दस सदस्‍यों ने आपस में विचार कर जो सुधार सुझाए, वे ये थे -

'संस्‍था में चार सभापति, तीन उप-सभापति और तीन मंत्री और होने चाहिए...'

दस सदस्‍यों को संस्‍था के काम से बड़ा असंतोष था।

- हरिशंकर परसाई

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

शकुंतला कपूर स्मृति अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 2019 में द्वितीय स्थान विजेता लघुकथा | लघुकथाकारा: अनघा जोगलेकर


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जिंदगी का सफर

"ये क्या हो गया मेरी फूल-सी बच्ची को। मैंने तो अभी इसकी विदाई के सपने सजाना शुरू ही किया था। क्या पता था कि इसे इस तरह हमेशा के लिए विदा...." माँ फूट-फूटकर रो रही थी। पिताजी उन्हें ढांढस बंधा रहे थे।
मुझे ब्लड केंसर हो गया था लेकिन मैंने कीमोथेरेपी करवाने से इंकार कर दिया था। मैं तिल-तिलकर मरते हुए जीना नही चाहती थी। ऐसी स्थिति में मेरे पास मात्र छः महीने का समय बचा था जिसे मैं जी भर कर जी लेना चाहती थी।

माँ जब मेरे कमरे में चाय का कप लेकर पहुँचीं तो उनकी आँखों की लाली देख मैं 'आनंद' फ़िल्म की स्टाइल में बोली, "माँss, जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नही। मौत तो एक पल है बाबुमौशाय....." और मैं जोर का ठहाका लगाकर हँस पड़ी।।

मेरी नौटंखी देख माँ भी मुस्कुरा दीं लेकिन वे अपनी आँख में आई पानी की लकीर न छुपा सकीं। उन्होंने दो-तीन बार पलकें झपकायीं फिर बोलीं, "आज मौसम बहुत अच्छा है। चल, झील के किनारे चलकर बैठते हैं।" इतना कह उन्होंने मुझे शॉल ओढाई और हम निकल पड़े।

झील किनारे लगे फूलों को देख माँ फिर उदास हो उठीं। बोलीं, "इन फूलों की जिंदगी भी कितनी छोटी होती है न!"

"हाँ माँ, लेकिन इस थोड़े से समय मे भी ये दुनिया को कितना कुछ दे जाते हैं। अपनी खुशबू, अपना पराग, अपने बीज....," इतना कह मैं यकायक माँ की ओर पलटी। मेरी आँखों में चमक थी, "माँ, मेरे जाने के बाद मेरा शरीर मेडिकल कॉलेज को दान कर देना। हो सकता है मेरी देह पर कुछ नए प्रयोग कर वे इस जानलेवा कैंसर का इलाज ढूंढ सकें।"

मेरी बात सुन एक पल को तो माँ कांप गई फिर मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, "इसका इलाज मिले-न-मिले मेरी बच्ची....लेकिन जब वे तेरे दिल को छुयेंगे न.....तो जीवन जीने की कला जरूर सीख जायेंगे।" इतना कह माँ ने अपना सर मेरे कांधे पर टिका दिया। मेरी बांह माँ के आँसुओं से भीगती चली गई।
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©अनघा जोगलेकर

लघुकथा समाचार: लघुकथा संग्रह 'शब्द इतिहास लिखेंगे' का लोकार्पण

नवभारत टाइम्स | Apr 22, 2019


मुंबई: साहित्यिक संस्था 'खारघर चौपाल' और 'साहित्य सफर' के तत्वावधान में आरके पब्लिकेशंस से प्रकाशित व सेवा सदन प्रसाद एवं डिंपल गौड़ 'अनन्या' के साझा लघुकथा संग्रह 'शब्द इतिहास लिखेंगे' का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम डॉ. सतीश शुक्ला की अध्यक्षता तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. पुरुषोत्तम दुबे (इंदौर) व लेखक रमेश यादव के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुआ। संचालन व्यंग्यकार डॉ. अनंत श्रीमाली ने किया। इस मौके पर मनोहर अभय, अरविंद राही, राम कुमार, गंगा शरण, नगरसेविका हर्षदा उपाध्याय, राजेश श्रीवास्तव, अलका पांडे, अमर उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।

Source:
https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/other-news/todays-city-brief/articleshow/68980909.cms

लघुकथा समाचार: अखिल भारतीय माँ शकुन्तला कपूर स्मृति सम्मान समारोह 2018-19

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कमल कपूर जी की फेसबुक वॉल से

21 अप्रेल रविवार को फ़रीदाबाद के इन्विटेशन सभागार में नारी अभिव्यक्ति मंच पहचान एवं नई दिशाएँ हेल्पलाइन के तत्वावधान में अखिल भारतीय माँ शकुन्तला कपूर स्मृति सम्मान समारोह संपन्न हुआ। हमारा परम सौभाग्य कि साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित यशसिद्धा मेरी गुरु दीदी माँ सुश्री चित्रा मुद्गल जी समारोह की मुख्य अतिथि रहीं, लघुकथा पुरोधा डॉ सतीशराज पुष्करणा जी विशिष्ट अतिथि थे और अध्यक्षता पद परम विदुषी डॉ सुदर्शन रत्नाकर जी ने संभाला। सुमधुर मंच संचालन संस्था की महासचिव डॉ इंदुशेखर गुप्ता ने किया तथा सरस्वती वंदना कोकिल कंठी बेबी संस्कृति गौड़ ने की। संयोजक-आयोजक कमल कपूर एवं डॉ अंजु दुआ जैमिनी थे। समारोह में लगभग ४० लधुकधाकारों ने लघुकथा-पाठ किया । २०१८-१९ में आयोजित अखिल भारतीय माँ शकुन्तला कपूर स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित मंच द्वारा पुरस्कृत किया गया। साथ ही पहचान की वरिष्ठ सदस्या स्व. शोभा कुक्कल स्मृति सम्मान भी प्रदान किये गये। उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिये ये सम्मान बिजनौर की साहित्यकार डॉ नीरज सुधांशु तथा गुरुग्राम की सुधी साहित्यकार डॉ सविता स्याल को प्रदान किये गये। लघुकथा पुरस्कार क्रमश: भोपाल की डॉ विनीता राहुरिकर (प्रथम), गुरुग्राम की अनघा जोगलेकर (द्वितीय),गुरुग्राम की ही सविता इन्द्र गुप्ता (तृतीय) प्रदान किए गए। इनके अतिरिक्त असि श्रेष्ठ एवं श्रेष्ठ लघुकथा पुरस्कार क्रम से फ़रीदाबाद की डॉ अंजु दुआ, खटीमा के डॉ जगदीश पंत कुमुद इंदौर के श्री राम मूर्त राही, फ़रीदाबाद की आशमा क़ौल तथा डॉ इंदुशेखर गुप्ता, गुरुग्राम की लाड़ों कटारिया एवं नागपुर से पधारे श्री जय प्रकाश सूर्यवंशी जी को दिये गये। 

हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक सरल सौम्य डॉ मुक्ता मदान जी के सम्मानित आगमन ने समारोह की गरिमा को बढ़ा दिया ग़ाज़ियाबाद दिल्ली और गुरुग्राम से पधारे अपने सहृदय साहित्यकार बंधुओं के प्रति साभार कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। समारोह में जहाँ सतीश राज पुष्करणा जी के लघुकथा विषयक सारगर्भित वक्तव्य ने समा बाँधा वहीं सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र था माननीय चित्रा दीदी सौम्य सरल सरस मधुर उदबोधन जिसकी प्रतीक्षा में सुधी श्रोता सधैर्य 4 घंटे बैठे रहे। समारोह डॉ सुदर्शन रत्नाकर जी के सारगर्भित संक्षिप्त अध्यक्षीय वक्त्व्य के साथ समापित हुआ। ध्यात्व्य हो कि डॉ॰ सतीश राज पुष्करणा जी तथा डॉ॰ सुदर्शन रत्नाकर जी प्रतियोगिता के निर्णायक भी थे।

लघुकथा वीडियो | अन्धो मे काना राजा | कवि घनश्याम अग्रवाल

हास्य और व्यंग्य कवि घनश्याम अग्रवाल की चुनाव के सम्बन्ध मे एक लघुकथा


गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

वेबदुनिया पर डॉ. सतीश दुबे का साक्षात्कार



लघुकथा विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति है।
साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे से लघुकथा पर विशेष चर्चा

* सन् 1971 के बाद वे कौन सी समस्याएँ थीं जिन्हें लघुकथाओं ने छुआ?
राजनैतिक अस्थिरता, आम आदमी के प्रति प्रशासनिक जिम्मेदार व्यवहार, सामाजिक-आर्थिक विषमता, पारिवारिक ढाँचे में आए बदलाव के कारण रिश्तों के नए समीकरण।

* हमारे समाज में आज की लघुकथा कितनी गहरी जुड़ी हुई है? 
संक्षिप्त कथा-बोध समाज के आकर्षण का केंद्र नैतिक, दृष्टांत, धार्मिक या लोककथाओं के रूप में गहरे से जुड़ा हुआ है। कथा-विधा की संक्षिप्त अभिव्यक्ति के रूप में लघुकथाओं-लेखन के पश्चात साहित्य जगत में जहाँ लेखन-प्रकाशन का माहौल बना है, वहीं दूसरी ओर पठन-पाठन में इसके प्रति आकर्षण समाज के सूक्ष्म पथ की संक्षिप्त-प्रस्तुति कुछ कहने की मुद्रा में होने के कारण बढ़ा है।

* लघुकथाएँ खूब लिखी जा रही हैं? क्या ये किसी प्रकार की चेतना को जाग्रत करने का प्रयास कर रही हैं?
साहित्य का उद्‍देश्य ही चेतना जाग्रत करना है। लघुकथा लेखन भी इसी पृष्ठभूमि से जुड़ा है? पाठक वर्ग का यदि किसी विधा के प्रति मोह है तो जाहिर है वह उससे वह प्राप्त करना चाहता है जो अछूता है। चेतना एक छोटी सी चिंगारी का विचार बिंदु है यह पाठक पर निर्भर करता है कि वह उसमें निहित ऊर्जा को कितना और किस रूप में प्राप्त करता है।

* लघुकथा की परिभाषा व्यक्त करना चाहें तो किन शब्दों में करेंगे?
- लघुकथा क्षण-विशेष में उपजे भाव, घटना या विचार के कथ्‍य-बीज की संक्षिप्त फलक पर शब्दों की कूँची और शिल्प से तराशी गई प्रभावी अभिव्यक्ति है।'कथा विधा के अंतर्गत संपूर्ण जीवन की, कहानी जीवन के एक खंड की और लघुकथा खंड के किसी विशेष क्षण की तात्विक अभिव्यक्ति है।'

* हिन्दी की पहली लघुकथा किसे मानते हैं?
- इस प्रश्न पर लघुकथा-जगत की मजलिस में कहानी की तरह ही बहस जारी हैं।

* लघुकथा लिखने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
-क्षण में छिपे जीवन के विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति के लिए।

* लघुकथा के मूल तत्व कौन से हो सकते हैं?
- कथ्य, पात्र, चरित्र-चित्रण, संवाद, उद्देश्य।

* अभिव्यक्ति के मामले में लघुकथा कितनी सफल है?
- कथा-विधा में इसका ग्रॉफ सबसे ऊपर है।

* आज की साहित्यिक दौड़ में लघुकथा कहाँ ठहरती है?
- दौड़ के अंतिम निर्णायक छोर पर।

* अन्य विधाओं में लिखने वाले रचनाकारों में से कुछ रचनाकारों के लिए लघुकथा 'पार्ट ऑफ टाइम जॉब 'है? क्या उनकी यह नीति भविष्‍य के लिए नकारात्मक तो नहीं?
- 'जॉब' की बजाय समर्पण भाव से जो लघुकथाएँ लिखते हैं उनके लिए इस लेखन से सुकून और ऊर्जा मिलती है। 'लघुकथा लिखना मेरे लिए कठिन काम है' वक्तव्य देने वाले राजेंद्र यादव अनेक लघुकथाएँ लिखकर तकरीबन ऐसा ही महसूस करते रहे हैं।

* लघुकथा के तेवरों में कौन से तत्वों को रखा जा सकता है, व्यंग्य, संवेदना या कुछ और।
- यह रचनाकार के कथ्य की सम्प्रेष्य-सोच पर निर्भर है।

* सन् 1971 के पश्चात आपकी लघुकथाओं के प्रमुख विषय क्या थे? इस दौर में किन घटनाओं से वे प्रेरित रहीं?
- राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक तथा धार्मिक व समसा‍मयिक समस्त घटनाचक्र जो कि एक संवेदनशील रचनाकार को लिखने के लिए उद्वेलित करता है।

* सन् 1971 के बाद लिखी गई आपकी लघुकथाओं का कोई संग्रह?
1. सिसकता उजास (1974)
2. भीड़ में खोया आदमी (1990)
3. राजा भी लाचार है (1994)
4. प्रेक्षागृह (1998)

प्रस्तुतकर्ता : जितेन्द्र 'जीतू'

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https://hindi.webdunia.com/article/hindi-poet-interview/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9F-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B9%E0%A5%88-109052800071_1.htm

बारिश तथा अन्य लघुकथाएं (लघुकथा संग्रह) | सुभाष नीरव

● बारिश तथा अन्य लघुकथाएं 
(लघुकथा संग्रह) 
लेखक : सुभाष नीरव
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मूल्य : Rs. 195/- (पेपरबैक संस्करण)

ISBN : 978-93-88348-49-2

प्रकाशक : किताबगंज प्रकाशन
ICS (रेमंड शोरूम), नजदीक SBI बैंक
राधाकृष्ण मार्केट, गंगापुर सिटी-322201
जिला- सवाई माधोपुर (राजस्थान)
Phone : 8750660105
Email : kitabganj@gmail.com

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● इस नवीनतम मौलिक लघुकथा संग्रह "बारिश तथा अन्य लघुकथाएं" में सुप्रसिद्ध लघुकथाकार एवं पंजाबी साहित्य अनुवादक सुभाष नीरव जी ने मानव जीवन के रिश्ते और समाज को अपनी लघुकथाओं की मुख्य विषयवस्तु बनाया है । पंजाबी साहित्य के हिन्दी अनुवाद करने की अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद भी सिर्फ किताबगंज प्रकाशन के लिए उन्होंने विशेष रूप से यह मौलिक लघुकथा संग्रह तैयार किया है । लघुकथा के सुधी पाठकों के लिए यह एक जरूरी पुस्तक है। यह पुस्तक अब ऑनलाइन शापिंग प्लेटफॉर्म amazon.in पर बिक्री के लिए उपलब्ध है। जो भी पाठक इस किताब की डायरेक्ट बुकिंग कराना चाहते हैं वे हमें हमारे व्हाट्सअप नंबर # 8750660105 पर इनबॉक्स में संपर्क कर सकते हैं ●

अथवा amazon.in से खरीदने के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें-

https://www.amazon.in/dp/B07QCY4556/ref=cm_sw_r_wa_apa_i_HYXRCbXC27E7A?fbclid=IwAR2221v7Od_xFvhcXS4joeZp9GqSqI5n2lcaJXRavtGcAm1vYIdJsRE1TMo

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

लघुकथाओं में आज के यथार्थ का चित्रण होता है। - डॉ. लता अग्रवाल

अ. भा. महिला साहित्य समागम, इंदौर में डॉ. लता अग्रवाल का वक्तव्य


रविवार, 14 अप्रैल 2019

कथासृजन प्रकाशन की 2019 अखिल भारतीय लघुकथा एवं कहानी प्रतियोगिता - विस्तृत जानकारी:

कथासृजन प्रकाशन की फेसबुक वॉल से
1. रचनाएँ
आप प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए लघुकथा एवं कहानी भेज सकते हैं। शब्द सीमा इस प्रकार है:-
लघुकथा: अधिकतम 500 शब्द

छोटी कहानी: 500 से 2,000 शब्द
कहानी: 2,000 से 10,000 शब्द

विषय कोई भी हो सकता है।

2. प्रेषण विधि

कथासृजन प्रकाशन को अपनी रचनाएँ ईमेल के द्वारा प्रेषित करें। ईमेल पता है: kathasrijan@outlook.com
रचना ईमेल में ही लिखें अथवा ईमेल के साथ Docx/PDF फ़ाइल संलग्न करें। ईमेल में अपना नाम व सम्पर्क सूचना दें।

3. चयन प्रक्रिया एवं महत्वपूर्ण तिथियाँ

31 मई 2019: रचनाएँ प्रेषित करने की अंतिम तिथि

आपकी रचनाएँ प्राप्त होने के पश्चात हमारे संपादक उनकी समीक्षा करेंगे। मूल्यांकन के आयाम हैं:- मौलिकता, अभिव्यक्ति, एवं विषय की नवीनता। (अपेक्षित स्तर: उचित भाषा, व्याकरण एवं वर्तनी)
कथासृजन प्रकाशन का चयन निर्णय ही अंतिम व मान्य है। चयन प्रक्रिया के विषय में किसी भी रचयिता अथवा उनके प्रतिनिधि से कथासृजन प्रकाशन कोई भी चर्चा व विचार-विमर्श नहीं करेगा।
30 जून 2019: चयनित लेखकों को ईमेल के द्वारा सूचित किया जाएगा। तत्पश्चात हमारे साथ अपनी रचना प्रकाशित करने का निर्णय लेखक का ही होगा। लेखक/लेखिका परिचय पत्र का अनुरोध चयनित लेखकों से ही किया जाएगा।
जिन रचनाओं का चयन नहीं हुआ, उनके लेखकों को भी ईमेल के द्वारा सूचित किया जाएगा। कथासृजन प्रकाशन के चयनकर्ताओं के द्वारा किसी भी रचना के मूल्यांकन के विषय में विस्तृत जानकारी देना संभव नहीं है।
31 जुलाई 2019: "सौंधी" संकलन निर्णित
14 सितम्बर 2019: प्रकाशन एवं ऑनलाइन लोकार्पण. प्रकाशनोपरान्त "सौंधी" पुस्तक ऑनलाइन पुस्तक विक्रेताओं के द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी।

4. प्रवेश शुल्क
इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कोई शुल्क नहीं है

5 . प्रविष्ट की गई रचना प्रतियोगी की स्वयं लिखित एवं मौलिक हो। कथासृजन प्रकाशन मौलिकता की पूर्ण एवं स्वतंत्र जाँच करने में सक्षम है और "काॅपीराईट" नियमों के प्रति सजग व गम्भीर है।

6. प्रविष्ट की गई रचना पूर्व अप्रकाशित होनी चाहिये

7. प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आपकी आयु 31 मई 2019 को 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।

8. प्रविष्टियों की संख्या के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है

9. प्रकाशित रचनाओं के लेखकों को सौंधी संकलन की एक प्रति प्रकाशनोपरान्त निःशुल्क दी जाएगी।

10. प्रतियोगिता के संदर्भ में डाक पत्रव्यवहार अथवा फ़ोन के द्वारा संचार संभव नहीं है। आप अपने प्रश्न ईमेल के द्वारा प्रेषित कर सकते हैं।

11. कृपया प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अपनी रचना प्रेषित करने के समय हमें इन नियमों के प्रति अपनी स्वीकृति भी दें।

आभार,
- कथासृजन प्रकाशन

लघुकथा | खलील जिब्रान की तीन लघुकथाओं का नेपाली अनुवाद | अनुवादकर्ताः एकदेव अधिकारी जी


Related image

1)
आलोचना – खलील जिब्रान 
खलील जिब्रानको लघुकथा ‘Critics’ को नेपाली अनुवाद

एक रात समुद्रीयात्रामा निक्लेको एक घोडसवार सडक किनारको एक विश्रामगृहमा पुग्यो। उ घोडाबाट ओर्लियो र अरू सबै यात्रुहरू जस्तै मानिसहरू तथा रात प्रति निश्चिन्त हुँदै घोडा विश्रामगृहको द्वार नजिकैको एउटा रूखमा बाँध्यो र विश्रामगृहभित्र पस्यो।

बिहान यात्रु बिउँझेपछि आफ्नो घोडा चोरीएको थाहा पायो। उसलाई आफ्नो घोडा हराएकोमा र चोरीको विचार कुनै मानिसको मनमा आएकोमा दुःख लाग्यो।

त्यसपछि त्यस विश्रामगृहमा बस्ने उसका सहयात्रीहरू उसको नजिक आए र कुरा गर्न थाले।

पहिलो व्यक्तिले भन्यो, “कति बेवकुफ तपाईँ त, घोडालाई तबेलाबाहिर बाँध्नु हुन्छ त?”

अनि दोश्रोले भन्यो, “अझ घोडाको खुट्टा नबाँधी छोड्ने।”

अनि तेश्रोले भन्यो, “पाटे अल्छी र सुस्तहरूले मात्र घोडा राख्छन्।”

यो सबै सुनेपछि त्यो यात्रुलाई आश्चर्य लाग्यो। उसले मुख फोऱ्यो, “मित्रवर, मेरो घोडा चोरी भएको छ त्यसैले तपाईँहरू सबै यहाँ जम्मा भएर मेरै दोष तथा कमजोरीहरू देखाउन हतार गरिरहनु भएको छ। आश्चर्य, यहाँहरूबाट एकै शब्दको गुनासो पनि त्यो चोरको बारेमा निस्केको छैन जसले मेरो घोडा चोऱ्यो।”


2)

खोजी – खलील जिब्रान
खलील जिब्रानको लघुकथा ‘The Quest’ को नेपाली अनुवाद


एक हजार वर्ष पहिले दुई दार्शनिकहरू लेबनानको एक पर्वतमा भेट भएछ

अनि एक दार्शनिकले अर्कोलाई सोध्यो – “कहाँ जाँदै हुनुहुन्छ?”

अनि अर्को दार्शनिकले उत्तर दियो – “म यौवनको झरनाको खोजीमा हिँडीरहेछु जुन मलाइ थाहा छ – यीनै पर्वत, पखेरोहरूमा कतै हुनु पर्छ। मैले पढेको छु कि त्यो झरना सूर्यको दिशातिर बगिरहेको हुनेछ। अनि तपाईँ के खोज्दै हुनुहुन्छ?”

पहिलो दार्शनिकले उत्तर दियो – “म मृत्युको रहस्यको खोजीमा हिँडीरहेछु।”

अनि ती दुवै दार्शनिकलाई लाग्यो कि अर्को चाहिँ ज्ञानमा त्यति पोख्त छैन, अनि उनीहरू एक अर्कासँग वाद-विवाद, घोच-पेच गर्न थाले र अर्कोलाई आध्यात्मिकतामा अन्धो भएको दोषारोपण गर्न थाले।

त्यति बेला जब ती दुवै दार्शनिकहरू एक-अर्कासँग चर्को रूपमा विवाद गर्दै थिए, एक अपरिचित, जसलाई मानिसहरू मूर्ख मान्ने गर्थे, नजिकै आयो र उनीहरूको चर्का-चर्की ध्यान दिएर सुन्न थाल्यो।

त्यसपछि ऊ ती दुवै दार्शनिकहरू भए छेउ आयो र भन्यो – “महाशय, मलाई यस्तो लाग्दैछ कि यहाँहरू दुवै दर्शनशास्त्रको एकै भागको बारेमा कुरा गरिरहनुभएको छ, तर फरक शब्दहरूमा त्यहि कुराहरू अर्कोलाई मनाउन खोज्दै हुनुहुन्छ। तपाईँहरू एकजना यौवनको झरना खोज्दै हुनुहुन्छ भने अर्को मृत्युको रहस्य जान्न चाहनुहुन्छ। तर दुवै एकै कुरा त हो, अनि ती दुवैको वासस्थान तपाईँहरूमै छ।”

अनि त्यो अपरिचित फर्कँदै भन्न थाल्यो – “अलविदा सन्तहरू।” अनि जब ऊ फर्कँदै थियो ऊ सन्तुष्ट मुद्रामा हाँस्दै थियो।

अनि ती दुई दार्शनिकहरूले एकअर्कालाई केहिबेर मौनतापुर्वक नियाले, अनि उनिहरू पनि हाँस्न थाले। अनि एउटाले अर्कोसँग भन्यो – “हिँडनुस, सँगै खोज्न जाउँ।”


3)

उचाइ – खलील जिब्रान 
खलील जिब्रानको लघुकथा ‘Poets’ को नेपाली अनुवाद

चार कविहरू एउटा टेबलमा राखिएको सोमरसको वरिपरि उभीइरहेका थिए।

पहिलो कविले भन्यो – “मेरो तेश्रो आँखाबाट मैले देखिरहेछु यस मदिराको मधुर बासना यहाँ वरपर यसरी घुमिरहेछ मानौँ चराको एक हुल कुनै तिलस्मी जङ्गलमाथि बादलसरी विचरण गरिरहेछ।”

दोश्रो कविले मुख खोल्यो – “मेरो भित्री श्रवण शक्तिबाट मैले गोधुली साँझमा सुनिने चराहरूको मधुर चिरबिर सुनिरहेछु। त्यस सङ्गीतको माधुर्यले मेरो हृदय यसरी कैद गरेको छ जसरी कमलको पत्रभित्र मौरी कैद हुन्छ।”

तेश्रो कविले आफ्ना आँखा बन्द गरेर आफ्ना दुबै हात माथि फैलाउँदै भन्यो – “म तिनीहरूलाइ आफ्ना यी हातहरूले स्पर्श गरिरहेछु। म ती पँखेटाहरू अनुभव गरिरहेछु मानौँ सुतिरहेकी परीहरूको मन्द श्वास मेरा औँलाहरूलाइ स्पर्श गरिरहेछन।”

चौथो कवि नजिकै गयो र कप आफ्नो हातमा लिँदै भन्यो – “दुःखको कुरा मित्रवर! म यहाँहरूले भन्नुभए जस्तो दृष्टि, स्पर्श र श्रवणमा निकै कमजोर छु। म न त यस मदिराको बासना देख्न सक्छु, न यसको मधुर सङ्गीत सुन्न सक्छु, न यसका पँखेटाहरूको स्पर्श गर्न सक्छु। म त यहाँ मात्र मदिरा देख्छु जसलाइ म पिउन चाहन्छु ता कि म मा पनि यहाँहरू जस्तै इन्द्रीय ज्ञानको अङ्कुर फुटोस र यहाँहरूको उचाईमा पुग्न सकुँ।”

अनि उसले त्यो कप उठायो र अन्तिम थोपासमेत नराखेर घट-घट पियो।

ती तीन कविहरू, आश्चर्यचकित हुँदै उसलाई हेरेको हेऱ्यै भए, अनि उनीहरूको आँखामा अतृप्त साथै नरमाइलो किसिमको घृणाको भाव प्रष्ट देख्न सकिन्थ्यो।


Source:
http://nepalpati.com/news/khalil-gibran-three-short-stories/

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

साक्षात्कार: सतीश राज पुष्करणा: लघुकथा के लब्धप्रतिष्ठित रचनाकार



स्वत्व समाचार डॉट कॉम के लिए अभिलाष दत्त जी द्वारा August 20, 2018 को लिया गया डॉ. सतीश राज पुष्करणा जी का महत्वपूर्ण साक्षात्कार


लाहौर से पटना आकर बसे सतीश राज पुष्करणा पिछले 45 साल से लघुकथा लिख रहे हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से लघुकथा सम्मान से सम्मानित पुष्करणा लघुकथा विधा की पहली समीक्षात्मक किताब “लघुकथा: बहस के चौराहे पर” लिख चुके हैं। स्वत्व समाचार डॉट कॉम के लिए अभिलाष दत्त ने उनसे बातचीत की।




1. आपका जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ, वर्तमान में आप पटना में रह रहे हैं। इस सफ़र के बारे में बताइए।

उत्तर:- मेरे दादा परदादा लाहौर में मॉडर्न टाउन में 51 नंबर की कोठी में रहते थे। मेरे दादा जमींदार थे। उस समय भारत पाकिस्तान एक ही था। पिताजी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में रेलवे इंजीनियर थे। उसके बाद सन 47 में देश आजाद होते ही देश का बंटवारा हो गया। हमारा पूरा परिवार बग्घी पर बैठ कर मामा के साथ अमृतसर चले आए। उसके बाद हम लोग पिताजी के पास सहारनपुर चले गए। वहीं से मैंने मैट्रिक किया। इलाहाबाद के के.पी.इंटर कॉलेज से इंटर पास किया। आगे बी.एस.सी के पढ़ाई के लिए देहरादून के डी.बी.एस कॉलेज में दाखिला लिया। 1964 के जनवरी मेंशादी हो गयी। उसी साल नवंबर में पिता बनने का सुख प्राप्त हुआ।

श्रीमती जी के कहने पर नौकरी की तलाश शुरू की। मामा ने कहा उनके बिज़नेस में हाथ बताऊं। मेरा मन रिश्तेदारी में काम करने का बिल्कुल भी नहीं था। नौकरी की तलाश में पटना चला आया। पटना में यूनाइटेड स्पोर्ट्स वर्क में काम मिला 125 रुपये वेतन पर। छः महीने के बाद वह काम छूट गया। उसके बाद मखनिया में पटना जूनियर स्कूल में गया काम मांगने के लिए , वहाँ से उन्होंने मुझे सेंट्रल इंग्लिश स्कूल भेज दिया। इस स्कूल में केवल महिला शिक्षक को ही नौकरी पर रखा जाता था। मेरी श्रीमती जी को वहाँ नौकरी मिल गयी। स्कूल के बच्चे हमारे यहाँ ट्यूशन पढ़ने आने लगे। मैं खुद गणित और अंग्रेजी पढ़ाया करता था। उसके बाद अपना स्कूल खोला विवेकानंद बाल बालिका विद्यालय। 76 में अपना खुद का प्रेस , ‘बिहार सेवक प्रेस’ शुरू किया। 2001 में आधुनिकरण के अभाव के कारण प्रेस बन्द हो गया। प्रेस बन्द होने के बाद भी काम चलता रहा।


2. हिंदी साहित्य में रुचि कैसे जगी?

उत्तर:- विज्ञान का विद्यार्थी था और भाषा मेरी पंजाबी थी। इलाहाबाद के एक मित्र थे राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी बंधु। उन्होंने मुझे हिंदी भाषा का ज्ञान दिया। मेरा लगाव हिंदी के तरफ होने लगा। उसके बाद मैंने लिखना शुरू कर दिया। मेरी पहली कहानी कॉलेज की पत्रिका में छपी। उसके बाद आगरा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका निहारिका में मेरी तीन कहानियों को लगतार प्रकाशित किया।
वर्तमान में हर पत्रिका में मेरी रचना छप चुकी है। दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्रिका आज-कल में 1990 में सम्पादक भी बना।

3. हिंदी साहित्य के लघुकथा विधा में आपको भीष्म पितामह कहा जाता है। इस विधा में कैसे आना हुआ?

उत्तर:- सन 1977 में हरिमोहन झा (मैथिली साहित्यकार) मेरे अभिभावक के तौर पर मुझे हमेशा स्नेह किया करते थे। एक बार उन्होंने मुझसे पूछा , तुम हो क्या?

मैं उनकी बातों को समझ नहीं सका। उसके बाद उन्होंने कहा तुम्हारे काम से तुमको संतुष्टि मिल सकती है , लेकिन इससे साहित्य का भला नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा अगर 100 कहानीकार का नाम लिखूं तो उसमें मेरा नाम नहीं आएगा।

उसके बाद वह चले गए। दूसरी बार आए तो उन्होंने दुबारा पूछा, कुछ सोचा? मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि छोटी छोटी कथा लघुकथा लिखा करो।

एक हफ़्ते के बाद मैंने पाँच लघुकथा उनको लिखा कर दिखाया। वह पांचों लघुकथा देख कर वह बहुत खुश हुए। बस लघुकथा लिखने का सिलसिला वहाँ से चल पड़ा।

4. हिंदी साहित्य में लघुकथा क्या है?

उत्तर:- आज के व्यस्त जीवन में लोग छोटी-छोटी कथाएं पढ़ना अधिक पसंद करते हैं। कम शब्दों में सारी बातें लघुकथा में कही जाती है। अधिक से अधिक दो पेज तक की लघुकथा होनी चाहिए।

आपातकाल के समय पेपर की भारी किल्लत हुई। साहित्य वाला पेज घट कर एक – दो कॉलम तक सीमित हो गयी। इस कमी के कारण कम शब्दों की कथा चाहिए थी। इसी कारण लघुकथा प्रसिद्ध हो गयी। आज के समय लघुकथा पर अनेक प्रकार के शोध हो रहे हैं। बिहार में पिछ्ले 29 सालों से लघुकथा सम्मेलन आयोजित हो रही है।

आजकल फेसबुक पर अनगिनत नए लेख़क सब लघुकथा लिख रहे हैं। लेकिन फेसबुक पर लिखी जा रही लघुकथा उच्चस्तरीय नहीं होती है। उसका मुख्य कारण होता है वहाँ कोई संपादक नहीं होता है।
प्रायः हर दशक में लघुकथा में बदलाव देखने को मिली है। सामाज का रूप प्रस्तुत करने के कारण इसमें बदलाव आते रहते हैं।

5. नए लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर:- आपकी रचनाओं में दम है तो लोग आपको एक दिन जरूर पहचानने लगेंगे। सवाल यह है आप कैसा लिख रहे हैं। पाठक जिसको अच्छा कहें वही अच्छा माना जाएगा। साहित्य के लिए लिखिए। आत्ममुग्धा से बचिए।
सूरज कभी किसी को नहीं कहने जाता है कि मुझे प्रणाम करो। हम सुबह उठते है और खुद ही उसे प्रणाम करते हैं।
यह बात हमेशा याद रखिए लेखक से बड़ा पाठक होता है।


Source:
https://swatvasamachar.com/sanskriti/satish-raj-pushkarna-laghukatha/

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

पुस्तक समीक्षा | श्रापित योद्धा की कष्ट कथा | सतीश राठी

महाभारत हमारे प्राचीन इतिहास की एक ऐसी कथा है, जिसमें धर्म भी है धर्मराज भी है और अधर्म भी है, कृपा भी है पीड़ा भी है, स्वार्थ भी है सेवा भी है, वैमनस्य भी है प्रेम भी है, राजनीति भी है त्याग भी है ,प्रतिशोध भी है दया भी है, कपट भी है निश्चलता भी है, छल भी है और ईमानदारी भी । यह कथा जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसमें सारे सुख भी हैं ,सारे दुख भी और इसी कथा का एक पात्र ऐसा भी है जिसके क्रोध ने उसके जीवन को ऐसा नष्ट किया कि वह अपनी यातना, अपनी पीड़ा को सहते हुए आज तक भटक रहा है। ऐतिहासिक किंवदंती को उपन्यास का मुख्य विषय बना कर अश्वत्थामा जैसे खलनायक पात्र को नायक बनाकर श्रीमती अनघा जोगलेकर ने अपना उपन्यास रचा है, 'अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व'।

 जीवन में सुख का घंटों का समय भी क्षण मात्र लगता है और दुख का क्षण भी व्यतीत ही नहीं होता । यदि किसी व्यक्ति को दुख और यातना का जीवन भर का श्राप मिल जाए और जीवन अमर हो जाए, तो फिर उसका भटकाव कैसा होगा, इसे शब्द देना शायद  बड़ा कठिन है और एक कड़ी परीक्षा भी। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मुझे यह लगा कि अनघा जी इस कड़ी परीक्षा में मेरिट लिस्ट में पास हुई हैं। उन्होंने महाभारत के इस सूक्ष्म से विषय को उठाकर विस्तार दिया है।  उनकी भाषा पर पकड़ और लेखन के शिल्प पर उनका आधिपत्य ,इतना अधिक तैयारी से परिपूर्ण है कि उपन्यास को पढ़ते हुए कहीं पर भी यह नहीं लगा कि हम कहीं उससे अलग हो रहे हैं। एक चुनौतीपूर्ण बात थी  कि अनघा जी ने अश्वत्थामा पर उपन्यास लिखने का विचार बना लिया और यह विचार पूरे शोध के साथ प्रस्तुत भी किया।

 ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति लिखने बैठता है, तो पात्र उसके सामने जीवंत हो जाते हैं। यहां पर अश्वत्थामा जैसे पात्र पर उसे जीवंत कर लिखना कितना पीड़ादायक होगा यह समझा जा सकता है। उपन्यास का प्रारंभ शारण देव नामक एक ब्राह्मण को कथा का सूत्रधार बनाकर किया गया है। शारण देव, उसका पुत्र शत और उसकी पत्नी भगवती इस कथा के सूत्रधार पात्र हैं जो कहीं ना कहीं अपनी भावनाओं के साथ इसमें जुड़ भी जाते हैं। यह तो दंतकथा है कि अश्वत्थामा जो दुर्योधन के अंतिम सेनापति रहे कृष्ण के श्राप से आज भी वन वन भटक रहे हैं, लेकिन क्या वाकई में श्राप होता है या फिर कर्मफल जीवन के साथ यात्रा करते हैं।लेखिका ने प्रत्येक अध्याय के पहले ऐसे कुछ प्रश्न भी उठाए हैं और उनके समाधान भी दिए हैं। महाभारत में कई सारी चमत्कारिक घटनाएं वर्णित है, उनके पीछे के तथ्य और तर्क को  विभिन्न अध्यायों के  पूर्व तार्किक समाधान के साथ प्रस्तुत किया गया है ।

आचार्य द्रोणाचार्य का पुत्र, आचार्य कृपाचार्य का भांजा ,दुर्योधन और कर्ण का प्रिय मित्र अश्वत्थामा जब अपनी कथा खुद शारण देव के सामने वर्णित करता है तो अध्याय दर अध्याय उसका दुख, उसका पश्चाताप उसके शरीर से निकल रहे मवाद की तरह सामने बहता हुआ दिखता है। जन्म के समय अश्व की तरह हिनाहिनाने की आवाज करते हुए पैदा होने से पिता ने उनका नाम अश्वत्थामा रख दिया और यह अभिशापित नाम इतिहास का एक ऐसा हिस्सा बना जो दर-दर भटकने के लिए शापित हो गया है।  इसकी पूर्व पीठिका  के रूप में कृपा कृपी के जन्म की भी कथा है और वहीं से सूत्र जोड़कर कथा को विस्तार दिया है। अनावश्यक हिस्से को बड़ी कुशलता के साथ उपन्यास का हिस्सा बनने से हटा दिया गया है। कृष्ण भी हर पृष्ठ पर विद्यमान होते हुए शायद कहीं नहीं है। यह लेखिका की कुशलता की बात है। कौरव और पांडव और महाभारत के पात्र इतने महत्वपूर्ण रहे हैं कि, उनकी छाया में कोई दूसरा पात्र खड़ा ही नहीं हो सकता, पर यह अनघा जी का लेखकीय कौशल्य है कि उन्होंने  अन्य समस्त महत्वपूर्ण पात्रों को छाया रूप में रखते हुए अश्वत्थामा का अंतर्मन यहां पर प्रस्तुत किया है ।क्रोध भी आता है और दया भी पैदा होती है। उसका दुख एक खलनायक का दुख है, पर पाठक वहां पर भी जाकर जुड़ता है। खलनायक को कहीं पर भी नायक बनाने की कोशिश नहीं की गई है पर रचना कौशल से उसका पश्चाताप भी सामने आया है और उसका क्रोध तथा अहंकार भी । यह सब एक साथ किसी पुस्तक में रखना जिस अतिरिक्त कौशल की  जरूरत की ओर इशारा करता है वह इस युवा लेखिका के पास है, और इसी कौशल के साथ लिखे जाने से यह उपन्यास विश्वसनीय भी हो गया है।

उस समय के सारे तथ्यों पर खोजबीन के साथ प्रत्येक अध्याय के पहले जो समाधान टिप्पणियां दी गई हैं वह सारी टिप्पणियां अपने आप में बड़ी महत्वपूर्ण हैं ,क्योंकि उनमें उठाए गए प्रश्न और उनके समाधान फिर कुछ नए प्रश्न भी खड़े कर देते हैं, और पाठक की सोच को विस्तार भी देते हैं। शायद यह विस्तार पाना ही तो किसी उपन्यासकार की इच्छा होती है, और उसके लिखे जाने की सफलता भी। इस मायने में अनघा जी पूरी तरह सफल हैं और बधाई की हकदार भी।

यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है। इसे लेखिका से सीधे प्राप्त करने हेतु नीचे दिये ईमेल पर सम्पर्क कर सकते हैं
anaghajoglekar@yahoo.co.in


- सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर ,
इंदौर 452 010
मोबाइल 94250 67204

-------------

Note:

हालांकि अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व एक उपन्यास है लेकिन लेखिका ने उपसंहार में एक लघुकथा को उद्धरित किया है। एक उपन्यास और लघुकथा में सहसंबंध स्थापित करना स्वागत योग्य है।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

लघुकथा: चमगादड़ | प्रेरणा गुप्ता

"अहा ! मजा आ गया। लगता है, आज फिर चमगादड़ घुस आया।" चीख-पुकार मची हुई थी। 

वो भी एक ज़माना था, जब वह जानती भी न थी कि ‘डर’ नाम की चिड़िया होती क्या है? अकेले यात्रा करना, अँधेरे में कहीं भी चले जाना। लेकिन विवाह के बाद ससुराल में सबकी डराती हुई आँखों, तेज आवाजों के सामने न जाने कब उसके अन्दर डर की चिड़िया ने बसेरा कर लिया।
  
एक दिन उसका पति तेज आवाज के साथ आँखें निकालकर उसे डरा-धमका रहा था। तभी घर के बाहर पीपल के पेड़ से एक चमगादड़ उड़ता हुआ कमरे में आ घुसा और चारों ओर चक्कर काटता अपने जलवे दिखाने लगा। उसे सिर पर मँडराता हुआ देख पति की आँखें भयभीत होकर सिकुड़ गईं और वह दहशत से हाय-तौबा मचाने लगा। उसका ये हाल देखकर वह ख़ुशी से बोल पड़ी थी, “वाह! एक इंसान को डराकर अपनी वीरता का प्रदर्शन करने चले थे, एक चमगादड़ भी न भगा पाए!”  

फिर उसने चमगादड़ को खदेड़कर ही दम लिया था| मगर चमगादड़ के साथ, उसके अन्दर बसी, ‘डर वाली चिड़िया’ भी भाग निकली थी।

आज फिर चमगादड़ अपने जलवे दिखा रहा था, और वह अपना मुँह ढाँपे, खिलखिलाती हुई मन ही मन उसे धन्यवाद दे रही थी, "हे चमगादड़ तू ऐसे ही आते रहियो और डराने वालों पर अपनी दहशत फैलाते रहियो।"

- प्रेरणा गुप्ता 
कानपुर


लघुकथा वीडियो : चूहे | दीपक मशाल |



चूहे आजकल थोड़े निर्भीक हो चले थे। ऐसा तो ना था कि आगे पीछे के 10 मोहल्लों की बिल्लियों ने मांसाहार छोड़ दिया था। कारण था कि चूहे बिल्ली के इस खेल में आजकल बाजी चूहों के हाथ में थी। चूहे इतने चतुर और सक्रिय हो गए थे कि आसानी से बिल्लियों के हाथ ना आते। अब दूध मलाई इतने महंगे हो रखे थे कि इंसानों को ही नसीब ना थे तो बिल्लियों को कहां से मिलते।

नतीजा यह हुआ कि बिल्लियां मरि‍गिल्‍ली हो गईं। इन हालात से उबरने के लिए किसी विशेषज्ञ वास्तुशास्त्री किराए पर बिल्लियों ने विंड-चाइम बांध लिए। वैसे बांधा तो घर पर था लेकिन खुद की नज़र में कुछ ज्यादा चतुर बिल्लियाेें ने तुरंत फायदे की खातिर वो विंड-चाइम घंटियां अपने गले में ही बांध लीं।

- दीपक मशाल

बीजेन्द्र जैमिनी के सम्पादन में मां पर लघुकथा संकलन



श्री बीजेन्द्र जैमिनी के सम्पादन में मां पर लघुकथा संकलन उनके ब्लॉग पर निम्न कड़ी पर उपलब्ध है:

https://bijendergemini.blogspot.com/2019/03/blog-post_95.html


इस संकलन के संपादकीय में,

"मां के बिना जन्म सम्भव नहीं है। प्रथम गुरु भी मां है। मां जीवन का सत्य है। जिसकी मां नहीं होती है यानि बचपन में बिछडे जाती है कारण कुछ भी हो सकता है। उसका जीवन संधर्ष से भर होता है। 

ऐसे ही जीवन के संधर्ष की लघुकथाओं को पेश किया जा रहा है। अनुभव व संधर्ष सभी के अपने अपने है। इसलिए लघुकथा की विषय वस्तु अलग - अलग होना निश्चित है। भाषा शैली भी अलग अलग होगी। यही स्थिति ही लघुकथा की पहचान होती है। जो लेखक की मौलिक पहचान होती है।"